Friday 30 November 2018

गायक मोहम्मद अज़ीज़ नहीं रहे!

रफीसाहब की याद दिलातें गायक मोहम्मद अज़ीज़!
रफीसाहब के बाद उनकी याद अपनी आवाज के ज़रिये कायम रखने की क़ामयाब कोशिश करनेवालें.. लोकप्रिय पार्श्वगायक मोहम्मद अज़ीज़ अब इस दुनिया से रुख़सत हो गएँ!

'खुदगर्ज़' (१९८७) फिल्म में साधना सरगम के साथ मोहम्मद अज़ीज़ ने गाया..
गोविंदा और नीलम पर फिल्माया "दिल बहलाता हैं मेरा आप के आ जाने से.." हीट रहा!
पश्चिम बंगाल के गुमा 
से आएं सईद मोहम्मद अज़ीज़-उन-नबी ने बांग्ला फिल्म 'ज्योति' से अपना पार्श्वगायन शुरू किया और १९८४ के दौरान वह बम्बई आए। यहाँ 'अंबर' फिल्म के लिए गाने के बाद संगीतकार अनु मलिक ने उनको बड़ा ब्रेक दिया..मनमोहन देसाई की फिल्म 'मर्द' (१९८५) में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के लिए गाने का!


इसके बाद मोहम्मद अज़ीज़ सफलता की सीढ़ी चढ़ते गएँ..इसमें जानेमाने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी ने उनसे ज्यादा गानें गवाएँ। कहतें थे वह सातवें सूर में गाते थे..जो दुर्लभ होता हैं! इसकी मिसाल थी लक्ष्मी-प्यारे के संगीत में उन्होंने गाया समीर का गाना "सारे शिकवे गिले भुला के कहो.."
'ख़ुदा गवाह' (१९९२) फिल्म में मोहम्मद अज़ीज़ ने कविता कृष्णमूर्ती के साथ गाया 
"तू मुझे कुबूल मैं तुझे कुबूल.." परदे पर साकार करते अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी!


उन्होंने लता मंगेशकर और आशा भोसले से तब उभरती गायिकाओं के साथ कमाल के डुएट्स गाएँ। जैसें की राकेश रोषन की फिल्म 'खुदगर्ज़' (१९८७) के लिए उन्होंने साधना सरगम के साथ गाया "दिल बहलाता हैं मेरा आप के आ जाने से.." गोविंदा और नीलम पर फिल्माया यह गाना इतना हीट रहा की हाल ही में एक शख्स का उसपर डांस सोशल मीडिया पर छा गया!..इसके बाद मुकुल आनंद की फिल्म 'ख़ुदा गवाह' (१९९२) के लिए उन्होंने कविता कृष्णमूर्ती के साथ गाया "तू मुझे कुबूल मैं तुझे कुबूल.." अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी पर लाजवाब फिल्माया गया।

मोहम्मद अज़ीज़ जी ने लगभग २००० से ऊपर गानें गाएं..जिसमें बांग्ला और हिंदी के साथ ओड़िआ भाषाओँ में गाएं गानें भी शामिल हैं।
'आखिर क्यों?' (१९८५) फिल्म में मोहम्मद अज़ीज़ ने गाया..
"एक अँधेरा लाख सितारें.." परदे पर पेश करते राजेश खन्ना!

उनको सुमनांजली देते हुए..उन्होंने 'आखिर क्यों?' (१९८५) फिल्म के लिए गाया इंदिवर जी का अर्थपूर्ण गीत याद आता हैं..जो राजेश खन्ना और स्मिता पाटील पर संज़ीदगी से फिल्माया गया था..आज इनमें से कोई इस दुनियाँ में नहीं!

"एक अँधेरा लाख सितारें
एक निराशा लाख सहारें
सबसे बड़ी सौगात हैं जीवन
नादाँ हैं जो जीवन से हारें.."


- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']

Thursday 29 November 2018

बॉलीवुड के मशहूर स्टार लेख़क सलीम ख़ान!

मशहूर फ़िल्म लेखक सलीम ख़ान साहब!

लोकप्रिय भारतीय सिनेमा के दिग्गज..मशहूर फ़िल्म लेखक सलीम ख़ान साहब को 'इफ्फी' का 'जीवन गौरव सम्मान' दिया गया! इस अवसर पर उनकी गोल्डन ज्युबिली फ़िल्म कैरियर पर एक नज़र..

नासिर हुसैन की फ़िल्म 'तिसरी मंज़िल' (१९६६) में सलीम ख़ान!
इंदौर में जन्मे सलीम खान जब वहां 'एम्' ए.' की पढाई कर रहे थे..तब आकर्षक व्यक्तित्व के कारण उनको शुरुआत में फिल्म 'बारात' (१९६०) में एक भूमिका में पेश किया गया! इसके बाद वह बम्बई आए और सहाय्यक अभिनेता के तौर पर उन्होंने करीब १५ फिल्मों में काम किया..'प्रिन्स सलीम' नाम से! इसमें मशहूर फ़िल्मकार नासिर हुसैन की 'तिसरी मंज़िल' (१९६६) में शम्मी कपूर के क्लब डांस में उनकी (ड्रम बजाती) छवि याद रही!

इसी दौरान उन्होंने अपना ध्यान फिल्म लेखन की तरफ मोड़ लिया और ('गुरुदत्त फिल्म्स'के) मशहूर लेखक अब्रार अल्वी के सहाय्यक बने! इसके बाद १९६९ में ब्रिज सदाना की फिल्म 'दो भाई' का लेखन करनेका मौका उन्हें मिला। 'प्रिन्स सलीम' नाम से ही उन्होंने अपना तआरुफ़ इस फिल्म में दिया..जिसमें जितेंद्र, माला सिन्हा और अशोक कुमार प्रमुख भूमिकाओं में थें!
अपनी स्क्रिप्ट पर काम कर रहें जावेद अख्तर और सलीम खान!

जब सलीम खान अभिनेता के तौर पर अपनी आखरी फिल्म 'सरहदी लूटेरा' में काम कर रहे थे..तब उनकी मुलाक़ात क्लैपर बॉय से वहां काम की शुरुआत करनेवाले जावेद अख्तर से हुई..जिसे बाद में निर्देशक एस. एम्. सागर ने संवाद लेखक बनाया! उस दौरान उनकी दोस्ती हुई..तब जावेद मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी के यहाँ सहाय्यक के तौर पर काम करते थे।


१९७० के आसपास यह दोनों साथ में फिल्म लेखन का सोच ही रहें थे..तब सुपरस्टार राजेश खन्ना ने उसकी भूमिकावाली देवर की फिल्म 'हाथी मेरे साथी' की मूल (साउथ की) स्क्रीप्ट डेवलप करने के लिए उनसे पूछा..और यहाँ से उनका एकसाथ काम करना शुरू हुआ। यह फिल्म काफी सफल रही! इसमें पहली बार लेखक की हैसियत से दोनों का एकसाथ नाम परदे पर आया..सलीम-जावेद!

सलीम-जावेद की कलम से उतरी फिल्म 'ज़ंजीर' (१९७३) का पोस्टर! 
इसमें अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, बिंदु, अजित और प्राण!
इसी दौरान मशहूर निर्माता जी. पी. सिप्पी ने 
इन दोनों को स्क्रीप्ट रायटर्स की हैसियत से अपने यहाँ काम को रखा! यहाँ उन्होंने रमेश सिप्पी निर्देशित फिल्म के लिए पहली बार लिखा..जो थी (फ्रेंच फिल्म पर आधारित) 'अंदाज़'! इसमें राजेश खन्ना, हेमा मालिनी 
और शम्मी कपूर की प्रमुख भूमिकाएं थी। 
बाद में उन्होंने हेमा की दोहरी भूमिकाओंवाली 'सीता और गीता' भी लिखी। यह दोनों फ़िल्में हिट हुई!

दरमियान सलीम-जावेद ने अशोक कुमार निर्मित-अभिनीत फिल्म 'अधिकार' (१९७१) के लिए लेखन किया! बाद में नासिर हुसैन की फ़िल्म 'यादों की बारात' (१९७३) इन दोनों ने लिखी..लॉस्ट एंड फाउंड फार्मूला पर इस मल्टी स्टारर फिल्म में धर्मेंद्र, विजय अरोरा और झीनत अमान के साथ नासिर साहब का लड़का तारीक भी था! इस हिट फिल्म के बाद उनके पास आयी प्रकाश मेहरा की फिल्म 'ज़ंजीर' जिसके लिए पहले "जानी" राजकुमार को पूछा गया था..लेकिन बाद में उभर रहे अमिताभ बच्चन को इसमें लिया गया!

सलीम-जावेद की कलम ने फिल्म 'ज़ंजीर' (१९७३) से अन्याय के विरुद्ध खड़ा रहकर उसका पुरजोर मुक़ाबला करनेवाला एंग्री यंग मैन को जनम दिया! हालांकि इसका अधिकतर (पटकथा) लेखन सलीम जी ने किया था और जावेद जी ने संवाद लिखने में सहायता की थी! यह फिल्म हिट हुई और इससे भारतीय लोकप्रिय सिनेमा में जैसे क्रांति हो गई..वह रोमैंटिक से रिवेंज-एक्शन में तबदिल हुआ! साथ ही स्क्रिप्ट राइटर को स्टार स्टेटस मिला।
सलीम-जावेद ने लिखी 'दीवार' (१९७५) के बेहतरिन सीन में शशी कपूर और अमिताभ बच्चन!

उस एंग्री यंग मैन इमेज की बदौलत अमिताभ बच्चन सुपरस्टार बन गया। बाद में सलीम-जावेद ने उसके लिए कई सुपरहिट फ़िल्में लिखीं.. जैसे की रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर 'शोले' (१९७५), यश चोपड़ा की 'दीवार' (१९७५) और 'त्रिशुल' (१९७८), चन्द्रा बारोट की 'डॉन' (१९७८) और यश जोहर की 'दोस्ताना' (१९८०). इसके साथ ही अन्य फिल्मों के लिए भी उन्होंने लेखन किया जैसे की..मनोज कुमार की 'क्रांति' (१९८१), रमेश तलवार की 'ज़माना' (१९८५) और शेखर कपूर की 'मि. इंडिया' (१९८७).

लगभग २५ फिल्मों का सफल लेखन सलीम-जावेद इन्होंने साथ में किया और स्क्रिप्ट राइटिंग को एक नया आयाम और ग्लैमर दिया! इसमें सलीमजी ज्यादातर स्टोरी प्लॉट डेवलप करके पटकथा लिखते थे और जावेदजी संवादों पर कलम बख़ूबी चलाते थे! 'जंजीर' (१९७३), 'दीवार' (१९७५) और 'शक्ति' (१९८२) फिल्मों के लिए उनको 'सर्वोत्कृष्ट पटकथा-संवाद' के 'फ़िल्मफ़ेअर' पुरस्कार भी मिलें!
सलीम-जावेद ने लिखी फिल्म 'शक्ति' (१९८२) के बेमिसाल सीन में दिलीपकुमार और अमिताभ बच्चन!


मुशीर-रिआज़ निर्मित और रमेश सिप्पी निर्देशित फिल्म 'शक्ति' तो ('शोले' की तरह) माइलस्टोन रही। इसमें अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के सामने तबके सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को खड़ा कर दिया था! (इसपर मैंने सालों पहले बहोत लिखा) इन दोनों की अभिनय जुगलबंदी के प्रसंग लाजवाब थे..जो अच्छी पटकथा और संवाद के मिसाल रहें। जैसें की..पुलिस स्टेशन में दिलीप कुमार का "जिस रास्तें पर तुम चल रहें हों उसका नतीजा सिर्फ बुरा ही होता हैं!" ऐसा अमिताभ को समझाना! फिर समंदर की विशाल पार्श्वभूमी पर इन दोनों का मिलना और अमिताभ को "मैं नहीं चाहता तुम्हारा अंजाम भी वहीँ हो.." ऐसा कहनेवाले दिलीपकुमार के पीछे से समंदर की लहर की जोर की आवाज सुनाई देना!
अपनी लिखी माइलस्टोन फिल्म 'शोले' (१९७५) को 
याद करतें लेखक जावेद अख्तर और सलीम खान!

बाद में कुछ वजह से सलीम-जावेद अलग हुएं और दोनों ने स्वतंत्र फिल्म लिखना शुरू किया। इसमें सलीम खान ने कुछ बेहतरिन फ़िल्में लिखीं जैसे की..१९८६ में बनी स्मिता पाटील अभिनीत 'अंगारे', संजय दत्त को अच्छी पहचान देनेवाली 'नाम' और १९९१ की हिट 'पत्थर के फूल' जिसमें उनका आज का सुपरस्टार बेटा सलमान खान हीरो था!

लेख़क सलीम ख़ान अपने स्टार लड़के सलमान खान के साथ..
जिसके लिए उन्होंने 'पत्थर के फूल' (१९९१) लिखी थी!


सलीम खान साहब को इससे पहले.. 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाजा गया है! २०१४ में उनको 'पद्मश्री' सम्मान घोषित हुआ; लेकिन उन्होंने वह यह कहते नकारा की 'वह 'पद्मभूषण' के हक़दार हैं'!

अब उन्हें 'इफ्फी' का सम्मान मिला हैं!

सलीम ख़ान साहब..मुबाऱक हो!!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']

Monday 26 November 2018

भारत के प्रमुख फिल्म समारोह का दर्जा हासिल करे 'इफ्फी'!


'इफ्फी' में फोकस स्टेट का दर्जा पाने वाला पहला राज्य झारखण्ड बना और ऐसेही विभागीय प्रकाशझोत होंगे' इस खबर से ताज्जुब हुआ; क्योँकि इससे पहले भी यह (अच्छा) होता आ रहा था..जब 'इफ्फी' एक साल दिल्ली और एक साल किसी राज्य में हुआ करता था..और जिस राज्य में यह हुआ करता था उस राज्य के सिनेमा एवं संस्कृति पर वहां खास फोकस हुआ करता था।

तब दिल्ली के शानदार 'सीरी फोर्ट' ऑडिटोरियम में (एक ही जगह कई स्क्रीन्स में) हुआ करते अपने 'भारत के इस प्रमुख आंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह' ('इफ्फी') में विश्व सिनेमा का लुत्फ़ उठाना लाजवाब था..और जब 'इफ्फी' किसी राज्य में जाता था तब वहां की संस्कृति में घुल-मिल जाता था और वहां के सिनेमा का (विश्व सिनेमा के साथ) अच्छा प्रदर्शन करता था। इसमें हैदराबाद की मेहमान नवाज़ी से कोलकाता और त्रिवेंद्रम के सिनेमा कल्चर का अनुभव वहां जाकर सिनेमा प्रेमी लेतें थे।

पहले साल की शुरुआत में 'इफ्फी' जनवरी में हुआ करता था..जिससे विश्वका फिल्म फेस्टिवल कैलेंडर शुरू होता था! लेकिन केंद्र सरकार चलानेवालें दुसरें आने के बाद 'इफ्फी' में जगह की तरह तारीखों में भी अक्टूबर और अब नवम्बर (अवधि कम करके) ऐसे बदल होने लगे..जो असुविधाजनक होने लगा!

अब गोवा में आने के बाद 'इफ्फी' जैसे गोवा का फेस्टिवल हो गया हैं!..और वहां क्या सिनेमा-संस्कृति दिखाएंगे? यह सब 'कान्स फिल्म फेस्टिवल' का प्रतिरूप बनाना चाहतें हैं; लेकिन सिर्फ सी बिच के बगल में फिल्म फेस्टिवल वेन्यू करके वह आंतरराष्ट्रीय दर्जा कैसे प्राप्त होगा? इसलिए उस जैसी समृद्ध सिनेमा सामग्री और परिपक्व सिनेमा कंटेंट चाहीएं। फिल्म फेस्टिवल कोई कार्निवल नहीं एन्जॉय करने के लिए; बल्कि विश्व सिनेमा में हो रहें बदलाव तथा प्रगति से वाकिफ़ करने का, अपने अच्छे सिनेमा को उत्तेजित करने का और अध्ययन का महत्वपूर्ण माध्यम तथा समारोह हैं।

हालांकि कुछ निजी वजह से आमंत्रित होते हुए भी मैं पिछलें दो सालों से 'इफ्फी' में उपस्थित हो नहीं सका! लेकिन १९९५ से अपने भारत के इस प्रमुख फिल्म समारोह पर और उसमें देखें अच्छे विश्व सिनेमा पर मैंने बहोत लिखा हैं और उसके प्रति मेरी आत्मीयता की भावना हैं।

वैसे मुझे गोवा से कोई गिला नहीं..
काफी रोमैंटिक हैं! लेकिन 'इफ्फी' का 
वहां आयोजन और इसके सभी कंटेंट की तरफ देखने का दृष्टिकोन..इसमें ज्यादा परिपक्वता आने की जरुरत हैं।

नहीं तो कहेंगे..
'इफ्फी' था कभी फिल्म फेस्टिवल
जो अब बना गोवा का कार्निवल!"



अब गोल्डन ज्युबिली की तरफ जा रहें.. 
अपने 'इफ्फी' को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी 
  ['चित्रसृष्टी']

Tuesday 20 November 2018

मौसम आशिक़ाना!

फ़िल्म 'हाथी मेरे साथी' के "सुन जा आ ठंडी हवा.." गाने में राजेश खन्ना और तनुजा!

"सुन जा आ ठंडी हवा....
कुछ प्यारी प्यारी बातें हमारी.."

उस दिन रूमानी गीतों का लुत्फ़ उठाते समय..पहला सुपरस्टार राजेश खन्ना का तनुजा के साथ का यह गाना सामने आया और मन कोमल अतीत में जा पहुंचा।..फिर याद आएं ऐसेही ठंडी के मौसम से जुड़े अपनी फिल्मों के कुछ रूमानी गीतों के लम्हें!
फ़िल्म 'नौजवान' (१९५१) के "ठंडी हवाएँ..लहेराके आएँ.." 
गाने में शोख़ ख़ूबसुरत नलिनी जयवंत!
इसमें पहले याद आया शायर साहिर लुधियानवी का शुरुआत का मशहूर गीत.. जो उन्होंने 'नौजवान' (१९५१) फ़िल्म के लिए लिखा था और लता मंगेशकरने गाया था..
"ठंडी हवाएँ..लहेराके आएँ....
रुत हैं जवाँ..तुमको यहाँ कैसे बुलाएँ.."

प्रेमनाथ नायकवाले इस फिल्म मे शोख़ अदाकारा नलिनी जयवंत ने इसे बड़े रूमानी तरीके से साकार किया था!

१९५५ में फिल्म 'सितारा' के लिए मोहम्मद रफ़ी ने जब गाया "ठंडी हवा..." तब इस में वाकई ठंड महसूस हुई और इस गाने के ही "दिल हैं बेक़रार" में आखरी शब्द पर उन्होंने जो जोर दिया..वह प्यार का जुनून भरा था! इसी साल आयी फ़िल्म 'बहु' के लिए गीता दत्त ने तलत महमूद के साथ प्यार की तरलता भरा गीत गाया था..
'झुमरू' (१९६१) के "ठंडी हवा ये चाँदनी सुहानी.."  
गाने में अवलिया किशोर कुमार!

"ठंडी हवाओं में तारों की छाँव में..
आज बालम मेरा डोले जिया.."

फिर मजरूह सुल्तानपुरी का..अवलिया किशोर कुमार ने अपने अंदाज में गाकर परदे पर सादर किया 'झुमरू' (१९६१) का "ठंडी हवा ये चाँदनी सुहानी..ऐ मेरे दिल सुना कोई कहानी.." जिसकी शुरुआत ख़ूबसुरत मधुबाला पियानो की धुन पर गुनगुनाती करती हैं! तो मजरूह का "उफ़ कितनी ठंडी है ये रुत..सुलगे है तनहाई मेरी.." यह गीत फ़िल्म 'तीन देवियां' (१९६५) में सिम्मी ग्रेवाल ने देव आनंद को याद करते बड़ी उत्तेजकता से साकार किया था!

'दो बदन' (१९६६) के "जब चली ठंडी हवा.."
 गाने में आशा पारेख!

ठंडी हवा ऐसीही प्यार की याद दिलाती है! फ़िल्म 'दो बदन' (१९६६) में आशा पारेख हसीन वादियों में प्रेमी मनोज कुमार को "जब चली ठंडी हवा.." इस गाने से कहती हैं "मुझको ऐ जान-ए-वफ़ा तुम याद आएँ.." इसमें शकील बदायुनी ने भी खूब लिखा था..

"ये नज़ारे, ये समां..
और फिर इतने जवाँ
फ़िल्म 'प्रिन्स' (१९६९) के "ठंडी ठंडी हवा में.." गाने में वैजयंतीमाला और शम्मी कपूर!
हाय रे ये मस्तियाँ.."

उसके बाद हसरत जयपुरी का "ठंडी ठंडी हवा में दिल ललचाय.." फ़िल्म 'प्रिन्स' (१९६९) में वैजयंतीमाला ने शम्मी कपूर को देखकर शोख़िया अंदाज़ में पेश किया था! इससे अलग अभिजात फ़िल्म 'पाकीज़ा' (१९७२) का तरल रूमानीपन था..जिसमें अदाकारा मीना कुमारी अपने दिलदार ("जानी") को याद करते समय जो गाती है..वह इसके फ़िल्मकार कमाल अमरोही ने ही लिखा था..
'पाकीज़ा' (१९७२) के "मौसम हैं आशिक़ाना.." 
 गाने में बेहतरिन अदाकारा मीना कुमारी!

"मौसम हैं आशिक़ाना....
ऐ दिल कहींसे उनको ऐसे में ढूंढ लाना..
कहेना के रुत जवाँ हैं और हम तरस रहें हैं.."

प्यार की गरमाहट के लिएं फिल्मों में प्रेमी युगुल दीवानें होने लगे..जैसे 'मै सुंदर हूँ' (१९७१) के आनंद बक्षी ने लिखे "मुझ को ठंड लग रही हैं मुझसे दूर तू न जा.." गाने में प्यारीसी लीना चंदावरकर और बिस्वजीत का नटखट अंदाज था!..इस दौरान उभर रहा सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की (मेहमूद द्वारा) फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' (१९७२) में किशोर कुमार ने पेश किया "ओ महकी महकी ठंडी हवा ये बता.." भी आम रुमानियत का अलग तरीका दिखा कर गया!
फ़िल्म 'मै सुंदर हूँ' (१९७१) के "मुझ को ठंड लग रही हैं.." 
गाने में बिस्वजीत और प्यारीसी लीना चंदावरकर!


लेकिन एंग्री यंग मैन के सुपरस्टार होने के बाद..ठंडी का मौसम, हसीन वादियाँ और रूमानी जज़्बातों को इतना तवज्जो नहीं दिया गया! फिर भी हिल स्टेशन्स और खास कर कश्मीर का लोकेशन फिल्मों में ऐसी रूमानियत जगाता रहा..जैसे अमिताभ ने ही 'बिमिसाल' (१९८२) में सादर किया..
'बिमिसाल' (१९८२) के "ये कश्मीर हैं.. " गाने में अमिताभ बच्चन और राखी!
"कितनी ख़ूबसूरत ये तस्वीर हैं..
मौसम बेमिसाल..बेनज़ीर हैं
ये कश्मीर हैं..."

ख़ैर, हम जैसे रूमानी मिज़ाज रखनेवाले बरसात और ठंडी के मौसम में कुछ ज्यादा रोमैंटिक हो जाते हैं! 



इसके मद्देनज़र, जैसे ठंड महसूस हुई मैंने यह शेर लिखा..

"गुलाबी ठंड की आहट क्या हुई..
रूमानी अरमानों ने ली अंगड़ाई!"

- मनोज कुलकर्णी 
  ['चित्रसृष्टी']

Monday 19 November 2018












हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री..'भारतरत्न' श्रीमती इंदिरा गांधी को १०१ वे जनमदिन पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 18 November 2018

"दिल मोहब्बत से भर गया ग़ालिब 
 अब किसी पर फ़िदा नहीं होता..!" 
ऐसा कहकर भजनसम्राट ने 'बिग बॉस' में जस-बात को साफ कर दिया! 😍

Wednesday 14 November 2018


इंसानियत, प्यार और तरक्की का..
आसमान दिखाया चाचा नेहरूजी ने!
बच्चों चलों उनकी राह पर चलें और.. 

हमारे भारत को वाकई महान बनाये!

- मनोज 'मानस रूमानी'

हमारे भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू साहब को जनमदिन पर सलाम!

यह दिन 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता हैं!..इस अवसर पर सभी बच्चों को प्यार भरी शुभकामनाएँ!!

- मनोज कुलकर्णी


"मेरी आवाज़ सुनो..प्यार के राज़ सुनो...
मैंने एक फूल जो सीने पे सजा रखा था..
उसके परदे मैं तुम्हे दिल से लगा रखा था
था जुदा सबसे मेरे इश्क़ का अंदाज़ सुनो.!"


हमारे आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू साहब को उनके जनमदिन पर सलाम!


- मनोज कुलकर्णी 

Saturday 10 November 2018



"ज्योत से ज्योत जगाते चलो..
प्रेम की गंगा बहाते चलो.!

राह में आये जो दीन दुखी..

सब को गले से लगाते चलो!!"

Thursday 8 November 2018

शायर बहादुर शाह जफ़र!


"लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में..
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में!"


भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक अग्रणी तथा कवि..आखरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र जी के कलम से आयी शायरी!..कल उनका स्मृतिदिन था!

उनकी 'लाल किला' (१९६०) फ़िल्म में रफीसाहब ने दर्दभरी आवाज़ में गायी यह नज़्म बड़ी मशहूर हैं..

"न किसी की आँख का नूर हूँ
न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके
मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ!"


उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 5 November 2018

'सरफ़रोश' (१९९९) फ़िल्म के इस गाने में ख़ूबसूरत सोनाली बेंद्रे!
"उनसे नज़रें क्या मिलीं..रौशन फिज़ाएँ हो गयीं
आज जाना प्यार की..जादूगरी क्या चीज़ है.!"
शायर निदा फ़ाज़ली जी!

'सरफ़रोश' (१९९९) फ़िल्म के लिए निदा फ़ाज़ली ने लिखी यह नज़्म जतिन-ललित के संगीत में जगजीत सिंह ने गायी और परदेपर आमिर ख़ान के साथ सोनाली बेंद्रे ने बख़ूबी साकार की!
गायक जगजीत सिंह जी!


इस रूमानी शायरी ने.. गुजरा हुआ हसीं पल फिर से याद दिला दिया!!


- मनोज कुलकर्णी

Sunday 4 November 2018

'ज्ञानपीठ' प्राप्त हिंदी लेखिका..कृष्णा सोबती!


हमारे साहित्य क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान 'ज्ञानपीठ'..हिंदी भाषा की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती जी को गत साल मिला। उनकी भाषा में हिंदी, उर्दू और पंजाबी संस्कृतियाँ एकरूप होती है और भाषा समृद्धी में उनका बड़ा योगदान रहा है ऐसा कहा गया है!
कृष्णा सोबती की उपन्यास 'डार से बिछुड़ी'!

१९६६ में प्रसिद्ध 'मित्रो मरजानी' इस विवाहित स्त्री की आज़ादी को व्यक्त करते उपन्यास से मशहूर हुई हिंदी भाषा की लेखिका कृष्णा सोबती का साहित्य जीवंत प्रांजलता का प्रतिबिंब है! खासकर स्त्री-पुरुष संबंध, समाज में आते बदलाव और मानवी मूल्यों को उनके साहित्य में उजाग़र किया गया है।

भारत के विभाजन का दर्द (गुजरात, पाकिस्तान में जन्मी ) 
इस संवेदनशील लेखिका के कलम से बयां हुआ! इस संदर्भ का लेखन उन्होंने हशमत नाम से किया..'हम हशमत'! उनके उपन्यास 'डार से बिछुड़ी', 'दिलो-दानिश' इसकी अनुभूती देतें है!

१९८० में उनके उपन्यास 'जिंदगीनामा' को 'साहित्य अकादमी' सम्मान' प्राप्त हुआ। कथा प्रकार को अपनी अभिव्यक्ती तथा सुथरी रचनात्मकता से ताज़गी देने वाली हिंदी भाषा की इस वरीष्ठ लेखिका को १९९९ में पहला 'कथा चुड़ामणी पुरस्कार' दिया गया था!

उनका साहित्य इंग्लिश जैसी अन्य भाषाओँ में अनुवादित हुआ है। उनकी लंबी कहानी 'ए लड़की' का स्वीडन में मंचन हुआ!

अभिनंदन और शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 2 November 2018

मुबारक़बाद!!


कल ख़ूबसूरत अभिनेत्री.. 
ऐश्वर्या राय-बच्चन का 
४५ वा जनमदिन था और 
आज बॉलीवुड का बादशाह 
शाहरुख़ खान का ५३ वा जनमदिन!

दोनों का 'देवदास' (२००२) फ़िल्म का यह रूमानी दृश्य!

दोनों को शुभकामनाएँ!!

- मनोज कुलकर्णी

अमर 'देवदास' और उसका प्यार!

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मशहूर बंगाली उपन्यास 'देवदास'!

भिन्न परिस्थितियों की वजह से मिल न पाएं बचपन के प्रेमी और उस विरह में मदयाधीन हुए 'देवदास' के किरदार को बंगाली उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने १९१७ में अपनी जवानी में लिखी रूमानी कहानी में अमर किया..जिसे १०० साल पुरे हुएँ!
बंगाली 'देवदास' (१९३५) में प्रमथेश बरुआ और जमुना!

यह 'देवदास' वाकई में मरा नहीं और १९२८ के मूकपट ज़माने से अपने रूपहले परदे पर बार बार आता रहा.. जिसमें १६ से ज्यादा (बंगाली, असामी, तमिल, हिंदी ऐसी) कई भाषाओँ की फ़िल्में शामिल हैं। इस पर मैंने लिखा संशोधन पर बड़ा लेख मेरे 'चित्रसृष्टी' के पहले विशेषांक में २००२ में प्रसिद्ध हुआ था।..और 'देवदास' किरदार सबसे बेहतरीन अदा किए अभिनय सम्राट दिलीप कुमारजी की मैंने ली हुई खास मुलाकात!

'देवदास' पर हुई महत्त्वपूर्ण फिल्मों का ज़िक्र करे तो.. १९३५ में प्रमथेश बरुआ ने बनायी बंगाली 'देवदास' तांत्रिक दृष्टी से बेहतर थी इसमें पैरलल कटिंग पहली बार इस्तमाल करके देवदास और पारो की दुविधाओं को वेधकता से दिखाया गया। इसमें बरुआ खुद देवदास बने थे तथा पारो की व्यक्तिरेखा में थी (उनकी पत्नि) जमुना और चंद्रमुखी बनी थी चन्द्रबती देवी! 
हिंदी 'देवदास' (१९३६) में कुंदनलाल सैगल, ए.एच. शोरी और राजकुमारी!

बादमें उस 'देवदास का हिंदी रूपांतर १९३६ में बरुआ ने निर्देशित किया..जिसमें जमुना ही पारो की भूमिका में थी; लेकिन चंद्रमुखी बनी थी उस ज़माने की गायिका राजकुमारी!..और 'देवदास' के किरदार में आएं उस ज़माने के मशहूर शोकग्रस्त गायक-अभिनेता कुंदनलाल सैगल..जिन्होंने "दुख के अब दिन बीतत नाही.." ऐसा दर्दभरा गाकर अपने ही अंदाज़ में इसे जिया!

बिमल रॉय की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में वैजयंती माला, दिलीप कुमार और सुचित्रा सेन!
१९५५ में आयी प्रतिभाशाली निर्देशक बिमल रॉय की अभिजात हिंदी फ़िल्म 'देवदास'.. जिसमें वह क़िरदार बख़ूबी पेश किया था.. ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमारने! साथ में पारो हुई थी मशहूर बंगाली अभिनेत्री सुचित्रा सेन और चंद्रमुखी की भूमिका में थी नृत्यकुशल तमिल अभिनेत्री वैजयंती माला! इन तिनों के भावपूर्ण प्रसंग अच्छे तरीकेसे चित्रित हुएँ थे और इन तिनों ने अपनी भूमिकाओं में जान डाली थी! प्रथितयश पंजाबी लेखक राजिंदर सिंघ बेदी ने इसके संवाद लिखें थे.. 
इसमें यादगार रहा "कौन कम्बख़्त हैं जो बर्दाश्त करने के लिए पिता हैं.." जिसे अपनी चोटी की अभिनय से दिलीप कुमार ने लाजवाब साकार किया। यह मेरा पसंदीदा 'देवदास' है!
भंसाली की फ़िल्म 'देवदास' (२००२) में माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय और शाहरुख खान!
इसके कई साल बाद २००२ में संजय लीला भंसाली ने इस ज़माने के सुपरस्टार्स शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित को (देवदास, पारो और चंद्रमुखी में) लेकर अपने तरीके से 'देवदास' बनाई! इस बॉलीवुडवाली फ़िल्म में "डोला रे डोला.." पर पारो और चंद्रमुखी साथ नाचीं जो कभी सोचा नहीं था। इसकी दॄष्यात्म भव्यता में 'देवदास' की रूह जैसी दब गयी!

भारत से बांग्लादेश तक 'देवदास' रूपहले परदे पर छा गया..जिसकी पुरानी बांग्ला फ़िल्म की प्रिंट अपने 'राष्ट्रीय चित्रपट संग्रहालय' को बांग्लादेश से ही प्राप्त हुई! तो पाकिस्तान में 'देवदास' रंगमंच पर भी आयी!..अब सुना हैं हमारे यहाँ भी 'देवदास' की हिंदी नाट्य प्रस्तुति की तैयारी हो रहीं हैं!

'देवदास' तो ऐसे बनतें रहेंगे..जब तक समाज की दीवारें मोहब्बत को सफल नहीं होने देती..देवदास हक़ीक़त में अंदर घुटन महसूस करेंगे और अपना दर्द इस कलाकृति के जरिये व्यक्त होना चाहेंगे!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']