Wednesday 26 September 2018

'प्रेमपुजारी' सदाबहार..देव आनंद!


सदाबहार अभिनेता-फ़िल्मकार देव आनंद!

आज सदाबहार अभिनेता-फ़िल्मकार देव आनंदजी का ९५ वा जनमदिन!

'काला बाजार' (१९६०) के "खोया खोया चाँद.." गाने में देव आनंद!
हमेशा जवाँ रूमानी रहा यह 'प्रेमपुजारी' आराम से.. लाईफ सेंचुरी मार लेगा ऐसा लगा था..ख़ैर अब "खोया खोया चाँद.." गाकर आसमाँ में चाँदनियों के साथ घूमता होगा!

'प्रेमपुजारी' (१९७०) में वहिदा रहमान और देव आनंद!
आज मुझे याद आ रहा है १९९५ में अपने फिल्म करिअर के ५० साल पुरे होने के अवसर पर देवसाहब ने पुणे में मनाया बड़ा जश्न! इसमें उन्होंने यहाँ वह 'प्रभात स्टूडियो' में काम करते वक्त की पुरानी यादों को ताज़ा किया..और नई फिल्म का प्रीमियर भी यहीं किया। दो दिन के उनकी इस सफर में हम मीडिया के लोग भी साथ में थे..आखिर में उन्होंने अपनी सालगिरह की जंगी पार्टी दी, जो इतनी झूम के चली की..वह जाने लगे तो हमारे बम्बई के फिल्म पत्रकार दोस्त नें उन्हीके गानें में कहाँ "अभी ना जाओ छोड़कर.."
'हम दोनों' (१९६१) के "अभी ना जाओ छोड़के.." गाने में देव आनंद और साधना!
मुझे यह भी याद है की गोवा में 'इफ्फी' (हमारा आंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह) शुरू हुआ तो देव आनंदजी वहां तशरीफ़ लाए थे! उनसे प्रेस कॉन्फरन्स में ख़ूब बातें हुई...तब मैंने उनसे पूछा "देवसाहब, क्या आपको लगता है 'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया..' यह गाना साहिरसाहब ने आप ही के लिए लिखा हो?"..उसपर वह झट से अपने अंदाज़ में बोले "बिलकुल मेरे लिए ही था!.. दैटस द वे आय लिव!"..उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने न्यूज़ में वह कैचलाईन बनाई!!

ऐसे जवाँदिल कलाकार को यह सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']

Tuesday 25 September 2018

सालगिरह मुबारक़!!

टीव्ही धारावाहिक की जानीमानी निर्देशिका नंदिता मेहरा!

टेलीविज़न क्षेत्र में कार्यरत जानीमानी निर्देशिका नंदिता मेहरा को सुवर्णमहोत्सवी जनमदिन की शुभकामनाएं!

नंदिता मेहरा ने मेरी स्क्रिप्ट पर फ़िल्मकार 
नासिर हुसैन पर सादर किया प्रोग्राम!
१९९६ के दौरान उन्होंने मेरी स्क्रिप्ट पर मशहूर फ़िल्मकार नासिर हुसैन की रोमैंटिक म्यूजिकल्स पर 'झी टीवी' (हिंदी) पर प्रोग्राम सादर किया था, जिसे बहोत सराहा गया! बाद में औरों नें भी दूसरें चैनल्स पर मेरे स्क्रिप्ट्स पर फ़िल्म बेस्ड प्रोग्राम्स किएँ!
नंदिता मेहरा की धारावाहिक 'उतरन' में 
रश्मी देसाई और टीना दत्ता!

बाद में अलग अलग चैनल्स पर नंदिता जी ने अच्छे धारावाहिक निर्देशित किएँ जो मैंने सराहें! इसमे रूमानी 'यह दिल आशिक़ाना' (२००२) और मशहूर पारीवारिक 'उतरन' (२००८), थ्रिलर 'लौट आओ त्रिशा' (२०१४) शामिल हैं!

अब फ़िल्म निर्देशन क्षेत्र में भी वह ऐसी ही बड़ी सफ़लता हासिल करे ऐसी सदिच्छा व्यक्त करता हूँ!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

थम गयी उपहास की कलम!


पत्रकार एवं लेखक अरुण साधु जी!

सामाजिक तथा राजकीय दांभिकता पर अपनी कलम द्वारा पुरजोर टिप्पणियां करने वाले पत्रकार-लेखक अरुण साधु जी गुज़र जाने को अब एक साल हो गया!

अरुण साधु जी की कादंबरी पर बनी फिल्म 'सिंहासन' (१९७९) में 
निळु फुले, अरुण सरनाईक, डॉ. श्रीराम लागु  और सतीश दुभाषी!
उनकी 'मुंबई दिनांक' जैसी कादंबरी पर 'सिंहासन' (१९७९) यह फिल्म डॉ.जब्बार पटेलजी ने बनायी थी..उस तरह का "राजकीय थरार" मराठी सिनेमा के परदे पर पहली बार दिखायी दिया!

२००८ में सांगली में हुए 'मराठी साहित्य सम्मेलन' के वह अध्यक्ष थे और उस वक्त उनका राजकीय हस्तियों की मंच पर उपस्तिथी पर कड़ा विरोध जताना चर्चा में रहा!


सामाजिक लेखन के लिए उन्हें काफी सम्मान मिले और 'साहित्य अकादमी' का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ!

मुझे याद आ रही है उनसे हुई मुलाकातें और चर्चाएं.!!

उन्हें मेरी भावांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Sunday 23 September 2018

शोख़ अदाकारा तनुजा...७५!


'बहारे फिर भी आएंगी' (१९६६) के "आप के हसीन रुख़ पे.." गाने में तनुजा और धर्मेद्र!
"आप के हसीन रुख़ पे 
आज नया नूर है...
मेरा दिल मचल गया 
तो मेरा क्या कसूर है!" 

'बहारे फिर भी आएंगी' (१९६६) इस फ़िल्म में धर्मेद्र पियानो पर गाता है और सामने होती है माला सिन्हा और तनुजा..दोनों को लगता है अपने ही लिए!
नूतन और तनुजा..माँ शोभना समर्थजी के साथ!


रफ़ी साहब ने गाया हुआ मेरा यह पसंदीदा गाना..जिसका ज़िक्र मैंने तनुजाजी से 'पिफ्फ' में वह सम्मानित होने के बाद हुई बातचीत में किया..और कहाँ था 'उनका क्लोज-अप और एक्सप्रेशन्स कमाल के थे इसमें!'..सुनकर इस उम्र (७५ की पड़ाव) में भी वह वैसी ही शरमाई! आज उनके जनमदिन पर यह ख़ूबसूरत वाकया याद आया!
'हमारी याद आएगी' (१९६१) के गाने में तनुजा!
गुज़रे ज़माने की पौराणिक फिल्मों की अभिनेत्री शोभना समर्थजी की यह बेटी तनुजा कमसीन उम्र में ही परदे पर आयी..'हमारी बेटी' (१९५०) में जिसकी नायिका थी उसकी बड़ी बहन (और मशहूर अभिनेत्री) नूतन! बाद में फिल्म 'छबिली' (१९६०) से वह नायिका हुई..यह दोनों फिल्मे उनकी माँ ने ही बनायी थी!
'जीने की राह' (१९६९) में जीतेन्द्र के साथ तनुजा!


इसके बाद अभिनेत्री की तौर पर तनुजा की सही पहचान हुई 'हमारी याद आएगी' (१९६१) फ़िल्म से..जिसका निर्देशन किया था किदार शर्माजी ने! इसके बाद जीतेन्द्र के साथ की हुई फ़िल्म 'जीने की राह' (१९६९) में उसका अभिनय सराहनीय रहा..प्यार से ठीक होनेवाली अपाहीच लड़की का वह दिलदार किरदार था! इसके "आने से उसके आए बहार.." गानें में वह दिल को छू गयी!
बंगाली 'तीन भुवनेर पारे' (१९६९) में तनुजा और सौमित्र चैटर्जी!
'हाथी मेरे साथी' (१९७१) में तनुजा और सूपरस्टार राजेश खन्ना!
इसी दरमियान तनुजा ने बंगाली सिनेमा में भी फिल्म 'देया नेया' (१९६३) से काम करना शुरू किया..इसमें उत्तम कुमार उसके नायक थे। जानेमाने बंगाली अभिनेता सौमित्र चैटर्जी के साथ भी उसने 'तीन भुवनेर पारे' (१९६९) जैसी फिल्मों में समर्थ अभिनय किया!
'अनुभव' (१९७१) में संजीव कुमार के साथ तनुजा!

पहले सूपरस्टार राजेश खन्ना के साथ तनुजा की 'हाथी मेरे साथी' (१९७१) और 'मेरे जीवन साथी' (१९७२) यह फिल्में हिट रही। मुझे अब भी याद है स्कूल के दिनों में उनका रहा क्रेज़! फिर जॉय मुखर्जी और देब मुखर्जी के साथ 'एक बार मुस्कुरा दो' (१९७२) जैसी उसकी म्यूजिकल रोमैंटिक फ़िल्में आती रही।

बासु भट्टाचार्य की फिल्म 'अनुभव' (१९७१) में संजीव कुमार के साथ तनुजा ने स्त्री व्यक्तित्व के गहरे पैलु को दर्शाया! फिर मदन सिन्हा की फिल्म 'इम्तिहान' (१९७४) में भी विनोद खन्ना के साथ उसका किरदार गंभीर प्रकृति का था! बाद में जल्द ही वह फिल्म परिवार के शोमू मुखर्जी के साथ शादी करके परदे से दूर हुई!

१९८० के दरमियान तनुजा सिनेमा में वापस आयी..और मूल मराठी परिवार से होने के कारन उसने 'झाकोळ' इस मराठी फिल्म में डॉ. श्रीराम लागू के साथ सहजता से अपनी भूमिका निभायी!..राज कपूर की फिल्म 'प्रेम रोग' (१९८२) से उसने चरित्र भूमिकांए करना शुरू किया। कई सालों के बाद नीतिश भारद्वाज निर्देशित मराठी फिल्म 'पितृऋण' (२०१३) में उसने सशक्त स्त्री भूमिका साकार की..जो कई मायने में चर्चित रही! उनको फ़िल्मफ़ेअर', 'स्क्रीन' ऐसे कई सम्मान मिले!

बेटी अभिनेत्री काजोल के साथ बुजुर्ग तनुजाजी!
तनुजाजी की बड़ी बेटी काजोल ने भी अभिनेत्री की तौर पर अपना एक सफल मुक़ाम हासिल किया है! मुझे उनसे पंद्रह साल पुरानी मुलाक़ात भी याद है..तब वह अपनी माँ शोभना समर्थ और छोटी बेटी तनिषा मुख़र्जी के साथ पुणे में एक समारोह में आयी थी! अपने ज़माने में चंचल और चुलबुले किरदार करने वाली यह अभिनेत्री अपनी बात हमेशा स्पष्टता से रखती है!


तनुजाजी, जनमदिन की शुभकामनाएं!!


- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Friday 21 September 2018

'विश्व शांति दिन' की शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

विशेष लेख:


'लैला मजनु' की अमर दास्ताँ!



- मनोज कुलकर्णी



अपनी मेहबूबा के लिए प्यार की दीवानगी बयाँ करनेवाली 'लैला मजनु' की दास्तान अमर हैं.और पीढ़ी दर पीढ़ी जवाँ दिलों के आशिक़ाना मिज़ाज रिझाती रहीं हैं। हमारे रूपहले परदे पर तो वह तब से व्यक्त होती आ रहीं हैं जब सिनेमा बोलता भी नहीं था!..अब हाल ही में अली भाइयों की इस युग की 'लैला मजनु' प्रदर्शित हुई हैं!
'लैला मजनु'  (१९३१) में जहाँआरा और ग़ज़नवी!

कई सदियों पहले 'लयला ओ मजनून' इस मूल पर्शियन नाम से यह प्रेमकाव्य शायर नेज़ामी गंजवी ने लिखा था। दरअसल ७वे शतक के बेडोविन कवि क़ैस इब्न अल-मुलव्वाह और उसकी मेहबूबा लैला बिन्त महदी (या लैला अल-आमिरिया) की अरब प्रेमकथा पर यह आधारित था। रोमैंटिक इंग्लिश कवि लार्ड बायरन ने इसे पूरब की 'रोमियो एंड जूलिएट' संबोधा था!
तेलुगु 'लैला मजनु' (१९४९) में 
ए. नागेश्वरा राव और भानुमती! 

रूमानी सिनेमा 'लैला मजनु' के प्यार में न पड़ता तो नवल था! सबसे पहले मूकपट के ज़माने में १९२२ के दरमियान जे. जे. मदान ने इस पर फ़िल्म बनायी..जिसमें एच. डब्ल्यू. वारिंग और मिस डोट फोय ने काम किया था। फिर से १९२७ में मणिलाल जोशी ने भी इस कथा को परदे पर लाया! इसके बाद १९३१ में बोलपट का जमाना आते ही फ़िल्मकार कांजीभाई राठोड ने हिंदी में 'लैला मजनु' का निर्माण किया। 
इसमें ग़ज़नवी और जहाँआरा कज्जन ने भूमिकाएं निभाई थी।
हिंदी 'लैला मजनु' (१९५३) में नूतन और शम्मी कपूर!








धीरे धीरे प्रादेशिक सिनेमा में भी 'लैला मजनु' आएं..जिसमें १९४९ में 'भरनी पिक्चर्स' के बैनर तले निर्माता-निर्देशक पी. एस. रामकृष्ण राव ने तेलुगु में यह फिल्म बनायी। इसमें अक्किनेनी नागेश्वरा राव और भानुमती  रामकृष्ण उन भूमिका में थे, तथा इसे संगीत दिया था सी. आर. सुब्बूरामन ने। यह फिल्म बाद में तमिल में भी बनी..जिसके संवाद और गीत एस. डी. सुन्दरम ने लिखे थे। इसके बाद १९५० में एफ. नागूर ने भी तमिल में यह फिल्म बनायी..जिसमें टी आर महालिंगम और एम्. वी. राजम्मा ने वह भूमिकाएं की। यह दाक्षिणात्य भाषाओँ की 'लैला मजनु' फ़िल्में हिट रहीं!
'दास्तान-ए-लैला मजनु' (१९७४) में 
कँवलजीत और अनामिका!

१९५३ में के. अमरनाथ ने हिंदी में 'लैला मजनु' का निर्देशन किया..जिसमें नूतन और शम्मी कपूर इस भूमिका में नज़र आएं। इसमें शम्मी (हिट "याहू" इमेज से पहले) मूछ में संवेदनशील प्रेमी के रूप में दिखाई दिया! शक़ील बदायुनी ने इसके गीत लिखें थें और सरदार मलिक ने इसे संगीत दिया था। इसके आशा भोसले और तलत महमूद ने गाएं "देख ली ए इश्क़ तेरी मेहरबानी.." और "चल दिया कारवाँ.." गानें दिल के तार छेड़के गएँ!
'लैला मजनु' (१९७४) में वाहिद मुराद और रानी!

१९७४ में 'दास्तान-ए-लैला मजनु' नाम से आर. एल. देसाई ने इस पर फ़िल्म बनायी, जिसमें अनामिका और कँवलजीत ने वह किरदार अदा किएँ। जां निसार अख़्तर ने इसके गीत लिखें थे और इक़बाल कुरैशी ने इसका संगीत दिया था। इसके मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर ने गाएं "पुकारती हैं मोहब्बत क़रीब आ जाओ.." जैसे गीत मशहूर हुएँ! बाद में अपने लोकप्रिय हिंदी सिनेमा में इस पर फ़िल्में बनती ही रहीं! इसी साल सईद अता-उल्लाह शाह हाश्मी निर्मित और हस्सन तारिक़ निर्देशित 'लैला मजनु' फ़िल्म भी हुई..जिसे लिखा था सैफ़ुद्दीन सैफ़ ने और उन्हीनेही लिखें इसकें गीत संगीतबद्ध किएं थे निस्सार बज़्मी ने! इसमें रानी और वाहिद मुराद ने भूमिकाएं निभायी थी!
रवैल की बेहतरीन फ़िल्म 'लैला मजनु' (१९७६) में ऋषि कपूर और रंजीता!

इन सबमें मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्म हैं ('मेरे मेहबूब' फेम) एच. एस. रवैल ने १९७६ में बनायी हुई क्लासिक 'लैला मजनु'! उन्हीने जानेमाने अब्रार अल्वी और अंजना रवैल के साथ यह लिखीं थी। इसमें ख़ूबसूरत रंजीता और रूमानी ऋषि कपूर ने वह किरदार बख़ूबी साकार किएँ थें। इसकी और ख़ासियत थी गानें..जो लिखें थे साहिर लुधियानवी ने और मदन मोहन तथा जयदेव ने उन्हें संगीत से सजाया था! इसके मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गाएं "इस रेशमी  पाज़ेब की झंकार.." और "हुस्न हाज़िर हैं मोहब्बत की सजा पाने को.." जैसे गीत लाज़वाब रहें। तथा इस पर ऋषि- रंजीता के जज़्बाती भाव दिल को  छूँ गएँ। यह फ़िल्म सुपरहिट और सदाबहार रहीं! जब भी मैं इसके गानें देखता हूँ..रूमानी हो जाता हूँ!

नई 'लैला मजनु' में तृप्ति डिमरी और अविनाश तिवारी!
अब नई 'लैला मजनु' प्रदर्शित हुई हैं। प्रीति अली और एकता कपूर निर्मित इस फ़िल्म को आज के जानेमाने फ़िल्मकार इम्तियाज़ अली ने अपने भाई-निर्देशक साजिद अली के साथ लिखा हैं! कहतें हैं इस प्रेम कहानी को नया आयाम दिया हैं! हालाकि मैंने अभी तक यह देखीं नहीं हैं; लेकिन तृप्ति डिमरी और अविनाश तिवारी ने इन किरदारों में वह प्यार का जुनून भरा हैं ऐसा इसकी झलकियाँ में तो नज़र आता हैं!

कुछ भी हो 'लैला मजनु' होतें रहें..क्यों की ऐसे प्रेमी मरतें नहीं!!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']






Tuesday 18 September 2018

"है तेरे साथ मेरी वफ़ा 
मैं नहीं तो क्या.. 
ज़िंदा रहेगा प्यार मेरा 
मैं नहीं तो क्या..!"

मरहूम उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी जी की 'हिंदुस्तान की कसम' (१९७३) फ़िल्म की यह नज़्म आज याद आयी..
बेटी और मशहूर अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ की उनकी इस दुर्लभ तस्वीर जे लिए!  

आज शबानाजी की सालगिरह हैं..और कैफ़ी साहब का यह जन्मशताब्दी साल हैं!

 मुबारक़बाद..और सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी 
 ['चित्रसृष्टी', पुणे]
"ऐसी लागी लगन.." गानेवाले ने "मैं नज़र से पी रहा हूँ.." क्यूँ गाया होग़ा यह परसो (हिंदी) 'बिग बॉस' का 'अनूप' शो देखकर मालुम हुआ! 

- मनोज कुलकर्णी

Friday 14 September 2018

हिंदी भाषा प्रसार में (साहित्यकारों के साथ) हिंदी सिनेमा का बड़ा योगदान रहा है!

'हिन्दी दिन' की शुभकामनाएं.!!

- मनोज कुलकर्णी
१४ सितम्बर..'राष्ट्रभाषा हिंदी दिन' की शुभकामनाएं!

इस अवसर पर हिंदी भाषा समृद्ध करनेवालें सभी साहित्यकारों को प्रणाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 8 September 2018

सदाबहार आवाज़ की आशा!



- मनोज कुलकर्णी


सदाबहार गायिका आशा भोसले!

पार्श्वगायन के क्षेत्र में छह दशक से जादा बिताने के बाद..८५ की उम्र में भी आवाज़ में वही ताज़गी और गाने में वही जोश और शोख़..यह हैं लोकप्रिय गायिका आशा भोसले!
संगीतकार ओ. पी. नय्यर और गायिका आशा भोसले!


उन्होंने मलिका-ए-हुस्न मधुबाला के लिए "आइये मेहरबान.." गाया और कई बरसों बाद काजोल के लिए "जरा सा झूम लू मैं.." दोनों में वहीं ख़ुमार!

गायिका आशा भोसले और गायक मोहम्मद रफ़ीजी!
अष्टपैलू गायन शैलीवाली इस गायिका ने एक तरफ ओ. पी. नय्यर के संगीत में "देखो बिजली डोले बिन बादल की.." जैसे शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीत गाएं। तो दूसरी तरफ आर. डी. बर्मन के संगीत में "पिया तू अब तो आजा.." जैसे क्लब के पॉप गाने! दोनों संगीतकार उनके मुरीद थे!

रफ़ीजी के साथ "इशारों इशारों में दिल लेने वाले " और किशोरकुमार के साथ "हवा के साथ साथ.." जैसे अलग तरीके के डुएट्स भी उन्होंने बख़ूबी गाएं। वैसे ही ख़य्याम जी की संगीत में शहरयार की ग़ज़ल "इन आँखों की मस्ती के .."उसी नज़ाकत से!
गायिका आशा भोसले और संगीतकार (पति) आर. डी. बर्मन!

हिंदी और मराठी के साथ अन्य बीस भाषाओं में उन्होंने अब तक लगभग १२,००० गाने गाएं। सबसे ज्यादा गानों की रेकार्डिंग की वजह से 'गिनिज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स' में उनका नाम दर्ज हुआ। फ़िल्म 'माई' में उन्होंने भूमिका निभाई!

'पद्मविभूषण' के साथ भारत सरकार के सर्वोच्च 'दादासाहेब फाळके पुरस्कार' से वह सम्मानित भी हुई!

उम्र के इस पड़ाव में भी "कजरा मोहब्बतवाला.." ऐसा अपने ही गाने जैसा रूमानिपन वह संभाली हुई हैं!

ऐसी सदाबहार आशाजी को जनमदिन मुबारक़!!

- मनोज कुलकर्णी
   ['चित्रसृष्टी']