Sunday 10 April 2022

भारतीय सिनेमा के श्रीराम..प्रेम अदीब!

प्रेम अदीब-शोभना समर्थ जोड़ी श्रीराम-सीता की भूमिकाओं में!
१९८७ के दरमियान दूरदर्शन पर 'रामायण' इस रामानंद सागर जी की लोकप्रिय धारावाहिक में श्रीराम जी की भूमिका से अरुण गोविल की वह प्रतिमा बन गई!
लेकिन उनसे पहले प्रेम अदीब जी को यह लोकप्रियता हासिल हुई थी फ़िल्मों के ज़रिये! आज श्रीराम नवमी के शुभ अवसर पर यह याद आया।

कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे प्रेम जी के पिता राम प्रसाद जी वकील थे। यह परिवार जब अवध आया, तब नवाब वाजिद अली शाह द्वारा उन्हें "अदीब" (फ़ारसी में विद्वान तथा सांस्कृतिक रूप से परिष्कृत) से सम्मानित किया गया।..और यह उनका पारिवारिक नाम हुआ!

फ़िल्म 'रामराज्य' (१९४३) का दृश्य!
प्रेम अदीब जी को बचपन से फ़िल्मों में रूचि थी। नतीजन १९३० के दशक में दिग्गज फ़िल्मकार सोहराब मोदीजी के सामाजिक सिनेमा से वे परदेपर आए। फिर 'प्रकाश पिक्चर्स' के
जानेमाने विजय भट्ट जी ने 'भरत मिलाप' (१९४२) में उन्हें लिया और नसीब ऐसा की श्रीराम जी की भूमिका के लिए!

इसके बाद आयी भट्ट जी की मानदंड फ़िल्म 'रामराज्य' (१९४३) और इसमें भी प्रेम अदीब जी को ही श्रीरामजी की अहम भूमिका मिली। और उनके साथ सीता जी की भूमिका में थी शोभना समर्थ जी (अभिनेत्री नूतन, तनूजा की माँ और मोहनीश बहल, काजोल की नानी!) यह फ़िल्म बहुत कामयाब रही। इसके बाद 'रामबाण' (१९४८), 'लव कुश' (१९४९) जैसी फ़िल्मों में भी वे दोनों इन्ही किरदारों में आएं।

कहतें हैं इससे प्रेम अदीब-शोभना समर्थ इस जोड़ी को लोग श्रीराम-सीता से ही जानने लगे और विनम्रता से नमस्कार करने लगें! बहुत से कैलेंडर्स पर इनकी ये प्रतिमाएं आयी और इन्हे मंदिरों में भी लगाया गया! यह होता है फ़िल्मों की इमेजेस का मासेस पर असर या महिमा भी कह सकतें!

१९६० में विजय भट्ट जी की ही पौराणिक 'अंगुलिमाल' में आख़री बार प्रेम अदीब परदे पर आए।

उनकी जन्मशताब्दी होकर अब पांच साल हुएं हैं!

श्रीरामजी को नमन करते, उन्हें भी सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

['सर्व धर्म समभाव' मानते हैं इसलिए श्रीराम नवमी की शुभकामनाएं और रमजान मुबारक़!]

 

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