Wednesday 30 January 2019

'झाँसी की रानी'..मेहताब और कंगना!


'मणिकर्णिका - द क्वीन ऑफ़ झाँसी' का पोस्टर!
'झाँसी की रानी' (१९५३) का पोस्टर!
अब बॉलीवुड 'क्वीन' कंगना रनौत की नयी फ़िल्म.. 'मणिकर्णिका - द क्वीन ऑफ़ झाँसी' प्रदर्शित होकर सफलता हासिल कर रही हैं। इस अवसर पर ६६ साल पहले जनवरी में ही प्रदर्शित क्लासिक फ़िल्म 'झाँसी की रानी' की याद आती हैं..जिसमें मेहताब जी ने यह भूमिका बेहतरिन साकार की!


'झाँसी की रानी' (१९५३) में मेहताब!
'मिनर्वा मूवीटोन' के सिंह कहलाने वाले सोहराब मोदी ने १९५३ में 'झाँसी की रानी' फ़िल्म का निर्माण किया था.और शिर्षक भूमिका में (अपनी पत्नि) मेहताब के साथ..खुद उसमें राजगुरु की भूमिका निभायी थी। ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ १८५७ में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम में बड़ा योगदान देनेवाली थी रानी लक्ष्मीबाई! उसपर १९४६ में वृंदावन लाल वर्मा ने लिखे उपन्यास पर यह फ़िल्म पंडित एस. आर. दुबे ने लिखी थी! 
'झाँसी की रानी' (१९५३) में सोहराब मोदी और मेहताब!

पहले ब्लैक एंड वाइट में हुई और बाद में टेक्नीकलर में परिवर्तित भव्यता से बनी फिल्म 'झाँसी की रानी' (१९५३) की विशेषता यह भी थी की हॉलीवुड के तकनीकी जानकर इसमें सहभागी हुएं थें! इसमें प्रमुख थे प्रसिद्ध 'गॉन विथ द विंड' (१९३९) के 'ऑस्कर' प्राप्त सिनेमाटोग्राफर अर्नेस्ट हालेर.. जिनको यहाँ एम्. मल्होत्रा और वाय. डी सरपोतदार ने सहायता की थी। तथा इसका एडिटिंग किया था अंग्रेजी रुसेल लॉयड ने! फिर यह फ़िल्म १९५६ में 'टाइगर एन्ड द फ्लेम' नाम से अंग्रेजी में बाहर भी प्रदर्शित हुई!

'मणिकर्णिका-द क्वीन ऑफ़ झाँसी' के दृश्यों में जोशपूर्ण कंगना रनौत!
अब आयी 'ज़ी स्टूडियोज' निर्मित.. 'मणिकर्णिका - द क्वीन ऑफ़ झाँसी' यह फ़िल्म (क्रिश से लेकर) कंगना रनौत ने ही निर्देशित की हैं! इससे पहले अपनी हिट फ़िल्म 'क्वीन' (२०१४) लिखने से उसका एक कदम इस ओर पड़ा ही था। हालांकि 'मणिकर्णिका' को साऊथ के ('बाहुबली'/२०१५ फेम) के. व्ही. विजयेंद्रप्रसाद जी ने लिखा हैं। इसमें शिर्षक भूमिका कंगना ने बख़ूबी साकार की हैं!

"मेरी झाँसी नहीं दूँगी.s s.." यह गूँज दोनों फिल्मों में! लेकिन १९५३ की 'झाँसी की रानी' में परिपक्व दिखती मेहताब ने यह सुनाई; तो अब 'मणिकर्णिका' में अपने जोशीले अंदाज में कंगना ने!



आजादी के ७० साल पुरे किएँ अपने भारत में स्त्री शक्ति ऐसी ही अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठातीं रहें!!

- मनोज कुलकर्णी
   ('चित्रसृष्टी')

Saturday 26 January 2019

"भारत का रहने वाला हूँ..भारत की बात सुनाता हूँ.."


हमारे मशहूर राष्ट्रभक्त अभिनेता-फिल्मकार मनोज कुमार साहब के साथ उनके बंबई स्थित निवास पर!


प्रजासत्ताक दिन मुबारक!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 23 January 2019

स्वागत और बधाई!!


कांग्रेस की महासचिव पद पर प्रियंका गांधी वाड्रा के ऐलान की ख़बर से बहोत ख़ुशी हुई!



इस जरिये उनका राजनीति में अधिकारिक तौर पर सक्रीय प्रवेश हुआ हैं!

उनमें उनकी दादी और हमारे भारत की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी की प्रतिमा दिखाई देती हैं!

उनको मुबारक़बाद और शुभकामनाएं!!


- मनोज कुलकर्णी

Saturday 12 January 2019

मशहूर ऊर्दू शायर..अहमद फ़राज़!


मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़
तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए..!"...ऐसी तरक्कीपसंद या..

"अब के हम बिछडे तो शायद कभी खाँबो मे मिले
जिस तरह सूखें हुए फ़ूल किताबो में मिले..!" जैसी रुमानी शायरी करनेवाले..

आधुनिक ऊर्दू शायरी में एक मशहूर नाम सैद अहमद शाह..याने अहमद फ़राज़ साहब!

उनके जनमदिन पर उन्हे याद करते..मेहदी हसन साहब ने गायी उनकी एक पसंदीदा गज़ल याद आयी..


"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ..
आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिए आ..!''


अहमद फ़राज़ साहब को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 4 January 2019

अलविदा..कादर ख़ान साहब!!

मशहूर फ़िल्म लेखक तथा कलाकार कादर ख़ान जी!
"पोंछ ले आँसू..दुख को अपना ले..तक़दीर तेरे क़दमों में होंगी..और तू मुक़द्दर का बादशाह होगा!"

'मुक़द्दर का सिकंदर' (१९७८) में कादर ख़ान और मा. मयूर!
संवाद लेखक कादर ख़ान जी खुद फ़क़ीर की भूमिका में यह सुनाते हैं..और वह सुननेवाला लड़का बड़ा होकर मुक़द्दर का सिकंदर होता हैं।

सूपरहिट फ़िल्म 'मुक़द्दर का सिकंदर' (१९७८) का वह शुरुआत का महत्वपूर्ण प्रसंग था। इसके बाद शुरू होनेवाले इसके शिर्षक गीत में (जिसमें अमिताभ बच्चन की एंट्री होती हैं) निर्देशक प्रकाश मेहरा जी ने उन संवादों से चुनी पंक्तियाँ ही पिरोयी थी..

संवाद लेखक कादर ख़ान और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन!
"ज़िंदगी तो बेवफ़ा है..एक दिन ठुकराएगी
मौत मेहबूबा है..अपने साथ लेकर जाएंगी.."


आख़िर कादर ख़ान जी ने इस बेरहम दुनियाँ को अलविदा किया। लेकिन दुख होता है इतने मंजे हुए लेखक को सिर्फ उनकी हास्य भूमिकाओं से याद किया जाता हैं!
पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ कादर ख़ान!

मूल अफ़ग़ानिस्तान से आए कादर ख़ान बंबई में पले-पढ़े और पाँच साल इंजीनियरिंग के अध्यापक रहें! तब शौक से वह नाटक लिखते थे और उसमें अभिनय भी करतें थे। इस दौरान उनका एक नाटक देखने फिल्म निर्देशक नरेंद्र बेदी आएं थे और उससे प्रभावित होकर उन्होंने कादर ख़ान को अपनी फ़िल्म 'जवानी दीवानी' (१९७२) लिखने का मौका दिया।

'अग्निपथ' (१९९०) में अमिताभ बच्चन!

उसके सफलता के बाद १९७४ में तब के सुपरस्टार राजेश खन्ना ने वह काम कर रहे मनमोहन देसाई की फ़िल्म 'रोटी' के संवाद उनसे लिखवाएं..जो मशहूर हुएं। इसी दरमियान उनकी परदे पर अभिनय की शुरुआत भी राजेश खन्ना अभिनीत फ़िल्म 'दाग़' (१९७४) से हुई जिसे बनाया था मशहूर यश चोपड़ा जी ने! 

उसके बाद उन्होंने फिल्मों में सहायक अभिनेता के किरदार बख़ूबी निभाएं। इसमें जानेमाने अदाकार दिलीप कुमार अभिनीत 'सगीना' (१९७४) और 'बैराग' (१९७६) जैसी फ़िल्मे थी!



लेकिन लेखक की हैसियत से कादर ख़ान जी का काम सराहनीय रहा। इसमें महत्वपूर्ण बात यह की अगर अमिताभ बच्चन को 'एंग्री यंग मैन' इमेज देकर फ़िल्म 'ज़ंजीर' (१९७३) के ज़रिये सुपरस्टार बनाने का श्रेय मशहूर लेखक सलीम-जावेद जी को जाता हैं; तो उसके लिए आगे प्रकाश महरा और मनमोहन देसाई की सफल फिल्मों में एक से एक तूफानी संवाद लिखकर..उसे लोकप्रियता में बरक़रार रखने में कादर ख़ान जी का योगदान भी हैं! याद करें 'सुहाग' (१९७९) और 'लावारीस' (१९८१) जैसी फिल्मों में उन्होंने लिखें संवाद! इसमें उनकी विशेषता यह कही जा सकती हैं की उन्होंने शहरी आम..खासकर बम्बैया इमेज के नायक की बोली को इसमें बख़ूबी इस्तेमाल किया।.. इसी वजह से अमिताभ का 'अन्थोनी' का किरदार भी बड़ा पॉपुलर रहा! मुकुल आनंद की 'अग्निपथ' (१९९०) में तो उनके संवादों में ढाला अमिताभ का "विजय दीनानाथ चौहान" का किरदार 'नेशनल अवार्ड' जीत गया!

लोकप्रिय अभिनेता गोविंदा और कादर ख़ान!
साऊथ इंडियन निर्माताओं ने तो जितेन्द्र नायकवाली फिल्मों के लिएं लेखक-कलाकार कादर ख़ान को हमेशा चुना। बादमें निर्देशक डेविड धवन की गोविंदा हीरोवाली फिल्मों में उनकी कॉमेडी छायी रहीं। हालांकि उन्होंने अलग-अलग किस्म के किरदार भी निभाएं। 

करीब ३०० फिल्मों में कादर ख़ान जी ने काम किया और लगभग २५० फिल्मों के लिएं संवाद लिखें।


कादर ख़ान जी को कुछ सम्मान प्राप्त हुएं..जिसमें 'मेरी आवाज़ सुनो' (१९८१) के लिए 'बेस्ट डायलॉग' का 'फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड' और २०१३ में मिला 'साहित्य शिरोमणी पुरस्कार' का समावेश हैं!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी