Wednesday 6 April 2022

अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी जी!
"हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं..
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं.!"

"जानी" राजकुमार जी ने यह डायलॉग 'बुलंदी' पर पहुँचाया था।

दरअसल यह शेर था उर्दू के जानेमाने शायर जिगर मुरादाबादी जी का!
 
उनका असल में नाम था अली सिकंदर.. जिनका शुरुआती जीवन बहुत संघर्षमय रहा। फ़ारसी उन्होंने शौक से सीखी थी और शायरी तो उन्हें विरासत में मिली थी।

बेमेल मिज़ाज के कारन अलग फरमाएं इश्क़ से मिला तजुर्बा उनकी शायरी में छलकता हैं। जैसे की उनका और एक मशहूर शेर हैं..

"ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे..
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.!"

‘दागे़जिगर’ कहा जानेवाला उनका युग था और अपनी शायरी पढ़ने का पुरअस्रार अंदाज़ था..जिससे मजरूह जी जैसे भी मुतअस्सिर हुएं!

बीसवीं सदी के अज़ीम ग़ज़लकारों में से एक जिगर साहब को उनके 'आतिश-ए-गुल' के लिए 'साहित्य अकादमी- पुरस्कार' से नवाज़ा गया था।

आज उन्हें यौम-ए-पैदाइश पर सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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