Monday 6 August 2018

'नमक हराम' (१९७३) में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन!
'फ्रैंडशिप डे' खास लेख:

महफ़िल-ए-याराँ..!


- मनोज कुलकर्णी 


"दिये जलतें हैं...फुल खिलतें हैं... 
बड़ी मुश्क़िल से मगर...
दुनियाँ मे दोस्त मिलतें हैं.."


भारतीय सिनेमा के दो सुपरस्टार्स राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन ने एक साथ बख़ूबी साकार किया 'नमक हराम' (१९७३) फ़िल्म का यह गाना!..हृषिकेश मुख़र्जी की यह फिल्म वसंत कानेटकर जी ने लिखे 'बेईमान' नाटक पर आधारीत थी!..'फ्रैंडशिप डे' पर इसकी ख़ास याद आयी!
'शेजारी' (१९४१) में केशवराव दाते और गजानन जहागिरदार!


इस गाने में कहीं भी अभिनय में कौन हावी होता है ऐसी स्पर्धा इन दोनों में नज़र नहीं आती और ना ही इनके चाहनेवालों ने यह देखने की कोशिश की..क्यूँ कि यह ज़ज्बा ही ऐसा है की "दोस्त"लफ्ज़ आते ही सिर्फ़ प्यार देखा जाता हैं!
'दोस्ती' (१९६४) में सुशिल कुमार और सुधीर कुमार!

दोस्ती के ऐसे गहरे रंग हमारे भारतीय सिनेमा में हमेशा दिखाई दिए..इसमें सर्वश्रेष्ठ रही 'प्रभात फिल्म कंपनी' की मराठी 'शेजारी' (१९४१)..व्ही. शांताराम निर्देशित यह फिल्म दो बुज़ुर्ग हिन्दु-मुसलमान पड़ौसीयों के इर्द-गिर्द घूमती हैं..जिसमे उभर कर आता है प्यार ही!..इसमें केशवराव दाते और गजानन जहागिरदार ने ये क़िरदार अपने समर्थ अभिनय से हृदय साकार किएं थे! वैसे भारत-पाकिस्तान इन पड़ौसियों का यह रूपकात्मक चित्र था! हिन्दु-मुस्लिम एकता को उजाग़र करनेवाली यह फ़िल्म हिंदी में 'पड़ौसी' नाम से बनी..जिसमे  मुसलमान मिर्ज़ा का किरदार जहागिरदार जी ने ही किया था और हिन्दु ठाकुर की भूमिका की थी मज़हर ख़ान ने..ऐसे प्रयोग करना यह 'प्रभात' की ख़ासियत थी!


'संगम' (१९६४) में राज कपूर, वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार!
बाद में १९६४ में ताराचंद बड़जात्या जी ने बनायी 'राजश्री प्रोडक्शन' की फिल्म 'दोस्ती' भी इस ज़ज्बा को श्रेष्ठतम आयाम दे गयी! बंगाली कथा पर आधारीत सत्येन बोस निर्देशित इस फिल्म मे 'राजश्री प्रोडक्शन' की परंपरा के अनुसार नए चहरे ही लिएं गए थे..सुशिल कुमार (बेलानी) और सुधीर कुमार (सावंत)..जिन्होंने अंध और अपाहीच दोस्तों की भूमिकाएं बड़ी हृदयद्रावक तरीके से निभाई थी इस सुपरहिट फ़िल्म के लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में रफ़ी जी ने गाएं "चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे.." ऐसे गाने ख़ूब सराहें गएँ! छह 'फ़िल्मफ़ेअर' पुरस्कारों के साथ यह फिल्म तब 'मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म समारोह' में शामिल हुई थी!
'ज़ंज़ीर' (१९७३) के "यारी हैं ईमान मेरा.." में प्राण और अमिताभ बच्चन।

इसी दौरान दो दोस्त और एक प्रेमिका ऐसा प्रेम त्रिकोण हिंदी सिनेमा में शुरू हुआ! हॉलीवुड की क्लासिक फ़िल्म 'गॉन विथ द विंड' (१९३९) से प्रेरित 'आर.के.' की पहली रंगीन फ़िल्म 'संगम' (१९६४) में निर्देशक राज कपूर ही राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला के साथ ऐसी उलझी भूमिका में आए! दोस्त और प्रेमिका ने बेवफ़ाई की इस ग़लतफ़हमी में "दोस्त दोस्त ना रहां.." गानेवाला उसका किरदार उलझा नज़र आया! यह सफल फिल्म रूस में भी प्रदर्शित हुई! इस से रोमैंटिक ट्रैंगल की फ़िल्मे ज्यादातर बॉलीवुड में बनने लगी!
दोस्त' (१९७४) में धर्मेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा!

आगे अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनानेवाली प्रकाश मेहरा की फ़िल्म 'ज़ंज़ीर' (१९७३) मे मुल्ज़िम का दोस्ती से अच्छे दिलेर इंसान में हुआ परिवर्तन नज़र आता हैं! इसका प्राण का "यारी हैं ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी.." गाकर अमिताभ पर प्यार लुटाना दिलेर था! बाद में अमिताभ के साथ सहनायकों का 'याराना' भी खूब रहां..जैसे की  रमेश सिप्पी की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' (१९७५) में धर्मेंद्र का "ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे.." कहकर देमार-मिश्किल साथ, 'हेरा फेरी' (१९७६), 'परवरीश' (१९७७) में विनोद खन्ना का और "बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा..सलामत रहें दोस्ताना हमारा.." का शत्रुघ्न सिन्हा का जिसने पहले धर्मेंद्र के साथ 'दोस्त' (१९७४) में भी अभिनय की टक्कर देने वाला ऐसा 'दोस्ताना' निभाया था!

फ्रेंच फिल्म 'जूल्स एंड जिम' (१९६१) में ज्याँ मोरु, ऑस्कर वर्नर और हेनरी सर्रे!
कुछ युरोपियन फिल्मों में भी दोस्ती को तरलता से दर्शाया हैं! इसमें उल्लेखनीय है 'फ्रेंच न्यू वेव' के फ्रांस्वा त्रुफो की 'जूल्स एंड जिम' (१९६१)..जो एक लव ट्रैंगल थी और इसमें दो दोस्तों का प्यार एक ही से रहता हैं..जो भूमिका की थी दिग्गज फ्रेंच अभिनेत्री ज्याँ मोरु ने जो हाल ही में गुजर गयी!..इसके बाद कहाँ जाएं तो इटालियन फिल्म 'सिनेमा पेरेडिसो' (१९८८)..जो दर्शाती हैं की दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती..जिउसेप्प टोरनेटोर की इस फिल्म मे सिनेमा से बहोत लगाववाले लड़के की थिएटर के बुज़ुर्ग फिल्म ऑपरेटर से रही दोस्ती दिखायी है! इस ने 'ऑस्कर' का 'सर्वोत्कृष्ट विदेशी फिल्म' का पुरस्कार पाया था!
इटालियन फिल्म 'सिनेमा पेरेडिसो' (१९८८) में फिलिप्पे नोइरेट और मार्को लिओनार्दी!


१९८० के दशक में आधुनिक बॉलीवुड ने ये दर्शाया की लड़का और लड़की में प्रेम के आगे भी दोस्ती का एक साफ, अच्छा और जज़्बाती रिश्ता होता हैं! इसकी एक अच्छी मिसाल थी डिंपल कपाड़िया की परदे पर पुनरागमन करने वाली फिल्म 'साग़र' (१९८५) जिसमे उसका प्यार होता है ऋषि कपूर पर और ग़हरी दोस्ती रहती हैं कमल हसन से..जिसे इसके लिए 'फ़िल्मफ़ेअर' बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला था जो हिंदी सिनेमा में उसका एकमात्र रहा! 'सागर' भारत की तरफ से 'ऑस्कर' के लिए भेजी गयी थी! फिर एक दशक बाद आयी यश चोपड़ा की रूमानी फ़िल्म 'दिल तो पागल हैं' ( १९९७) में भी कुछ ऐसा ही हैं..करिश्मा कपूर की शाहरुख़ खान के साथ की दोस्ती माधुरी दीक्षित उसका प्यार होने से टूटती नही!
'साग़र' (१९८५) में  डिंपल कपाड़िया और कमल हसन!


हॉलीवुड रोमैंटिक म्यूजिकल 'ग्रीज़ २' (१९८२) का "बैक टू स्कूल..'' गाने का दृश्य!
कॉलेज लाइफ पर हॉलीवुड से फ़िल्में बनती आयी हैं..इसमें पैत्रिसिआ बिर्च की "बैक टू स्कूल..'' जैसे रॉकिंग गानों से हिट रोमैंटिक म्यूजिकल 'ग्रीज़ २' (१९८२) ने यह शुरू किया! बॉलीवुड में भी यह जारी रहा २०१२ में आयी करन जोहर की यूथफुल फ़िल्म 'स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर' से..जिससे आलिया भट्ट जैसी प्रेटी टैलेंटेड षोडशा आयी! यह हवा मराठी सिनेमा को भी लगी और 'दुनियादारी' (२०१३) जैसी फ़िल्में इसमें भी बनती रहीं हैं!

दोस्ती का यह कारवाँ सिनेमा में ऐसा ही चलता रहें!

जश्न-ए-बहारा..महफ़िल-ए-याराँ..आबाद रहें!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]




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