Thursday 30 August 2018

ख़ूबसूरत मोहक..लीना चंदावरकर!


- मनोज कुलकर्णी


हुस्न और नज़ाकत..लीना चंदावरकर!

"..ये शायरी भी क्या है इनायत उन्हीं की है.."

ऐसा साहिरजी ने शायद उन्हें देखकर ही 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) के लिए लिखा होगा!

और 'बैराग' (१९७६) में तो दिलीप कुमार उन्हे देखकर कहते है "सारे शहर में आपसा कोई नहीं.."

'बैराग' (१९७६) के "सारे शहर में आप सा कोई नहीं." गाने में दिलीप कुमार और लीना चंदावरकर!
हाँ, मैं उस मासूमीयत से भरी ख़ूबसूरत अभिनेत्री की ही बात कर रहां हूँ, जिन्होंने उन दिनों में मोह लिया था..लीना चंदावरकर! उनका जनमदिन अब संपन्न हुआ!

धारवाड़ में आर्मी अफ़सर के परिवार में जन्मी इस लड़की का मासूम ख़ूबसूरत चेहरा 'फ़िल्मफ़ेअर' ने आयोजित किए 'फ्रेश फेस' प्रतियोगिता में सर्वप्रथम प्रकाशझोत में आया! फिर उन्होंने विज्ञापनों में काम किया..तब श्रेष्ठ अभिनेत्री नर्गिस जी ने उसे परखां और सुनिल दत्त निर्मित फ़िल्म 'मन का मीत' (१९६८) की वह नायिका हुई, जिसमें सुनिलजी के भाई सोम दत्त नायक बने थे..और विनोद खन्ना भी उसी से खलनायक की भूमिका में परदे पर आया था!
जोड़ी ख़ूब जमी..'हमजोली' (१९७०) में जितेंद्र और लीना चंदावरकर!

इसके बाद लगभग दो दशक लीना चंदावरकर ने अपनी ख़ूबसूरत छवि से पॉपुलर रोमैंटिक सिनेमा के दर्शकों को लुभाया! इसमें उसकी जोड़ी फ़िल्म 'ज़वाब' (१९७०) से जंपिग जैक जितेंद्र से ख़ूब जमी! तब की ही 'हमजोली' इस सुपरहिट म्यूजिकल में तो दोनों की रूमानी अदाकारी कमाल की थी..जिसमें टेनिस खेलते हुए "ढल गया दिन हो गयी शाम.." से बारीश का लुत्फ़ उठाते हुए "हाय रे हाय.." जैसे गानों में उन्होंने बहार लायी! इसी फिल्म मे कॉमडी किंग मेहमूद ने कपूर की तीन पीढ़ियों की लाज़वाब नक़ल की थी! बाद में १९७१ में बनी फ़िल्म 'मै सुंदर हूँ' के जैसे वो ही नायक थे..साधारण चेहरा-काम का यह आदमी जिसके प्यार से बड़ा हो जाता हैं..वह थी लीना जिसका इसमें नायक था बिस्वजीत!

'मेहबूब की मेहंदी' (१९७१) के "ये जो चिलमन है." गाने में लीना चंदावरकर और राजेश खन्ना!
बाद में उस ज़माने के कई अभिनेताओं के साथ लीनाजी नायिका के रूप में आयी..जिसमे रिबेल स्टार शम्मी कपूर ('प्रीतम') और ही मैन धर्मेंद्र ('रखवाला') जैसे जानेमाने थे; तो अनिल धवन ('हनीमून') जैसे तब के नए भी थे!..और इसमें थे अपने पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जिनके साथ 'मेहबूब की मेहंदी' (१९७१) इस नवाबी माहौल में बनी रूमानी फ़िल्म में लीनाजी ने अपनी लाज़वाब अदाकारी दिखाई! 'मेरे मेहबूब' प्रसिद्ध मेरे पसंदीदा फ़िल्मकार एच्. एस. रवैल की इस मशहूर कलाकृती में रफ़ीजी ने गाए "ये जो चिलमन हैं.." जैसे बेहद रूमानी गानों में तहज़ीब से राजेशजी का प्यार जताना और लीनाजी का इज़हार-ए-मोहब्बत रंग लाया। इसमें ही लता मंगेशकरजी ने गाए "जाने क्यूँ लोग मोहब्बत किया करते हैं.." इस गाने में उनका अभिनय क़ाबिल-ए-तारीफ़ था!
'मनचली' (१९७३) में नटखट ख़ूबसूरत लीना चंदावरकर और संजीव कुमार!

इसी दौरान आयी राजा नवाथे की फ़िल्म 'मनचली' (१९७३) में तो लीनाजी ने अलग क़िस्म का क़िरदार निभाया..अपनी ही धुंद में रहने वाली अमीर लड़की जो बग़ैर शादी किए स्वतंत्र रहना चाहती हैं! 'स्वयंबर' इस सत्येंद्र शरत की उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में..संजीव कुमार ने उसे बदलनेवाले अनोखे पति के रूप में अपना कॉमेडी रंग भरा था! इसके शिर्षक गीत में और "गम का फ़सना बन गया अच्छा.." में किशोर कुमार के साथ "अच्छा जी!" ऐसी अपनी मीठी आवाज़ देके लीनाजी इस ख़ूबसूरत भूमिका में छा गयी! इसके बाद 'अनहोनी' और 'अपने रंग हजार' में भी इन दोनों ने एक साथ अच्छा काम किया।
बुजुर्ग अभिनेत्री..लीना चंदावरकर!

फिरसे 'बिदाई' (१९७४) जैसी फिल्मों में जितेंद्र के साथ लीनाजी ने नायिका का अनोखा रंग भरा! बाद में फिल्म 'क़ैद' (१९७५) में विनोद खन्ना के साथ "ये तो ज़िन्दगी है.." गाने में नाचते मॉडर्न लुक मे और सुनिल दत्त के साथ 'आख़री गोली' (१९७७) इस एक्शन फिल्म में वह नज़र आयी!

आख़री बार १९८५ में लीनाजी बड़े परदे पर आयी जितेंद्र की फिल्म 'सरफ़रोश' में..जिसकी प्रमुख नायिका बनी थी श्रीदेवी! इसी दौरान शायद किशोर कुमारजी की गृहस्ती में व्यस्त होने के कारन वह फिल्मों में दिखाई नहीं दी; लेकिन टेलीविज़न के छोटे परदे पर होने वालें सिंगिंग रियलिटी शोज में बतौर मेहमान परीक्षक वह आती रहीं! इसके साथ उल्लेखनीय हैं की कुछ म्यूजिक अल्बम्स के लिए उन्होंने गीतलेखन किया..जिसमें अमित कुमार ने गाया हैं!

हार्दिक शुभकामनाएं..लीनाजी!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

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