Friday 24 May 2019

"वो तो कहीं हैं और मगर दिल के आस पास
फिरती है कोई शह निगाह-ए-यार की तरह.."

शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी साहब कि याद आज उनके स्मृतिदिन पर इस तरह आयी!

''तुम जो हुए मेरे हमसफर रस्ते बदल गये.." या "तुमने मुझे देखा होकर मेहेरबान.." जैसे रुमानी गीत हो..या "हम हैं मता-ए-कुचा ओ बाजार कि तरह.." जैसी नज्म हो..उनकी शायरी को हमेशा सराहा है!

याद आ रहा है..मजरूहसाहब को एक मुशायरे के दौरान मैं मिला था..तब प्यार से उन्होने सर पर हाथ रखा था!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी