Sunday 4 November 2018

'ज्ञानपीठ' प्राप्त हिंदी लेखिका..कृष्णा सोबती!


हमारे साहित्य क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान 'ज्ञानपीठ'..हिंदी भाषा की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती जी को गत साल मिला। उनकी भाषा में हिंदी, उर्दू और पंजाबी संस्कृतियाँ एकरूप होती है और भाषा समृद्धी में उनका बड़ा योगदान रहा है ऐसा कहा गया है!
कृष्णा सोबती की उपन्यास 'डार से बिछुड़ी'!

१९६६ में प्रसिद्ध 'मित्रो मरजानी' इस विवाहित स्त्री की आज़ादी को व्यक्त करते उपन्यास से मशहूर हुई हिंदी भाषा की लेखिका कृष्णा सोबती का साहित्य जीवंत प्रांजलता का प्रतिबिंब है! खासकर स्त्री-पुरुष संबंध, समाज में आते बदलाव और मानवी मूल्यों को उनके साहित्य में उजाग़र किया गया है।

भारत के विभाजन का दर्द (गुजरात, पाकिस्तान में जन्मी ) 
इस संवेदनशील लेखिका के कलम से बयां हुआ! इस संदर्भ का लेखन उन्होंने हशमत नाम से किया..'हम हशमत'! उनके उपन्यास 'डार से बिछुड़ी', 'दिलो-दानिश' इसकी अनुभूती देतें है!

१९८० में उनके उपन्यास 'जिंदगीनामा' को 'साहित्य अकादमी' सम्मान' प्राप्त हुआ। कथा प्रकार को अपनी अभिव्यक्ती तथा सुथरी रचनात्मकता से ताज़गी देने वाली हिंदी भाषा की इस वरीष्ठ लेखिका को १९९९ में पहला 'कथा चुड़ामणी पुरस्कार' दिया गया था!

उनका साहित्य इंग्लिश जैसी अन्य भाषाओँ में अनुवादित हुआ है। उनकी लंबी कहानी 'ए लड़की' का स्वीडन में मंचन हुआ!

अभिनंदन और शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

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