Monday 23 December 2019

मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ जी!

"आवाज़ दे कहाँ हैं.."



मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ ने 'अनमोल घड़ी' फ़िल्म के लिए नौशादसाहब के संगीत में गाया यह गाना...
आज उनके स्मृतिदिन पर उनके लिए गुनगुनाने को मन किया! 



"जवाँ हैं मोहब्बत..हसीन है ज़माना.."
मेहबूब ख़ान की मशहूर 'अनमोल घड़ी' (१९४६) में गाती नूरजहाँ की ख़ूबसूरत अदाकारी!
सरहद के उस पार गयी.. नूरजहाँ को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर भी महारत हासिल थी..जिसमे उनके उस्ताद थे बड़े ग़ुलाम अली खाँ साहब! फिर... संगीतकार ग़ुलाम अहमद जी ने उसकी आवाज़ को परखा और कमसीन उम्र में वह लाहौर में स्टेज पर गाने लगी।

१९३५ में बनी 'शीला' इस पहली पंजाबी साऊंड फ़िल्म से बेबी नूरजहाँ परदे पर आयी। बाद में 'ख़ानदान'- (१९४२) इस हिंदी फ़िल्म से वह जवां नायिका हुई। सईद शौक़त हसन रिज़वी निर्देशित इस सफ़ल फ़िल्म में उसके नायक थे..प्राण! बाद में शौक़त रिज़वी के साथ वह बंबई आयी और उनसे उसका निक़ाह भी हुआ!

शौक़त रिज़वी जी की फ़िल्म 'जुगनू' (१९४७) में नूरजहाँ और दिलीप कुमार!
१९४३ में 'दुहाई' फ़िल्म के लिए नूरजहाँ ने शांता आपटे के साथ गाया। तो १९४५ में मास्टर विनायक ने बनायी 'बड़ी माँ' इस हिंदी फ़िल्म में वह नायिका रही! इसी साल उन्होंने गाया 'गाँव की गोरी' फ़िल्म में..जिससे अपने मशहूर पसंदीदा गायक..   मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ हिंदी सिनेमा में पहली बार सुनाई दी! फिर 'ज़ीनत' इस शौक़त रिज़वी की सोशल- फ़िल्म में उनकी अदाकारी और गानें क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहें!

१९४६ में मेहबूब ख़ान ने बनायी 'अनमोल घड़ी' यह उर्दु-हिंदी फ़िल्म नूरजहाँ की अदाकारी और गानों के लिए सबसे सफ़ल और यादगार साबित हुई। इसमें और दो गायक कलाकार उनके साथ थे..सुरेंद्र और ख़ूबसूरत सुरैया! इसमें "जवाँ हैं मोहब्बत..हसीन है ज़माना.." यह नूरजहाँ ने गाया गाना और उस पर उनकी अदाकारी बहोत रंग लायी थी!

"आवाज़ दे कहाँ हैं..दुनियाँ मेरी जवाँ हैं.." 
१९८२ में भारत में नौशादसाहब के संगीत में फिर एक बार स्टेज पर गाती नूरजहाँ जी!
१९४७ में शौक़त रिज़वी जी ने ही बनायी 'जुगनू' फ़िल्म में नूरजहाँ के नायक हुए.. अपने अभिनय के शहंशाह दिलीप कुमार! इसमें दोनों के रूमानी अंदाज़ और रफ़ी जी के साथ नूरजहाँ ने गाएं "यहाँ बदला वफ़ा का.." जैसे गाने मशहूर हुएँ। १९४५ से १९४७..याने पाकिस्तान में जाने तक नूरजहाँ यहाँ - भारतीय सिनेमा की बड़ी स्टार थी! 

१९३० से १९९० के दौरान नूरजहाँ संगीत क्षेत्र में - कार्यरत थी और उन्होंने क़रीब ४० फ़िल्मों के लिए लगभग २०,००० गानें गाएं। पाकिस्तानी फ़िल्मो में सबसे ज़्यादा गानें गाने का उनका रिकॉर्ड हैं! उन्हें यहाँ-वहाँ काफ़ी सम्मान मिलें!

मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ को मिलते अपने अभिनय के शहंशाह युसूफसाहब..दिलीप कुमार!
और साथ में अपनी स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर और गायिका-अभिनेत्री सुरैया!
१९८२ में नूरजहाँजी भारत में 'गोल्डन ज्युबिली ऑफ़ इंडियन टॉकी' के समारोह में शिरक़त करने आयी! तब युसूफ साहब याने.. अपने पुराने नायक दिलीप कुमार को वह ख़ूब मिली और नौशाद साहब के - संगीत में फिर एक बार स्टेज पर गायी..
"आवाज़ दे कहाँ हैं..
दुनियाँ मेरी जवाँ हैं.." 
जैसे अपने खोये वतन - और उसके संगीत की दुनिया को पुकारती हो!

उन्हें मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 9 November 2019

'प्रभात फिल्म कं.' के 'शेजारी' (१९४१) का यह निरंतर समकालिन रहनेवाला चित्र!

बरक़रार रहेंगे अपने ये 'पड़ोसी'!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 11 October 2019

सालगिरह मुबारक़!

पिता हरिवंशराय बच्चन जी और माँ तेजी बच्चन जी के साथ सुपरस्टार अमिताभ बच्चन!

एक कवि सम्मेलन में हरिवंशराय बच्चन जी को पुछा गया था, "आपकी सर्वोत्तम रचना किसे कहेंगे?"

सभी को लगा था वे "मधुशाला" बताएँगे!

लेकिन उन्होंने कहाँ, "अमिताभ मेरी सर्वोत्तम रचना हैं!"

टीवी के एक मशहूर कार्यक्रम में माता-पिता की आवाज़ सुनके भावुक हुए अमिताभजी को देखकर मुझे यह याद आया!

आज ७७ वी सालगिरह पर उन्हें मुबारक़बाद!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 10 October 2019

"वक़्त ने किया क्या हसीं सितम
तुम रहे ना तुम..हम रहे ना हम.."

अपने भारतीय सिनेमा के एक श्रेष्ठ कलाकार गुरुदत्त जी के 'कागज़ के फूल' (१९५९) फ़िल्म का यह अभिजात गीतदृश्य याद आया!

कैफ़ी आज़मी जी ने लिखी यह नज़्म गीता दत्त जी ने गायी थी और..गुरुदत्त-वहिदा रहमान पर सिनेमेटोग्राफर व्ही. के. मूर्ति जी ने लाजवाब फिल्मायी थी!

इस गाने की एक अजीब ख़ासियत मुझे लगती हैं..गीता दत्त जी का दर्द इसमें सुनायी देता हैं तथा गुरुदत्त और वहिदा रहमान का एक दूसरे के लिए तड़पना! 

इस फ़िल्म को अब ६० साल पुरे हुएँ..और गुरुदत्त जी का आज ५५ वा स्मृतिदिन हैं!

उनके स्मृति को अभिवादन!!

- मनोज कुलकर्णी

















"मन क्यों बहका रे.." का अहसास देखनेवालों को अब भी देनेवाली अपनी पसंदिदा ख़ूबसूरत अदाकारा रेखाजी को उनकी ६५ वी सालगिरह की मुबारक़बाद!


- मनोज कुलकर्णी

Monday 7 October 2019


"फ़ूल हसीं के तुम ने मुख़ पर डाल दिएँ तो मै बलिहारी.."

हाल ही में हुए 'वर्ल्ड स्माइल डे' पर..ख़ूबसूरत मधुबाला की यह मुस्कुराती छबि देखकर मुझे हरिवंशरायजी की उपरोक्त पंक्ति याद आयी!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 2 October 2019

"मेरी आवाज़ ही पहचान है.."


अपने संगीत जीवन के अमृत महोत्सव पर..स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकरजी!

पूरे संगीत विश्व की एक सर्वश्रेष्ठ और आदरणीय..अपने भारत की स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकरजी का ९० वा जनमदिन संपन्न हुआ। इस के साथ ही उनके पार्श्वगायन के ७५ साल पुरे हुएं हैं!

शुरुआत के दिनों में मराठी सिनेमा के परदेपर..
छोटी भूमिका में नज़र आयी लता मंगेशकर!
१९४२ के दौर में महज़ १३ साल की उम्र में मराठी सिनेमा से अपना पार्श्वगायन शुरू करनेवाली लता मंगेशकर की आवाज़ को सही माने में परखा संगीतकार ग़ुलाम हैदर ने! बंबई में आने के बाद उनके संगीत में 'मजबूर' (१९४८) फ़िल्म के लिए गाए "दिल मेरा तोडा.." से लताजी को पहली बड़ी सफलता मिली। बाद में 'महल' (१९४९) फ़िल्म के लिए खेमचंद-प्रकाश के संगीत में 'मलिका-ए-हुस्न' मधुबाला के लिए गाए "आएगा आनेवाला.." गाने से लताजी को बहोत शोहरत मिली।

इसके बाद अनिल बिस्वास, नौशाद अली, सज्जाद हुसैन, शंकर-जयकिशन, रोषन, एस. डी. बर्मन, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, सलील चौधरी, ख़य्याम, वसंत देसाई से लेकर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आर. डी, बर्मन और आगे बहोत नयें संगीतकारों के लिएँ भी लताजी ने गाएं गाने यादगार रहें। मराठी, हिंदी से लेकर अन्य विविध प्रादेशिक भाषाओँ में भी उन्होंने कई गानें गाएं।

संगीतकार ग़ुलाम हैदर और गायिका लता मंगेशकर!
अपने सहगायकों के साथ लताजी के डुएट्स भी रूमानी रहें..जिसमें प्रमुख गायकों में मुकेश के साथ गाया 'आवारा' (१९५१) का "दम भर जो उधर मूँह फ़ेरे.." हो, मोहम्मद रफ़ी के साथ गाया 'कोहीनूर' (१९६०) का "दो सितारों का जमीं पर हैं मिलन.." हो, तलत महमूद के साथ गाया 'जहाँ आरा' (१९६४) का "ऐ सनम आज ये क़सम खालें.." हो, या किशोर कुमार के साथ गाया 'आँधी' (१९७५) का "तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिक़वा.." नए पीढ़ी के गायकों के साथ भी उन्होंने गाया..जैसे की यश चोपड़ा की फ़िल्म 'दिल तो पागल है' (१९९७) का उदित नारायण के साथ गाया शीर्षक गीत!

लताजी की ताज़गी सालों साल बरक़रार रहीं..बदलतीं नायिका उसके लिए उनका आवाज़ चाहती थी और वह भी उस अभिनेत्री के अंदाज़ में उसे आवाज़ देती थी। 'आरके' की 'बरसात' (१९४९) में नर्गिस के लिए उन्होंने गाया "मुझे किसी से प्यार  हो गया..", 'गाईड' (१९६५) में वहिदा रहमान के लिए उन्होंने गाया "आज फिर जिने की तमन्ना है..", 'सरस्वती चंद्र' (१९६८) में नूतन के लिए उन्होंने गाया "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए..", 'रज़िया सुलतान' (१९८३) में हेमा मालिनी के लिए उन्होंने गाया "ऐ दिल-ए-नादान.." तो 'हम आप के है कौन' (१९९४) में माधुरी दीक्षित के लिए उन्होंने गाया "दीदी तेरा देवर दीवाना.." और 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' (१९९५) में काजोल के लिए गाया "मेरे ख्वाबों में जो आएं.."

संगीतकार शंकर और गायक मोहम्मद रफ़ी के साथ गाती लता मंगेशकरजी!
लताजी ने सभी प्रकार के गानें गाएं हैं..इसमें नंदा के लिए 'हम दोनों' (१९६१) फिल्म में गाया "अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम.." यह भजन है, 'दिल तेरा दीवाना' (१९६२) फ़िल्म का शम्मी कपूर-माला सिन्हा का रूमानी शीर्षक गीत हैं, मीना कुमारी के लिए 'पाकीज़ा' (१९७२) में गाया "इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा.." मुजरा हैं, तो 'इंतक़ाम' (१९६९) में हेलन के कैबरे डांस के लिए उन्होंने गाया "आ जाने जा.." हैं! 'वोह कौन थी' (१९६४) इस मनोज कुमार-साधना की फ़िल्म के लिए उन्होंने गाया "लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो ना हो.." गाना तो आज की नई गायिकाओं को ही नहीं, बल्कि अभिनेत्रियों को भी लुभाता हैं. हाल ही में परीणिती चोपड़ा ने भी इसे अच्छे तरीके से गाकर दिखाया!

अपने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी के साथ स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकरजी!
लताजी के गाने से अपने पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी की आँखें भी नम हुई थी..जब उन्होंने लाल किले से "ऐ मेरे वतन के लोगों.." गाया था!

लताजी को बहोत सम्मान मिले। इसमें 'फ़िल्मफ़ेअर' और नेशनल अवार्ड्स हैं। इसके साथ ही उन्हें सर्वोच्च 'दादासाहेब फालके अवार्ड' से भी नवाज़ा गया..और 'भारत रत्न' से भी!

सुरों के माहौल में मेरी उनसे हुई मुलाक़ात याद आ रही है!!

स्वरसम्राज्ञी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी
मेरा 'चित्रसृष्टी' संगीत विशेषांक स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकरजी को दिखाकर 
उनसे बात करने का मेरा सुनहरा पल!

Thursday 5 September 2019

दिग्गज लेखक-शायर जावेद साहब और गुलज़ार साहब की साथ में सफ़र करनेवाली यह तस्वीर मशहूर अदाकारा शबाना आज़मी जी ने अपने ट्वीट में पोस्ट की है और कैप्शन देने को कहा हैं!

ग़ौरतलब की, अपने शुरुआती दौर में सलीम-जावेद ने गुलज़ार के साथ रमेश सिप्पी की फिल्म 'अंदाज़' (१९७१) का लेखन किया था! हालांकि वह क्लोद लेलुश की फेमस फ्रेंच रोमैंटिक (और मेरी पसंदीदा) फिल्म 'ए मैन एंड एक वुमन' (१९६६) पर आधारित थी, जिसपर मैंने काफी लिखा!

तो मै इस तस्वीर पर यही कह सकता हूँ..
'सफ़र फिर उस अंदाज़ में!'

- मनोज कुलकर्णी

Friday 30 August 2019

"वो सुबह कभी तो आयेगी.." साहिर और ख़य्याम!!


 - मनोज कुलकर्णी 


संगीतकार ख़य्याम साहब!
मरहूम संगीतकार ख़य्याम साहब ने अपने फ़िल्म कैरियर में जानेमाने शायरों के गीत ही ज़्यादातर संगीतबद्ध किएँ इसमें अली सरदार जाफरी, कैफ़ी आज़मी, जां निसार अख़्तर से शहरयार, मख़दूम मुहिउद्दीन जैसे शामिल थे

शायर-गीतकार साहिर लुधियानवी जी!
इसमें साहिर लुधियानवी के कुछ बेहतरीन यथार्थवादी गीत उन्होंने संगीतबद्ध किएँ ..उसमें से यह आज भी समकालिन लगनेवाला 'फिर सुबह होगी' (१९५८) फ़िल्म के लिए..मुकेश जी और आशा भोसले जी नें गाया था।..

इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़्मे गायेगी..
वो सुबह कभी तो आयेगी

जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से, हम सब मर-मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम जहर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानो की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में तोली जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

दौलत के लिये जब औरत की इस्मत को बेचा जायेगा
चाहत को कुचला जायेगा, ग़ैरत को बेचा जायेगा
अपने काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्मायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर, ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर, दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों भीख मांगेगा
ह़क मांगने वालों को जिस दिन, सूली दिखाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

फ़ाको की चिताओं पर जिस दिन, इन्सां जलाये जायेंगे
सीनों के दहकते दोज़ख में, अर्मां जलाये जायेंगे
ये नरक से भी गन्दी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी

मनहूस समाजों ढांचों में जब जुर्म पाले जायेंगे
जब हाथ काटे जायेंगे जब सर उछाले जायेंगे
जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी

संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी

जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बन्धन टूटेंगे
उस सुबह को हम ही लायेंगे वो सुबह हमीं से आयेगी
वो सुबह हमीं से आयेगी

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Friday 23 August 2019

"कोई दिन के लिए..अपनी निगेहबानी मुझे दे दो.."

संगीतकार ख़य्याम साहब और गायिका-पत्नी जगजित कौर जी एक समारोह में!

मरहूम संगीतकार ख़य्याम साहब की गायिका-पत्नी जगजित कौर जी ने उनकी मौसीक़ी में गाए इस नग़्मे की यह पंक्ति..लगता है अब उनके मन में होंगी!

तुम अपना रंज-ओ-ग़म..
अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हे ग़म की कसम..

इस दिल की वीरानी..
मुझे दे दो.."

'शगुन' (१९६४) फ़िल्म में कलाकार पति-पत्नी..कमलजीत और वहीदा रहमान!

साहिर जी ने लिखा वह नग़्मा 'शगुन' (१९६४) फ़िल्म के लिए जगजित कौर जी ने गाया था और परदे पर ख़ूबसूरत लिली राणा ने पियानो पर गाकर सादर किया था। ग़ौरतलब था कि इस फ़िल्म के नायक-नायिका थे कमलजीत और वहीदा रहमान..जो असल ज़िंदगी में भी पति-पत्नी ही थे!

"तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो.."
यह 'शगुन' (१९६४) फ़िल्म का गाना परदे पर-
सादर करनेवाली ख़ूबसूरत लिली राणा!

मुझे याद है बंबई में जब 'इंडियन टॉकी के ७५ साल' का समारोह हुआ था, तब जिन बुज़ुर्ग फ़िल्मी हस्तियों को सम्मानित किया गया था..उसमें ख़य्याम साहब और जगजित कौर जी भी थे..तब यह नग़्मा उन्होंने गाया। उसकी सुरेल अनुभूती मैने रूबरू ली! बाद में उनसे हुई मुलाक़ात मेरे लिए यादगार रही!

उसके कुछ साल बाद पुणे में हुई ख़य्याम साहब की महफ़िल में मैने उस लम्हे का और जगजित कौर जी ने गाए उस नग़्मे का ज़िक्र किया तो वो भावुक हुए थे!

आज यह याद आकर मेरी आँखे भी नम हुई है!


- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 21 August 2019

अलविदा!!


बुज़ुर्ग और अज़ीज़ संगीतकार..ख़य्याम साहब चले गए! 

मुझे लगता हैं नौशाद साहब के बाद (दरबारी संगीत आम को खुला करके) सूरों पर राज करनेवाले..मौसिक़ी की दुनिया के जैसे आख़री शहेनशाह यह जहाँ छोड़ गए!

अब मौसिक़ी का माहौल उन्ही के ".ये ज़मीं चुप हैं..आसमाँ चुप हैं." नग़मे जैसा ख़ामोश है!

मुझे याद आ रही है उनसे हुई मुलाकातें..!

उन्हें मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 18 August 2019

'रजनीगंधा' (१९७४) के शीर्षक गीत में उन फुलों के साथ विद्या सिन्हा!

"रजनीगंधा फूल तुम्हारे"


अपने स्वाभाविक अभिनय से परिचित अभिनेत्री विद्या सिन्हा जी की अचानक निधन की ख़बर आने के बाद उनका यह गाना मन में गूँज रहा हैं..जो वाकई में "महके यूँही जीवन में.." ऐसा उस गाने की दूसरी पंक्ति जैसा बरक़रार है और साकार करनेवाली की मोहक शीतल सुंदरता भी!

बासु चटर्जी की फ़िल्म 'छोटी सी बात' (१९७५) में विद्या सिन्हा..मोहक शीतल सुंदरता!
उनके पिता प्रताप ए. राणा फिल्मोद्योग में थे जिन्होंने १९४७ के दौरान देव आनंद और सुरैय्या को लेकर.. फ़िल्म 'विद्या' का निर्माण किया था..संजोग से यही नाम उन्होंने अपनी बेटी का रखा! बाद में १८ की उम्र में वह 'मिस बॉम्बे' हुई और फिर मॉडेलिंग करने लगी। तब समानांतर फ़िल्मकार बासु चटर्जी ने उसे परखा।

१९७४ के दरमियान किरण कुमार के साथ 'राजा काका' नामक फ़िल्म से विद्या सिन्हा बड़े परदे पर आयी; लेकिन उसके बाद आयी बासु चटर्जी की फ़िल्म.. 'रजनीगंधा' से उसकी सही मायने में दर्शकों को अच्छी पहचान हुई। हिंदी लघुकथा लेखक मन्नु भंडारी की कहानी 'यही सच है' पर आधारित यह फ़िल्म पूरी तरह नायिका प्रधान थी। बाद में इसके (मध्यम वर्ग साधारण) नायक अमोल पालेकर के साथ फिर से बासुदा की ही 'छोटी सी बात' (१९७५) में उसके स्वाभाविक अभिनय ने मोह लिया! महानगरों में कार्यरत महिला तथा मध्यम वर्ग जनजीवन से जुड़ी ये फ़िल्मे समानांतर सिनेमा के काल में अच्छी सफ़ल रही।

'इन्कार' (१९७७) के "छोडो ये निगाहों का इशारा" गाने में विनोद खन्ना और विद्या सिन्हा!
इसके बाद १९७७ में जाने माने फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा ने अपनी फ़िल्म 'कर्म' में राजेश खन्ना और शबाना आज़मी के साथ विद्या सिन्हा को अनोखे क़िरदार में पेश किया। फिर मुख्य प्रवाह की फ़िल्मो में उसका प्रवेश हुआ और..
इसी साल राज तिलक की 'मुक्ति' में वह संजीव कुमार और शशी कपूर के साथ आयी। बाद में विख्यात जापानी फ़िल्मकार अकिरा कुरोसवा की 'हाई एंड लो' (१९६३) पर राज एन. सिप्पी ने बनायी बॉलीवुड रीमेक 'इन्कार' में वह विनोद खन्ना की नायिका हुई..इस हिट फ़िल्म के उनके "छोडो ये निगाहों का इशारा.." गाने में वह ख़ूब जची!

बी.आर.चोपड़ा की फ़िल्म 'पति पत्नि और वोह' (१९७८) में संजीव कुमार और विद्या सिन्हा!
लेकिन विद्या सिन्हा का स्वाभाविक अभिनय ज्यादा खुला वास्तविक जीवन से जुड़ी समानांतर फ़िल्मों में! १९७८ में उसने 'बी. आर.' की फ़िल्म 'पति पत्नि और वोह' में संजीव कुमार और रंजीता के साथ समझदार पत्नि का क़िरदार बख़ूबी निभाया! इसी दरमियान उसने गुलज़ार की 'क़िताब (१९७७) में उत्तम कुमार के साथ और 'मीरा' (१९७९) में हेमा मालिनी के साथ भूमिकाएं की।


१९८० के दशक में फैमिली 'स्वयंवर' और रामसे की हॉरर 'सबूत' ऐसी फ़िल्मे करते करते..कुमार गौरव-विजयता पंडित की फ़िल्म 'लव स्टोरी' में माँ की भूमिका में वह आयी। बीच में कुछ साल वह सिनेमा से दूर भी रही और ऑस्ट्रेलिया गई! बाद में भारत लौटने पर उन्होने टेलीविज़न पर काम शुरू किया..जिसमें 'बहुरानी', 'काव्यांजली', 'हार जीत' और 'क़ुबुल है' जैसे धारावाहिक तथा कार्यक्रम शामिल थे।

परिपक्व अभिनेत्री विद्या सिन्हा!
हालांकि, सिनेमा में आयी शादीशुदा विद्या सिन्हा का फ़िल्म कैरियर इतना लंबा नहीं रहा। कुल ३० फिल्मों में उन्होंने काम किया। २०११ में आयी 'बॉडीगार्ड' यह.. सलमान खान और करिना कपूर की फ़िल्म उनकी आख़री रही। फ़िल्मो के सम्मानों में उनकी इतनी दखल नहीं ली गयी इसका दुख है!


बासुदा से जब मेरी मुलाकात हुई तब 'रजनीगंधा' इस उनकी पसंदीदा फ़िल्म का ख़ास ज़िक्र हुआ! यक़ीनन उसकी महक बरक़रार रहेगी।

विद्या जी को मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

आदमी मुसाफीर हैं..!

जानेमाने फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी!

'आया सावन झुमके' ऐसे फिल्म शीर्षक से रूपहले परदे पर रूमानीयत लानेवाले जानेमाने फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी का इसी मौसम में यह जहाँ छोड़ कर जाना बेचैन कर देता हैं!

जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आया सावन झुमके' (१९६९) में धर्मेंद्र और आशा पारेख!
आजादीसे पहले सियालकोट (अब सरहद के उस तरफ़) में जन्मे जे. ओम प्रकाश स्कूल-कॉलेज के दिनों में नाटकों में हॉर्मोनियंम से संगीत दिया करते थे। तब वहाँ के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और क़तील शिफ़ाई उनके दोस्त थे और उनके मुशायरें सुनकर उर्दू से ओम जी को ख़ास लगाव हुआ! बाद में लाहौर में वह फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर बने और पार्टीशन के बाद बम्बई आएं!


'आयी मिलन की बेला' (१९६४) में ख़ूबसूरत सायरा बानू और ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार!
यहाँ आने के बाद जे. ओम प्रकाशजीने अपनी प्रॉडक्शन कंपनी 'फ़िल्मयुग' स्थापित की और १९६० में फ़िल्म 'आस का पंछी' का निर्माण किया, जिसे मोहन कुमार जी ने लिखा और निर्देशित किया था! ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला अभिनीत यह फ़िल्म हिट रही। 

इसके बाद १९६४ में उनसे निर्मित की मोहन कुमार निर्देशित फ़िल्म 'आयी मिलन की बेला' फिरसे राजेंद्र कुमार को ही नायक लेकर आयी और नायिका थी ख़ूबसूरत सायरा बानू! इस म्यूजिकल हिट फिल्म के गाने हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र जी ने लिखें थे, तथा संगीत दिया था शंकर-जयकिशन ने..जिसमे "ओ सनम तेरे हो गए हम.." जैसे मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर जी ने गाएं गीत यादगार रहें!

अभिनेता दामाद राकेश रोषन और बेटी पिंकी जी के साथ फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी!
'अ' अद्याक्षर से शुरू हुआ अपना यह फ़िल्म निर्माण का सफ़र ओम जी ने फिर उसी के साथ अपने शीर्षक ऱखकर बरक़रार रखा। इसमें १९६६ में उनसे निर्मित 'आये दिन बहार के' इस फ़िल्म का निर्देशन किया था रघुनाथ जालानी ने और नायक-नायिका थे धर्मेंद्र और आशा पारेख! इस सफल फ़िल्म के संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और वहीं कलाकार जोड़ी को लेकर १९६९ में उन्होंने 'आया सावन झुमके' यह हिट रोमैंटिक म्यूजिकल दी!

१९७२ में आयी अपनी फ़ील्म 'आँखों आँखों में' से ओम जी निर्देशक भी हुए। इस फ़िल्म में उन्होंने राकेश रोषन को हीरो बनाया..जो बाद में उनका (बेटी पिंकी का पति) दामाद हुआ! इसके बाद १९७४ में सुपरस्टार राजेश खन्ना को मुमताज़ और संजीव कुमार के साथ पेश कर के उन्होंने एक अनोखे प्लॉट के जरिये 'आप की क़सम' यह फ़िल्म बनायी। शक से पति-पत्नी के रिश्ते में पड़ा दरार "करवटें बदलतें रहें सारी रात हम.." इस आनंद बक्शी जी ने लिखे इसके शीर्षक गीत से ख़ूब व्यक्त हुआ; तथा इसका आर. डी. बर्मन का संगीत भी हिट रहा!
जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आप की क़सम' (१९७४) में 
मुमताज़, संजीव कुमार और सुपरस्टार राजेश खन्ना!

फिर १९७५ में ओम जी ने बहुचर्चित (या वादग्रस्त) फ़िल्म 'आँधी' का निर्माण किया। तत्कालिन राजनीति की पृष्ठभूमी पर फैमिली कॉन्फ्लिक्ट को उजागर करती इस फ़िल्म को कमलेश्वर जी ने लिखा था और गुलज़ार जी ने संवेदनशीलता से निर्देशित किया था। सुचित्रा सेन और संजीव कुमार ने इसमें अपने क़िरदार बेहतरीन ढंग से निभाएं थे। इसके बाद १९७७ में उन्होंने जितेंद्र को लेकर 'अपनापन' और राजेश खन्ना को लेकर 'आशिक़ हूँ बहारों का' ऐसी फ़िल्मे बनायीं!

जे. ओम प्रकाश जी की फ़िल्म 'आशा' (१९८०) में जितेंद्र, रीना रॉय और रामेश्वरी!

१९८० में आयी उनकी फ़िल्म 'आशा' ब्लॉक बस्टर रही। जितेंद्र और रामेश्वरी के साथ रीना रॉय को महत्वपूर्ण क़िरदार में पेश करती (राम केळकर लिखित) यह त्रिकोणीय प्रेम कथा की फ़िल्म दर्शकों के दिल को छू गयी! लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुरेल संगीत में लता मंगेशकर जी ने गाया इसका "शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता हैं.." मशहूर हुआ! 


इस जैसी ओम जी की फ़िल्मे साउथ में रीमेक हुई; तथा 'आसरा प्यार दा' (१९८३) ऐसी पंजाबी फ़िल्मे भी उन्होंने निर्देशित की!

बाद में जितेंद्र, रीना रॉय और परवीन बाबी को लेकर आयी 'अर्पण' (१९८३) जैसी उनकी त्रिकोणीय प्रेम की फ़िल्मे आयी। इसमें 'आखिर क्यों?' (१९८५) में तो स्मिता पाटील ने भी राजेश खन्ना और टीना मुनीम के साथ सशक्त क़िरदार निभाया!

दिग्गज फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी अपनी पत्नि, बेटी, दामाद..
राकेश रोषन और पोता हृतिक रोषन सहित पूरे परिवार के साथ!
१९८६ में उनके दामाद अभिनेता राकेश रोषन ने निर्माण की 'भगवान दादा' इस अलग किस्म की फ़िल्म का निर्देशन भी ओम जी ने किया। इस फ़िल्म की एक ख़ास बात यह भी थी की उनका पोता (राकेश जी का लड़का) हृतिक रोषन इसमें पहली बार परदे पर छोटी भूमिका में दिखाई दिया! फिर चौदह साल बाद आयी फ़िल्म 'कहो ना प्यार है' से वह स्टार बना!

२००१ में आयी उनकी फ़िल्म 'अफ़साना दिलवालों का' तक ओम जी कार्यरत थे! उनकी फ़िल्मों को 'फ़िल्मफ़ेअर' जैसे सम्मान मिले। १९९५-९६ में वह 'फ़िल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया' के अध्यक्ष थे। बाद में
२००४ में 'एशियन गिल्ड ऑफ़ लंदन' ने उन्हें 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाज़ा!

वह गुज़र जाने के बाद उनकी फ़िल्म 'अपनापन' का गीत मेरे मन में गुँजा..

"आदमी मुसाफीर हैं.."

उन्हें मेरी यह आदरांजली!!


- मनोज कुलकर्णी

Saturday 17 August 2019


लगभग सत्तर सालों से बरक़रार रहा स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी और अभिनय सम्राट यूसुफ़ ख़ान साहब..
(दिलीप कुमार) का रक्षा बंधन और
भाई-बहन का प्यार!








दोनों को शुभकामनाएं!! 💐💐

- मनोज कुलकर्णी
"भैय्या मेरे राखी के बंधन को निभाना.."

'छोटी बहेन' (१९५९) फिल्म में नंदा और बलराज साहनी.
हमारे भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह सबसे बेहतरीन तथा यादगार रक्षाबंधन गीतदृश्य रहा है! हर साल इस त्यौहार में यह याद आता है!

'छोटी बहेन' (१९५९) इस एल. व्ही. प्रसाद जी की क्लासिक फिल्म में बलराज साहनी जी और रेहमान जी के साथ नंदा जी ने इसे स्वाभाविकता से अभिनीत किया था!

शैलेन्द्रसाहब ने लिखा यह गीत शंकर-जयकिशनजी के संगीत में लता मंगेशकरजी ने गाया..जो नंदाजी के भावुक अभिनय के साथ दिल को छू लेता है!..जब भी यह देखता-सुनता हूँ मेरी आँखे नम हो जाती है!!

कहा गया की उस फिल्म के बाद इन कलाकारों ने यह भाई-बहन का रिश्ता बरक़रार रखा!!

कला के साथ इंसानियत और रिश्तों को अहमियत देने का वह ज़माना था!!

- मनोज कुलकर्णी
"एक शहेनशाह ने बनवा के हसीन ताजमहल.."
'लीडर' (१९६४) के इस गाने में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.
एक शहेनशाहने बनवाके हसीन ताजमहल
सारी दुनियाको मोहब्बत की निशानी दी है

हमारे सिनेमा के रूपहले परदे पर आया मेरा सबसे पसंदीदा रूमानी नग़मा.. जिसे अदाकारी के शहेनशाह दिलीपकुमार जी के साथ उसी रूमानीयत से साकार किया था..ख़ूबसूरत वैजयंतीमाला जी ने!

नृत्यकुशल अदाकारी की अपने भारतीय सिनेमा की ख़ूबसूरत 'आम्रपाली'.. वैजयंतीमाला जी का ८३ वा जनमदिन हाल ही में हुआ! इस समय मुझे उनकी दिलीपकुमार के साथ हीट जोड़ीवाली फ़िल्मे याद आयी।
'नया दौर' (१९५७) में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.

कुछ नीजि वजह से मलिका-ए-हुस्न.. मधुबाला फ़िल्म 'नया दौर' (१९५७) में दिलीप कुमार के साथ काम नही कर सकी तो इसके फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा ने उसकी जगह लिया वैजयंतीमाला को!..
और उनकी जोड़ी दर्शकों को पसंद आयी!

'देवदास' (१९५५) में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला.
हालांकि इससे पहले वैजयंतीमाला ने बिमल रॉय की अभिजात फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में दिलीपकुमार के साथ काम किया था; लेकिन उसकी प्रमुख नायिका थी सुचित्रा सेन!..इस पारो ने छोड़ जाने पर इस देवदास दिलीपकुमार का ख़याल रखनेवाली चंद्रमुखी के किरदार में वैजयंतीमाला ने जैसे जान डाली थी।

उसीका नतीजा हुआ की (अपनी मधुबाला नहीं तो) दिलीपकुमार ने 'नया दौर' के लिए वैजयंतीमाला को ही अपनी प्रमुख नायिका के रूप में चुन लिया! गौरतलब था की पूरी नायिका के इर्द-गिर्द घुमनेवाली ऋत्विक घटक ने लिखी बिमल रॉय की 'मधुमती' (१९५८) इस पुनर्जन्म पर आधारित फ़िल्म में भी दिलीपकुमार उसके नायक के रूप में आने में हिचकिचाएं नहीं।

'मधुमती' (१९५८) फ़िल्म में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला.

इसके बाद एस. एस. वासन की सोशल फ़िल्म 'पैग़ाम' (१९५९) में भी दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला ने साथ में जबरदस्त भूमिकाएं निभायी। फिर, जब दिलीपकुमार ने अपनी फ़िल्म 'गंगा जमुना' (१९६१) का निर्माण किया, तब अन्याय के विरुद्ध लढ़नेवाले उसके नायक की प्यारी धन्नो वैजयंतीमाला ही हुई!

'गंगा जमुना' (१९६१) में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार.
इसके बाद ताजमहल पर चित्रित उपर के गाने की.. (रानी मुखर्जी के पिता) राम मुख़र्जी ने बनायी 'लीडर' (१९६४) में दिलीपकुमार और वैजयंतीमाला की रूमानीयत रंग लायी। 
इसके बाद महाश्वेता देवी ने लिखी एच. एस. रवैल की फ़िल्म 'संघर्ष' (१९६८) में उन्होंने आख़री बार साथ में काम किया!

इसके कुछ दशकों बाद..चार साल पहले दिलीपकुमार जी की ऑटोबायोग्राफी रिलीज़ के बंबई में हुए शानदार समारोह में वैजयंतीमाला ख़ासकर  पधारी थी। तब बड़े पैमाने पर इकट्ठा हुई अपने सिनेमा की जानीमानी हस्तियों में..वहां मौज़ूद मेरी निगाहें उनके भाव देख रही थी! ग्रुप फोटो में कुछ फ़ासला रखकर वह खड़ी थी! यूसुफ़ ख़ान साहब (दिलीपकुमार) तो ख़ैर कुछ कह नहीं पा रहे थे; लेकिन वैजयंतीमाला जी की नम हुई आँखे बहोत कुछ कह रही थी!

इन दोनों को शुभकामनाएँ!!

- मनोज कुलकर्णी