Monday 23 December 2019

मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ जी!

"आवाज़ दे कहाँ हैं.."



मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ ने 'अनमोल घड़ी' फ़िल्म के लिए नौशादसाहब के संगीत में गाया यह गाना...
आज उनके स्मृतिदिन पर उनके लिए गुनगुनाने को मन किया! 



"जवाँ हैं मोहब्बत..हसीन है ज़माना.."
मेहबूब ख़ान की मशहूर 'अनमोल घड़ी' (१९४६) में गाती नूरजहाँ की ख़ूबसूरत अदाकारी!
सरहद के उस पार गयी.. नूरजहाँ को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर भी महारत हासिल थी..जिसमे उनके उस्ताद थे बड़े ग़ुलाम अली खाँ साहब! फिर... संगीतकार ग़ुलाम अहमद जी ने उसकी आवाज़ को परखा और कमसीन उम्र में वह लाहौर में स्टेज पर गाने लगी।

१९३५ में बनी 'शीला' इस पहली पंजाबी साऊंड फ़िल्म से बेबी नूरजहाँ परदे पर आयी। बाद में 'ख़ानदान'- (१९४२) इस हिंदी फ़िल्म से वह जवां नायिका हुई। सईद शौक़त हसन रिज़वी निर्देशित इस सफ़ल फ़िल्म में उसके नायक थे..प्राण! बाद में शौक़त रिज़वी के साथ वह बंबई आयी और उनसे उसका निक़ाह भी हुआ!

शौक़त रिज़वी जी की फ़िल्म 'जुगनू' (१९४७) में नूरजहाँ और दिलीप कुमार!
१९४३ में 'दुहाई' फ़िल्म के लिए नूरजहाँ ने शांता आपटे के साथ गाया। तो १९४५ में मास्टर विनायक ने बनायी 'बड़ी माँ' इस हिंदी फ़िल्म में वह नायिका रही! इसी साल उन्होंने गाया 'गाँव की गोरी' फ़िल्म में..जिससे अपने मशहूर पसंदीदा गायक..   मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ हिंदी सिनेमा में पहली बार सुनाई दी! फिर 'ज़ीनत' इस शौक़त रिज़वी की सोशल- फ़िल्म में उनकी अदाकारी और गानें क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहें!

१९४६ में मेहबूब ख़ान ने बनायी 'अनमोल घड़ी' यह उर्दु-हिंदी फ़िल्म नूरजहाँ की अदाकारी और गानों के लिए सबसे सफ़ल और यादगार साबित हुई। इसमें और दो गायक कलाकार उनके साथ थे..सुरेंद्र और ख़ूबसूरत सुरैया! इसमें "जवाँ हैं मोहब्बत..हसीन है ज़माना.." यह नूरजहाँ ने गाया गाना और उस पर उनकी अदाकारी बहोत रंग लायी थी!

"आवाज़ दे कहाँ हैं..दुनियाँ मेरी जवाँ हैं.." 
१९८२ में भारत में नौशादसाहब के संगीत में फिर एक बार स्टेज पर गाती नूरजहाँ जी!
१९४७ में शौक़त रिज़वी जी ने ही बनायी 'जुगनू' फ़िल्म में नूरजहाँ के नायक हुए.. अपने अभिनय के शहंशाह दिलीप कुमार! इसमें दोनों के रूमानी अंदाज़ और रफ़ी जी के साथ नूरजहाँ ने गाएं "यहाँ बदला वफ़ा का.." जैसे गाने मशहूर हुएँ। १९४५ से १९४७..याने पाकिस्तान में जाने तक नूरजहाँ यहाँ - भारतीय सिनेमा की बड़ी स्टार थी! 

१९३० से १९९० के दौरान नूरजहाँ संगीत क्षेत्र में - कार्यरत थी और उन्होंने क़रीब ४० फ़िल्मों के लिए लगभग २०,००० गानें गाएं। पाकिस्तानी फ़िल्मो में सबसे ज़्यादा गानें गाने का उनका रिकॉर्ड हैं! उन्हें यहाँ-वहाँ काफ़ी सम्मान मिलें!

मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ को मिलते अपने अभिनय के शहंशाह युसूफसाहब..दिलीप कुमार!
और साथ में अपनी स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर और गायिका-अभिनेत्री सुरैया!
१९८२ में नूरजहाँजी भारत में 'गोल्डन ज्युबिली ऑफ़ इंडियन टॉकी' के समारोह में शिरक़त करने आयी! तब युसूफ साहब याने.. अपने पुराने नायक दिलीप कुमार को वह ख़ूब मिली और नौशाद साहब के - संगीत में फिर एक बार स्टेज पर गायी..
"आवाज़ दे कहाँ हैं..
दुनियाँ मेरी जवाँ हैं.." 
जैसे अपने खोये वतन - और उसके संगीत की दुनिया को पुकारती हो!

उन्हें मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी