Tuesday 29 December 2020


ऊपर आक़ा और नीचे काका
रूपहले परदे का वह दौर था
 
हसीं जवाँ दिल धड़कानेवाले
राजेश का यहाँ पर राज था!

- मनोज 'मानस रूमानी'


अपने भारतीय रूमानी - सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जी को ७८ वे जनमदिन पर सुमनांजलि!

- मनोज कुलकर्णी

नवाबी रुतबे के शानदार शख़्सियत थे वे..
उमराव जान से तहज़ीब से इश्क़ फरमाए वे

- मनोज 'मानस रूमानी'

अपने भारतीय सिनेमा के एक लाजवाब अदाकार.. फ़ारूख़ शेख़ इस जहाँ से रुख़सत होकर ७ साल हुएं

अपनी ख़ूबसूरत अदाकारा.. रेखा की उनके साथ 'उमराव जान' यादगार रही। 

नज़ाकत और नफ़ाज़त के लखनऊ में उनका शायराना अंदाज़ का इश्क़ चार दशक से दिलोदिमाग़ पर छाया हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 25 December 2020

'हम दोनों' (१९६१) फ़िल्म के उस गाने में साधना और देव आनंद!

"अभी न जाओ छोड़ कर..
कि दिल अभी भरा नहीं.."

हमारे रूमानी सिनेमा की - ख़ूबसूरत अदाकारा साधनाजी के स्मृतिदिन पर, उनके लिए कहा गया यह 'हम दोनों' इस लगभग साठ साल पुरानी - फ़िल्म का गाना आज उनके लिए ही याद आया।

जयदेवजी के संगीत में यह - गाया था..हमारे अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ीजी ने..जिन्होंने यह जहाँ छोड़कर अब चालीस साल हुएं।

यह लिखा था साहिर लुधियानवीजी ने, वो भी इस जहाँ से रुख़सत हुए अब चालीस साल हुएं।

सदाबहार अभिनेता देव आनंदजी ने अपनी इस फ़िल्म में दोहरी भूमिकाएं बख़ूबी निभायी थी।

देव आनंदजी के पुणे में हुए उस सेलिब्रेशन में
उनके साथ ज्योति व्यंकटेश और मैं!
इस संबंध में एक रंजक वाकया, जो हमने अनुभव किया वह याद आया..

१९९५ में देवसाहब ने अपने फ़िल्म कैरियर - (जो पुणे में शुरू हुआ था) के पचास साल यहाँ सेलिब्रेट किएं। तब हुई शानदार पार्टी में हम चुनिंदा फ़िल्म पत्रकारों के बीच वो बैठे। देर बाद जब वो जाने लगे, तो हमारे बंबई के दोस्त ने उनका वही गाना छेड़ा "अभी न जाओ छोड़ कर.."

देवसाहब गुज़र जाने को अब दस साल होंगे!

ख़ैर, फ़िल्म पत्रकारिता से ऐसी बहुत यादें है!!

- मनोज कुलकर्णी

"मक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जचा ही नहीं..
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले.."

कहते है जब हमारे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयीजी (उनके विदेश मंत्री के दौर में) जब मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ को पाकिस्तान में मिले, तब फ़ैज़जी का यह शेर उन्होंने दोहराया।

खुद कवि रहे वाजपेयीजी के जनमदिन पर उन्हें आदरांजलि!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 24 December 2020

हुस्न को चाँद, जवानी को कँवल कहते हैं
उनकी सूरत नज़र आए तो ग़ज़ल कहते हैं
ऐसा रूमानी हो या,
 
मेरे तसव्वुर के रास्तों में 
उभर के डूबी हज़ार आहटें..
न जाने शाम-ए-अलम से मिलकर 
कहाँ सवेरा पलट गया है
ऐसा दार्शनिक लिखनेवाले..

सरहद के दो तरफ़, दोनों मुल्कों में मक़बूल..शायर क़तील शिफ़ाई साहब का आज १०१ वा जनमदिन!

इस अवसर पर उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

 

Sunday 13 December 2020

बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा..७५!



'काला पत्थर' (१९७९) में शत्रुघ्न सिन्हा 

"अरे मेरे ताश के तिरपनवे पत्ते, तीसरे बादशाह हम हैं!"

यश चोपड़ा की फ़िल्म 'काला पत्थर' (१९७९) में बड़े जोश से सबको सुनानेवाला दमदार कलाकार था..शत्रुघ्न सिन्हा, जिसने इससे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के 'एंग्री यंग मैन' किरदार के सामने आव्हान खड़ा किया।

वह संवाद फ़िल्म में सीन के संदर्भ में था लेकिन दर्शकों को वाकई में लगा की अदाकारी का यह और एक बादशाह आया है!..'जानी' राजकुमार के बाद बुलंद डायलॉगबाजी करनेवाला!

'मेरे अपने' (१९७१) फ़िल्म में शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना!
अपनी दमदार अदाकारी और डायलॉग डिलीवरी का यह बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा पुणे के 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से एक्टिंग की बाकायदा ट्रेनिंग लेकर आया था। अमूमन हीरो जैसी शक्ल नहीं थी; लेकिन नज़र में करारीपन, बुलंद आवाज़ और चाल-ढाल में रुतबा इस वजह से वो असरदर था। बंबई में फ़िल्म इंडस्ट्री में उसका कैरियर शुरू हुआ देव आनंद की फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में निभाए छोटे रोल से!

'विश्वनाथ' (१९७८) में शत्रुघ्न सिन्हा
गुलज़ार की फ़िल्म 'मेरे अपने' (१९७१) में शत्रुघ्न सिन्हा असरदार अभिनेता के रूप में सामने आया। इसमें हैंडसम विनोद खन्ना के किरदार के साथ उसकी खुन्नस बहोत सराही गयी। इसमें "श्याम आये तो कह देना छेनू आया था!" कहते हुए उसका बेदरकार अंदाज़ कमाल का था। लेकिन बाद में उसके पास ज़्यादातर खलनायकी किरदार आएं। इसमें मनमोहन देसाई की 'रामपुर का लक्ष्मण' (१९७२) और सुल्तान अहमद की 'हीरा' (१९७३) जैसी फ़िल्में थी।

'धरम शत्रु' (१९८८) में रीना रॉय और शत्रुघ्न सिन्हा!
 
 
इसी वक़्त शत्रुघ्न सिन्हा अच्छे सपोर्टिव्ह रोल्स करने लगा। इसमें दुलाल गुहा की फ़िल्म 'दोस्त' (१९७४) में धर्मेंद्र के साथ उसने निभाया सहायक किरदार स्वाभाविक लगा। उसने इसमें अपने संवादशैली में गाया भी! फिर सही मायने में उसका कैरियर हीरो बनाकर सवारा उसका 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' का साथी सुभाष घई ने, जो खुद एक्टिंग सीखकर आए थे लेकिन बाद में लेखन-निर्देशन में मुड़े। उनकी पहली फ़िल्म 'कालीचरण' (१९७६) में शत्रुघ्न ने परस्पर विरोधी दोहरी भूमिकाए बख़ूबी निभाई। इस सफल फ़िल्म के बाद दोनों का कॉम्बिनेशन 'विश्वनाथ' (१९७८) में भी हिट रहा। "जिस राख़ से बारूद बने उसे 'विश्वनाथ' कहते हैं!" यह उसका दमदार डायलॉग यादगार रहा।

'मिलाप' (१९७२) फ़िल्म से शत्रुघ्न सिन्हा की जोड़ी... ख़ूबसूरत रीना रॉय के साथ बनी और 'कालीचरण' (१९७६) से वह हिट हुई। बादमे उन्होंने 'विश्वनाथ', 'भूख़' (१९७८), 'मुकाबला', 'हीरा मोती', जानी दुश्मन' (१९७९), 'बेरहम', 'ज्वालामुखी' (१९८०), 'नसीब' (१९८१), 'दो उस्ताद', 'हथकड़ी' (१९८२) जैसी कामयाब फ़िल्में दी। कुल १६ फ़िल्में उन्होंने साथ की। उनके प्यार के चर्चे रहें, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा ने शादी की पूनम चंदिरामानी से, जो 'सबक' (१९७३) इस एक ही फ़िल्म में उनकी नायिका रही थी। उसका रूमानी गाना "बरख़ा रानी ज़रा जम के बरसो.." मशहूर हुआ!"
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा..बराबरी!

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ सह- नायकवाली 'दोस्ताना', 'शान' (१९८०) जैसी फिल्मों में शत्रुघ्न सिन्हा बराबर रहें! मनोजकुमार की 'क्रांति' (१९८१) में उसका "करीम ख़ान बोल!" ऐसा फिरंगी को कहना दमदार रहा। 'मंगल पांडे' (१९८१) जैसी अकेले के दम पर हो या, 'तीसरी आँख' (१९८२), 'इल्ज़ाम' (१९८६), 'आग ही आग' (१९८७) जैसी मल्टी स्टार्रर फ़िल्में..वे अपनी अदाकारी से छा जाते थे।

मुख्य धारा के साथ कुछ समानांतर फिल्मों में भी शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इसमें थी गौतम घोष की सामाजिक बंगाली फ़िल्म 'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) और कुमार शाहनी की चेखोव की कहानी पर बनी 'क़स्बा' (१९९०); तो राम गोपाल वर्मा की पोलिटिकल थ्रिलर 'रक्त चरित्र' (२०१०) में उन्होंने फ़िल्म स्टार से बने नेता का किरदार किया। तब तक असल ज़िन्दगी में भी वे बिहार से राजनीती में आए थे!

'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) में शत्रुघ्न सिन्हा!
शत्रुघ्न सिन्हा को 'आइफा' के 'आउटस्टैंडिंग कंट्रीब्यूशन टू इंडियन सिनेमा' अवार्ड से २०१४ में सम्मानित किया गया। पिछले साल वे 'कांग्रेस' में शामिल हुए और राजनीती तथा सार्वजनिक जीवन में सक्रीय है।

हाल ही में उनका ७५ वा जनमदिन संपन्न हुआ!

उनकी "ख़ामोशs" यूँही गूँजती रहें!!
कन्या स्टार सोनाक्षी और पत्नी पूनमजी के साथ शत्रुघ्न सिन्हा!


उन्हें शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 8 December 2020

शर्मिला, हेमा और धर्मेंद्र..'देवदास'!

नहीं बनी फ़िल्म 'देवदास' के पोस्टर में हेमा मालिनी, धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर!

अपने लोकप्रिय भारतीय सिनेमा के जानेमाने अदाकार धर्मेंद्र (८५) और शर्मिला टैगोर (७५+) इनकी आज सालगिरह!
'मेरे हमदम मेरे दोस्त' (१९६८) फ़िल्म में शर्मिला टैगोर और धर्मेंद्र!

ये दोनों 'अनुपमा' (१९६६), 'मेरे हमदम मेरे दोस्त' (१९६८), 'सत्यकाम', 'यक़ीन' (१९६९) और 'एक महल हो सपनों का' (१९७५) ऐसी लगभग आठ फिल्मों में साथ छा गएँ।

हालांकि धर्मेंद्र की रोमैंटिक हिट जोड़ी ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी के साथ रही और दोनों ने करीब ३० फ़िल्में साथ की। तो शर्मिला टैगोर की इंटेंस रोमैंटिक हिट जोड़ी पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ ही रही और दोनों ने लगभग ९ फ़िल्में साथ की।
 
फिर भी धरम-शर्मिला की जोड़ी कामयाब रही! इस जोड़ी की और दो फिल्में साथ हो सकती थी; लेकिन कुछ वजहों से हो न सकी। इसमें एक थी 'चैताली'..जो जानेमाने फ़िल्मकार बिमल रॉय बनानेवाले थे, पर वो गुज़र गए। बाद में, उनके सहायक रहे हृषिकेश मुख़र्जी ने वह १९७५ में बनायीं। लेकिन चाहते हुए भी वो धरम-शर्मिला से बना न सके और उसमे उन्हें सायरा बानू को लेना पड़ा!

नहीं बनी फ़िल्म 'देवदास' के सेट पर धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और गुलज़ार!
इनकी दूसरी फ़िल्म जो हो न सकी वह थी 'देवदास'! १९७६ में सृजनशील फ़िल्मकार - गुलज़ार ने शरतचंद्रजी की इस लोकप्रिय उपन्यास को अपनी दृष्टी से परदे पर लाना चाहा। उनकी लिखी पटकथा पर - कैलाश चोपड़ा निर्मित इस फ़िल्म का मुहूर्त भी हुआ था। इसमें उन्होंने कास्टिंग की थी धर्मेंद्र-देवदास, हेमा मालिनी-पारो, शर्मिला टैगोर-चंद्रमुखी! दरअसल, नृत्यकुशल हेमा चंद्रमुखी होनी चाहिए थी और संवेदनशील शर्मिला पारो!

आज यह सब याद आया!
ख़ैर, उनको मुबारक़बाद!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 3 December 2020

मेरी हिंदी-उर्दू स्क्रिप्ट (सेक्युलर लव स्टोरी) के लोकेशन्स आग्रा, लखनऊ, दिल्ली है। 

देखते है यूपी की प्रस्तावित फिल्मसिटी और स्कीम्स से क्या सहयोग मिलता है।

- मनोज कुलकर्णी

सांस्कृतिक धरोहर के बिहार, मध्य, उत्तर आदी प्रदेशों में फिल्म कल्चर विकसित हो। 

वहां फ़िल्मों की निर्मिति बढ़कर समारोह होने चाहिएं।

- मनोज कुलकर्णी

फ़िल्म निर्माण के सृजनात्मक कार्य को पोषक मुक्त वातावरण जरुरी है। 

यूपी के केसरिया माहौल में फ़िल्म इंडस्ट्री के विकास की गुंजाइश नज़र नहीं आती!

- मनोज कुलकर्णी 

महाराष्ट्र, प. बंगाल और दक्षिण के राज्यों जैसा फिल्मोद्योग बिहार, मध्य, उत्तर आदी प्रदेशों में उभरने की आवश्यकता है।

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 2 December 2020

दरअसल यूपी में फिल्मसिटी की पहल अखिलेश यादव के सपा काल में हुई। 

मैं पहले से चाहता था, यूपी में यह होकर लखनऊ में फिल्म समारोह हो।

- मनोज कुलकर्णी 

यूपी में फिल्मसिटी होने से बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री पर कोई आँच नहीं आएगी। 

मैं तो चाहता हूँ वहां फिल्मोद्योग विकसित हो और लखनऊ में फिल्म समारोह भी हो।

- मनोज कुलकर्णी