Friday 24 February 2023

हमें आप पर नाज़ हैं!


हाल ही में अपने मशहूर लेखक-शायर जावेद अख़्तर जी 'फ़ैज़ फ़ेस्टिवल' में शिरकत करने..लाहौर, - पाकिस्तान गए थे। इसमें शायरी, संगीत, सिनेमा से लेकर दो मुल्कों के आपसी रिश्तें तथा यथार्थता पर उन्होंने रखें विचार सराहानीय..और दोनों तरफ चर्चित रहें हैं!

बहुत ख़ूब जावेद साहब!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 20 February 2023

लगता हैं प्रादेशिक स्तर के हिंदी के जरिये राष्ट्रीय स्तर पर देखने लगे और राष्ट्रीय स्तर के इस प्रादेशिक राजनीति में उतर आए हैं!

- मनोज कुलकर्णी


ताज के पास कभी यूँ थे दोस्त के साथ
काश की कभी यूँ होते मेहबूबा के साथ!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(आगरा में ताजमहल के यहाँ की बहुत साल पुरानी याद!)

- मनोज कुलकर्णी


कभी यूँ बैठें थे दीवान-ए-ख़ास में..
जैसे की बैठें हो दीवान-ए-आम में!

- मनोज 'मानस रूमानी'


(हाल ही में आगरा किले के इस ऐतिहासिक जगह हुए कार्यक्रम के मद्देनज़र, हमारी बहुत साल पुरानी याद!)

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 14 February 2023

इसी दिन इस हसीन का जन्नत से तशरीफ़ लाना
शायद इस जहान को ख़ूबसूरत रूमानी करना था!

- मनोज 'मानस रूमानी'

अपने भारतीय सिनेमा की 'मलिका-ए-हुस्न' मुमताज जहां..मधुबाला की याद..
उनकी ९० वी यौम-ए-पैदाइश पर!


- मनोज कुलकर्णी

Sunday 5 February 2023

'आधुनिक भारत की मीरा'..वाणी जयराम!

प्रतिभासंपन्न गायिका वाणी जयराम जी!

'गुड्डी' (१९७१) फ़िल्म के "बोले रे पपीहारा.." गीत में जया भादुड़ी (बच्चन).
"हम को मन की शक्ति देना.."

यह प्रेरणादायी गीत गानेवाली वाणी जयराम जी, जिनको हाल ही में 'पद्मभूषण' घोषित हुआ..और अचानक उनके निधन की दुखद ख़बर आयी!

दक्षिण भारत की इस शास्त्रीय गायिका ने १९७० से १९९० के दशक तक कई भाषाओँ में सुमधुर गानें गाएं। जानेमाने संगीतकार वसंत देसाई जी के संगीत में उन्होंने गुलज़ार जी का गाया ऋषिकेश मुख़र्जी की 'गुड्डी' (१९७१) का उपरोक्त गीत पाठशालाओं में गुँजा! आगे प्रतिभासंपन्न अभिनेत्री बनके उभर आई जया भादुड़ी जी की यह पहली हिंदी फ़िल्म, जिसका और एक गाना मुझे पसंद हैं "बोले रे पपीहारा.."

इन गीतों से लोकप्रियता हासिल करने के बाद, वाणी जयराम जी से मशहूर संगीतकार नौशाद जी ने भी 'पाकीज़ा' (१९७२) फ़िल्म की "मोरा साजन.." यह मजरूह जी की रचना शास्त्रीय धुन में गवाई। तो फिर संगीतकार जयदेव जी के संगीत में 'परिणय' (१९७४) फ़िल्म का उन्होंने मन्ना डे जी के साथ गाया.. "मितवा मोरे मन मितवा.." यह गीत भी इसी प्रकृति का था।

'मीरा' (१९७९) फ़िल्म में वाणी जयराम जी ने गाएं भजन साकार करती हेमा मालिनी जी!
हिंदी के साथ दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के लिए उन्होंने गाएं गीत विशेष रहें। इसमें के. बालचंदर जी की तमिल 'अपूर्वा रागंगाल' (१९७५) के लिए एम्. एस. विश्वनाथन के संगीत में गाएं और अब गुजर गए के. विश्वनाथ जी की फ़िल्म - 'शंकराभरणम' (१९८०) के लिए एस. पी. बालासुब्रह्मण्यम के साथ गाएं उनके गीत लोकप्रिय हुए ही और उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी दे गएँ! उन्होंने मराठी भाषा में भी शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व जी के साथ गाया "ऋणानुबंधाच्या.." यह गीत काफी उत्कट रहां!

२०१३ में उन्हें 'साउथ इंडियन फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट्स'से सम्मानित किया गया। उन्हें कई स्टेट और नेशनल अवार्ड्स मिले। लेकिन मीराबाई के भजन उसी तन्मयता से गाने के बाद उन्हें जो 'आधुनिक भारत की मीरा' का ख़िताब मिला वह सर्वोच्च रहां! गुलज़ार जी की फ़िल्म 'मीरा' (१९७९) में इस भूमिका में छायी हेमा मालिनी ने, पंडित रवि शंकर जी के संगीत में उन्होंने गाएं ये भजन परदे पर साकार किएँ थे..
"मेरे तो गिरिधर गोपाल.."

वाणी जयराम जी को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 2 February 2023

'अमर प्रेम' की ५० वीं वर्षगांठ!


'अमर प्रेम' (१९७२) में रूमानी सिनेमा की लोकप्रिय जोड़ी..शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना!
"हमसे मत पूछो कैसे..
मंदिर टूटा सपनों का...
लोगों की बात नहीं है, 
ये क़िस्सा है अपनों का.!"

अपने रूमानी भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जी की एक बेहतरीन फ़िल्म 'अमर प्रेम' (१९७२) के आनंद बख़्शी जी के गीत की यह पंक्तियाँ उसके अकेलेपन में जी रहे इस के किरदार की मनोव्यथा व्यक्त करती हैं।

'निशि पद्मा' (१९७०) इस अरबिंद मुखर्जी निर्देशित बंगाली फ़िल्म की वह हिंदी रीमेक थी। ताज्जुब की बात थी की, सत्यजीत रे की विख्यात वास्तवदर्शी 'पाथेर पांचाली' के लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की बंगाली लघुकथा 'हिंगेर कोचुरी' पर यह आधारित थी। उत्तम कुमार और साबित्री चटर्जी ने इसमें प्रमुख भूमिकाएँ निभाई थी।

जानेमाने फ़िल्मकार शक्ति सामंथा जी ने बनाई हुई हिंदी 'अमर प्रेम' की पटकथा भी 'निशि पद्मा' के अरबिंदा मुख़र्जी ने ही लिखी थी। इसमें तवायफ़ पुष्पा की अहम भूमिका के लिए शक्तिदा ने शर्मिला टैगोर को ही चुना। उन्ही की 'कश्मीर की कली' (१९६४) से वो हिंदी सिनेमा में आकर स्टार बनी थी, इसीलिए इसे निभाने को वो तैयार हुई। राजेश के किरदार को रिझाने के साथ ही इस आव्हानात्मक भूमिका का और एक भावुक पहलु था पड़ौस के बच्चे को माँ की ममता देना! (सैफ़ के जनम के बाद उसने इसमें काम किया, इसलिए वह दुलार उसमे स्वाभाविकता से आया था!) मास्टर बॉबी और बड़े हुए किरदार में विनोद महरा ने उन भूमकिओं को निभाया।

'अमर प्रेम' (१९७२) के फ़िल्मकार शक्ति सामंथा!
दरअसल 'अमर प्रेम' की (मूल) अनंगा बाबू की भूमिका के लिए पहले शक्तिदा ने राज कुमार को लेने का सोचा था। इसकी वजह यह थी की राजेश खन्ना तब तक सुपरस्टार हुए थे और इस नायिका केंद्रित फ़िल्म में वे काम करेंगे का इसका उन्हें संदेह था। हालांकि उन्ही की नायिका प्रधान 'आराधना' (१९६९) फ़िल्म से राजेश उस पोजीशन पर पहुंचा था, तो इसे ध्यान में रखकर उसने इसमें काम करने के लिए हामी भर ली। लेकिन उसने इसमें अपने किरदार का नाम बदलकर 'आनंद' रखा, जो हृषिकेश मुख़र्जी की इससे पहली आई उसकी मानदंड कह जानेवाली नायकप्रधान फ़िल्म में उसका था।

'अमर प्रेम' के संवाद रमेश पंत जी ने लिखे थे..कुछ मैलोड्रामैटिक थे जैसे की राजेश का (उसकी लय में) शर्मिला को कहना "रो मत पुष्पा, आय हेट टियर्स!" वैसे उसके किरदार पर कुछ 'देवदास छाप' थी। शराब में दुख को डुबोए जब वो गाता है "पीते हैं तो ज़िन्दा हैं, न पीते तो मर जाते.." तब दिलीपकुमार के 'देवदास' का मशहूर डायलाग "मैं तो पीता हूं की बस सांस ले सकूं.." याद आता हैं!

'अमर प्रेम' (१९७२) के फ़िल्मकार शक्ति सामंथा, संगीतकार आर. डी. बर्मन और सुपरस्टार राजेश खन्ना!
शक्तिदा ने ('कटी पतंग' के बाद) 'अमर प्रेम' का संगीत भी आर. डी. बर्मन को ही करने दिया। "कुछ तो लोग कहेंगे.." जैसे मार्मिक गीत बख़्शी जी ने इसके लिए लिखे। इसमें "रैना बीती जाये.." लता मंगेशकर जी ने लाजवाब गाया। 'अमर प्रेम' को बम्बई के 'नटराज स्टूडियो' में चित्रित किया था। इसमें "चिंगारी कोई भड़के.." इस किशोर कुमार के मशहूर गाने में पंचम ने समंदर से गुज़रती नाव की आवाज़ को ख़ूबी से मिलाकर (स्टूडियो शूटिंग होते हुए भी) वह माहौल बनाया था। इस ईस्ट्मैनकलर फ़िल्म को सिनेमैटोग्राफर अलोक दासगुप्ता ने बख़ूबी फ़िल्माया था और गोविंद दलवाड़ी ने एडिटिंग की थी।

शक्तिदा ने बनायीं राजेश खन्ना-शर्मिला टैगोर इस हिट जोड़ी ने 'अमर प्रेम' को बहुत ही तरलता से परदे पर दर्शाया।..अब इसे पचास साल हुए हैं। वाकई में अपने भारतीय सिनेमा की यह एक अमर फ़िल्म बन के रह गई हैं!

- मनोज कुलकर्णी