Wednesday 27 May 2020

हमारें अज़ीम और अज़ीज़ शख़्सियत!!



हमारे पहले प्रधानमंत्री 'भारतरत्न' पंडित जवाहरलाल नेहरू जी और महान गायक..
जनाब मोहम्मद रफ़ी जी की अनौपचारिक मुलाकात की यह दुर्लभ तस्वीर! 


"मेरी आवाज़ सुनो..प्यार का राग सुनो..
मैंने एक फ़ूल जो..सीने पे सज़ा रखा था..
उसके परदे में तुम्हे दिल से लगा रखा था!"


मरहूम शायर कैफ़ी आज़मी जी ने यह नज़्म लिखी थी..पंडित नेहरू साहब के लिए!
और रफ़ी साहब ने अपनी दर्दभरी आवाज़ में यह गायी थी!


पंडितजी के स्मृतिदिन पर यह आदरांजली!! 

- मनोज कुलकर्णी

"हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है.. 
 बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा!"

मरहूम शायर इक़बाल जी का यह मशहूर शेर मुझे आज याद आया! 

हमारे पहले प्रधानमंत्री 'भारतरत्न' पं. जवाहरलाल नेहरूजी को उनके स्मृतिदिन पर आदरांजली देते हुए!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 17 May 2020

"मेरे मेहबूब कहीं और मिला कर मुझसे..!"

अपने हसीन ताजमहल के दीदार पर इन दिनों पाबंदी देखकर मुझे अहसास हुआ साहिरजी ने यह शेर क्यूँ लिखा होगा!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 13 May 2020

पाक़ की नज़रिया से..'मंटो'!

पाक़िस्तानी उर्दू फ़िल्म 'मंटो' (२०१५) का पोस्टर जिसपर इसके सभी कलाकार मौजूद हैं!

सआदत हसन मंटो..नाम था उस शख़्सियत का..जिसकी क़लम को ना ही कोई सरहद थी और ना ही.. बेझिझक बयां होने में कोई दिक़्क़त! उनकी लघुकथाएं और शाहकार इसकी मिसाल थे! समाज का आइना होकर बस वह लिखती गयी!..इसीलिए सरहद के दोनों तरफ़ वे मक़बूल रहे।

पाक़िस्तानी परदे पर 'मंटो' (२०१५) बयां करते सरमद सुल्तान खुसत!
ग़ौरतलब की मंटो बटवारे के ख़िलाफ़ थे.. जिसे भारी त्रासदी और बेहूदा संवेदनहीन मानते थे! फिर भी उस वक़्त मजबूरन उन्हें हिन्दोस्तान छोड़ कर पाक़िस्तान जाना पड़ा। बादमें वहां भी वो तरक़्क़ीपसंद लिखते रहे..जिसमे ज़्यादातर बटवारे से दो मुल्क़ों की आवाम को भुगतनी पड़ी पीड़ा को उन्होंने बयां किया।

मंटो जी ने अपने यहाँ के फ़िल्मोद्योग में बड़ा योगदान दिया था। उस वक़्त उनकी कुछ समकालिन लघुकथाओं पर यथार्थवाद को दर्शानेवाली फिल्में बनी। जिसमें थी १९३७ में बनी पहली रंगीन हिन्दोस्तानी फ़िल्म 'किसान कन्या'! फिर 'अपनी नगरिया' (१९४०) से 'काली सलवार' (२००२) - तक कई फ़िल्में उनकी कथाओं पर यहाँ बनी। अब उनकी दास्ताँ परदे पर आनी यह तो ज़ाहिरसी बात थी

पाक़ उर्दू फ़िल्म 'मंटो' में नूरजहाँ हुई सबा क़मर और 'मंटो' बने सरमद खुसत!
पहली बार पाक़िस्तान में इसकी पहल हुई! वहाँ टीवी धारावाहिक अच्छे बनतें हैं..जो यहाँ कुछ चैनल्स के ज़रिये दिखाई देते थे..मग़र पिछले कुछ साल नहीं दिख रहें हैं! ख़ैर, तो ऐसी ही निर्मितीमें कार्यरत बाबर जावेद इन्होने २०१५ में 'मंटो' इस उर्दू बायोग्राफिकल फ़िल्म का - निर्माण किया। ग़ौरतलब की पाकिस्तान में मानवी हक़ के लिए कार्यरत पत्रकार तथा - नाट्यलेखक शाहिद महमूद - नदीम ने इस फ़िल्मकी पटकथा लिखी! जिसके लिए मंटो की 'ठंडा ग़ोश्त', 'मदारी', लाइसेंस', 'हतक' और 'पेशावर से लाहौर' इन लघुकथाओं का उन्होंने सहारा लिया।

तो इस पाक़ फ़िल्म 'मंटो' को निर्देशित किया..वहां के मशहूर टीवी धारावाहिककार तथा फ़िल्म अभिनेता सरमद सुल्तान खुसत ने..और मंटो का अहम क़िरदार भी ख़ुद बख़ूबी निभाया! इस फ़िल्म की और एक ख़ास बात थी की इसमें मंटो के (दोनों मुल्क़ों में) मशहूर.. गायिका-अभिनेत्री नूरजहाँ से रिश्ते को उजाग़र किया है! वहां उर्दू टीवी की जानीमानी अदाकारा (जिन्होंने अपने यहाँ भी इरफ़ान ख़ान के साथ 'हिंदी मीडियम' फ़िल्म में काम किया) सबा क़मर ने यह भूमिका की है। तो टीवी होस्ट सानिया सईद ने साफ़िया मंटो का क़िरदार साकार किया है। साथ में टीपू शरीफ़ ने पाकिस्तानी दिग्गज अभिनेता-फ़िल्मकार (यही से गए) शौक़त हुसैन रिज़वी की भूमिका की है।..और अदनान जफ़र ने उर्दू लेख़क क़ुद्रत उल्लाह शाहब का क़िरदार निभाया है।

जमाल रहमान ने इस फ़िल्म में संगीत दिया है और मुहम्मद हनीफ़ ने इसके गानें लिखें हैं। (ग़ौरतलब की भारतीय कवि शिवकुमार बतलवी का एक गीत भी इसमें शामिल किया है!) जिसमें मशहूर "क्या होगा.." गाने में वहां की ख़ूबसूरत.. अदाकारा माहिरा ख़ान ने अपने जलवें दिखाएं हैं! लेकिन इससे अलग़ मंटो के सामाजिक जीवन को दर्शातें प्रसंगों में ग़ालिब साहब की "आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक.." ग़ज़ल इस्तेमाल की है, जिसे अली सेठी ने गाया है।

पाक़ 'मंटो' (२०१५) के पोस्टर पर ख़ूबसूरत अदाकारा माहिरा ख़ान और सरमद खुसत!
वैसे इस फ़िल्म में कुछ उपहासात्मक प्रसंग भी नज़र आतें हैं!..और इसमें मंटो के जीवन के आखरी सात सालोंपर मुख्य रूपसे रौशनी डाली है, जो उन्होंने पाकिस्तान में गुज़ारे! असल में उनका शुरूआती बड़ा काम यहाँ बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री में हुआ था। 

मंटो जी के गुज़र जाने की ६० वी वर्षगाठ पर यह फ़िल्म पाकिस्तान में प्रदर्शित हुई..जिसे काफ़ी सराहना मिली। इसके लिए 'दूसरे गैलेक्सी लॉलीवूड अवार्ड्स' में सरमद सुल्तान खुसत को 'बेस्ट एक्टर' और सबा क़मर को 'बेस्ट एक्ट्रेस' से नवाज़ा गया। तो हमारे यहाँ भी 'जयपुर इंटरनेशल फ़िल्म फ़ेस्टिवल' में सरमद खुसत को 'उत्कृष्ट अभिनेता' का सम्मान दिया गया!

हमारे यहाँ भी बाद में २०१८ में बेहतरिन अभिनेत्री-निर्देशिका नंदिता दास ने 'मंटो' फ़िल्म बनायी और ज़बरदस्त कलाकार नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी ने वह क़िरदार जी जान से निभाया! (जिसपर मैने पहले यहाँ लिखा है!) लेक़िन पाक़ उर्दू फ़िल्म 'मंटो' को आप नज़रअंदाज नहीं कर सकतें!!

तो 'मुस्लिम सोशल' सीरीज़ में मेरा आज का यह आठवां लेख़ उसपर हैं।

- मनोज कुलकर्णी

Monday 11 May 2020

सरहद के दोनों तरफ़ मक़बूल साऊथ एशिया के एक जानेमाने लघुकथा लेख़क सआदत हसन मंटो जी को उनके जनमदिन पर सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 5 May 2020

"ओ दूर के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले ले.."

श्रेष्ठ संगीतकार नौशादजी और गायक रफ़ीजी! 
रफ़ी साहब के आर्त सुरों से यह गाना फिर से मन में गुँजा और याद आए.. मौसिक़ी के शहंशाह - नौशाद अली!

आज उनके स्मृतिदिन पर मेरे मन में वाक़ई उनके इस गाने जैसी भावना है!

याद आ रही है उनसे मिलने की 'अनमोल घड़ी'!

उनको सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 1 May 2020

हीरक महोत्सवी..
महाराष्ट्र दिन, ગુજરાત દિવસ
और अखंड भारत के लिए
शुभकामनाए!!


- मनोज कुलकर्णी
आखरी बार पिता को नहीं देख पायी लाडली बेटी!

रिद्धिमा (साहनी) जी अपने पापा (दिग्गज अभिनेता) ऋषि कपूर जी के साथ!

बेटे से ज्यादा बेटी पिता के नज़दीक होती हैं।..वैसी ही रिद्धिमा जी अपने पापा (दिग्गज अभिनेता) - 
ऋषि कपूर जी की लाडली बेटी थी।

छोटे रिद्धिमा और रणबीर अपने कलाकार माता-पिता (नीतू सिंह-ऋषि कपूर) के साथ!
लेकिन मालूम हुआ की.. आखरी वक्त दोनों की ना मुलाकात हुई..और ना ही पिता के आखरी दर्शनको वो आ सकी! इससे दुख हुआ।


अब रिद्धिमा (साहनी) जी ने अपने पिता ऋषि कपूर जी के साथ यह तस्वीर सोशल मीडिआ पर शेयर की देखी।

मैं उनके प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ।..
और ऋषि कपूर जी को श्रद्धांजलि भी!!

- मनोज कुलकर्णी