राज खोसला..संगीत और यूसुफ़साहब!
मैंने
यहां मेरे आर्टिकल में लिखा है कि फ़िल्मकार राज ख़ोसला वैसे गायक के तौर पर
तक़दीर आज़माने बंबई आए थे; लेकिन देव आनंद और गुरु दत्त की प्रोत्साहन की
वजह से निर्देशन में मुड़े!
इस मैफल में वो हार्मोनियम बजा रहे है और अपने अभिनय सम्राट दिलीपकुमार गा रहे है!
यह
चित्र शायद किसीको चौकाने वाला लगे; लेकिन अगर दिलीपकुमार की ट्रैजडी किंग प्रतिमा वाली फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) आप गहराई से देखें, तो उसमे चंद्रमुखी के कोठे पर
वो अपनी धुन में जो गुन- गुनातें हैं..वह किसी शास्त्रीय रागदारी से कम नहीं
था!
इस
सिलसिले में मुझे हमारे (गुजरे हुए) चित्रपट समीक्षक बापू वाटवे जी ने एक
क़िस्सा सुनाया था कि.. 'दिलीप - कुमार फ़िल्म 'शिकस्त' (१९५३) की शूटिंग के लिए
जब पुणे के..'प्रभात स्टुडिओ' में थे तब आते जाते इस कंपनी की
विश्वविख्यात 'संत तुकाराम' (१९३६) फ़िल्म का "आधी बीज एकले.." अभंग
गुन - गुनाते थे!'
मैंने भी लगभग बीस साल पहले एक अनौपचारिक समारोह में यूसुफ़ साहब को शहनाई पर ताल देते हुए और गुनगुनातें रूबरू देखा-सुना हैं!
- मनोज कुलकर्णी
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