हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं.!"
"जानी" राजकुमार जी ने यह डायलॉग 'बुलंदी' पर पहुँचाया था।
दरअसल यह शेर था उर्दू के जानेमाने शायर जिगर मुरादाबादी जी का!
उनका असल में नाम था अली सिकंदर.. जिनका शुरुआती जीवन बहुत संघर्षमय रहा। फ़ारसी उन्होंने शौक से सीखी थी और शायरी तो उन्हें विरासत में मिली थी।
बेमेल मिज़ाज के कारन अलग फरमाएं इश्क़ से मिला तजुर्बा उनकी शायरी में छलकता हैं। जैसे की उनका और एक मशहूर शेर हैं..
"ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे..
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है.!"
बीसवीं सदी के अज़ीम ग़ज़लकारों में से एक जिगर साहब को उनके 'आतिश-ए-गुल' के लिए 'साहित्य अकादमी- पुरस्कार' से नवाज़ा गया था।
आज उन्हें यौम-ए-पैदाइश पर सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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