Tuesday 31 March 2020

"राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा.."

ऐसा लिखकर यहाँ से रुख़सत हुई हमारे भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा और शायरा महजबीं बानो याने मीना कुमारी जी का आज स्मृतिदिन! 

उनकी आखरी लाजवाब.. 'पाकीज़ा' (१९७२) फ़िल्म के सेट पर हुई शायराना महफ़िल की यह दुर्लभ तस्वीर! इसमें उनके शौहर, इसके दिग्गज लेखक-फ़िल्मकार कमाल - अमरोही के साथ..वहां पाकिस्तान से तशरीफ़ लाए शायर क़तील शिफ़ाई दिखाई दे रहें हैं!

"तुम पूछो और मैं न बताऊं ऐसे तो हालात नहीं..
एक जरा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं.!"

ऐसा लिखनेवाले दोनों मुल्कों में मक़बूल उर्दू शायर क़तील शिफ़ाई जी की जन्मशताब्दी हाल ही में हुई!

इनको सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी
सलाम-ए-पाकीज़ा! 


हमारे भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा और शायरा महजबीं बानो याने मीना कुमारी को यह जहाँ छोड़कर आज चार तप हुएं। उनकी आख़री लाजवाब फ़िल्म 'पाकीज़ा' (१९७२) परदे पर आकर भी उतनाही अर्सा बीत गया हैं।

इस अवसर पर यह दुर्लभ तस्वीर हैं उसी के सेट पर..मीना कुमारी को उनके शौहर और इसके दिग्गज फ़िल्मकार कमाल अमरोही..'पाकीज़ा' साकार कराते हुएँ! उन दोनों के उम्र में वैसे काफ़ी अंतर था।

इस फ़िल्म को भी बनने में (१९५६ से) १६ साल लगे..बंबई में ३ फरवरी, १९७२ को हुए इसके प्रीमियर में बड़ी मुश्किल से मीना - कुमारी शौहर अमरोहीजी के साथ शरीक हुई!..और अगले महिनेही ३१ मार्च को.. उनका निधन हुआ। उसके बाद 'पाकीज़ा' जोर से चली!

इसमें "इन्ही लोगों ने ले लिना दुपट्टा मेरा.." कहनेवाला इस ट्रैजडी क्वीन का दर्द और.. "मौसम है आशिकाना.." का रूमानीपन कभी नहीं भुलेंगे।

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

काश यह हक़ीक़त में होता!



'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) के फिल्मांकन के दरमियान की यह दुर्लभ तस्वीर है। इसमें सलीम की भूमिका करनेवाले दिलीप कुमार सेट पर बैठी अनारकली साकार करनेवाली मधुबाला को अंगूठी देते नज़र आतें हैं!

अपने अभिनय सम्राट युसूफ खान याने दिलीप कुमार और मलिका-ए-हुस्न मुमताज़ जहाँ याने मधुबाला का निकाह होगा ऐसा उस समय के उनके चाहनेवालों को लगा था; क्योंकि उसकी वजह भी थी! १९५० के दशक में 'तराना', 'संगदिल' और 'अमर' जैसी रूमानी फिल्मों में उनका प्यार बड़ी उत्कटता से उभर रहा था। मिसाल की तौरपर 'तराना' के "नैन मिले नैन हुए बावरें." और 'संगदिल' के "दिल में समां गए सजन." प्रेमगीत, या मेहबूब खान की 'अमर' में उनके भावदृश्य देखें।

अब दिग्गज फ़िल्मकार के. असिफ ने 'मुग़ल-ए-आज़म' इस अपनी भव्य प्रेमकाव्य चित्रकृति में सलीम - अनारकली की भूमिकाओं में दिलीप कुमार - मधुबाला के प्यार को शाही अंदाज़ में पेश किया! इसका.. उनका बाग़ में खिलता प्रेमदृश्य देखिएं..जिसके पार्श्वभूमी पर (तानसेन की गायकी के लिए) खास बड़े ग़ुलाम - अली ख़ान की "प्रेम जोगन बन के.." यह तान इस्तेमाल की हैं। फिर अनारकली के गाल पर रेशमी पंख हल्कासा सरकाता सलीम नज़र आता हैं..इस रूमानीपन में दोनों के चेहरें पर प्यार असल में नज़र आया था। (अपने भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह मेरा सबसे पसंदीदा प्रेमदृश्य हैं!)

यही बात आप अनारकली के "प्यार किया तो डरना क्या.." इस नृत्य में भी प्रभावी तरीके से देख सकतें हैं..जिसके - आखिर में अनारकली जब कहती हैं...
"छुप ना सकेगा इश्क़ हमारा
चारों तरफ हैं उनका नज़ारा." 
तब महल के सभी शीशों में उनका प्यार गुँजता हैं! 

ख़ैर, इतनी मोहब्बत होते हुए भी, इन दोनों की शादी हो न पायी..जिसकी वजह मधुबाला के परिवार - (वालिद) की नागवारी कही गयी! इसलिए यह तस्वीर देखकर दिलीप कुमार-मधुबाला जोड़ी के चाहनेवाले शीर्षक में कहा वोही सोचेंगे!

- मनोज कुलकर्णी