Saturday 30 April 2022


कव्वाली की रूमानियत पेश किए वो
मुल्क की एकता की नसीहत दिए वो!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(अपने भारतीय सिनेमा के लाजवाब अदाकार ऋषि कपूर जी को  दूसरे स्मृतिदिन पर याद करतें!)

Thursday 21 April 2022

"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा.."

यह 'तराना-ए-हिन्द' लिखने वाले सरहद के दोनों तरफ मक़बूल, अज़ीम शायर अल्लामा इक़बाल जी को उनके स्मृतिदिन पर सुमनांजलि!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 20 April 2022

अज़ीम शायर-नग़्मानिगार..शकील बदायूँनी जी!

उर्दू के मशहूर शायर..शकील बदायूँनी जी!

'लीडर' (१९६४) में ताज-महल के गाने में वैजयंतीमाला और दिलीपकुमार!
"इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल..
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है.!"


अपने भारतीय सिनेमा के परदे पर आएं मेरे पसंदीदा रूमानी नग्मों में से एक, जिसे लिखा था उर्दू के मशहूर शायर..शकील बदायूँनी जी ने!

फ़िल्म 'लीडर' (१९६४) में ताजमहल के आगोश में खूबसूरत वैजयंतीमाला जी और अपने अदाकारी के शहंशाह युसूफ ख़ान याने दिलीपकुमार जी ने इसे पेश किया था।

संगीतकार नौशाद जी, गायक मोहम्मद रफ़ी जी और गीतकार शकील बदायूँनी जी!
शकील जी ने पहली बार कारदार जी की फ़िल्म 'दर्द' (१९४७) के लिए गीत लिखा, जिसे नौशाद अली जी ने संगीतबद्ध किया था! फिर गीतकार शकील जी और संगीतकार नौशाद जी की बाकमाल जोड़ी ने कई अविस्मरणीय गीत दिए.. जिन्हे मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, तलत महमूद और शमशाद बेगम जैसों ने गाया, इसमें थे "मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसिका .." ('बाबुल'/१९५०), "तू गंगा की मौज मैं जमुना का धारा.." ('बैजू बावरा'/१९५२ ), "दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा.." ('मदर इंडिया'/१९५७), "जब प्यार किया तो डरना क्या.." ('मुगल-ए-आज़म'/१९६०) और फ़िल्म 'मेरे महबूब' (१९६३) के शायराना अंदाज़ में इज़हार-ए-मोहब्बत करनेवालें नग्में जो मुझे बहुत पसंद हैं।

मुशायरे में अपनी शायरी पेश करतें शकील बदायूँनी जी!
शकील जी ने अन्य संगीतकारों के लिए भी कुछ लाजवाब गीत लिखें, जैसे की रवि जी के लिए 'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) के और हेमंत कुमार जी के लिए 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' (१९६२) के!..उन्होंने कुल ८९ फ़िल्मों के लिए गीत लिखें।

"मैं ‘शकील’ दिल का हूँ तर्जुमान,
कि मोहब्बतों का हूँ राजदान
मुझे फ़ख़्र है मेरी शायरी..
मेरी ज़िंदगी से जुदा नहीं!’’


ऐसे बयां होनेवाले शकील जी ने कुछ ग़ज़लें भी लिखीं, जिन्हें बेगम अख़्तर जी ने गाया, जिसमें हैं लोकप्रिय "ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया.."

शकील साहब ने इस जहाँ को अलविदा करके अब ५० साल से ज़्यादा अर्सा बीता हैं!
आज स्मृतिदिन पर उन्हें सुमनांजलि!!


- मनोज कुलकर्णी

Monday 11 April 2022

"जब दिल ही टूट गया.."

अपने भारतीय सिनेमा के पहले मशहूर शोकग्रस्त नायक कुन्दन लाल सहगल जी को उनके ११८ वे जनमदिन पर सुमनांजलि!

- मनोज कुलकर्णी

'महात्मा फुले' फ़िल्म और डॉ. आंबेडकर!


थोर भारतीय समाज सुधारक एवं सत्य शोधक समाज के संस्थापक महात्मा जोतिबा फुले जी की आज जयंती!

उनपर बनी फ़िल्म का मुहूर्त अपने भारतीय घटना के शिल्पकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी की उपस्थिति में होना जैसे स्वर्ण पल था..यहाँ उसकी दुर्लभ तस्वीर हैं! (१९५४ में साहित्यिक आचार्य अत्रे जी ने बनाई इस फ़िल्म 'महात्मा फुले' में बाबुराव पेंढारकर जी ने वह भूमिका निभाई थी। ये भी इसमें दिखाई दे रहें हैं।)

इनको सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 10 April 2022

भारतीय सिनेमा के श्रीराम..प्रेम अदीब!

प्रेम अदीब-शोभना समर्थ जोड़ी श्रीराम-सीता की भूमिकाओं में!
१९८७ के दरमियान दूरदर्शन पर 'रामायण' इस रामानंद सागर जी की लोकप्रिय धारावाहिक में श्रीराम जी की भूमिका से अरुण गोविल की वह प्रतिमा बन गई!
लेकिन उनसे पहले प्रेम अदीब जी को यह लोकप्रियता हासिल हुई थी फ़िल्मों के ज़रिये! आज श्रीराम नवमी के शुभ अवसर पर यह याद आया।

कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे प्रेम जी के पिता राम प्रसाद जी वकील थे। यह परिवार जब अवध आया, तब नवाब वाजिद अली शाह द्वारा उन्हें "अदीब" (फ़ारसी में विद्वान तथा सांस्कृतिक रूप से परिष्कृत) से सम्मानित किया गया।..और यह उनका पारिवारिक नाम हुआ!

फ़िल्म 'रामराज्य' (१९४३) का दृश्य!
प्रेम अदीब जी को बचपन से फ़िल्मों में रूचि थी। नतीजन १९३० के दशक में दिग्गज फ़िल्मकार सोहराब मोदीजी के सामाजिक सिनेमा से वे परदेपर आए। फिर 'प्रकाश पिक्चर्स' के
जानेमाने विजय भट्ट जी ने 'भरत मिलाप' (१९४२) में उन्हें लिया और नसीब ऐसा की श्रीराम जी की भूमिका के लिए!

इसके बाद आयी भट्ट जी की मानदंड फ़िल्म 'रामराज्य' (१९४३) और इसमें भी प्रेम अदीब जी को ही श्रीरामजी की अहम भूमिका मिली। और उनके साथ सीता जी की भूमिका में थी शोभना समर्थ जी (अभिनेत्री नूतन, तनूजा की माँ और मोहनीश बहल, काजोल की नानी!) यह फ़िल्म बहुत कामयाब रही। इसके बाद 'रामबाण' (१९४८), 'लव कुश' (१९४९) जैसी फ़िल्मों में भी वे दोनों इन्ही किरदारों में आएं।

कहतें हैं इससे प्रेम अदीब-शोभना समर्थ इस जोड़ी को लोग श्रीराम-सीता से ही जानने लगे और विनम्रता से नमस्कार करने लगें! बहुत से कैलेंडर्स पर इनकी ये प्रतिमाएं आयी और इन्हे मंदिरों में भी लगाया गया! यह होता है फ़िल्मों की इमेजेस का मासेस पर असर या महिमा भी कह सकतें!

१९६० में विजय भट्ट जी की ही पौराणिक 'अंगुलिमाल' में आख़री बार प्रेम अदीब परदे पर आए।

उनकी जन्मशताब्दी होकर अब पांच साल हुएं हैं!

श्रीरामजी को नमन करते, उन्हें भी सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

['सर्व धर्म समभाव' मानते हैं इसलिए श्रीराम नवमी की शुभकामनाएं और रमजान मुबारक़!]

 

अलविदा!!!

'मुस्लिम सत्यशोधक - मंडल' के बुज़ुर्ग संस्थापक सय्यदभाई जी परसो इस जहाँ से रुख़सत हुए!

इंसानियत मज़हब मानने वाले उनको 'पद्मश्री' से नवाज़ा गया था।

उन्हें विनम्र सुमनांजलि!
- मनोज कुलकर्णी

नहीं रहीं गीतकार माया गोविंद जी!


वयोवृद्ध गीतकार एवं रंगभूमी कलाकार माया गोविंद जी ने हाल ही में इस दुनिया को अलविदा कह दिया!

लखनऊ में जन्मी माया जी का शुरू से अभिनय तथा रंगभूमी की तरफ रुझान था। वहां 'संगीत - नाटक अकादमी' के पुरस्कार भी उन्होंने जीतें। बहरहाल, बचपन से कविता लिखने का शौक उन्हें कवी संमेलन और बाद में एक गीतकार की हैसियत से सिनेमा क्षेत्र में लाया।

हेमा मालिनी जी का बैले ‘मीरा’!
इसमें जानेमाने फ़िल्मकार गुरुदत्त जी के छोटे भाई आत्माराम जी ने सर्वप्रथम माया गोविंद जी से अपनी निर्देशित 'आरोप' (१९८३) के लिए गीत लिखवाएं, जिन्हे संगीतबद्ध किया था भूपेन हजारिका जी ने! "नैनों में - दर्पन है दर्पन में कोई.." यह किशोर कुमार और लता - मंगेशकर जी ने गाया और विनोद खन्ना-सायरा बानू पर फ़िल्माया उसका गाना मशहूर हुआ। इसके कई साल बाद एम्. एफ़. हुसैन की माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म 'गजगामिनी' (२०००) का शीर्षक गीत भी उन्होंने लिखा हुआ भूपेनदा ने ही संगीतबद्ध करके गाया था।

अपने कैरियर में उन्होंने लगभग ३५० फ़िल्मों के गानें लिखें। इसमें एक तरफ ख़य्याम जी के - संगीत में 'रज़िया सुलतान' (१९८३) का "शुभ घडी आयी रे.." यह दरबारी था; तो दूसरी तरफ बप्पी लाहिड़ी के संगीत में 'दलाल' (१९९३) का "गुंटूर गुंटूर.." यह पब्लिक डिमांड!

उन्होंने टेलीविज़न के लिए भी लिखा..इसमें 'महाभारत' जैसी धारावाहिक थी।और हेमा मालिनी का डांस बैले ‘मीरा’ भी!


उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

पहनावे को लेकर इम्तिहान से क्यों महरूम करतें?
अब कहाँ गया हुक्मरानी 'बेटी पढ़ाओ' अभियान?
क्या होगा इनका मुस्तक़बिल?

Wednesday 6 April 2022

अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी जी!
"हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं..
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं.!"

"जानी" राजकुमार जी ने यह डायलॉग 'बुलंदी' पर पहुँचाया था।

दरअसल यह शेर था उर्दू के जानेमाने शायर जिगर मुरादाबादी जी का!
 
उनका असल में नाम था अली सिकंदर.. जिनका शुरुआती जीवन बहुत संघर्षमय रहा। फ़ारसी उन्होंने शौक से सीखी थी और शायरी तो उन्हें विरासत में मिली थी।

बेमेल मिज़ाज के कारन अलग फरमाएं इश्क़ से मिला तजुर्बा उनकी शायरी में छलकता हैं। जैसे की उनका और एक मशहूर शेर हैं..

"ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे..
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.!"

‘दागे़जिगर’ कहा जानेवाला उनका युग था और अपनी शायरी पढ़ने का पुरअस्रार अंदाज़ था..जिससे मजरूह जी जैसे भी मुतअस्सिर हुएं!

बीसवीं सदी के अज़ीम ग़ज़लकारों में से एक जिगर साहब को उनके 'आतिश-ए-गुल' के लिए 'साहित्य अकादमी- पुरस्कार' से नवाज़ा गया था।

आज उन्हें यौम-ए-पैदाइश पर सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

पलाश से आहट प्रेम ऋतु बसंत की!

Saturday 2 April 2022

गुढीपाडवा-नववर्ष शुभेच्छा!
रमजान मुबारक हो!

- मनोज कुलकर्णी 

Friday 1 April 2022

अप्रैल फूल!

''हमारे अच्छे दिन अब आएंगे..!'
भोलीभाली आवाज़ आयी कहीं से..

उसे टोका गया 'क्या बक़वास है.?'
मासूमीयत से बोला "अप्रैल फूल है!"


- मनोज 'मानस रूमानी'