Saturday 23 February 2019

पारिवारिक फ़िल्मों के सादगी संभाले निर्माता!


'राजश्री प्रॉडक्शन' के सादगी संभाले निर्माता राजकुमार बड़जात्या जी!

'राजश्री प्रॉडक्शन' की साफ-सुथरी पारिवारिक फ़िल्मों के निर्माता राजकुमार बड़जात्या जी के निधन से दुख हुआ!

'मैंने प्यार किया' (१९८९) के रूमानी दृश्य में भाग्यश्री और सलमान खान!
अपने देश के स्वतंत्रता साल में स्थापित हुई 'राजश्री प्रॉडक्शन' के दिग्गज ताराचंद बड़जात्या जी (जिन्होंने 'आरती', 'दोस्ती' जैसी कई अभिजात फिल्मों का निर्माण किया)..उनके पुत्र राजकुमार बड़जात्या शुरुआत में सहनिर्माता रहें। 

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की शुरुआती फिल्मों में से 'सौदागर' (१९७२), माधुरी दीक्षित को परदे पर लानेवाली 'अबोध' (१९८४) और अनुपम खेर की पहली 'सारांश' (१९८४) ऐसी फ़िल्में उन्होंने तब प्रस्तुत की! इसमें सलमान खान को सफल नायक बनानेवाली 'मैंने प्यार किया' (१९८९) खासकर आती है..जो उनके बेटे सूरज बरजात्या का निर्देशक के तौर पर पहला सफल कदम था।
बड़जात्या पिता-पुत्र की 'हम आपके है कौन' (१९९४) का पारिवारिक दृश्य!

उसके बाद १९९४ में राजकुमार बड़जात्या निर्मित और सूरज बरजात्या निर्देशित फ़िल्म 'हम आपके है कौन' सुपर हिट हुई..जिससे सलमान खान और माधुरी दीक्षित जैसे सुपरस्टार्स हुएँ! फिर 'हम साथ साथ हैं' (१९९९) जैसे उनके पारिवारिक मूल्यों को उजागर कर गई। इसे 'स्क्रीन' के साथ 'सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय फिल्म' का नेशनल अवार्ड भी मिला! बाद में 'विवाह' (२००६) से उन्होंने इस संस्था की अहमियत दर्शायी। इस हिट फिल्म में शाहिद कपूर और अमृता राव ने बेहतरिन भूमिकाएं निभाई थी।
'प्रेम रतन धन पायो' (२०१५) फिल्म सादर करते समय राजकुमार बड़जात्या, 
सूरज बरजात्या, सोनम कपूर और सलमान खान!
'विवाह' (२००६) के मनोरम दृश्य में शाहिद कपूर और अमृता राव!
मुझे याद हैं सबसे पहले मैंने राजकुमार बड़जात्या जी को १९८९ के दौरान बंबई के 'नटराज स्टुडिओ' में 'मैंने प्यार किया' के सेट पर देखा था..तब सूरज, सलमान और भाग्यश्री से मैं मुलाकात कर रहा था और वह शांत प्रसन्न मुद्रा से कोने में खड़े थे! फिर सन २००० के बाद बंबई में 'फिक्की' से आयोजित 'फ्रेम्स' इस एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े कन्वेंशन में वह दिखाई देते थे; लेकिन सफल फिल्मों के निर्माता होते हुए भी (बैग को कंधे पर लटकाए) अपनी सादगी संभाले नजर आतें थे। मै उनको विनम्रता से अभिवादन करता, तब विनम्र मुस्कान उनके चेहरे पर पाता!

उनको मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
  ('चित्रसृष्टी')

Wednesday 20 February 2019

दिग्गज संगीतकार खय्याम 'उर्दू मरकज़' से सम्मानित!

खय्यामजी और पत्नि जगजित कौरजी के साथ (बाएं से) तलत अज़ीज़, उत्तम सिंह, भूपेंद्र सिंह!

हाल ही में 'उर्दू मरकज़' की जानिब से 'मोहसिन-ए-उर्दू' से संगीतकार खय्याम साहब को सम्मानित किया गया! हालांकि मौजूदा हालातों के मद्देनज़र उन्होंने अपनी ९२ वी सालगिरह नहीं मनायी!

गायक सोनू निग़म और खय्याम साहब!
इस समय उनकी गायिका पत्नि जगजित कौर, संगीतकार उत्तम सिंह और ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ तथा भूपेंद्र सिंह मौजूद थे!

खय्याम साहब ने संगीतबद्ध की हुई अभिजात गज़लें इस वक्त याद आयी..
जैसे की..

'रज़िया सुलतान' (१९८३) की जाँ निसार अख़्तर जी की लता मंगेशकर जी ने गायी..
"ऐ दिल-ए-नादान आरज़ू क्या है.."

'उमराव जान' (१९८१) के "ज़िंदगी जब भी तेरी.." गाने में रेखा और फ़ारुक़ शेख़!
'उमराव जान' (१९८१) की शहरयार जी की तलत अज़ीज़ जी ने गायी..
"ज़िंदगी जब भी तेरी.. 
बज़्म में लाती है हमें.."

और उनकी पत्नि जगजीत कौर जी ने 'शगुन' (१९६४) के लिए साहिर जी की गायी..
"तुम अपना रंज-ओ-ग़म, अपनी परेशानी मुझे दे दो.."

साथ ही याद आयी खय्याम साहब से हुई मेरी मुलाकातें!

उनको मुबारकबाद!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 16 February 2019

शायर फ़ैज अहमद फ़ैज!
"गुलों में रंग भरे...बाद-ए-नौबहार चले..
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले"

ऐसा रूमानी लिखनेवाले उर्दू शायरी की शान..फ़ैज अहमद फ़ैज जी का १०८ वा जनमदिन हाल ही में हुआ!

उन्होंने यह भी लिखा था...

"हम से कहते हैं चमन वाले 
गरीबान-ए-चमन...
तुम कोई अच्छा सा रख लो 
अपने वीराने का नाम.!"

इससे प्रेरित होकर शायद जावेद अन्वरजी ने 'शबनम' (१९६४) फ़िल्म के लिये यह गीत लिखा होगा..

"मैंने रखा है मोहब्बत अपने अफसाने का नाम...
तुमभी कुछ अच्छासा रख दो अपने दीवानेका नाम."


उन्हें सलाम!!

 - मनोज कुलकर्णी
"तेरे चेहरेसे नज़र नहीं हटती
नज़ारे हम क्या देखें..."

साहिर लुधियानवी का यह गाना पिछले साल एक टीव्ही शो में सदाबहार ऋषि कपूर और नीतू सिंह (कपूर) को उसी अंदाज में देखकर याद आया था!

'कभी कभी' (१९७६) के "तेरे चेहरेसे नज़र नहीं हटती." गाने में ऋषि कपूर और नीतू सिंह!
चालीस साल पहले बनी 'कभी कभी' (१९७६) इस यश चोप्रा की फ़िल्म में दोनों ने यह गाना जवानी की पूरी जोश में बडी रुमानी तरीके से पेश किया था!

उसी वक्त ऋषि कपूरजी की 'खुल्लमखुल्ला' नाम से.. आटोबायोग्राफी रिलीज हुई! यह शिर्षक उनके और नीतू सिंहजी के 'खेल खेल में' (१९७५) फ़िल्म के लोकप्रिय गाने से लिया गया!..

'खेल खेल में' (१९७५) के "एक मैं और एक तू.." गाने में नीतू सिंह और ऋषि कपूर!

इसी फ़िल्म का "एक मैं और एक तू..दोनों मिले इस तरह.." गाना उन्होंने सेम स्टाईल उस प्रोग्राम में पेश किया!..ऋषिजी के डान्सिंग स्टेप्स बडे खास हुआ करते थे..वह तब वैसेही लगे..
और नीतू सिंहजी का मॉडर्न अंदाज भी!...सुना था कि 'याराना' (१९८१) फ़िल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन को फ्लोअर पर डान्स में गाईड किया था!

रणबीर ने शायद उसके पेरेंट्स के उस शो के अंदाज देखे होंगे! खैर..एक जमाने की परदे की मशहूर जोडी तब भी वैसे ही देखकर अच्छा लगा था!

दोनों को शुभकामनाए!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 8 February 2019

याद शायर निदा फ़ाज़ली और गज़ल गायक जगजीत सिंग की!



'सरफ़रोश' (१९९९) के "होशवालों को खबर क्या.." गाने में सोनाली बेंद्रे!
"होशवालों को खबर क्या 
बेखुदी क्या चीज है..,
इश्क किजे फिर समझिये 
जिन्दगी क्या चीज है.."

..संजोग की बात है कि यह रुमानी गज़ल लिखनेवाले शायर निदा फ़ाज़ली साहब का आज प्रथम स्मृतिदिन हैं..और यह बखुबी गाने वाले यहाँ के 'गज़ल किंग' जगजीत सिंग साहब का आज जनम दिन हैं!
दोनों अब इस जहाँ में नहीं है!!

तरक्कीपसंद शायरी के साथ 'आप तो ऐसे ना थे' (१९८०) से 'इस रात की सुबह नहीं' (१९९६) तक कई फिल्मो के गीत लिखने वाले निदा फ़ाज़ली साहब को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था! (मुझे याद है.. 
एक मुशायरे के दौरान उनसे मिलना!)
तरक्कीपसंद शायर निदा फ़ाज़ली जी!

'गज़ल किंग' जगजीत सिंग जी!
गज़ल गायन के साथ जगजीत सिंग साहब ने 'प्रेमगीत' (१९८१) जैसीं फिल्मो के लिए संगीत-आवाज दी इसमें उन्होने गाया "होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो.." यह रुमानी गीत लाजवाब! 
वह 'पद्मभूषण' से सम्मानित हुए!

इन दोनों को मेरी यह सुमनांजली.!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 7 February 2019

श्रेष्ठ कवि-गीतकार प्रदीपजी को प्रणाम!

देशभक्ती के गीत लिखनेवाले कवि प्रदीपजी!

"देख तेरे संसारकी हालत
क्या हो गई भगवान...
कितना बदल गया इन्सान!"

जैसे गीत लिखनेवाले और "ए मेरे वतन के लोगो.." जैसे अपने देशभक्ती के गीतों से आँखे नम करनेवाले कवि प्रदीपजी का १०४ वा जनमदिन अब हुआ!

हमारे भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू जी के सामने "ए मेरे वतन के लोगो." गाते हुए कवि प्रदीपजी!
वास्तविक नाम रामचंद्र नारायण व्दिवेदी..अध्यापन करते अपनी काव्यप्रतिभा आदर्शवादी कर रहे थे! फिर १९४० में उन्होने 'बंधन' फिल्म के लिए "चल चल रे नौजवान.." यह गीत लिखा..और मशहूर हुए 'बॉम्बे टॉल्किज' की फिल्म 'किस्मत' (१९४३) के इस गाने से..

'किस्मत' (१९४३) के कवि प्रदीप जी ने लिखे "हिंदोस्तान हमारा है..'' गाने का दृश्य!
''आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है..
दूर हटो...दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदोस्तान हमारा है..''


यह जब भी कानोमें गुंजता है तो दिल देशाभिमान से भर आता है! फिर 'जागृती' (१९५४) का "हम लाए है तुफान से कश्ती निकाल के.." जैसा देश के प्रति जिम्मेदारी का गीत...ऐसी आदर्शवादी गीतों की परंपरा उन्होने फिल्मो को दी!

'जागृती' (१९५४) के प्रदीपजी ने लिखे "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदोस्तान की." गीत का दृश्य!
१९६१ में 'संगीत नाटक अकादमी' का सम्मान और १९९७ में 'दादासाहब फालके पुरस्कार' से उन्हे सम्मानित किया गया! उनके नाम से 'कवि प्रदीप सम्मान' भी रखा गया!

उनके गीत आज भी समाज प्रबोधन करते है..जैसे की..
"इन्सान का इन्सान से हो भाईचारा..यही पैगाम हमारा..!"


- मनोज कुलकर्णी

वैलेंटाइन्स दिनों में याद आया यह रूमानी गाना...


"मौसम है आशिकाना....
ऐ दिल कहीं से उनको..ऐसे में ढूंढ लाना..
कहना के रुत जवां है..और हम तरस रहे है.."


कमाल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीज़ा' (१९७१) में उन्होंने ही लिखे इस गीत को गुलाम मोहम्मद के संगीत में लता मंगेशकर ने गाया और परदेपर मीना कुमारी ने पेश किया था!
यह दुर्लभ तस्वीर जब वह गाना फ़िल्माया जाना था तब की हैं..जहाँ ख़ूबसूरत मीना कुमारी याने महजबीं बानो (जो ख़ुद अच्छी शायरा थी)..अपनी कलम से कुछ लिख रही हैं!

 लाजवाब!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 3 February 2019

गुरुदत्तजी की फिल्म 'चौदवी का चाँद' (१९६०) में उनके सामने वहिदा रहमान!
"चौदहवीं का चाँद हो...या आफताब हो...
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो!"


भारतीय सिनेमा की बुजुर्ग तथा बेहतरीन अदाकारां वहिदा रहमानजी को ८१ वी सालगिरह मुबारक!

याद आ रहा है कुछ साल पूर्व फिल्म समारोह के दौरान उनसे मिलकर हुई बातचीत!

- मनोज कुलकर्णी