Saturday 31 March 2018

 
"राह देखा करेगा सदियों तक..
छोड़ जाएँगे यह जहाँ तनहाँ.."


शायरा और मशहूर अदाकारा महजबीं बानो..याने की भारतीय सिनेमा की ट्रैजडी क्वीन..
'पाक़ीज़ा' मीना कुमारी जी ने यह लिखा था..इस जहाँ को छोड़ते वक़्त..जो हम महसूस कर रहें हैं!

उनको स्मृतिदिन पर मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Friday 30 March 2018

" ये जीवन है...
इस जीवन का यही है रंगरूप
थोड़े ग़म हैं..थोड़ी खुशियाँ.."


कवि एवं गीतकार आनंद बख़्शी जी को उनके स्मृतिदिन पर सुमनांजली!

 
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Tuesday 27 March 2018

उर्दू कवी आगा हश्र कश्मीरी.

आगा हश्र कश्मीरी..उर्दू के शेक्सपीअर!


- मनोज कुलकर्णी

 
"सब कुछ खुदा से माँग लिया तुझको माँगकर
उठते नहीं हैं हाथ मेरे..इस दुआ के बाद..!"


आगा हश्र कश्मीरीजी का यह शेर..सुना-देखा 'संगम' (१९६४) फिल्म के एक सीन में..जिसमें राज कपूर वैजयंतीमाला को यह कहते है!
फिल्म 'संगम' (१९६४)  में वैजयंतीमाला और राज कपूर!

उर्दू के विख्यात कवी तथा नाटककार कश्मीरीजी को आज 'विश्व रंगमंच दिन' पर याद करना लाज़मी है..क्योंकि उन्हें 'उर्दू के शेक्सपीअर' कहा जाता था!

 
१८९७ में उनका 'आफ़ताब-ए-मोहब्बत' यह पहला नाटक प्रसिद्ध हुआ! उन्होंने ड्रामा राइटर की हैसियत से बम्बई के 'न्यू अल्फ्रेड थिएटर कंपनी' के लिए काम किया..जहाँ 'मुरिद-ए-शाक' यह उनका पहला प्ले किया गया, जो बहुत सफल हुआ..यह शेक्सपीअर के 'द विंटर्स टेल' से रूपांतरित था! बाद में उन्होंने शेक्सपीअर के कई प्लेज़ उर्दू में रूपांतरित किए!

बिमल रॉय की फिल्म 'यहूदी' (१९५८) में मीना कुमारी और दिलीपकुमार!
१९१५ में प्रकाशित उनका 'यहूदी की लड़की' नाटक तो बहुत मशहूर हुआ..और बाद में उस पर फिल्में भी बनी! इसमें प्रख्यात 'न्यू थिअटर्स' ने सैगल, रतनबाई और पहाड़ी सन्याल को लेकर १९३३ में 'यहूदी की लड़की' फिल्म की..तो बाद में दिलीपकुमार, मीना कुमारी और सोहराब मोदी को लेकर बिमल रॉयजी ने १९५८ में 'यहूदी' फिल्म निर्देशित की..जो काफ़ी सराही गयी!

पारसी थिएटर पर उनके काफ़ी नाटक सादर हुए! करिअर के आखरी पड़ाव में कश्मीरीजी ने 'शेक्सपीअर थिएट्रिकल कंपनी' स्थापित की; लेकिन वह थोड़ेही काल चली!

उन्हें अभिवादन!!

- मनोज कुलकर्णी
 ['चित्रसृष्टी', पुणे]

Monday 26 March 2018

विशेष लेख:

फ़ारूख़ शेख़ ..शानदार शख़्सियत!

- मनोज कुलकर्णी


भारतीय समानांतर सिनेमा के संवेदनशील तथा शानदार अभिनेता..फ़ारूक़ शेख़!


"फिर छिड़ी रात..बात फूलों की.." 'बाज़ार' (१९८२) में सुप्रिया पाठक और फ़ारूख़ शेख़!
"फिर छिड़ी रात..
  बात फूलों की.."

मख़दूम मोइनुद्दीनजी की ग़ज़ल 'बाज़ार' (१९८२) इस साग़र सरहदी की फिल्म में सुप्रिया पाठक के साथ उतनी ही रूमानी तरीक़े से साकार की थी फ़ारूख़ शेख़ ने!

भारतीय समानांतर सिनेमा के संवेदनशील तथा शानदार अभिनेता फ़ारूक़ शेख़ जी आज होते तो उनकी ७० वी सालगिरह मनायी जाती थी!
"सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ हैं."..'गमन' (१९७८) में फ़ारूख़ शेख़.


कॉलेज के दिनों से ही 'इप्टा' के जरिए थिएटर से जुड़े रहे फ़ारूख़ शेख़ को जानेमाने निर्देशक एम्. एस. सैथ्यु ने १९७३ में अपनी पहली फ़िल्म 'गरम हवा' के लिए चुना! पार्टीशन की पृष्ठभूमी पर बनी यह महत्वपूर्ण फ़िल्म बाद में मानदंड साबित हुई। यहीं से फ़ारूख़ जी का कला तथा समानांतर फिल्मों का सफर शुरू हुआ..!

रोमैंटिक म्यूजिकल 'नूरी' (१९७९) में फ़ारूख़ शेख़. और पूनम ढ़िल्लो!
१९७७ में विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजित राय ने उनकी उर्दू में बनी 'शतरंज के खिलाड़ी' इस फ़िल्म में फ़ारूख़ जी को लिया। बाद में मुज़फ्फर अली की 'गमन' (१९७८) में गांव से काम के लिए महानगर आए आदमी की संघर्षपूर्ण व्यक्तिरेखा उन्होने साकार की! फिर मुज़फ्फर जी की 'उमराव जान' (१९८१) में भी उन्होंने (रेखा के साथ) लख़नवी नवाब का क़िरदार उसी शान-ओ-शौक़त से पेश किया!
'चश्मे बद्दूर' (१९८१) में फ़ारूख़ शेख़, रवि बासवानी और राकेश बेदी!
मुख्य धारा की सिनेमा में फ़ारूख़ जी का प्रवेश हुआ यश चोपड़ा की रोमैंटिक म्यूजिकल 'नूरी' (१९७९) फ़िल्म से..जिसमें ख़ूबसूरत पूनम ढ़िल्लों उनके साथ थी। इसमें जान निसार अख़्तर जी के "आ जा रे मेरे दिलबर आजा.."जैसे गानों को ख़ैय्याम जी ने संगीतबद्ध किया और पहली बार नितिन मुकेश ने गाया था! यह फ़िल्म बड़ी क़ामयाब रहीं। इसके बाद सई परांजपे की रोमैंटिक कोमेडी फिल्म 'चश्मे बद्दूर' (१९८१) में उन्होने लाजवाब काम किया..नौजवानों की इस फिल्म में राकेश बेदी और रवि बासवानी उनके साथ थे। यह फ़िल्म ज्युबिली हिट हुई! फिर 'कथा' (१९८३) इस सई जी की फिल्म में भी वह बहारदार भूमिका में नज़र आए।
परदे पर जमीं जोड़ी!..'साथ साथ (१९८२) में दीप्ति नवल और फ़ारूख़ शेख़!

'चश्मे बद्दूर' की "मिस चमको" नाम से जानी गयी मध्यम वर्ग की लड़की साकार करनेवाली दीप्ति नवल से फ़ारूख़जी की परदे पर जोड़ी ख़ूब जमीं.. जिसके जरिए उन्होंने आम जीवन को स्वाभाविकता से दर्शाया। हालांकि जमीनदार परिवार के होने से उनका दिखना रॉयल था; फिर भी रमन कुमार की 'साथ साथ (१९८२) जैसी फ़िल्म में "ये तेरा घर..ये मेरा घर.." ऐसा आम लोगों का सीमित सपना वह गुनगुनातें रहें! फिर हृषिकेश मुख़र्जी की 'किसी से ना केहना' और 'रंग बिरंगी' (१९८३) जैसीं रोमैंटिक कोमेडी फिल्मों में उन्होंने अच्छे रंग भरें!..आखरी बार फ़िल्म 'लिसन अमया' (२०१३) में यह बुज़ुर्ग कलाकार साथ आए!
टीवी धारावाहीक 'श्रीकांता' में मृणाल कुलकर्णी और फ़ारूख़ शेख़!


इसी दौरान शबाना आज़मी के साथ भी फ़ारूख़जी ने पारीवारिक 'लोरी' (१९८४) और सामाजिक 'एक पल', 'अंजुमन' (१९८६) जैसी समस्याप्रधान फ़िल्में की! आगे 'तुम्हारी अमृता' इस नाटक में भी दोनों ने साथ में बेहतरीन काम किया!

दरमियान फ़ारूख़जी ने टेलीविज़न पर भी कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायी जैसे की प्रख्यात बंगाली साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की उपन्यास पर बनी 'श्रीकांत' (१९८५ से १९८६) और स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी पर हुई 'कहक़शाँ' (१९८८). इसके साथ ही राजकीय उपहास पर उल्लेखनीय 'जी मंत्रीजी'! बाद में 'जीना इसी का नाम है' कार्यक्रम का सूत्रसंचालन भी उन्होंने बख़ूबी किया।
फ़िल्म 'लाहौर' (२००९) में फ़ारूख़ शेख़!


बाद में कुछ ऑफ बीट फिल्मों में फ़ारूख़जी ने काम किया जैसे की 'मादाम बोवारी' इस ग्यूस्टाव फ्लाउबर्ट की अभिजात फ्रेंच नॉवेल पर केतन मेहता ने बनायी हिंदी फिल्म 'माया मेमसाब' (१९९३) में उन्होंने दीपा साही के साथ डॉक्टर की भूमिका निभाई! तो शोना उर्वशी ने बनायी 'सास बहु और सेंसेक्स' (२००८) इस आधुनिक मुंबई के जीवन पर सिनेमैटिक कमेंट करने वाली फ़िल्म में भी अलग किरदार निभाया!
आखरी फिल्म 'क्लब ६०' (२०१३) में फ़ारूख़ शेख़ और सारीका!

इसके बाद 'लाहौर' (२००९) इस फ़िल्म में भी उनका महत्वपूर्ण क़िरदार था..जिसके लिए उन्हें 'सर्वोत्कृष्ट सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय सम्मान मिला!..और 'क्लब ६०' (२०१३) यह सिनियर सिटीज़न के भावविश्व पर बनी उनकी आखरी फिल्म रहीं!
दीप्ति नवल और फ़ारूख़ शेख़ आखरी बार साथ..'लिसन अमया' (२०१३). 

२०१३ में उनकी 'लिसन अमया' यह फ़िल्म 'इफ्फी', गोवा में नवम्बर में मैंने देखी..और दिसम्बर में वह दिल का दौरा पडने से गुज़र जाने की ख़बर आयी!..लगा जैसे 'गमन' में उनपर फ़िल्मायी गयी ग़ज़ल वह वाक़ई महसूस कर रहें थे..

"सीने में जलन..आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ हैं.."

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Thursday 22 March 2018

कवि साहिर लुधियानवी.
आज के हालतों के मद्देनज़र मुझे साहिर लुधियानवी जी की यह पसंदीदा नज़्म याद आयी...

"संसार से भागे फिरते हो..भगवान को तुम क्या पाओगे..
इस लोक को भी अपना न सके..उस लोक में भी पछताओगे!
ये पाप है क्या, ये पुण्य है क्या..रीतों पे धरम की मुहरें हैं..
हर युग में बदलते धर्मों को..कैसे आदर्श बनाओगे....?
ये भोग भी एक तपस्या है..तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचयिता का होगा..रचना को अगर ठुकराओगे!
हम कहते हैं ये जग अपना है..तुम कहते हो झूठा सपना है
हम जन्म बिता कर जायेंगे..तुम जन्म गंवा कर जाओगे.!"
'चित्रलेखा' (१९६४) में मीना कुमारी और अशोककुमार.

रोषनजी के संगीत में यह लता मंगेशकरजी ने गायी थी!

'चित्रलेखा' (१९६४) में मीना कुमारी, 
प्रदीप कुमार और अशोक कुमार!





'चित्रलेखा' (१९६४) इस किदार शर्मा निर्देशित अभिजात फ़िल्म में मीना कुमारीजी और अशोक कुमारजी के क़िरदारों के बीच यह तात्विक बहस थी!

जीवन का बड़ा अर्थ इसमें समाया हैं!

- मनोज कुलकर्णी 
['चित्रसृष्टी', पुणे]
'आम्रपाली' (१९६६) में ख़ूबसूरत वैजयंतीमाला!


"जाओ रे जोगी तुम जाओ रे..
ये है प्रेमिओं की नगरी..
यहाँ प्रेम ही है पूजा..!"

यह गाना आज के हालातों के मद्दे-नज़र मन में गूँज रहा है!
'आम्रपाली' (१९६६) में सुनील दत्त और वैजयंतीमाला!

शैलेन्द्र साहब ने लिखा यह गाना शंकर-जयकिशन की संगीत निर्देशन में लता मंगेशकरजी ने गाया था!

'आम्रपाली' (१९६६) इस लेख टंडन निर्देशित पचास साल पुरानी अभिजात फ़िल्म में..उसी भूमिका में यह ख़ूबसूरत वैजयंतीमाला ने बखूबी पेश किया था!


'ऑस्कर' के लिए यह फ़िल्म अपने भारत की तरफ से भेजी गयी थी!


इस फ़िल्म ने 'युद्ध विरोधी प्यार की अहमियत' को उजाग़र किया था!!

आज भी यह समकालिन हैं!!

- मनोज कुलकर्णी

 ['चित्रसृष्टी', पुणे]

Tuesday 13 March 2018

लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के परदे पर सबसे चर्चित रहा होली का (बहोत कुछ कहनेवाला) गीत दृश्य..

'सिलसिला' (१९८१) के "रंग बरसे." में अमिताभ- रेखा!


"रंग बरसे भीगी चुनरवाली.."

हरिवंश राय बच्चनजी ने लिखे इस गीत को उनके बेटे अमिताभ बच्चन ने (शिव-हरी के संगीत निर्देशन में) जोश में गा कर रेखा के साथ..यश चोप्राजी की फिल्म 'सिलसिला' (१९८१) में पेश किया था! इसमें जया भादुरी-बच्चन और संजीव कुमार (सिर्फ देख रहे) थे!
'सिलसिला' (१९८१) में रेखा और जया भादुरी-बच्चन!




मुझे याद आ रही है उस समय की चर्चाएं और अलग अलग टिपनियां.!!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Monday 12 March 2018

"हमरी अटरिया पे आओ सवरियां..देखा देखी बलम हुई जाए..
तस्सवुर में चले आते हो...कुछ बातें भी होती हैं...
शब-ए-फुरकत भी होती हैं...मुलाकातें भी होती हैं..!"
शायर नवाब वाजिद अली शाह!



शाम-ए-गम को दिल को सुकून मिलने के लिए बेगम अख्तरजी की गायी हुई यह ठुमरी सुन रहां था..तब इसके रचेता याद आए वाजिद अली शाह..अवध के आखरी नवाब जो कलाओं में बहुत रूचि रखते थे और खुद शायरी भी करते थे! संगीत की दुनिया में उनका खास योगदान रहा, जिसमें 'ठुमरी' का आगाज़ उनके दरबार के संगीत जलसे में हुआ..'ठुमकना' शब्द से रची यह संगीत-नृत्य शैली वैसे कथ्थक से ताल्लुक रखती और उसके साथ गायी जाती थी!
अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी..बेगम अख्तरजी!






'ख्याल' के बाद उत्तर प्रदेश संगीत की एक अहम् शैली रही 'ठुमरी' वैसे तो अवध भाषा में ही रची गयी! इस तरह की बंदिश पेश करने वाली रसूलन बाई, सिध्देश्वर देवी जैसी गायिकाएं बनारस घराने से ताल्लुक रखती थी! फिर ग़ौहर जान और यह (बेगम) अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी इसमें बहुत मशहूर हुई!

सुमनांजली.!!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Wednesday 7 March 2018

चाँदनी जो थी बेनज़ीर..श्रीदेवी!

- मनोज कुलकर्णी


बॉलीवुड की पहली फिमेल सुपरस्टार..श्रीदेवी!


'सदमा' (१९८३) में श्रीदेवी और कमल हसन!
'हिम्मतवाला' (१९८३) में श्रीदेवी और जितेन्द्र!
'मुन्द्रम पिराई' (१९८२) इस अपनी प्रशंसीत तामील फ़िल्म का हिंदी रीमेक निर्देशक बालु महेंद्र ने 'सदमा' (१९८३) यह मूल कलाकारों को कायम ऱखकर बख़ूबी किया था..जिसके द्वारा श्रीदेवी के लाजवाब अभिनय से हम वाक़िफ़ हुए।..हालांकि क्लाइमैक्स में प्रभाव दर्शानेवाला कमल हासन का सशक्त किरदार था; लेकिन हादसे में याददाश्त खोकर मासूम बचपने में लौटी युवती की व्यक्तिरेखा निभाना काफ़ी मुश्क़िल था..पर श्रीदेवी ने पूरी समझदारी से उसके हर पहलु को जीकर स्वाभाविकता से वह निभाई..जिसकी भावनओं की गहराई कमल हासन के किरदार पर हावी हो गयी!..मुझे श्रीदेवी के अभिनय ने तब प्रभावित किया!
'पूमबट्टा' (१९७१) इस मलायलम फ़िल्म में बेबी श्रीदेवी!

वैसे 'सदमा' के कुछ महिने पहले ही जीतेन्द्र के साथ 'हिम्मतवाला' (१९८३) यह उसकी हिंदी फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी; लेकिन वह महज़ एक साऊथ स्टाइल साधारण मनोरंजन था! बाद में जीतेन्द्र के साथ उसकी जोड़ी हिट हो गयी और उन्होंने एक तरफ व्यावसायिक 'तोहफ़ा', 'अकलमंद' (१९८४) तो दूसरी तरफ पारीवारिक 'सुहागन', 'घर संसार' (१९८६) जैसी लगभग १८ फिल्में की..जिसमें ज्यादातर हिट रही तो कुछ फ्लॉप भी हुई।..दरअसल यह साऊथ की फार्मूला फ़िल्में थी क्यों की वह उस इंडस्ट्री से आयी थी तो शुरुआत में ऐसी हिंदी फिल्में उसे करनी पड़ी!

प्रमुख नायिका श्रीदेवी की पहली फिल्म 'मुन्द्रु मुदिचु' (१९७६)..साथ में रजिनीकांत और कमल हासन!
फ्लैशबैक में जाए तो..तामिलनाडु में जन्मी (अम्मा यंगर अय्यपन) श्रीदेवी ने लगभग ५० साल पहले बतौर बालकलाकार दक्षिण भारतीय सिनेमा में अपना कदम रखा था..पहली प्रदर्शित हुई उस फिल्म का नाम था 'थुनैवन' (१९६९)..एम्. ए. थिरुमुगम निर्देशित यह सफल पौराणिक फ़िल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानीत हुई! बाद में तामील, तेलुगु, मलायलम और कन्नड़ा ऐसी दक्षिण की चारों भाषाओँ की कई फिल्मों में इस बेबी श्रीदेवी ने काम किया..जिसमें 'पूमबट्टा' (१९७१) इस मलायलम फ़िल्म में उसका अभिनय सराहा गया और 'केरला स्टेट का बेस्ट चाइल्ड आर्टीस्ट अवार्ड' उसने जीता।
'ज्यूली' (१९७५) से बॉलीवुड में श्रीदेवी!

बाद में १९७६ में सिर्फ १३ साल की उम्र में श्रीदेवी प्रमुख नायिका बनी..फ़िल्म थी तामील 'मुन्द्रु मुदिचु' जो निर्देशित की थी जानेमाने फ़िल्मकार के. बालचंदर ने! इस लव ट्रायंगल फ़िल्म में उसके साथ वहां के दो प्रसिद्ध नायक थे..कमल हासन और रजिनीकांत..जिनके साथ बाद में उसने कई सफल फिल्मों में काम किया!

१९७५ में ही कमसीन उम्र में श्रीदेवी ने बॉलीवुड में कदम रखा..फ़िल्म थी के. एस. सेतुमाधवन निर्देशित सोशल रोमैंटिक 'ज्यूली'..जिसमें उसने शिर्षक भूमिका करनेवाली अभिनेत्री लक्ष्मी की छोटी बहेन का रोल किया था! इस सुपरहिट फ़िल्म में प्रीती साग़र ने गाए "माय हार्ट इस बीटिंग.." इस मशहूर इंग्लिश गाने में सबके साथ स्टाईलिस्ट डान्स करनेवाली जीन्स -टॉप में चुलबुली लड़की श्रीदेवी थी!
'सोलवा सावन' (१९७९) से हिंदी सिनेमाकी नायिका..साथमें अमोल पालेकर!

'तोहफा'  (१९८४) में श्रीदेवी और जयाप्रदा..अभिनय की जुगलबंदी!

उसके बाद १९७९ में वह हिंदी सिनेमा की नायिका बनी..जिसका नाम था 'सोलवा सावन' जो उसकी उम्र (१६) भी थी और साथ में (मराठी) नायक था अमोल पालेकर! इसके निर्देशक पी. भारथीराजा ने अपनी हिट तामील फिल्म '१६ वयथीनीले' (१९७७/ जिसमें श्रीदेवी ही कमल हासन और रजिनीकांत के साथ थी) का यह हिंदी रीमेक बनाया था!

फिर १९८३ में आयी जितेंद्र के साथ 'हिम्मतवाला' यह कमर्शियल एंटरटेनमेंट वाली ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ने उसका बॉलीवुड का सफल सफर शुरू हुआ..इसके "नैनो में सपना.." गाने ने तथा दोनों के नृत्य ने धूम मचाई! अगले साल 'तोहफा' आयी जिसमें जीतेन्द्र तो था ही लेकिन और एक साऊथ की ख़ूबसूरत अभिनेत्री उसके सामने थी..जयाप्रदा! उस समय इन दो अभिनेत्रियों की अभिनय की जुगलबंदी पर मैंने लेख लिखा था..जिसमें श्रीदेवी का सभी प्रकृति के किरदारों को बख़ूबी निभाना और जयाप्रदा का ज्यादातर गंभीर व्यक्तिरेखाओं में संयत अभिनय यह मैंने अधोरेखित किया था! इन दोनों अभिनेत्रियों ने फिर 'मकसद' (१९८४) और 'औलाद' (१९८७) जैसी करीब १२ फिल्मों में एकसाथ काम किया।
'नगीना' (१९८६) में श्रीदेवी का स्नेक डांस!
तब तक श्रीदेवी ने बॉलीवुड में अपने आप को अच्छी तरह स्थापित कर लिया था। इसी (१९८६-८७) दौरान उसने फैंटसी फिल्म 'नगीना' में जोश से काम किया..जिसमें उसका स्नेक डांस हिट हुआ! फिर सुभाष घई की मल्टी स्टारर 'कर्मा' में भी नायकों के बीच में उसने अपनी तरफ ध्यान खींचा! तो उसकी पॉपुलैरिटी को देखते हुए फ़िरोज़ खान ने 'जाँबाज़' में उसे बतौर गेस्ट अपीयरेंस लिया..और अभिनय में वह नायिका डिंपल कपाड़िया को हावी हो गयी.."हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिंदगी में.." इस गाने में उसकी इंटेंसिटी दिखाई दी!
'जाग उठा इंसान' (१९८९) में मिथुन चक्रबर्ती और श्रीदेवी!

इसी दरमियान उसने मिथुन चक्रबर्ती के साथ चार फिल्मों में काम किया..जिसमें के. विश्वनाथ निर्देशित सोशल 'जाग उठा इंसान' (१९८४) यह एकमात्र उल्लेखनीय रहीं। बाकी 'वतन के रखवाले' (१९८७) और 'वक़्त की आवाज़' (१९८९) ऐसी फिल्मों में उसके लिए कुछ खास नहीं था; लेकिन उन दोनों के प्रेम के चर्चे हुए!
'मिस्टर इंडिया' (१९८७) में श्रीदेवी का फेमस "हवा हवाई.." डांस!

फिर आयी (उसके बाद में पति हुए) बोनी कपूर निर्मित फिल्म 'मिस्टर इंडिया' (१९८७) जिसको निर्देशित किया था शेखर कपूर ने! हालांकि यह पूरी तरह नायक प्रधान याने की अनिल कपूर की फ़िल्म थी; लेकिन श्रीदेवी इसमें छा गयी और "बिजली गिराने मैं हूँ आयी..कहते हैं मुझको हवा हवाई.." यह उसका डांस दर्शकों को आकर्षित कर गया..इस हिट फिल्म से उसकी इमेज 'हवा हवाई गर्ल' हुई! फिर आयी 'चालबाज़' (१९८९)..पंकज पराशर निर्देशित यह फिल्म (हेमा मालिनी की) मशहूर 'सीता और गीता' (१९७३) का रीमेक थी और इसमें श्रीदेवी ने वह दो अलग किस्म के किरदार लाजवाब निभाए। इत्तफ़ाक से धर्मेंद्र का लड़का सन्नी देओल इसमें उसका एक नायक था और दूसरा रजनीकांत! श्रीदेवी को अपना पहला 'फ़िल्मफ़ेअर बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड' इसके लिए मिला!
"चाँदनी.." (१९८९) शिर्षक गीत में ऋषि कपूर और श्रीदेवी जो इसमें गायी!



..और इसी समय आयी श्रीदेवी की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगाने वाली..रूमानी फ़िल्मकार यश चोपड़ा की 'चाँदनी' (१९८९)..इस ट्रायंगल रोमांटिक फिल्म में ऋषि कपूर और विनोद खन्ना उसके नायक थे।. अपनी रूमानी भावनाओं के गहरे रंग उसने इसमें पिरोए..साथही शिर्षक गीत में अपनी मीठी आवाज़ भी दी! इस सुपरहिट फिल्म से वह चोटी की स्टार हो गई और दर्शकों के दिलों पर राज करने लगी!..'बेस्ट पॉपुलर फिल्म का नेशनल अवार्ड' भी 'चाँदनी' को मिला!! 
 'लमहें' (१९९१) के सेटपर बात करते 'चाँदनी' श्रीदेवी और फ़िल्मकार यश चोपड़ा!


इसके बाद यश चोपड़ा ने हटके प्रेम कहानी पर बनने वाली अपनी 'लमहें' (१९९१) के लिए भी श्रीदेवी को ही चुना! हालांकि उन्होंने कभी अपनी फिल्मों की नायिका को ऐसे रीपीट नहीं किया..[जैसे 'डर' (१९९३) की क़ामयाबी के बाद फिर से जूही चावला को नहीं लिया और 'दिल तो पागल है' (१९९७) हिट होने के बाद माधुरी दीक्षित को रीपीट नहीं किया!]..'नौजवानी में जिससे (असफल) प्यार किया उसी की (हमशकल) लड़की से उम्र होने पर भी फिरसे प्यार होना'..ऐसी 'लमहें' की अनोखी कहानी थी जो हनी ईरानी और राही मासूम रज़ा ने लिखी थी! इसमें दोनों क़िरदार ख़ूबसूरत श्रीदेवी ने बख़ूबी निभाएं और अनिल कपूर दोनों का प्रेमी बना! अपने समय से आगे थी यह..जो यशजी की खुद की बहोत पसंदीदा फ़िल्म रही..इसका ज़िक्र उन्होंने हमसे बात करते हुए किया था!!
'लमहें' (१९९१) के भावुक रूमानी पल में अनिल कपूर और श्रीदेवी!


१९९२ में श्रीदेवी ने फिरसे दोहरी भूमिका निभाई..मुकुल आनंद की मेगा फ़िल्म ' ख़ुदा ग़वाह' में और सामने था सुपरस्टार अमिताभ बच्चन! हालांकि इससे पहले भी उसने अमिताभ के साथ 'इन्किलाब' (१९८४) और 'आखरी रास्ता' (१९८६) इन फिल्मों में काम किया था; लेकिन वह महज नायक प्रधान फिल्में थी! पूरी तरह अफ़ग़ानिस्तान में वेधक तरीके से चित्रित हुई इस फ़िल्म में श्रीदेवी ने स्त्री योद्धा बेनज़ीर की और बाद में उसकी बेटी मेहँदी की भूमिकाएं लाज़वाब साकार की हैं।बादशाह खान बने अमिताभ के सामने (अभिनय सहित) पुरे जोश से श्रीदेवी की बेनज़ीर बड़ी शान से खड़ी हुई!..इसके "तू मुझे कुबूल..मैं तुझे कुबूल." गाने में उसने इस बादशाह के सीने से हाथ ओढ़नेवाली जो अदा दिखाई है उससे अमिताभ भी चौंक गया नजर आया!..इसके बाद तो वह फिमेल सुपरस्टार कहलाने लगी! ' ख़ुदा ग़वाह' यहाँ तो सुपरहिट हुई ही और काबुल में भी दस हफ्ते जोर से चली!
'ख़ुदा ग़वाह' (१९९२) के "तू मुझे कुबूल.." गाने में अमिताभ बच्चन और बेनज़ीर श्रीदेवी!

'जुदाई' (१९९७) में अनिल कपूर और उर्मिला मातोंडकर के साथ श्रीदेवी!

१९९३ में उसकी दो फिल्में उसका सराहनीय काम होने के बावजूद इतनी सफलता हासिल न कर सकी..जिसमें एक थी बोनी कपूर ने निर्माण की हुई बिग बजट 'रूप की रानी चोरों का राजा' (१९९३) यह अनिल कपूर के साथ और महेश भट्ट ने निर्देशित की हुई 'गुमराह' संजय दत्त के साथ! फिर तीन साल के अंतराल के बाद उसने भारतन की मलयालम फिल्म 'देवरागम' (१९९६) में अरविंद स्वामी के साथ काम किया। बतौर नायिका १९९७ में आयी 'जुदाई' उसकी आखरी फ़िल्म रही..अनिल कपूर और उर्मिला मातोंडकर के साथ उसकी यह अलग ही महत्वाकांक्षी पत्नि की भूमिका देखकर सब ताज्जुब हो गए!
टीवी सीरियल 'मालिनी अय्यर' में श्रीदेवी!

फिल्म निर्माता बोनी कपूर के साथ शादी होने के बाद श्रीदेवी सिनेमा से कुछ दूर सी हुई! फिर २००४-२००५ के दरमियान उसने टेलीविज़न के छोटे परदे पर कदम रखा..'मालिनी अय्यर' सीरियल से! कुछ समय 'एशियन अकैडमी ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविज़न' के संचालक मंडल पर भी वह रहीं। २००८ से २०१० के दौरान वह 'लैक्मे फैशन शो' में भी शरीक़ हुई! साथ ही अपनी पेंटिंग की कला को भी निखारा..जिसे आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया!
श्रीदेवी बड़े परदे पर लौट आयी थी 'इंग्लिश विंग्लिश' (२०१२) से! 

२०१२ में श्रीदेवी लौट आयी सिनेमा के बड़े परदे पर..'इंग्लिश विंग्लिश' इस गौरी शिंदे की प्रथम निर्देशन में बनी पारिवारिक फ़िल्म में उसने इंग्लिश की कमी दूर करने वाली समझदार गृहिणी की व्यक्तिरेखा बड़ी स्वाभाविकता से साकार की। फिर उसने तामील फैंटसी फिल्म 'पुली' (२०१५) में एकदम अलग किस्म की भूमिका निभायी!
अपनी ३०० वी फ़िल्म 'मॉम' (२०१७) में श्रीदेवी..साथ में पाकिस्तानी कलाकार सेजल अली!

पिछले साल श्रीदेवी की ३०० वी फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी..'मॉम' जिसमें अपनी बेटी पर हुए अत्याचार का बदला लेने वाली करारी स्त्री उसने खड़ी की..इसमें पाकिस्तान की फेमस टीवी कलाकार सेजल अली ने उसकी बेटी का किरदार अदा किया था!

श्रीदेवी पति बोनी कपूर और बेटीयाँ जान्हवी और ख़ुशी के साथ!
अपने देश की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में से एक कह जानेवाली श्रीदेवी को बॉलीवुड और साऊथ सिनेमा के लिए कुल पाँच 'फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार' मिले! साथ ही तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल के राज्य सरकारों ने भी उसे सम्मानित किया था।..और अपने भारत सरकार की तरफ से उसे 'पद्मश्री' पुरस्कार दिया गया!

'मॉम' श्रीदेवी की आखरी और बेहतरीन भूमिका रहीं! इस २४ फरवरी को वह खुद की दो बेटियों के साथ लाखों चाहनेवालों को छोड़ कर इस दुनिया से रुख़्सत हो गयी!..यह ख़बर देखते ही दुखभरे मन से मैंने यह दो पंक्तियाँ लिखी..

"आसमाँ से आयी थी..
लौट गयी वहाँ चाँदनी!"

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
"ये हवा, ये रात, ये चाँदनी..
'संगदिल' (१९५२) में "ये हवा." गाने में दिलीप कुमार और अदाकारा  शम्मी!
तेरी एक अदा पे निसार हैं.."
संगीतकार सज्जाद हुसैन!

गायक तलत महमूद!
'संगदिल' (१९५२) इस आर. सी. तलवार निर्देशित फ़िल्म का राजेंद्र कृष्ण जी ने लिखा यह गीत जो तलत महमूद जी ने गाया था सज्जाद हुसैन जी के संगीत में!..और (मधुबाला नायिका की) इस फ़िल्म में दिलीप कुमार ने परदे पर दूसरी अदाकारा शम्मी जी लिए पेश किया था!..यह बुज़ुर्ग अभिनेत्री गुज़र जाने की ख़बर से मुझे आज याद आया!

इसी धुन पर संगीतकार मदनमोहन जी ने बनाया "तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरूबा.." यह गाना फ़िल्म 'आख़री दाव' (१९५८) के लिए रफ़ी जी ने गाया था..और परदे पर शेखर नाम के अभिनेता ने अभिनेत्री नूतन के लिए पेश किया था..इत्तफ़ाक से इसमें भी उसके बगल में शम्मी जी ही थी!
बुज़ुर्ग अभिनेत्री शम्मी जी!

उनका असल में नाम था नर्गिस राबदी! १९५०-६० के दशकों में उन्होंने प्रमुख नायिकाओं के साथ अलग किस्म की भूमिकाएं निभाई और १९९० के दशक तक वह चरित्र अभिनेत्री की तौर पर परदे पर आती रहीं! करीब २०० फिल्मों के अलावा वह टीवी धारावाहीकों में भी नजर आयी!

उनको मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Thursday 1 March 2018

मन में 'क्लास', परदेपर 'मास' मनोरंजन..मनमोहन देसाई! 

- मनोज कुलकर्णी



'ब्लफ़ मास्टर' (१९६३) के ''गोविदा.'' गाने में शम्मी कपूर!
आज भारत के मेनस्ट्रीम पापुलर सिनेमा के मशहूर फ़िल्मकार मनमोहन देसाईजी का २४वा स्मृतिदिन है!

आम लोगों का मनोरंजन करनेवाली पारीवारिक सुपरहिट फार्मूला फिल्में बनानेवाले मनमोहन देसाईजी के पिताजी भी फिल्म निर्माता थे और उन्होंने कुछ स्टंट फिल्में बनायी थी। बादमें उनके बड़े भाई सुभाष देसाई निर्माता हुए और उन्होंने १९६० में 'छलिया' फिल्म का निर्देशन करने का मौका मनमोहनजी को दिया..जिसके नायक थे राज कपूर! उसके बाद इन निर्माता-निर्देशक भाईयों की फिल्म 'ब्लफ़ मास्टर' (१९६३) आयी, जिसमें शम्मी कपूर के ''गोविदा आला रे.'' गाने ने धूम मचाई!
'अमर अकबर अन्थोनी' (१९७७) के शिर्षकगीत में..
विनोद खन्ना, ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन..
तथा शबाना आज़मी, नीतू सिंह और परवीन बाबी!


लेक़िन मनमोहन देसाईजी का एक्शन-इमोशन-गाने से भरा हुआ 'लॉस्ट एन्ड फाउंड' फार्मूला असल में शुरू हुआ जब उस ज़माने के सुपरस्टार राजेश खन्ना को लेकर उन्होंने 'सच्चा झुठा' (१९७०) यह हिट फिल्म बनायी। फ़िर १९७७ तक 'परवरिश' और 'अमर अकबर अन्थोनी' जैसी दूसरे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को लेकर बनायी हई फिल्में ब्लॉकबस्टर रहीं। इन दोनों फिल्मों में विनोद खन्ना भी उसके साथ था और सुपरहिट 'अमर अकबर अन्थोनी' इस मल्टीस्टार रही उनकी फ़िल्म में फिर ऋषि कपूर, नीतू सिंग, शबाना आज़मी, परवीन बाबी जैसे स्टार्स भी आये! अलग अलग मजहब में परवरिश हुए इन तीन किरदारों को मनमोहन देसाईजी ने एकही प्यार के धागो में बांधा है! इसमें दुश्मन के अड्डो पर फाइट करनेवाला अमिताभका सेंडो टी शर्ट-जीन में बेदरकार किरदार तब युवाओं पर असर छोड़ के गया!
अमिताभ बच्चन और मनमोहन देसाई 'कुली' (१९८३) के शूटिंग के दौरान!

अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनाने में जिस तरह ('जंजीर' फेम) फ़िल्मकार प्रकाश मेहरा का योगदान रहा, उसी तरह इस पद पर उसको कायम रखने के लिए मनमोहन देसाई की हिट फिल्मों का साथ भी उसको मिला! बिग बी ने इस पर कहा है कि 'उन्होंने हमेशा अपनी फिल्मों में मुझे आम आदमी के किरदार निभाने के लिए दिये है..जिसे जनता ने अपना समझा और वह हिट हो गए!' इसके अलावा बाकी अभिनेताओंके साथ भी मनमोहनजी ने इसी दौरान सफल फिल्मे बनाई..जैसे कि धर्मेंद्र और जीतेन्द्र को लेकर इसी (लॉस्ट एन्ड फाउंड) फार्मूले पर बनायी हुई 'धरम वीर'!
मनमोहन देसाई की फिल्म 'धरम वीर' (१९७७) में धर्मेंद्र और जीतेन्द्र!

इसी दौरान मनमोहन देसाईजी ने अपनी पत्नी श्रीमती जीवनप्रभा देसाईजी ने लिखी कहानी पर 'आ गले लग जा' (१९७३) यह संवेदनशील पारीवारिक फिल्म भी बनायी, जिसमें शशी कपूर, शर्मिला टैगोर और शत्रुघ्न सिन्हा नें प्रमुख भूमिका निभायी थी। इसका "मेरा तुझसे है पहेले का नाता कोई.." यह गाना दिल को छुआ था! इसके अलावा ज्यादा तर प्रयाग राज, के. के. शुक्ला और कादर खान इन्होंने मनमोहनजी के लिए फिल्मे लिखी और शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी, आनंद बक्षी, गुलशन बावरा, कमर जलालाबादी ने उनके लिये गीत लिखे, जिन्हें संगीतबद्ध किया था कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल तथा आर. डी. बर्मन ने! मनजी के मोहम्मद रफ़ी पसंदीदा गायक थे। उनकी 'अमर अकबर अन्थोनी' (१९७७) में ऋषि कपूर के लिए रफ़ीजी ने गायी कव्वाली "पर्दा है पर्दा.." लाज़वाब थी। जहाँ बाकी फ़िल्मकार अमिताभ के लिए किशोर कुमार की आवाज लिया करते थे वहां मनजी ने उसके लिए रफ़ीजी की आवाज ली..जैसे की उनकी फिल्म 'नसीब' (१९८१) का गाना "जॉन जानी जनार्दन.."
'रोटी' (१९७४) का राजेश खन्ना का गांववालों प्रति गीत "यार हमारी बात सुनो."


मल्टीस्टारर 'गंगा जमुना सरस्वती' (१९८८) यह मनमोहन देसाई ने निर्देशित की हुई आखरी फिल्म रही। अपने २९ वर्षों के करिअर में उन्होंने २० फिल्में बनायी, जिसमे १३ सुपरहिट रही! उनको हमेशा हम समीक्षकों द्वारा 'मासेस का सूपर एंटरटेनर' कहा गया है; लेकिन मेरी जानकारी से वह अच्छे जागतिक सिनेमा से वाक़ीफ़ थे! बहोत साल पहले 'एन.एफ.ए.आई.', पुणे के फाउन्डर पी. के. नायरजी ने मुझे बताया था कि ''मनमोहन देसाई एइजेंस्टीन की रशियन फिल्म 'बैटलशिप पोटेमकिन' (१९२५) देखने के लिए उत्सुक है!' इतना ही नहीं, उनकी 'रोटी' (१९७४) फिल्म का एक सीन क्लासिक फिल्म 'झोर्बा द ग्रीक' (१९६४) से प्रेरित है..राजेश खन्ना का गांववालों के प्रति गीत-दृश्य "यार हमारी बात सुनो.."
'देशप्रैमी' (१९८२) के शीर्षकगीत में परीक्षित साहनी, प्रेमनाथ, उत्तमकुमार और शम्मी कपूर!


मनमोहन देसाईजी ने अपनी मनोरंजक फिल्मों के जरिये सामाजिक सन्देश देने की हमेशा कोशिश की है! जैसे की... धर्मनिरपेक्षता ('अमर अकबर अन्थोनी') और राष्ट्रीय एकात्मता.. (''मेरे देशप्रैमीयों आपस में प्रेम करो.." शीर्षकगीत). यहाँ ऐसा कहेना अनुचित नहीं होगा की उनके मन में 'क्लास' था; लेकिन परदे पर 'मास' मनोरंजन था!!

उन्हें अभिवादन!!!

- मनोज कुलकर्णी 
('चित्रसृष्टी', पुणे)