Thursday 30 August 2018

कवि-गीतकार शैलेन्द्र!

संवेदनशील गीतकार शैलेन्द्र!


"किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार
किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है..!

ऐसा मानवतावादी गीत 
गायक मुकेश, गीतकार शैलेन्द्र, अभिनेता राज कपूर 
और संगीतकार (शंकर-जयकिशन में से) जयकिशन!
और..

 

"काँटों से खींच के ये आँचल.."

ऐसा स्त्रीमुक्ती को उजाग़र करनेवाला गीत,  
गीतकार शैलेन्द्र और गायिका लता मंगेशकर!







गीतकार शैलेन्द्र और गायक मोहम्मद रफ़ी!

या फिर ..

"दिल तेरा दीवाना है सनम.." ऐसा रूमानी!


भावनाओं को संवेदनशीलता से व्यक्त करनेवाले गीतकार शैलेन्द्र साहब को ९५ वे जनमदिन पर सुमनांजली!


- मनोज कुलकर्णी 
['चित्रसृष्टी', पुणे]

हिन्दी साहित्यकार भगवती चरण वर्माजी!

'चित्रलेखा' के रचैता

भगवतीचरण वर्मा!



१९४१ में बनी 'चित्रलेखा' फ़िल्म का दृश्य!
सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार भगवती चरण वर्माजी का आज ११५ वा जनम दिन!

१९३२ में लिखा 'मधुकण' और बाद में लिखे 'प्रेमसंगीत', 'मानव' यह उनके काव्यसंग्रह प्रसिद्ध हुए।


१९३४ में उन्होने लिखे 'चित्रलेखा' इस मशहूर उपन्यास पर जानेमाने फ़िल्मकार किदार शर्माजी ने १९४१ में (मेहताब, नांद्रेकर, ए.एस.ग्यानी अभिनित) और १९६४ में (मीना कुमारी, प्रदीप कुमार, अशोक कुमार अभिनित) दो फिल्मे बनायी!

१९६४ में बनी 'चित्रलेखा' फ़िल्म में मीना कुमारी, अशोक कुमार और प्रदीप कुमार!

'विचार' पत्रिका और 'नवजीवन' अखबार के वह संपादक रहे। तथा 'वसीहत', 'रुपया तुम्हे खा गया है' जैसे नाटक भी उन्होने लिखे!

 

उनके साहित्यकृती पर 'जीवन एक रंग अनेक' यह टीव्ही धारावाहीक भी चला!

१९६१ में 'भूले बिसरे चित्र' के लिए उन्हे 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ और १९७१ में वह 'पद्मभूषण' से सम्मानित हुए!


वर्मासाहब को सादर प्रणाम !!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

ख़ूबसूरत मोहक..लीना चंदावरकर!


- मनोज कुलकर्णी


हुस्न और नज़ाकत..लीना चंदावरकर!

"..ये शायरी भी क्या है इनायत उन्हीं की है.."

ऐसा साहिरजी ने शायद उन्हें देखकर ही 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) के लिए लिखा होगा!

और 'बैराग' (१९७६) में तो दिलीप कुमार उन्हे देखकर कहते है "सारे शहर में आपसा कोई नहीं.."

'बैराग' (१९७६) के "सारे शहर में आप सा कोई नहीं." गाने में दिलीप कुमार और लीना चंदावरकर!
हाँ, मैं उस मासूमीयत से भरी ख़ूबसूरत अभिनेत्री की ही बात कर रहां हूँ, जिन्होंने उन दिनों में मोह लिया था..लीना चंदावरकर! उनका जनमदिन अब संपन्न हुआ!

धारवाड़ में आर्मी अफ़सर के परिवार में जन्मी इस लड़की का मासूम ख़ूबसूरत चेहरा 'फ़िल्मफ़ेअर' ने आयोजित किए 'फ्रेश फेस' प्रतियोगिता में सर्वप्रथम प्रकाशझोत में आया! फिर उन्होंने विज्ञापनों में काम किया..तब श्रेष्ठ अभिनेत्री नर्गिस जी ने उसे परखां और सुनिल दत्त निर्मित फ़िल्म 'मन का मीत' (१९६८) की वह नायिका हुई, जिसमें सुनिलजी के भाई सोम दत्त नायक बने थे..और विनोद खन्ना भी उसी से खलनायक की भूमिका में परदे पर आया था!
जोड़ी ख़ूब जमी..'हमजोली' (१९७०) में जितेंद्र और लीना चंदावरकर!

इसके बाद लगभग दो दशक लीना चंदावरकर ने अपनी ख़ूबसूरत छवि से पॉपुलर रोमैंटिक सिनेमा के दर्शकों को लुभाया! इसमें उसकी जोड़ी फ़िल्म 'ज़वाब' (१९७०) से जंपिग जैक जितेंद्र से ख़ूब जमी! तब की ही 'हमजोली' इस सुपरहिट म्यूजिकल में तो दोनों की रूमानी अदाकारी कमाल की थी..जिसमें टेनिस खेलते हुए "ढल गया दिन हो गयी शाम.." से बारीश का लुत्फ़ उठाते हुए "हाय रे हाय.." जैसे गानों में उन्होंने बहार लायी! इसी फिल्म मे कॉमडी किंग मेहमूद ने कपूर की तीन पीढ़ियों की लाज़वाब नक़ल की थी! बाद में १९७१ में बनी फ़िल्म 'मै सुंदर हूँ' के जैसे वो ही नायक थे..साधारण चेहरा-काम का यह आदमी जिसके प्यार से बड़ा हो जाता हैं..वह थी लीना जिसका इसमें नायक था बिस्वजीत!

'मेहबूब की मेहंदी' (१९७१) के "ये जो चिलमन है." गाने में लीना चंदावरकर और राजेश खन्ना!
बाद में उस ज़माने के कई अभिनेताओं के साथ लीनाजी नायिका के रूप में आयी..जिसमे रिबेल स्टार शम्मी कपूर ('प्रीतम') और ही मैन धर्मेंद्र ('रखवाला') जैसे जानेमाने थे; तो अनिल धवन ('हनीमून') जैसे तब के नए भी थे!..और इसमें थे अपने पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जिनके साथ 'मेहबूब की मेहंदी' (१९७१) इस नवाबी माहौल में बनी रूमानी फ़िल्म में लीनाजी ने अपनी लाज़वाब अदाकारी दिखाई! 'मेरे मेहबूब' प्रसिद्ध मेरे पसंदीदा फ़िल्मकार एच्. एस. रवैल की इस मशहूर कलाकृती में रफ़ीजी ने गाए "ये जो चिलमन हैं.." जैसे बेहद रूमानी गानों में तहज़ीब से राजेशजी का प्यार जताना और लीनाजी का इज़हार-ए-मोहब्बत रंग लाया। इसमें ही लता मंगेशकरजी ने गाए "जाने क्यूँ लोग मोहब्बत किया करते हैं.." इस गाने में उनका अभिनय क़ाबिल-ए-तारीफ़ था!
'मनचली' (१९७३) में नटखट ख़ूबसूरत लीना चंदावरकर और संजीव कुमार!

इसी दौरान आयी राजा नवाथे की फ़िल्म 'मनचली' (१९७३) में तो लीनाजी ने अलग क़िस्म का क़िरदार निभाया..अपनी ही धुंद में रहने वाली अमीर लड़की जो बग़ैर शादी किए स्वतंत्र रहना चाहती हैं! 'स्वयंबर' इस सत्येंद्र शरत की उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में..संजीव कुमार ने उसे बदलनेवाले अनोखे पति के रूप में अपना कॉमेडी रंग भरा था! इसके शिर्षक गीत में और "गम का फ़सना बन गया अच्छा.." में किशोर कुमार के साथ "अच्छा जी!" ऐसी अपनी मीठी आवाज़ देके लीनाजी इस ख़ूबसूरत भूमिका में छा गयी! इसके बाद 'अनहोनी' और 'अपने रंग हजार' में भी इन दोनों ने एक साथ अच्छा काम किया।
बुजुर्ग अभिनेत्री..लीना चंदावरकर!

फिरसे 'बिदाई' (१९७४) जैसी फिल्मों में जितेंद्र के साथ लीनाजी ने नायिका का अनोखा रंग भरा! बाद में फिल्म 'क़ैद' (१९७५) में विनोद खन्ना के साथ "ये तो ज़िन्दगी है.." गाने में नाचते मॉडर्न लुक मे और सुनिल दत्त के साथ 'आख़री गोली' (१९७७) इस एक्शन फिल्म में वह नज़र आयी!

आख़री बार १९८५ में लीनाजी बड़े परदे पर आयी जितेंद्र की फिल्म 'सरफ़रोश' में..जिसकी प्रमुख नायिका बनी थी श्रीदेवी! इसी दौरान शायद किशोर कुमारजी की गृहस्ती में व्यस्त होने के कारन वह फिल्मों में दिखाई नहीं दी; लेकिन टेलीविज़न के छोटे परदे पर होने वालें सिंगिंग रियलिटी शोज में बतौर मेहमान परीक्षक वह आती रहीं! इसके साथ उल्लेखनीय हैं की कुछ म्यूजिक अल्बम्स के लिए उन्होंने गीतलेखन किया..जिसमें अमित कुमार ने गाया हैं!

हार्दिक शुभकामनाएं..लीनाजी!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Wednesday 29 August 2018

अलविदा!



आर. के. स्टुडिओ' कपूर परिवार बेच रहें हैं इस ख़बर से खेद हुआ!

इस वक्त लग रहा हैं जैसे "कल खेल में हम हो न हो.." कह कर गया 'जोकर'..आरके शायद इसे पुकार रहां हैं "आ अब लौट चले.."

पिछले साल जब इस स्टुडिओ को आग लगी थी..तब इस स्टुडिओ और 'आर. के. फिल्म्स' पर मैने लिखा लेख मेरे इस ब्लॉग पर २७ सितंबर, २०१७ को प्रसिद्ध हुआ था! वह कृपया आप देखें!

- मनोज कुलकर्णी
 ('चित्रसृष्टी',पुणे)

Tuesday 28 August 2018

रघुपति सहाय याने..शायर फ़िराक़ गोरखपुरीजी!

याद-ए-फ़िराक़!


- मनोज कुलकर्णी


उर्दू के जानेमाने शायर फ़िराक़ गोरखपुरी जी का आज १२२ वा जनमदिन!

उनका असली नाम रघुपति सहाय..जिनका जनम उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जीले में २८ अगस्त, १८९६ को हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय होने के लिए उन्होने तब सरकारी नौकरी को ठुकराया! बाद में 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' में वह अंग्रेजी के अध्यापक रहे। उर्दू कविताए लिखने के लिये उन्होंने ''फ़िराक़ गोरखपुरी'' यह नाम लिया! एक दर्जन से भी ज्यादा उनकी कविताओं के खंड प्रसिद्ध हुए..जिसमें नज्म, गज़ल, रुबाई प्रकार समाविष्ट हैं!
शायरी की सोच में.. फ़िराक़ गोरखपुरीजी!
१९६० में उन्हे 'साहित्य अकादमी' का सम्मान प्राप्त हुआ और १९६८ में 'पद्मभूषण' दिया गया! तथा मशहूर रचना 'ग़ुल-ए-नग़मा' के लिए उन्हें १९६९ में सर्वश्रेष्ठ 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला। बाद में १९८१ में 'गालिब अकादमी' से सम्मानित भी किए गये!

राज्यसभा के सदस्य रहे फ़िराक़ साहब धर्मनिरपेक्षता के लिए आवाज भी उठाते रहे! 


उनको अभिवादन करते हुए उन्हीकी रचना याद आती है..

 
"हज़ार बार जमाना इधर से गुजरा हैं...
नई नई सी हैं कुछ तेरी रहगुजर फिर भी!"


- मनोज कुलकर्णी 
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Sunday 26 August 2018

रक्षाबंधन विशेष लेख:

रेशम की डोरी!


- मनोज कुलकर्णी


'छोटी बहन' (१९५९) में "भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना."
रहमान और बलराज साहनी के साथ साकार करती नंदा!

"भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना.."

भाई और बहन का प्यार रेशमी धागे से जोड़नेवाला रक्षा बंधन का त्योहार आते ही एल. व्ही. प्रसाद की क्लासिक फ़िल्म 'छोटी बहन' (१९५९) का लता मंगेशकरजी ने गाया यह गाना मेरे नज़रों के सामने आता है..जिसमें नंदा अपने बड़े भाई बलराज साहनी और मजले भाई रहमान को प्यार से साथ लाकर, राखी बांधते हुए यह गाती है..जो देखते हुए आँखें नम हो जाती हैं!
'राखी' (१९६२) फ़िल्म में अशोक कुमार और वहिदा रहमान!

कहतें हैं उस फ़िल्म के बाद भी इन कलाकारों ने यह भाई-बहन का रिश्ता कायम रखां..उन दिनों में ऐसे ही होता था! वैसे हमारे लोकप्रिय सिनेमा नें अपने सभी त्योहारों को (दिवाली, ईद, होली, बैसाखी) परदे पर बख़ूबी दर्शाया हैं..और कलाकारों ने भी अपनी व्यक्तिरेखांओं में समरस होतें उन्हें मनाया हैं!

'रक्षा बंधन' का ऐसाही अनोखा रिश्ता परदे पर नज़र आया दादामुनी अशोक कुमार और वहिदा रहमान के बीच १९६२ में बनी फ़िल्म 'राखी' में ही..जिसके "बंधा हुआ एक-एक धागे में भाई-बहन का प्यार..राखी धागों का त्योहार.." इस (रफ़ी ने गाए) गीत में दोनों का वह रिश्ता स्वाभाविकता से सामने आता हैं! वैसे बलराज साहनी ने ज्यादा तर बड़े भाई की आदर्श भूमिका परदे पर निभाई। इसी दौरान आयी फ़िल्म 'अनपढ़' में बहन हुई माला सिन्हा "रंग बिरंगी राखी लेके आयी बहना.." गाते हुए बलराजजी की आरती उतारती है! फिर १९६५ में प्रदर्शित फ़िल्म 'काजल' में अनोखी व्यक्तिरेखा में नजर आयी मीना कुमारी ने भी "मेरे भैय्या मेरे चंदा..मेरे अनमोल रतन.." गाते इस रिश्ते को परदे पर बख़ूबी दर्शाया!
'सच्चा झूठा' (१९७०) में नाज़ के लिए "मेरी प्यारी बहनिया.." गाते बाजा बजाते राजेश खन्ना!

इसके बाद अपने पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने मनमोहन देसाई की फ़िल्म 'सच्चा झूठा' (१९७०) में बैंड का बाजा बजाते हुए (अपनी अपाहीच बहन नाज़ को याद करते) "मेरी प्यारी बहनिया.." झूम के गाया था..और इसके "रखिया के रोज रानी बहना को बुलाऊंगा" कहते भावुक हुआ था! 
'हरे रामा हरे कृष्णा' (१९७१) के "एक हजारों में मेरी बहना हैं.." 
गाने में मास्टर सत्यजित और बेबी गुड्डी!
बाद में आयी देव आनंद ने खुद निर्देशित की फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' (१९७१) में "फूलों का तारों का सबका कहना हैं..एक हजारों में मेरी बहना हैं.." यह गाना देव और ज़ीनत अमान के बचपन और जवानी के किरदारों पर बख़ूबी फिल्माया गया था..इसमें ताज्जुब की बात यह थी की छोटा देव बने लड़के ने उसी अंदाज़ में परदे पर एक्शन की थी! इसमें भाई-बहन बनें देव आनंद और ज़ीनत अमान बाद में फ़िल्म 'हीरा पन्ना' में प्रेमी बने यह भी विशेष!

१९७२ में प्रदर्शित सत्येन बोस निर्देशित 'मेरे भैय्या' इस सामाजिक फिल्म में विजय अरोरा और नज़ीमा के किरदार त्याग पर आधारित थे! तो इसी दौरान आयी सोहनलाल कँवर की फिल्म 'बेईमान' में हमेशा आदर्श भूमिकाएं करनेवाला मनोज कुमार अनोखे किरदार मे था और नज़ीमा ने ही "ये राखी बंधन हैं ऐसा.." यह आदर्श भाव उसके लिए व्यक्त किया था! 

बाद में 'रेशम की डोरी' (१९७४) फ़िल्म मे कुमुद छुगानी "बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा हैं..प्यार के दो तार से सँसार बाँधा हैं.." गाकर धर्मेंद्र को राखी बांधती हैं..तब उसके आँखों में पानी नजर आता हैं!..और देखतें हुए हमारे भी!
'रेशम की डोरी' (१९७४) के शिर्षक गीत मे धर्मेंद्र और कुमुद छुगानी!

सिर्फ़ हिंदी सिनेमा में ही नहीं बल्कि प्रादेशिक फिल्मों में भी भाई-बहन का प्यार अच्छा दर्शाया गया हैं। इसमें मराठी 'शेवग्याच्या शेंगा' (१९५५) में बहन की भाइयों के प्रति उत्कट भावुकता दिल को छू लेती हैं; तो 'धर्मकन्या' (१९६८) में "गोड गोजिरी लाज लाजरी ताई.." ऐसा गाकर बड़ी बहन के इर्द-गिर्द नाचने वाले छोटे भाईयों का दृश्य बड़ा कोमल था..इसमें मासूम ख़ूबसूरत अनुपमा बहन बनी थी! फिर गुजराती फिल्म 'खम्मा मारा वीरा' (१९८०) अनोखी कहानी लेकर आयी थी..जिसमे मोहक सारीका ने भूमिका अदा की थी! तथा भोजपुरी में भी 'रक्षा बंधन' नाम की फिल्म चली थी!

लोकप्रिय हिंदी सिनेमा तो 'रक्षा बंधन' (१९८४) नाम से..'तिरंगा' (१९९३) फिल्म में वर्षा उसगांवकर ने सादर किए "इसे समझो न रेशम का तार भइया.." जैसे गानों द्वारा राखी की महनता उजाग़र करता आ रहा हैं ..और आगे भी करता रहेगा!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Thursday 23 August 2018

ख़ूबसूरत हसीन अदाकारा..सायरा बानू!


- मनोज कुलकर्णी


ख़ूबसूरत सायरा बानू तब..और अब!

पॉपुलर रोमैंटिक हिंदी सिनेमा की एक जमाने की मशहूर ख़ूबसूरत अदाकारा और अब सत्तर साल से उपर हो गयी..सायरा बानू जी का आज जनमदिन!
'जंगली' (१९६१) के बर्फ़ीली नज़ारों में ख़ूबसूरत सायरा बानू!

"काश्मीर की कली हूँ मैं..."

'जंगली' (१९६१) में ख़ूबसूरत सायरा बानू और रिबेल स्टार शम्मी कपूर!
इस गाने से वाकई में वैसीही दिखनेवाली सायरा बानू 'जंगली' (१९६१) फ़िल्म से परदे पर आयी थी...इसमें बर्फ़ीली नज़ारों में रिबेल स्टार शम्मी कपूर के साथ उसका रूमानी होना कमाल का था!

'शागिर्द' (१९६७) में जॉय मुख़र्जी और सायरा बानू!
भारतीय सिनेमा की बेहद हसीन अदाकारा नसीम बानू ('पुकार'/१९३९ फेम) जी की यह लड़की सायरा..वही मासूम ख़ूबसूरती लेकर सोलह साल की उमर में परदे पर आयी थी..और फ़िल्म 'जंगली' की बड़ी सफलता के बाद रोमैंटिक हीरोइन के तौर पर दर्शकों के दिलों पर छा गयी। 

फिर जॉय मुख़र्जी के साथ 'आओ प्यार करे' (१९६४) से 'शागिर्द' (१९६७) तक सायरा ने ज्यादा ५ फिल्मों में काम किया..जिसमें 'यह ज़िन्दगी कितनी हसीन है' (१९६६) में उसका डबल रोल था!

'झुक गया आसमाँ' (१९६८) में ख़ूबसूरत सायरा बानू और ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार!
सायरा बानू की जोड़ी परदे पर ज्युबिली स्टार राजेंद्र कुमार के साथ खूब जमी..दोनों ने 'आयी मिलन बेला' (१९६४), 'अमन' (१९६७) और 'झुक गया आसमाँ' (१९६८) जैसी फिल्मों में उत्कट रूमानियत दर्शायी! "ओ सनम तेरे हो गए हम..." ऐसा राजेंद्र कुमार ने उसके साथ पेश किया था।

सायरा बानू और दिलीप कुमार..शादी में!
लेकिन सायरा जी चाहती थी वह असल अभिनय सम्राट दिलीप कुमार उन्हें मिल गए और वह जीवन साथी भी हुए।...उन्होंने 'गोपी' (१९७०), 'बैराग' (१९७६) जैसी फिल्मों में साथ काम किया..जिसमें 'सगीना' (१९७०) सामाजिक फ़िल्म थी तथा बंगाली और हिंदी दोनों भाषाओं में बनी थी। इसमें उनके अभिनय सराहनीय रहें!

शादी के बाद भी सायरा बानू ने अलग किस्म की फ़िल्मों में भी काम किया..जिसमें मेहमूद की कौमेडी 'पड़ोसन' (१९६८), बी. आर./ यश चोपड़ा की सामाजिक 'आदमी और इन्सान' (१९६९), मनोज कुमार की देशाभिमानी 'पूरब और पश्चिम' (१९७०) और थ्रिलर 'व्हिक्टोरिया न. २०३' (१९७२) जैसी फिल्में शामिल हैं...जिनमें उनके अंदाज़ अलग अलग थे। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ 'ज़मीर' (१९७४) तक..कई नायकों के साथ उसने काम किया। आखीर अपने शोहर दिलीप कुमार के साथ उसने 'दुनिया' (१९८४) में नायिका की हैसियत से काम किया और फिर जल्दही परदे से रुखसत हो गयी!
सायरा बानू अपनी माँ नसीम बानू के साथ!

सायरा बानू जी को काफ़ी अवार्ड्स भी मिले और राज्य सरकार का सम्मान भी प्राप्त हुआ!

युसुफ़साहब (दिलीप कुमार) के साथ सायरा बानू जी को मिलने का अवसर मुझे मिला!!

उस ज़माने की इस पसंदीदा हसीन अदाकारा को सालगिरह मुबारक़!!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Tuesday 21 August 2018

वाह खानसाहब!!



शहनाई के शहेनशाह..उस्ताद बिस्मिल्लाह खान!

'भारतरत्न'...उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पर १९८९ में गौतम घोष ने बनायी हुई बेहतरीन डाक्यूमेण्टरी फिर से देखी थी..शहनाई के साथ उनके (धर्मनिरपेक्ष और देशप्रेमी) उच्च विचार सुनने के लिये..जो कुछ इस तरह थे...

 

इसमे उनके प्यारे बनारस का सांगीतिक अर्थ वह कहते है "बना..रस!" और बताते हैं, "तमाम दुनिया घुमे..लेकिन यहीं जगह, घाट हमें खिच लाता है! सच पुछे तो आनंद यहीं मिलता हैं! सामने गंगाजी है..उसमें नहाईए, मस्जिद में नमाज पढीये और फिर मंदिर में रियाज किजीये!..ऐसा नजारा कहीं नहीं!"
 
आखीरमें अपनी आंतरराष्ट्रीय शोहरत बयां करते वह कहते है, "अमरिका गये थे तो काफी प्रोग्राम हुए..लोगों ने बहोत पसंद किया..तब वहा के एक रईस ने कहा "खांसाहब, यही रहिये..पढाईये!" तो हमने कहां "हमारे साथ घर-पार्टी के बहोत लोग हैं!" तो उन्होने कहा "सबको लेके आईए! आपको मकान, गाडी सब देते हैं!" उसपर हमने कहां "हमारा बनारस, गंगामैय्या और घाटपर शहनाई के सूर गुंज रहे है..ऐसा यहा होगा क्या?" तो वह "नो" बोले!..फिर हमने "नमस्कार" कहां!!"

आज बिस्मिल्लाह खांसाहब का १२ वा स्मृतिदिन हैं!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Tuesday 14 August 2018


लहराओं तिरंगा प्यारा..!!

हमारें भारत के स्वतंत्रता दिन की शुभकामनाएं!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 13 August 2018

विशेष लेख:

आया सावन झुमके!


- मनोज कुलकर्णी


"आया सावन झूम के" (१९६९) गाने में धर्मेंद्र और आशा पारेख.
"बदरा छाए कि
झूले पड़ गए हाय
कि मेले लग गए
मच गई धूम रे.."

'आया सावन झूम के' (१९६९) फ़िल्म का आनंद बक्षी का यह गाना हर साल दस्तक़ देता है सावन महिना आने की..जिसकी रंगीन गतिविधियाँ इसमें समायी हुई हैं!..धर्मेंद्र, आशा पारेख और साथियों ने बारीश का पूरा लुत्फ़ उठातें हुए इसे साकार किया हैं!
'परख' (१९६०) के "ओ सजना बरख़ा बहार आयी.." गाने मे साधना.


बरसात की बूँदों सें खिलीखिली हरियाली और फुलों के साथ रूमानी दिल भी खिल उठतें हैं इन दिनों में! यह चित्र हमारे सिनेमा के कई प्रसंग एवं गानों में प्रतिबिंबित हुआ हैं!

'मि. एंड मिसेस ५५' में छाता लेकर गाती हसती 'ब्यूटी क्वीन' मधुबाला!
हालांकि इस में बारीश आने की सबसे ख़ुशी किसानों को होती हैं..जिसे भावुकतासे दिखाया हैं बिमल रॉय की फिल्म 'दो भीगा ज़मीन' (१९५५) में..जिसमे किसान बने बलराज साहनी खेतों में काम कर रहें किसानों को कह जाता है "धरती कहे पुकार के..बीज बिछाले प्यार के.." तो बिमलदा की ही फिल्म 'परख' (१९६०) मे गाँव की मासूम लड़की बनी साधना अपने साधारण घर की छत से गिरता बारीश का पानी देखते हुए गाती हैं "ओ सजना बरख़ा बहार आयी.."

'काला बाज़ार' (१९६०) के "रिमझिम के तरानें लेके आयी बरसात" में वहिदा रहमान और देव आनंद.
इसमें 'बरसात' फेम 'आर.के.' का फिल्म 'श्री ४२०' (१९५५) का मशहूर छाता गीत "प्यार हुआ इक़रार हुआ हैं.." और उसमे राज-नर्गिस की नज़दीकी सामने आती हैं! इसी दौर में अपनी 'ब्यूटी क्वीन' मधुबाला की 'मि. एंड मिसेस ५५' की छाता लेकर "ठंडी हवा काली घटा आ ही गयी झुमके.." गाती हसती छवि प्यारी लगती हैं! वैसे 'काला बाज़ार' (१९६०) फिल्म में भी देव आनंद और वहिदा रहमान का एक छाते में जाते हुए, पृष्ठभूमी पर सुनायी देता गाना "रिमझिम के तरानें लेके आयी बरसात.." भी रूमानी अहसास का था!
'उसने कहा था' (१९६०) के "मचलती आरजू.." गाने मे नंदा का झुलना!
"दिल तेरा दीवाना.." (१९६२) गाने में शम्मी कपूर और माला सिन्हा.
पेड़ के झूलों पर झूलना भी सावन में गाँव की लड़कियों का एक खेल होता हैं! 'उसने कहा था' (१९६०) फिल्म मे नंदा का "मचलती आरजू.." गाकर झूले में झुलना और..इसमें ही सुनिल दत्त का उसके साथ "आ हा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिये.." ऐसा प्यार जताना भी लुभावना था! तो दूसरी तरफ़ रिबेल स्टार शम्मी कपूर ने धुव्वाधार बारीश में ख़ूबसूरत माला सिन्हा के साथ "दिल तेरा दीवाना.." (१९६२) ऐसा इश्क़ करते हुए कोई कसर नहीं छोडी! बाद में फिल्म 'हमजोली' (१९७०) में "हाय रे हाय.." गातें बारीश में नाचते जंपिंग जैक जितेंद्र और शोख़ हसीन लीना चंदावरकर की अदाएँ भी ऐसी ही थी!
'मिलन' (१९६७) के "सावन का महिना.." गाने मे नूतन और सुनिल दत्त.

सावन के कुछ तरल फिल्म प्रसंग तथा गाने भी हैं..जैसे की 'मिलन' (१९६७) का, जिसके "सावन का महिना पवन करे शोर.." गाने में नूतन को "शोर नहीं सोर" ऐसा समझाता हुआ सुनिल दत्त का भोलाभाला देहाती!..और फिल्म 'अंजाना' (१९६९) के "रिमझिम के गीत सावन गाएं.." में जुबली स्टार राजेंद्र कुमार और ख़ूबसूरत बबीता का भावुक होना! इसी दौरान पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना का अनोखा अंदाज़ था..फिल्म 'दो रास्तें' के "छुप गएँ सारें नज़ारें ओए क्या बात हो गई.." ऐसा नटखट मुमताज़ के साथ व्यक्त होने का! उसके बाद का सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने तो फिल्म 'मंज़िल' (१९७९) के "रिम झिम गिरें सावन.." गाने में मौशमी चटर्जी के साथ बम्बई के बारीश में भीग कर खूब मस्ती की थी!
'दो रास्तें' (१९६९) के "छुप गएँ सारें नज़ारें.." गाने में राजेश खन्ना और मुमताज़.


फिर 'राजश्री प्रोडक्शन' की सीधी सरल फिल्म 'सावन को आने दो' (१९७९) से..'यशराज फिल्म्स' की 'दिल तो पागल हैं' (१९९७) के "ओ सावन राजा कहाँ से आये तुम..चक दुम दुम.." ऐसे गाने में शाहरुख़ खान और माधुरी दीक्षित के आज के डांस तक..सावन के रूमानीपन को अपने सिनेमा ने दर्शाया..और जारी रखा!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Thursday 9 August 2018

भारत और म्यांमार का फ्रेंडशिप ब्रिज शुरू होने की ख़बर देखते ही मुझे यह पुराना गाना याद आया..

'पतंगा' (१९४९) के "मेरे पिया गए रंगून" 
गाने में निगार सुलताना!
"मेरे पिया गए रंगून..किया है वहाँ से टेलीफून..
तुम्हारी याद सताती हैं..जिया में आग लगाती हैं.."
'पतंगा' (१९४९) के "मेरे पिया गए रंगून." गाने में गोप और नृत्य कलाकार!

म्यांमार-इंडिया फ्रेंडशिप का खुला गेट!
१९४९ की एच. एस. रवैल की फ़िल्म 'पतंगा' का यह गाना..लिखा था राजेंद्र कृष्ण ने और शमशाद बेग़म के साथ ख़ुद संगीतकार सी. रामचंद्र ने गाया था! विनोदी कलाकार गोप और फ़िल्म की नायिका निगार सुलताना पर यह फ़िल्माया गया था! (हालांकि इसके नायक थे श्याम!) यह गाना तब बड़ा हिट हुआ और अब भी लोकप्रिय हैं!

म्यांमार पहले ब्रह्मदेश हुआ करता था और उसका सबसे बड़ा शहर यांगून उसकी राजधानी थी..जिसका पहले नाम था रंगून! अब बर्मी नाम हुएं हैं!

 इंडो-म्यांमार फ्रेंडशिप को शुभकामनाएँ!!

 - मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

Tuesday 7 August 2018

सालगिरह संपन्न हुए..भारत के जानेमाने कला निर्देशक एवं निर्माता नितिन देसाई जी को बधाई!


(उनके 'एनडी स्टुडिओ' में 'अशोका' टीव्ही सीरियल के सेट पर हुई थी अच्छी मुलाक़ात!)


- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Monday 6 August 2018

'नमक हराम' (१९७३) में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन!
'फ्रैंडशिप डे' खास लेख:

महफ़िल-ए-याराँ..!


- मनोज कुलकर्णी 


"दिये जलतें हैं...फुल खिलतें हैं... 
बड़ी मुश्क़िल से मगर...
दुनियाँ मे दोस्त मिलतें हैं.."


भारतीय सिनेमा के दो सुपरस्टार्स राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन ने एक साथ बख़ूबी साकार किया 'नमक हराम' (१९७३) फ़िल्म का यह गाना!..हृषिकेश मुख़र्जी की यह फिल्म वसंत कानेटकर जी ने लिखे 'बेईमान' नाटक पर आधारीत थी!..'फ्रैंडशिप डे' पर इसकी ख़ास याद आयी!
'शेजारी' (१९४१) में केशवराव दाते और गजानन जहागिरदार!


इस गाने में कहीं भी अभिनय में कौन हावी होता है ऐसी स्पर्धा इन दोनों में नज़र नहीं आती और ना ही इनके चाहनेवालों ने यह देखने की कोशिश की..क्यूँ कि यह ज़ज्बा ही ऐसा है की "दोस्त"लफ्ज़ आते ही सिर्फ़ प्यार देखा जाता हैं!
'दोस्ती' (१९६४) में सुशिल कुमार और सुधीर कुमार!

दोस्ती के ऐसे गहरे रंग हमारे भारतीय सिनेमा में हमेशा दिखाई दिए..इसमें सर्वश्रेष्ठ रही 'प्रभात फिल्म कंपनी' की मराठी 'शेजारी' (१९४१)..व्ही. शांताराम निर्देशित यह फिल्म दो बुज़ुर्ग हिन्दु-मुसलमान पड़ौसीयों के इर्द-गिर्द घूमती हैं..जिसमे उभर कर आता है प्यार ही!..इसमें केशवराव दाते और गजानन जहागिरदार ने ये क़िरदार अपने समर्थ अभिनय से हृदय साकार किएं थे! वैसे भारत-पाकिस्तान इन पड़ौसियों का यह रूपकात्मक चित्र था! हिन्दु-मुस्लिम एकता को उजाग़र करनेवाली यह फ़िल्म हिंदी में 'पड़ौसी' नाम से बनी..जिसमे  मुसलमान मिर्ज़ा का किरदार जहागिरदार जी ने ही किया था और हिन्दु ठाकुर की भूमिका की थी मज़हर ख़ान ने..ऐसे प्रयोग करना यह 'प्रभात' की ख़ासियत थी!


'संगम' (१९६४) में राज कपूर, वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार!
बाद में १९६४ में ताराचंद बड़जात्या जी ने बनायी 'राजश्री प्रोडक्शन' की फिल्म 'दोस्ती' भी इस ज़ज्बा को श्रेष्ठतम आयाम दे गयी! बंगाली कथा पर आधारीत सत्येन बोस निर्देशित इस फिल्म मे 'राजश्री प्रोडक्शन' की परंपरा के अनुसार नए चहरे ही लिएं गए थे..सुशिल कुमार (बेलानी) और सुधीर कुमार (सावंत)..जिन्होंने अंध और अपाहीच दोस्तों की भूमिकाएं बड़ी हृदयद्रावक तरीके से निभाई थी इस सुपरहिट फ़िल्म के लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में रफ़ी जी ने गाएं "चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे.." ऐसे गाने ख़ूब सराहें गएँ! छह 'फ़िल्मफ़ेअर' पुरस्कारों के साथ यह फिल्म तब 'मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म समारोह' में शामिल हुई थी!
'ज़ंज़ीर' (१९७३) के "यारी हैं ईमान मेरा.." में प्राण और अमिताभ बच्चन।

इसी दौरान दो दोस्त और एक प्रेमिका ऐसा प्रेम त्रिकोण हिंदी सिनेमा में शुरू हुआ! हॉलीवुड की क्लासिक फ़िल्म 'गॉन विथ द विंड' (१९३९) से प्रेरित 'आर.के.' की पहली रंगीन फ़िल्म 'संगम' (१९६४) में निर्देशक राज कपूर ही राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला के साथ ऐसी उलझी भूमिका में आए! दोस्त और प्रेमिका ने बेवफ़ाई की इस ग़लतफ़हमी में "दोस्त दोस्त ना रहां.." गानेवाला उसका किरदार उलझा नज़र आया! यह सफल फिल्म रूस में भी प्रदर्शित हुई! इस से रोमैंटिक ट्रैंगल की फ़िल्मे ज्यादातर बॉलीवुड में बनने लगी!
दोस्त' (१९७४) में धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा!

आगे अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनानेवाली प्रकाश मेहरा की फ़िल्म 'ज़ंज़ीर' (१९७३) मे मुल्ज़िम का दोस्ती से अच्छे दिलेर इंसान में हुआ परिवर्तन नज़र आता हैं! इसका प्राण का "यारी हैं ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी.." गाकर अमिताभ पर प्यार लुटाना दिलेर था! बाद में अमिताभ के साथ सहनायकों का 'याराना' भी खूब रहां..जैसे की  रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' (१९७५) में धर्मेंद्र का "ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे.." कहकर देमार-मिश्किल साथ, 'हेरा फेरी' (१९७६), 'परवरीश' (१९७७) में विनोद खन्ना का और "बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा..सलामत रहें दोस्ताना हमारा.." का शत्रुघ्न सिन्हा का जिसने पहले धर्मेंद्र के साथ 'दोस्त' (१९७४) में भी अभिनय की टक्कर देने वाला ऐसा 'दोस्ताना' निभाया था!

फ्रेंच फिल्म 'जूल्स एंड जिम' (१९६१) में ज्याँ मोरु, ऑस्कर वर्नर और हेनरी सर्रे!
कुछ युरोपियन फिल्मों में भी दोस्ती को तरलता से दर्शाया हैं! इसमें उल्लेखनीय है 'फ्रेंच न्यू वेव' के फ्रांस्वा त्रुफो की 'जूल्स एंड जिम' (१९६१)..जो एक लव ट्रैंगल थी और इसमें दो दोस्तों का प्यार एक ही से रहता हैं..जो भूमिका की थी दिग्गज फ्रेंच अभिनेत्री ज्याँ मोरु ने जो हाल ही में गुजर गयी!..इसके बाद कहाँ जाएं तो इटालियन फिल्म 'सिनेमा पेरेडिसो' (१९८८)..जो दर्शाती हैं की दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती..जिउसेप्प टोरनेटोर की इस फिल्म मे सिनेमा से बहोत लगाववाले लड़के की थिएटर के बुज़ुर्ग फिल्म ऑपरेटर से रही दोस्ती दिखायी है! इस ने 'ऑस्कर' का 'सर्वोत्कृष्ट विदेशी फिल्म' का पुरस्कार पाया था!
इटालियन फिल्म 'सिनेमा पेरेडिसो' (१९८८) में फिलिप्पे नोइरेट और मार्को लिओनार्दी!


१९८० के दशक में आधुनिक बॉलीवुड ने ये दर्शाया की लड़का और लड़की में प्रेम के आगे भी दोस्ती का एक साफ, अच्छा और जज़्बाती रिश्ता होता हैं! इसकी एक अच्छी मिसाल थी डिंपल कपाड़िया की परदे पर पुनरागमन करने वाली फिल्म 'साग़र' (१९८५) जिसमे उसका प्यार होता है ऋषि कपूर पर और ग़हरी दोस्ती रहती हैं कमल हसन से..जिसे इसके लिए 'फ़िल्मफ़ेअर' बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला था जो हिंदी सिनेमा में उसका एकमात्र रहा! 'सागर' भारत की तरफ से 'ऑस्कर' के लिए भेजी गयी थी! फिर एक दशक बाद आयी यश चोपड़ा की रूमानी फ़िल्म 'दिल तो पागल हैं' ( १९९७) में भी कुछ ऐसा ही हैं..करिश्मा कपूर की शाहरुख़ खान के साथ की दोस्ती माधुरी दीक्षित उसका प्यार होने से टूटती नही!
'साग़र' (१९८५) में  डिंपल कपाड़िया और कमल हसन!


हॉलीवुड रोमैंटिक म्यूजिकल 'ग्रीज़ २' (१९८२) का "बैक टू स्कूल..'' गाने का दृश्य!
कॉलेज लाइफ पर हॉलीवुड से फ़िल्में बनती आयी हैं..इसमें पैत्रिसिआ बिर्च की "बैक टू स्कूल..'' जैसे रॉकिंग गानों से हिट रोमैंटिक म्यूजिकल 'ग्रीज़ २' (१९८२) ने यह शुरू किया! बॉलीवुड में भी यह जारी रहा २०१२ में आयी करन जोहर की यूथफुल फ़िल्म 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर' से..जिससे आलिया भट्ट जैसी प्रेटी टैलेंटेड षोडशा आयी! यह हवा मराठी सिनेमा को भी लगी और 'दुनियादारी' (२०१३) जैसी फ़िल्में इसमें भी बनती रहीं हैं!

दोस्ती का यह कारवाँ सिनेमा में ऐसा ही चलता रहें!

जश्न-ए-बहारा..महफ़िल-ए-याराँ..आबाद रहें!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]