Sunday 31 December 2023

अलविदा साजिद..'सन ऑफ़ इंडिया'!


"नन्हा मुन्ना राही हूँ..
देश का सिपाही हूँ..
बोलो मेरे संग जय हिंद
जय हिंद..जय हिंद!"

दिग्गज फ़िल्मकार महबूब ख़ान जी के 'सन ऑफ़ इंडिया' किरदार में परदेपर यह गीत बड़े जोश से साकार किया था मास्टर साजिद ने! अब वो नहीं रहे इस दुखद ख़बर से यह याद आया! हालांकि ६० साल पुराना यह स्फूर्तिदायक गीत बचपन से कानों में गूँजता आ रहा हैं!

बम्बई के गरीब बस्ती से गोद लिए इस बच्चे को महबूब साहब ने अपनी फिल्म 'मदर इंडिया' में पहली बार पेश किया। इसमें उसने बंडखोर नायक बिरजू बने सुनील दत्त की बचपन की भूमिका उसी तरह निभाई! नर्गिस जी की सर्वश्रेष्ठ अभिनय की यह फ़िल्म राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सराही गई और 'ऑस्कर' तक पहुँचनेवाली पहली भारतीय फ़िल्म रही! फिर 'सन ऑफ़ इंडिया' (१९६२) फ़िल्म में मास्टर साजिद वह देशभक्ति गीत गाकर भारत भ्रमण करता नज़र आया!

१९६४ में महबूब साहब गुज़र जाने के बाद, इस साजिद को कुछ इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स में काम करने का मौका मिला। इसमें थी जॉन बेर्री की फ़िल्म 'माया' (१९६६) जिससे वह टीनेज आइडियल हुए! फिर फिलीपींस में नोरा औनोर के साथ 'द सिंगिंग फ़िलिपिना' (१९७१) जैसी फ़िल्मों में भूमिका करके उसने खूब शोहरत बटोर ली! मर्चेंट-आइवरी प्रोडक्शन की 'हीट एंड डस्ट' (१९८३) तक वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छाये रहे! साल २००० तक कुछ टीवी धारावाहिक में भी उन्होंने काम किया

हाल ही में वे इस जहाँ से रुख़्सत हुए हैं। उन्हें अलविदा!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 16 December 2023

अलविदा..जूनियर महमूद!!


"भाईजान ने हमें यह नाम दिया!"
अपने भारतीय सिनेमा के 'कॉमेडी किंग' मेहमूद जी के बारे में बड़ी इज़्ज़त से कहा करते थे..जूनियर महमूद जिनका असल में नाम नईम सय्यद था!

'कॉमेडी किंग' मेहमूद जी के साथ जूनियर महमूद!
महमूद जी की मिमिक्री खूब किया करते थे वे! 'ब्रह्मचारी' (१९६८) फ़िल्म में "हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं.." गाना
उसी लहजे में पेश करना या उनकी डायलॉग डिलिव्हरी हो! महमूद जी की फ़िल्म 'बॉम्बे टू गोवा' (१९७२)  में उन दोनों का सीन कमाल था!

ऐसे ही 'घर घर की कहानी' (१९७०) फ़िल्म के "ऐसा बनूँगा एक्टर मैं यारों.." गाने में जूनियर महमूद ने देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार इनका अंदाज़ बखूबी पेश किया! वैसे ही पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ 'आन मिलो सजना' (१९७०) फ़िल्म के "जवानी ओ दीवानी तू ज़िंदाबाद.." गाने में और 'कारवाँ' (१९७१) में जितेंद्र के साथ की केमिस्ट्री भी!

लगभग २५० फिल्मों में जूनियर महमूद जी ने काम किया था। हाल ही में उनका दुखद इंतक़ाल हो गया!

इस वक्त याद आयी कई साल पहले उन्होंने बनाई 'मस्करी' (१९९१) इस मराठी फ़िल्म के वक्त उनसे हुई मुलाक़ात! तब पुणे में हम फ़िल्म पत्रकारों के साथ उनकी जमी महफिल हंसी के फव्वारे भरी रही !


ख़ैर, सुपरस्टार बालकलाकार कहे जानेवाले उन्हें अलविदा!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 12 November 2023


🪔 रौनक़ यूँ तो रहेगी ही दिवाली की 🪔
🪔 रोशन ज़िंदगियाँ भी कर दे दिवाली! 🪔

- मनोज 'मानस रूमानी'

Friday 10 November 2023

नमस्कार!

मेरे "मनोज 'मानस रूमानी' - शायराना" इस यूट्यूब चैनल का आग़ाज़ हुआ हैं मैंने श्रीकृष्ण जी पर लिखे "सबके मन भाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.." इस अनोखे गीत से जिसे गाया हैं जानेमाने भजन/ग़ज़ल गायक श्री. अनुप जलोटा जी ने!

आप यह वीडियो मेरे यूट्यूब चैनल "मनोज 'मानस रूमानी' - शायराना" के इस लिंक में देखें: https://www.youtube.com/watch?v=ePNaQxzrYps

दिग्गज गायक अपना लिखा गीत गाकर प्रशंसा करते हैं यह मेरे लिए अहम बात हैं!
कृपया आप इसे पूरा सुने!

- मनोज कुलकर्णी
(मानस रूमानी)

Saturday 28 October 2023


कोजागरी का चाँद होगा आज आसमान में
हमारी महजबीं हमेशा दिल-ओ-दिमाग़ में!

- मनोज 'मानस रुमानी'

Wednesday 11 October 2023

मुक़ाबला दो इमेजेस का!

'शक्ति' (१९८२) फ़िल्म में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन!

'दिलीप-अमिताभ: एक जनरेशन गैप' यह आर्टिकल मैंने लिखा था 'शक्ति' (१९८२) फ़िल्म में अपनी सदी के दो महानायक यूसुफ़ ख़ान याने दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का परदे पर हुआ आमना-सामना देखकर! उसके जानेमाने निर्देशक रमेश सिप्पी जी की उम्र ७५+ हो गई हैं और आज अमिताभ जी की ८१ वी सालगिरह! तथा दिलीप साहब की जन्मशताब्दी हो गई। इस अवसर पर मुझे उसकी याद आयी, जिसे अब ४० साल हो गएँ हैं।

हालांकि, वह सिर्फ जनरेशन गैप ही नहीं थी, बल्कि अपने भारतीय सिनेमा के नायक को शोकग्रस्त से विद्रोही बनाने का बड़ा परिवर्तन था, जिसका विश्लेषण मैंने उसमें किया था। मेरे फ़िल्म पत्रकारिता के वे शुरूआती (महाविद्यालयीन) दिन थे और मुझपर पहले से अमिताभ की 'एंग्री यंग मैन' इमेज का प्रभाव था। लेकिन परिपक्व इंसान की सोच आती गयी तब महसूस हुआ की दिलीपकुमार के नायक जज़्बाती आम आदमी से काफी मिलते-जुलते थे!..और संवेदनशील होने की वजह से उनसे समरस हो सकता था! साथ ही दिलीप साहब की लाजवाब अभिनय क्षमता से मैं उनका प्रशंसक हुआ! मेरी इन दोनों दिग्गजों से मुलाकातें हुई और उनपर मैंने बहुत लिखा भी!

बहरहाल, समाज में होने वाले अन्याय-अत्याचारों का सामना करने की अमिताभ जी की संतप्त नायक की प्रतिमा निडर बनाने में स्फूर्तिदायी रही! उन्हें शुभकामनाएं!..और सिर्फ ट्रेजडी किंग ही नहीं, बल्कि अदाकारी के शहंशाह रहें यूसुफ़ साहब को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 10 October 2023

काश दुनिया यह बात समझ लेती!



बनानेवाले प्रोपेगैंडा फिल्में बनातें हैं
हुक्मरान उन का प्रमोशन करतें हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 4 October 2023

"लागी नाहीं छूटे.."


अपने अदाकारी के शहंशाह यूसुफ़ ख़ान याने की दिलीप कुमार जी को संगीत-गायन और निर्देशन में भी दिलचस्पी थी! उन्होंने अपनी स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के साथ नग़्मा भी गाया हैं!

लता मंगेशकर जी के साथ "लागी नाहीं छूटे." गाते दिलीप कुमार जी!
दिलीपकुमार जी ने हृषिकेश मुख़र्जी को (जो पहले श्रेष्ठ फ़िल्मकार बिमल रॉय के असिस्टेंट थे) स्वतंत्र रूप से निर्देशन करने के लिए प्रवृत्त किया..और १९५७ में अपनी पहली फ़िल्म 'मुसाफ़िर' हृषिदा ने निर्देशित की। इसकी कहानी तीन परिवारों की थी और एक भाग में दिलीपकुमार जी ने संवेदनशील मराठी अभिनेत्री उषा किरण जी के साथ बड़ा संजीदा किरदार निभाया था।

उस 'मुसाफ़िर' की एक और विशेषता थी (जो कम लोग जानतें हैं) की इसमें दिलीप कुमार जी ने गाया भी! शैलेन्द्र जी ने लिखा "लागी नाहीं छूटे." यह दर्दभरा गीत सलिल चौधरी जी के संगीत में लता मंगेशकर जी के साथ उन्होंने बहुत ख़ूब गाया। हालांकि इससे पहले बिमलदा की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में कोठे के फेमस सीन से पहले वे जो गुनगुनाएं थे वह रागदारी से कम न था। उनकी उसी आवाज़ की ख़ूबी को हृषिदा ने तराशा! बाद में उनकी आवाज़ में 'मुसाफ़िर' जैसा नग़्मा सुनने को नहीं मिला। उन्होंने अपना पूरा तवज्जोह अभिनय पर दिया!

ऐसी ही एक बात उनके निर्देशन और संगीत के बारे में हैं। "कोई सागर दिल को बहलाता नहीं.." यह शकील बदायुनी जी ने लिखा नग़्मा दिलीप कुमार जी ने 'दिल दिया दर्द लिया' (१९६६) में साकार किया। उन्होंने खुद यह फ़िल्म ए. आर. कारदार जी के साथ निर्देशित की थी! संगीत के अच्छे जानकार उन्होंने यह नग़्मा मशहूर मौसीकार नौशाद जी को खास 'राग कलावती' में संगीतबद्ध करने को कहा था! फिर उसी में मोहम्मद रफ़ी जी की दर्द भरी आवाज़ में वह आया और दिल को स्पर्श कर गया।

मैंने भी लगभग बीस साल पहले एक अनौपचारिक समारोह में यूसुफ़ साहब को शहनाई पर ताल देते हुए और गुनगुनातें रूबरू देखा-सुना हैं!

लता जी के ९४ वे जनमदिन पर यह "लागी नाहीं छूटे.." याद आया!!


दोनों को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 2 October 2023


अपने भारत देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री. लाल बहादुर शास्त्री जी को उनकी जयंती पर सुमनांजलि!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 28 September 2023


अपने भारतीय सिनेमा की मशहूर दिग्गज अदाकारा वहीदा रहमान जी को 'दादासाहब फाल्के अवॉर्ड' जाहिर होना यह समयोचित ही लगता है!

इस वक़्त न जाने क्यों मुझे उनका गुरुदत्त जी की फ़िल्म 'प्यासा' का.. "जाने क्या तूने कही..जाने क्या मैने सुनी बात कुछ बन ही गई.." गाना याद आया!

उनको मुबारक़बाद!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 26 September 2023

१९९५ में फिल्म करियर के ५० साल पुरे होने पर
देवसाहब ने मनाये जश्न में उनके साथ मैं!

जन्मशताब्दी 'प्रेमपुजारी' देव आनंद की!

 
आज सदाबहार अभिनेता-फ़िल्मकार देव आनंद जी का १०० वा जनमदिन!

हमेशा जवाँ रूमानी रहा यह 'प्रेमपुजारी' आराम से लाईफ सेंचुरी मार लेगा ऐसा लगा था..ख़ैर अब "खोया खोया चाँद.." गाकर आसमाँ में चाँदनियों के साथ घूमता होगा!

आज मुझे याद आ रहा है १९९५ में अपने फिल्म करियर के ५० साल पुरे होने के अवसर पर देवसाहब ने पुणे में मनाया बड़ा जश्न! इसमें उन्होंने यहाँ..वह 'प्रभात स्टूडियो' में काम करते वक्त की पुरानी यादों को ताज़ा किया..और नई फिल्म का प्रीमियर भी किया। दो दिन के उनकी इस सफर में हम मीडिया के लोग भी साथ में थे। आखिर में उन्होंने अपनी सालगिरह की जंगी पार्टी दी, जो इतनी झूम के चली की..वह जाने लगे तो हमारे बम्बई के फिल्म पत्रकार दोस्त नें उन्हीके गाने में कहाँ "अभी ना जाओ छोड़कर.."

मुझे यह भी याद है की गोवा में 'इफ्फी' (हमारा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह) शुरू हुआ तो देव आनंदजी वहां तशरीफ़ लाए थे! उनसे प्रेस कॉन्फरन्स में ख़ूब बातें हुई..तब मैंने उनसे पूछा "देवसाहब, क्या आपको लगता है 'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया..' यह गाना साहिरसाहब ने आप ही के लिए लिखा हो?"..उसपर वह झट से अपने अंदाज़ में बोले "बिलकुल मेरे लिए ही था!..दैटस द वे आय लिव!"..उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने न्यूज़ में वह कैचलाईन बनाई!!

ऐसे हमेशा जवाँदिल रहे कलाकार को यह सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 31 August 2023


"दिल है हिंदुस्तानी.."
यह जज़्बा अपने गीतों में पिरोनेवाले कवि शैलेन्द्र जी की हमारे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के साथ (१९६० के दौरान) की यह दुर्लभ तस्वीर!

शैलेन्द्र साहब को जन्मशताब्दी पर सुमनांजलि और नेहरू साहब को प्रणाम!!

- मनोज कुलकर्णी

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिरसे निराशाजनक!
महत्वपूर्ण श्रेणियों में हुआ चयन अपरिपक्वता और पक्षपात दर्शाता हैं!


- मनोज कुलकर्णी

"चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो.."
यह अब वाक़ई मुमकिन होगा प्यार करनेवालों!


- मनोज कुलकर्णी

Thursday 24 August 2023

बधाई 'चंद्रयान-३'!

मुंतज़िर थें सब जिसे पाने को
वो चाँद मयस्सर कर दिखाया!
हम प्यार करनेवालों को वाक़ई
'इसरो' आप चाँद मुबारक़ किया!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(अपने 'इसरो' को मुबारक़बाद!)

- मनोज कुलकर्णी

चाँद की ओर प्रयाण की पहल!


'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' ('इसरो') संचलित 'थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग - स्टेशन' के उद्घाटन समय की यह दुर्लभ तस्वीर गूगल पर देखी! इसमें हमारे भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी गांधी के साथ पीछे खगोल वैज्ञानिक डॉ॰ विक्रम साराभाई जी दिखाई दे रहें हैं।

इनको सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

'इसरो' की जब नींव रखी जा रही थी!


हमारे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के साथ खगोल वैज्ञानिक डॉ.. विक्रम साराभाई जी की यह दुर्लभ तस्वीर गूगल पर देखी! यह दर्शाती हैं १९६२ में स्पेस रिसर्च पर उनकी चल रही चर्चा! इस बुनियाद पर आगे १५ अगस्त, १९६९ में हमारे 'भारतीय अंतरिक्ष - अनुसंधान संगठन' ('इसरो') का गठन हुआ! अपने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जानेवाले साराभाई जी का जनमदिन हाल ही में हुआ!

इनको सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 13 August 2023


चाँदनी थी आप आसमाँ से उतरी
बेनज़ीर थी आप जहाँ-ए-फ़न की

- मनोज 'मानस रूमानी'

अपने लोकप्रिय भारतीय सिनेमा की ख़ूबसूरत अभिनेत्री श्रीदेवी जी को ६० वे जनमदिन पर सुमनांजलि!

- मनोज कुलकर्णी


चंद्रमुखी सम सबको भा गयी आप
मधुमती सम मीठी महसूस हुई आप
अप्सरा सम आम्रपाली दिख गई आप
फूल बरसे वो सूरज की मेहबूब भी आप

- मनोज 'मानस रूमानी'

हमारे भारतीय सिनेमा के सुनहरे काल की ख़ूबसूरत अदाकारा वैजयंतीमालाजी को ९० वे जनमदिन पर शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 6 August 2023


स्नेह और प्यार उतरता रहें कलम से..✍️
अल्फ़ाज़ गुलों की तरह खिलें दिलों में!

- मनोज 'मानस रूमानी'

('फ्रेंडशिप डे' शुभकामनाएं!)

अलविदा!!!

विख्यात कला निर्देशक नितिन देसाई जी का अकस्मात निधन जैसे एक सदमा हैं!

'१९४२ ए लव स्टोरी', 'हम दिल दे चुके सनम' के रूमानी गानों के सेट्स एक तरफ़ तो 'सलाम बॉम्बे', 'ट्रैफिक सिग्नल' का वास्तव दूसरी तरफ़, फिर 'देवदास' का शानदार रंगमहल एक तरफ़ तो 'जोधा अकबर' का शाही दरबार, 'प्रेम रतन धन पायो' का शीश महल दूसरी तरफ़! फ़िल्म किसी भी जॉनर की हो उसे आवश्यक सेट्स नितिन देसाई जी अपनी प्रतिभा से हूबहू निर्माण करतें थे। राष्ट्रीय पुरस्कारों से वे सम्मानित भी हुएं!

फ़िल्म निर्माण के उनके सपनों को साकार करता हैं उनका कर्जत स्थित भव्यदिव्य 'एनडी स्टूडियो'! कुछ साल पहले वहां टीवी धारावाहिक 'चक्रवर्ती अशोक सम्राट' के मुहूर्त समय हम फिल्म पत्रकार गएँ थे। अपने इतिहास के इस दैदीप्यमान कालखंड को उन्होंने वहां ऐसे जीवित किया था की लगा उसी माहौल में हैं!
(तब उनसे अच्छी बातें हुई, जिसकी तस्वीर यहाँ है!)

उन्हें भावपूर्ण अलविदा!!

- मनोज कुलकर्णी

महात्मा गाँधी जी के मौलिक विचार!


 

'बेटी बचाओं' का महज नारा देनेवाले हैं क्या ये हुक्मरान?
क्यूँ नहीं रोक पाते महिलाओं पर होतें शर्मनाक अत्याचार?
बहुत ही निंदनीय और खेदजनक!!

- मनोज कुलकर्णी

(मणिपुर की घटना पर!)

Saturday 29 July 2023

"पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला
चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला..
तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला..s"


दिल को छूने वाली आवाज़ के मुकेश जी ने गाएं यथार्थवादी गीतों में से मेरा यह एक पसंदीदा गीत..हाल ही में शुरू हुई उनकी जन्मशताब्दी पर मन मे गूँजा!  

विश्व विख्यात कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर जी के मूल "जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे..s" इस मशहूर बंगाली गीत से प्रेरित कवि प्रदीप जी का यह गीत!

हमेशा उदास मन को जीवनपथ पर चलने की प्रेरणा देता हैं!

मुकेश साहब को इसी से याद करके सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 6 July 2023


अदाकारी और शायरी के दो बेताज़ बादशाह..
युसूफ ख़ान..दिलीपकुमार और फैज़ अहमद फैज़!

फैज़ साहब की शायरी तरन्नुम में मेहदी हसन जी की आवाज़ में सुने या दिलीपकुमार जी से!

मैंने यूसुफ़ साहब की लाजवाब उर्दू रूबरू सुनी हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 25 June 2023

वह नफ़ासत, नज़ाकत..शायराना इज़हार-ए-इश्क़..
हमेशा से ही रहा हैं मेरा..तसव्वुर-ए-शायराना इश्क़!


- मनोज 'मानस रूमानी'

[इसी अंदाज़ की एच.एस. रवैल जी की 'मेरे महबूब' (१९६३) इस मेरी पसंदीदा फ़िल्म की ६० वी वर्षगांठ पर यह लिखा हैं। इसमें जुबिली स्टार राजेंद्र कुमार और ख़ूबसूरत साधना ने नज़ाक़त से शायराना इश्क़ साकार किया हैं। शकील बदायुनी जी की लाजवाब शायरी नौशाद जी के संगीत में मेरे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी जी तथा लता मंगेशकर जी ने गायी हैं! यह शायराना अंदाज़-ए-इश्क़ मुझे हमेशा लुभाता रहां हैं!]

- मनोज कुलकर्णी

हमारे अज़ीज़, अज़ीम फ़नकार मोहम्मद रफ़ी साहब और दिलीप कुमार..यूसुफ़ साहब को 'भारतरत्न' अर्पित हो ऐसी गुज़ारिश हैं!

मेरे 'चित्रसृष्टी' विशेषांकों में मैंने इन दोनों पर बहुत लिखा हैं तथा दिलीप कुमार जी का इंटरव्यू भी प्रसिद्ध किया हैं!!

- मनोज कुलकर्णी

पौराणिक फ़िल्म जिम्मेदारी से लिखी जाती हैं। अब प्रदर्शित ऐसी बड़ी फ़िल्म लिखनेवालों को यह समझ नहीं थी? लोगों की आलोचना स्वाभाविक हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 12 June 2023

हुस्न-ओ-इश्क़ के दरमियान इज़हार-ए-मोहब्बत का..
गुलाब ही है कुदरत ने दिया हुआ सबसे हसीन ज़रिया.!

- मनोज 'मानस रूमानी'

('रेड रोज डे' पर!)

Friday 9 June 2023

याद सूफी कवि अमीर ख़ुसरो जी की!

"जिहाल-ए-मिस्किन
मकुन ब-रंजिश.."

यह नग़्मा अब नए अंदाज़ में विशाल मिश्रा और श्रेया घोषाल ने गाएं म्यूज़िक वीडियो में सुनाई दिया!

सुनकर अच्छा लगा और याद आयी इस के मूल सूफियाना कवि अमीर ख़ुसरो जी की! उनकी "ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां" यह मूल नज़्म मशहूर हैं।

हालांकि, तीन दशक से भी पहले गुलज़ार जी ने इस पर लिखा गीत जे. पी. दत्ता जी की फ़िल्म 'गुलामी' (१९८५) में लिया गया था। इसे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी के संगीत में शब्बीर कुमार और लता मंगेशकर जी ने गाया था। यह काफी लोकप्रिय हुआ था!
[वैसे गुलज़ार जी का फ़िल्म 'मौसम' (१९७५) का गीत "दिल ढूँढता है फिर वही.." भी मिर्ज़ा ग़ालिब जी के "जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन" शेर से ही प्रेरित था!]

ख़ैर, चौदहवीं सदी के ख़ुसरो जी का सूफियाना असर अब भी बरक़रार हैं!
कश्मीर की ख़ूबसूरती पर उनका यह फ़ारसी उद्धरण आज भी उस सरज़मी की जैसे पहचान बन गया हैं..
"अगर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त...
हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त!"


ऐसे अमीर ख़ुसरो साहब को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 31 May 2023


"सीने में सुलगते हैं अरमां..."

प्रेम धवन जी का लिखा और तलत महमूद जी तथा लता मगेशकर जी ने गाया यह दर्दभरा 'तराना' आज फिर से मन में गूंजा..

इसके प्रतिभासंपन्न संगीतकार अनिल बिस्वास जी को २० वे स्मृतिदिन पर याद करते हुए!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 27 May 2023

सुनहरा पल बिताया था हमने वहां कभी शान से
सम्मुख जो थे अपने प्रजातंत्र की शान संसद के!

- मनोज 'मानस रूमानी'

[वर्तमान परिदृश्य के मद्देनज़र, तीस साल से भी पुराना सुनहरा पल याद आया..हमारे 'बी.सी.जे.' स्टडी टूर के दरमियान नई दिल्ली में हमारी पार्लियामेंट विज़िट का!]

(छायाचित्र में मैं बीच में क्लासमेट्स के साथ हूँ!)

- मनोज  कुलकर्णी

बधाई हो!

कर्नाटक में 'कांग्रेस' की हुई बड़ी जीत!
दक्षिण भारत में 'बीजेपी' हुई क्या लुप्त?


- मनोज 'मानस रूमानी'

Monday 8 May 2023

'शिरडी के साईबाबा' का प्रभाव!

'शिरडी के साईबाबा' (१९७७) फ़िल्म का (कुछ अस्पष्ट) समयोचित छायाचित्र!

अब के हालातों के मद्देनज़र दोनों समाजों में सौहार्द बरक़रार रखनेवाले शिरडी के साईबाबा की अहमियत उभर आई हैं! सर्व धर्म समभाव के प्रतिक समझे गए उनकी महिमा को उजागर करनेवाली दो कामयाब फ़िल्मे इस वक़्त याद आयी।

उसमें पहली थी मराठी.. 'शिरडी चे साईबाबा' (१९५५) जो निर्देशित की थी कुमार - सेन समर्थ जी ने और इसमें दत्तोपंत आंग्रे जी ने बाबा की प्रमुख भूमिका स्वाभाविकता से निभाई थी। इसकी पटकथा तथा संवाद कुमारसेन जी ने पांडुरंग दीक्षित जी के साथ लिखे थे, जिन्होंने इसका संगीत भी किया था। संत कबीर और एकनाथ जी की पद्यरचनाएँ इसमें थी। अपने जानेमाने मोहम्मद रफ़ी जी ने इसमें आवाज़ दी थी! इस फ़िल्म को लोकप्रियता के साथ राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त हुआ!

दूसरी थी हिंदी फ़िल्म 'शिरडी के साईबाबा' (१९७७) जिसका निर्माण अपने आदर्श 'भारतकुमार' फेम मनोज कुमार जी ने किया था। ("बाबा ने ही यह फ़िल्म मुझसे बनवाई!" ऐसा उन्होंने मुझे एक मुलाकात में भावुक होते कहा था!) उन्होंने इसकी पटकथा लिखी थी और इसमें सूत्रधार भक्त की भूमिका भी की। हिंदी सिनेमा के नामचीन कलाकारों ने इसमें समर्पित भाव से अपनी शिरकत की थी! अशोक भूषण जी ने इसका निर्देशन किया था और इसमें बाबा की प्रमुख भूमिका सुधीर दलवी जी ने लाजवाब निभाई थी! मराठी फ़िल्म से जाने गए पांडुरंग दीक्षित जी ने इस फ़िल्म को भी संगीत दिया। इसमें रफ़ी साहब के धार्मिक सौहार्दता से भरे गानें दिल को छू गए। यह फ़िल्म पहले से बहुत कामयाब रही और इससे उनकी महिमा का बड़ा प्रभाव समाज पर पड़ा!

इन फ़िल्मों के बाद उनका प्रभाव और भी कुछ फ़िल्मों में दिखाई दिया। जैसे की जानेमाने सेक्युलर फ़िल्मकार मनमोहन देसाई जी की फ़िल्म 'अमर अकबर अन्थोनी' (१९७७) में उनपर फ़िल्माया गीत "शिरडी वाले साई बाबा.." जो रफ़ी साहब ने ही गाया था और ऋषि कपूर जी ने बख़ूबी सादर किया था। इसकी दो पंक्तियाँ अब के हालातों पर समर्पक हैं..
"ये ग़म की रातें..रातें ये काली..
इनको बना दे ईद और दीवाली.!"


ख़ैर, सर्व धर्म समभाव की प्रेरणास्रोत की दृष्टी से इसे देख सकतें हैं!!


- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 3 May 2023

ज़र्द-सहाफ़त के इस खुशामदी दौर में 👏
चल रहीं हैं आज़ाद क़लम मुश्किल से 🤔

- मनोज 'मानस रूमानी'✍️

['विश्व प्रेस आजादी दिवस' पर!]


(ज़र्द-सहाफ़त = सनसनीखे़ज़ पत्रकारिता!)

Saturday 22 April 2023

ईद की दिली मुबारक़बाद!

अमन, भाईचारे का समाँ हर तरफ़ हो
प्यार की शमा रोशन हर दिल में हो!

- मनोज 'मानस रूमानी'

Wednesday 12 April 2023

क्रिकेट और बॉलीवुड के किंग ख़ान!

पाकिस्तान क्रिकेट और सियासत के कप्तान रहे मशहूर इमरान ख़ान और अपने भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार शाहरुख़ ख़ान की यह दोनों तरफ का स्नेह बयां करती तस्वीर!

कहतें हैं वहां ख़ान जी को भी बॉलीवुड से लगाव था!

- मनोज कुलकर्णी

सिनेमा में भी चमकतें!

पाकिस्तान क्रिकेट और सियासत के कप्तान रहे मशहूर इमरान ख़ान की वहाँ के और यहाँ अपने भारत के सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेताओं के साथ यह पुरानी दुर्लभ तस्वीर देखी।

इसमें (बायें से) अपने अज़ीम अदाकार यूसुफ़ ख़ान याने दिलीप कुमार, वहाँ के मुहम्मद अली, हैंडसम इमरान ख़ान और अपने मनोज कुमार, देव आनंद!

कहतें हैं तब ख़ान जी को बॉलीवुड से लगाव था!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 4 April 2023

'ऑस्कर' और अपना भारतीय सिनेमा: एक सिंहावलोकन!


'९५ वे ऑस्कर' समारोह में एक प्रेज़ेंटर रही अपनी स्टार दीपिका पादुकोन! फिर 'बेस्ट ओरिजनल सॉन्ग' का अवार्ड लेते हुएं..
संगीतकार एम.एम.कीरावनी-गीतकार चंद्रबोस! बादमें 'सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री' अवार्ड लेती हुई फ़िल्मकार कार्तिकी गोंज़ाल्विस-गुनीत मोंगा!


आखिर क्यों महरूम रहती हैं अपनी भारतीय फ़िल्मे 'ऑस्कर' से? जहाँ ये होते है वहां के हॉलीवुड से अपने सिनेमा की बड़ी स्पर्धा या पाश्चात्य फिल्मकार, समीक्षकों का अपने सिनेमा की तरफ देखने का नज़रिया या कुछ गुटबाजी???..ऐसे कई सवाल आम तौर पर हैं। इनके अलावा वास्तविकता से जुड़े मुद्दों की तरफ रुख करना चाहिए। वे हैं बगैर किसी राजनैतिक दृष्टि से, सिर्फ सिनेमा के तज्ज्ञ व्यक्तियों द्वारा सही फ़िल्म का चयन..जो यूनिवर्सल अपील की सभी पहलुँओं से प्रगल्भ हो!


'९५ वा अकादमी पुरस्कार समारोह' हाल ही में हुआ, जिसमें अपने भारतीय सिनेमा के पक्ष में दो अवार्ड्स आएं! ये हैं कार्तिकी गोंजालवेज और गुनीत मोंगा की 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' को 'सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री' का और तेलुगु फिल्म 'आरआरआर' के "नाटू नाटू" को 'बेस्ट ओरिजनल सॉन्ग' का! लेकिन 'सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म' श्रेणी में फिर से निराशा!

पिछले साल '९४ वे अकादमी पुरस्कार समारोह' में तो अपने सिनेमा पर मायूसी सी ही छा गयी थी! अपनी दो फ़िल्में इसके दो अलग विभागों के लिए भेजी गयी थी। उसमें से एक को 'डाक्यूमेंट्री फीचर' में सिर्फ़ नामांकन मिला, वह थी रिन्तु थॉमस और सुष्मित घोष की 'राइटिंग विद फायर'! दूसरी थी 'इंटरनेशनल फीचर फिल्म' में भेजी गयी तमिल‘कूझांगल’ जो स्पर्धा से बाहर हुई।

'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' के 'ऑस्कर' से महरूम रही आमिर ख़ान की 'लगान' (२००१).
बहरहाल, समकालीन वास्तव दर्शानेवाली 'राइटिंग विद - फायर' को पुरस्कार नहीं मिला और १९६९ में हुए 'हार्लेम - सांस्कृतिक उत्सव' पर बनी 'समर ऑफ सोल' इस अमेरिकी डाक्यूमेंट्री को 'ऑस्कर' अवार्ड दिया गया! यह तो होना था, क्योँ की वहां की घटनाओं को वे ज़्यादातर अहमियत देते हैं। वैसे भी अमेरिका और ब्रिटेन का इन अवार्ड्स पर वर्चस्व रहा हैं। बीस साल पहले (तब के) 'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' के लिए नामांकन मिलकर भी आमिर ख़ान की 'लगान' को इस पुरस्कार से क्यों वंचित होना पड़ा? ब्रिटिशों के खिलाफ जीते गए खेल पर बनी इस फ़िल्म को यह सम्मान न मिलने की वह एक अहम वजह मानी गयी!


दरअसल 'लगान' के मुक़ाबले जिस फ़िल्म ने 'ऑस्कर' जीता, वह सर्बो-क्रोएशियन 'नो मैन्स लैंड' (२००१) फ़िल्म बोस्निया और हर्ज़ेगोविना की जंग पर समकालीन प्रभावी थी! वैसे भी यूरोपियन सिनेमा पहले से अकादमी में अमेरिका के बराबर हावी रहा हैं..और 'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' अवार्ड्स जीतता आ रहा हैं। इनमें इनकी ज़्यादातर फिल्में दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि लेकर आती थी। विख्यात हंगेरियन निर्देशक इस्तवान ज़ाबो की 'मेफिस्टो' (१९८१) हो, या फेमस रोबेर्टो बेनिग्नी की सर्वपसन्द इटालियन 'लाइफ इज़ ब्यूटीफुल' (१९९७) जैसी फ़िल्मे! हालांकि पिछले दो दशकों में एशियाई सिनेमा भी आगे आता नज़र आ रहा हैं। जैसे की २०१२ में असग़र फरहदी की ईरानियन फ़िल्म 'ए सेपरेशन' ने यह पुरस्कार जीता। और पिछले साल जापानी फ़िल्म 'ड्राइव माय कार' सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय फ़ीचर फ़िल्म' से सम्मानित हुई, जिसपर मैंने यहाँ लिखा!
 
'ऑस्कर' से महरूम रही महबूब ख़ान की..
नर्गिस अभिनीत फ़िल्म 'मदर इंडिया' (१९५७).
ख़ैर, पहली बार १९५७ में अपने भारत की तरफ से भेजी गई जानेमाने महबूब ख़ान जी की फ़िल्म 'मदर इंडिया' को इस 'अकादमी पुरस्कारों' में नामांकन मिला। पति बगैर मुसीबतों का सामना करके, गरीबी में अपने दो बच्चों का पालन पोषण करती पीड़िता भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती हैं..ऐसा इस फ़िल्म में दिखाया गया था। अपनी बेहतरीन अभिनेत्री नर्गिस जी ने यह राधा की व्यक्तिरेखा पूरी जान उसमे डालकर कमाल की साकार की थी। अपने यहाँ राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करनेवाली इस फ़िल्म की उस लाजवाब भूमिका के लिए नर्गिस जी को तब 'कार्लोवी वेरी इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल' में 'बेस्ट एक्ट्रेस' का अवार्ड भी मिला। लेकिन यह फ़िल्म आखिर इस 'ऑस्कर' से महरूम रही! तब इटली के विख्यात फ़िल्मकार फ़ेडेरिको फ़ेलिनी की 'नाइट्स ऑफ़ कैबिरिया' (१९५७) को यह 'बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फ़िल्म' का अवार्ड दिया गया। रोम में रहनेवाली आशावादी - प्रॉस्टिट्यूट का जीवन इसमें दिखाया गया था और फ़ेलिनी की 'ल स्ट्राडा' फेम गिआलियट्टा मसिना ने यह भूमिका निभायी थी। अब अपनी और युरोपियन इन दो फ़िल्मों के अलग कंटेंट्स देखें और पुरस्कार में दिखा विरोधाभास जाने!


इसके बाद आप को और ताज्जुब होगा ऐसी बातें हुई। अपने विश्वविख्यात फ़िल्मकारों की फ़िल्में तब इस 'ऑस्कर' पुरस्कारों के लिए भेजी गयी। इनमें १९५९ में थी सत्यजीत रे जी की 'अपुर संसार' और १९६२ में थी गुरुदत्त जी की 'साहिब बीबी और गुलाम'; लेकिन इनको नामांकन भी नहीं मिला! इस विषय पर मेरी यहाँ 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' में प्रोफेसर्स के साथ हुई चर्चा में उन्होंने कहा था "सी, आवर्स सच सिनेमा इज बियॉन्ड 'ऑस्कर'!" (हालांकि, कई साल बाद रे जी को १९९२ में 'ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑनरेरी' अवार्ड से नवाज़ा गया!) फिर पार्टीशन पर १९७४ में बनी संवेदनशील फ़िल्मकार एम्.एस. सथ्यू जी की 'गर्म हवा' को और बाद में समानांतर सिनेमा को उत्तेजित करती श्याम बेनेगल की 'मंथन' (१९७७) को भी इसके नामांकन से वंचित रहना पड़ा था!

'गाइड' (१९६५) इस देव आनंद की उनके भाई विजय आनंद ने निर्देशित की फ़िल्म से, कला और संगीत-नृत्य से ताल्लुक रखनेवाली अपनी लोकप्रिय भारतीय फ़िल्मे 'ऑस्कर' के लिए भेजने की तरफ रुख हुआ! इनमें फिर वैजयंतिमाला अभिनीत 'आम्रपाली' (१९६६) से डिंपल कपाड़िया की कमबैक 'सागर' (१९८५) और बाद में भंसाली की शाहरुख़ खान अभिनीत 'देवदास' (२०००) तक की फ़िल्में शामिल हुई!


दरमियान (आगे बड़े मेनस्ट्रीम फ़िल्ममेकर हुए) विधु विनोद चोपड़ा की 'ऍन एनकाउंटर विथ फेसेस' (१९७८) इस शार्ट डाक्यूमेंट्री को 'ऑस्कर' का नामांकन मिला था! बम्बई के रास्तों-बस्तियों पर अनाथ दिखतें बच्चों की वास्तविकता इसने बयां की थी! इसे पुरस्कार तो नहीं मिला, लेकिन लघु तथा वृत्तपट बनानेवालों का हौसला बुलंद होने लगा! लगभग १६ साल बाद अश्विन कुमार के 'लिटिल टेररिस्ट' (२००४) ने 'लाइव एक्शन शार्ट फिल्म' के लिए नामांकन लिया। इंडो-पाक बॉर्डर के नजदीक खेलते हुए, भारत के क्षेत्र में गेंद जाने की वजह से इसमें प्रवेश किए छोटे पाकिस्तानी लड़के की और यहाँ उसे पनाह देनेवाले हिन्दू आदमी की यह दिल दहला देने वाली कहानी थी!

'बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म' के 'ऑस्कर' से वंचित..मीरा नायर की 'सलाम बॉम्बे' (१९८८).
१९८४ की 'सारांश' से ओफ्फबीट फ़िल्मे 'ऑस्कर' के लिए भेजी जानी लगी। महेश भट्ट की यह फ़िल्म अपने इकलौते बेटे के खोने का दुख सहते बुजुर्ग दंपत्ति की भावनाओं पर केंद्रित थी। इसके चार साल (और 'मदर इंडिया' के ३० साल)
बाद 'सलाम बॉम्बे' (१९८८) यह दूसरी फ़िल्म ठहरी जिसे इस अकादमी के 'बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म' के लिए नामांकन प्राप्त हुआ! अमेरिका स्थित मीरा नायर की यह पहली फ़िल्म महानगर मुंबई के मलिन बस्तियों चलनेवाले शोषण के धंदे और बेघर बच्चों के संघर्ष पर प्रकाश डालनेवाली थी। हालांकि तब डेनिश फ़िल्म 'पेले द कॉन्करर' को यह अवार्ड मिला!

अपना विविध प्रादेशिक सिनेमा ज़्यादातर कथा, विषय और स्वाभाविकता की दृष्टी से प्रगल्भ होता हैं। यह सोचते हुए इनमें जब अच्छी फ़िल्म निर्माण हुई, तब उसे 'ऑस्कर' के लिए भेजी गयी। रे जी की समकालीन बंगाली 'महानगर' (१९६३) से इस तरफ झुकाव रहा! इसके बाद शिवाजी गणेशन की तीन भूमिकाएँ वाली तमिल पारिवारिक 'देवा मगन' (१९६९), विधवा और ऑटिस्टिक व्यक्ति की तेलुगु संवेदनशील 'स्वाति मुथ्यम' (१९८५), फिर मानसिक रूप से विकलांग बच्ची पर मणि रत्नम की तमिल 'अंजलि' (१९९०), कैंसर हुए पोते की दृष्टी जाने से पहले उसे जीवन की रंगीन सुंदरता दिखानेवाले बुजुर्ग की सत्यकथा पर मराठी 'श्वास' (२००४) और मलयालम सामाजिक 'एडमिन्टे माकन अबू' (२०११) आदि फ़िल्मे इसमें समाविष्ट हुई।

दरमियान इन प्रादेशिक फिल्मों को 'ऑस्कर' के लिए भेजने में राजनीति होने लगी। विशेषतः २०१४ के बाद, जैसे 'दी गुड रोड' इस गुजराती फ़िल्म का भेजा जाना! कुछ प्रदेश और वहां के चर्चित विषयों प्रति (राजनैतिक हेतु से) झुकाव दिखाना..ऐसा हुआ 'जल्लिकट्टु' (२०१९) इस मलयालम फ़िल्म को भेजते समय! तो कभी जहाँ चुनाव वही की फ़िल्म भेजना, यह हुआ तमिल ‘कूझांगल’ के बारे में! यह सिर्फ मेरा अवलोकन नहीं; बल्कि और भी कइयों का मानना था!


१९९२ में 'ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑनरेरी' अवार्ड प्राप्त अपने विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे!
अब मुद्दा आता है 'ऑस्कर' के लिए जानेवाली फ़िल्म की ओरिजिनालिटी, रिपिटेशन और अन्य खामियां को परखना, जिसे नज़रअंदाज़ किया हुआ कुछ बार सामने आया। जैसे की अमोल - पालेकर निर्देशित फैंटसी फ़िल्म 'पहेली' (२००५) जो मणि कौल की १९७३ में बनी 'दुविधा' की रीमेक थी। इसके बाद जो चयन मुझे ठीक नहीं लगा वह था 'हरिश्चंद्राची - फैक्टरी' (२००९) का; क्योंकि अपने 'भारतीय सिनेमा के पितामह' दादासाहब फाल्के की जीवनी और उनकी चित्रनिर्मिति इस तरह कॉमेडी ड्रामा करके परदे पर लाना यह उनका अपमान लगा! क्या फ्रांस में सिनेमा के पायनियर लुमियर्स पर इस तरह कोई फ़िल्म बन सकती, हरगिज़ नहीं! इसके बाद भेजी गयी अनुराग बासु की 'बर्फी' (२०१२) में तो कुछ यूरोपियन फिल्म्स का इन्फ्लुएंस नजर आया।..और अमित मसूरकर की फ़िल्म 'न्यूटन' (२०१७) तो बाबक पयामी की ईरानी फिल्म 'सीक्रेट बैलेट' (२००१) पर ही लगी!

अब आखिर में अहम दो मुद्दों की तरफ तवज्जोह चाहूँगा। उनमें एक है, 'ऑस्कर' के लिए भेजी जानेवाली फ़िल्म का सही चुनाव बड़ी सोच समझकर करना चाहिए। इसमें जिस फ़िल्म को यूनिवर्सल अपील हो और पटकथा, निर्देशन, तांत्रिक मुल्ये, अभिनय आदि में प्रगल्भ सादरीकरण हो ऐसी फ़िल्म का चयन करे! दूसरा मुद्दा है, यह करने के लिए सिनेमा माध्यम के सभी पहलुँओं को (इतिहास से उत्कृष्ट निर्मिति के तांत्रिक मूल्यों तक) गहनता से समझनेवाले व्यक्तियों की जरुरत! 'फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया' इसके लिए जो चयन समिति नियुक्त करती है, उसमें (मेनस्ट्रीम के पॉपुलर के बजाय) ऐसे तज्ज्ञ व्यक्ति समाविष्ट करें, जिसमें फ़िल्म प्रोफेसर्स और सीनियर फ़िल्म क्रिटिक्स भी हो!

ख़ैर, अब आगे अपना सिनेमा 'ऑस्कर' के ('सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म' श्रेणी के साथ ही) सर्वोच्च 'बेस्ट पिक्चर' के लिए पुरजोर कोशिश करें! दुनिया में इतनी बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री हैं हमारे भारत की और इतना लोकप्रिय है हमारा सिनेमा विश्वभर!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 14 March 2023

"मैं गाऊँ तुम सो जाओ.."
मेरे सबसे चहेते गायक मोहम्मद रफ़ी साहब का यह गाना टीवी पर आया..और सुनते हुए मेरे आँखे नम हो गयी!
 
'ब्रम्हचारी' (१९६८) फिल्म में शम्मी कपूर जी ने यह परदे पर बड़ी भावुकता से सादर किया है!
 
सर्वोत्कृष्ट गायक और अभिनेता ऐसे पुरस्कार इन दोनों को इस फिल्म के लिए मिले थे!
 

हालाकि रफ़ी साहब का हर गाना किसी न किसी तरह जीवन से जुड़ा हुआ और दिल को छू लेता है!
यह गाना सुनकर सो जाना नसीब है..इस से दिल भर आया!
 
- मनोज कुलकर्णी

Sunday 12 March 2023

अज़ीम शायर मीर तक़ी मीर!


"रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'..
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था!"


शायर-ए-आज़म मिर्ज़ा ग़ालिब जी ने ऐसा जिनका ज़िक्र किया था वे उर्दू तथा फ़ारसी के अज़ीम शायर थे मीर तक़ी मीर! इस वर्ष उनका ३०० वा जन्मदिन मनाया जा रहा हैं!

१७२३ के दौरान आगरा (तब अकबराबाद) में जन्मे थे यह मीर मोहम्मद तक़ी! जीवन का तत्वज्ञान दिए पिता गुजर जाने के बाद, पढाई पूरी करने के लिए वे दिल्ली आए। कुछ समय उन्हें (बादशाह की तरफ़ से) छात्रवृत्ति मिली। दरमियान अमरोहा के सैयद सआदत अली ने उन्हें उर्दू में शेरोशायरी लिखने-कहने के लिए प्रोत्साहित किया।

उस समय शाही दरबारों में फ़ारसी शायरी को अहमियत दी जाती थी! फिर मीर तक़ी मीर उर्दू ग़ज़ल के दिल्ली स्कूल के प्रमुख शायर हुए। उनके दो मसनवी याने 'मुआमलात-ए-इश्क' और 'ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए मीर' ये उनके अपने प्रेम से प्रेरित थें!

बहरहाल, बार बार परकीयों से हुएं आक्रमणों ने हुई दिल्ली की बदहाली भी उन्हें दुखी कर जाती। तभी से ज़िंदगी की तरफ़ का उनका नज़रिया उनके शेरों में झलकने लगा था! बाद में वे लखनऊ चले गए..आसफ़ुद्दौला के दरबार में! फिर अपने जीवन के बाकी दिन उन्होंने लखनऊ में ही गुजारे।

मीर साहब का पूरा लेखन 'कुल्लियात' में ६ दीवान हैं, जिनमें विविध प्रकार की काव्य रचनाएं शामिल हैं। इनमे प्यार के जज़्बे के साथ करुण रस भी हैं!

एक तरफ़ वे ऐसा रूमानी लिखतें हैं..
"था मुस्तआर हुस्न से उस के जो नूर था
ख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़ुहूर था!"


तो दूसरी तरफ़ ऐसा यथार्थ..
"हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है!"


मीर साहब की शायरी को फ़िल्मों के लिए भी इस्तेमाल किया गया हैं, जैसे की..
"पत्ता पत्ता बूटा बूटा
हाल हमारा जाने है..
जाने न जाने गुल ही न जाने,
बाग़ तो सारा जाने है.."

और,
"दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले"


अपने ख़ूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ पर वे लिखतें हैं..
बुलबुल ग़ज़ल-सराई आगे हमारे मत कर
सब हम से सीखते हैं अंदाज़ गुफ़्तुगू का!


"पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख़्तों को लोग
मुद्दत रहेंगी याद ये बातें हमारीयाँ!"

ऐसा उनका कहना महसूस भी कर रहें हैं!!
मीर साहब को मेरा सलाम!!!


- मनोज कुलकर्णी


अपना ग़म छुपाके ख़ुशियाँ बाँटतें चले गए
बड़े दिल के इंसान की मिसाल देते चले गए

- मनोज 'मानस रूमानी'

(लगभग चार दशक बतौर लेखक, निर्देशक और अभिनेता के रूप में अपने फ़िल्म जगत में ज़िंदादिल शख़्सियत रहें सतीश कौशिक जी का अचानक इस जहाँ को छोड़ जाना दुखद हैं। उन्हें यह सुमनांजलि!)

- मनोज कुलकर्णी

Friday 3 March 2023

"ये 'लमहें'..ये पल.."

लाजवाब अभिनेत्री श्रीदेवी और मशहूर फ़िल्मकार यश चोपड़ा!
मशहूर रूमानी फ़िल्मकार यश चोपड़ा जी ने अपनी 'चाँदनी' (१९८९) हिट होने के बाद हटके प्रेम कहानी पर बनने वाली अपनी 'लमहें' (१९९१) के लिए लाजवाब अभिनेत्री श्रीदेवी को ही चुना! हालांकि उन्होंने कभी भी अपनी हिट फिल्मों की नायिका को रीपीट नहीं किया.. 'डर' (१९९३) की क़ामयाबी के बाद फिर से जूही चावला को नहीं लिया और 'दिल तो पागल है' (१९९७) सुपरहिट होने के बाद माधुरी दीक्षित को रीपीट नहीं किया!

'नौजवानी में जिससे (असफल) प्यार किया उसी की (हमशकल) लड़की से उम्र होने पर भी फिरसे प्यार होना'..ऐसी इसकी अनोखी कहानी थी, जो हनी ईरानी और राही मासूम रज़ा ने लिखी थी! इसमें दोनों क़िरदार ख़ूबसूरत श्रीदेवी ने बख़ूबी निभाएं थे और अनिल कपूर दोनों का प्रेमी बना था!

अपने समय से आगे थी 'लमहें' जो यश चोपड़ा जी की खुद की बहोत पसंदीदा फ़िल्म थी..इसका ज़िक्र उन्होंने हमसे बात करते हुए किया था!

अब यशजी और श्रीदेवी दोनों इस दुनिया में नहीं हैं!!
उन्हें सुमनांजली!!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 24 February 2023

हमें आप पर नाज़ हैं!


हाल ही में अपने मशहूर लेखक-शायर जावेद अख़्तर जी 'फ़ैज़ फ़ेस्टिवल' में शिरकत करने..लाहौर, - पाकिस्तान गए थे। इसमें शायरी, संगीत, सिनेमा से लेकर दो मुल्कों के आपसी रिश्तें तथा यथार्थता पर उन्होंने रखें विचार सराहानीय..और दोनों तरफ चर्चित रहें हैं!

बहुत ख़ूब जावेद साहब!

- मनोज कुलकर्णी