बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा..७५!
यश चोपड़ा की फ़िल्म 'काला पत्थर' (१९७९) में बड़े जोश से सबको सुनानेवाला दमदार कलाकार था..शत्रुघ्न सिन्हा, जिसने इससे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के 'एंग्री यंग मैन' किरदार के सामने आव्हान खड़ा किया।
वह संवाद फ़िल्म में सीन के संदर्भ में था लेकिन दर्शकों को वाकई में लगा की अदाकारी का यह और एक बादशाह आया है!..'जानी' राजकुमार के बाद बुलंद डायलॉगबाजी करनेवाला!
'मेरे अपने' (१९७१) फ़िल्म में शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना! |
'विश्वनाथ' (१९७८) में शत्रुघ्न सिन्हा |
इसी वक़्त शत्रुघ्न सिन्हा अच्छे सपोर्टिव्ह रोल्स करने लगा। इसमें दुलाल गुहा की फ़िल्म 'दोस्त' (१९७४) में धर्मेंद्र के साथ उसने निभाया सहायक किरदार स्वाभाविक लगा। उसने इसमें अपने संवादशैली में गाया भी! फिर सही मायने में उसका कैरियर हीरो बनाकर सवारा उसका 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' का साथी सुभाष घई ने, जो खुद एक्टिंग सीखकर आए थे लेकिन बाद में लेखन-निर्देशन में मुड़े। उनकी पहली फ़िल्म 'कालीचरण' (१९७६) में शत्रुघ्न ने परस्पर विरोधी दोहरी भूमिकाए बख़ूबी निभाई। इस सफल फ़िल्म के बाद दोनों का कॉम्बिनेशन 'विश्वनाथ' (१९७८) में भी हिट रहा। "जिस राख़ से बारूद बने उसे 'विश्वनाथ' कहते हैं!" यह उसका दमदार डायलॉग यादगार रहा।
'मिलाप' (१९७२) फ़िल्म से शत्रुघ्न सिन्हा की जोड़ी... ख़ूबसूरत रीना रॉय के साथ बनी और 'कालीचरण' (१९७६) से वह हिट हुई। बादमे उन्होंने 'विश्वनाथ', 'भूख़' (१९७८), 'मुकाबला', 'हीरा मोती', जानी दुश्मन' (१९७९), 'बेरहम', 'ज्वालामुखी' (१९८०), 'नसीब' (१९८१), 'दो उस्ताद', 'हथकड़ी' (१९८२) जैसी कामयाब फ़िल्में दी। कुल १६ फ़िल्में उन्होंने साथ की। उनके प्यार के चर्चे रहें, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा ने शादी की पूनम चंदिरामानी से, जो 'सबक' (१९७३) इस एक ही फ़िल्म में उनकी नायिका रही थी। उसका रूमानी गाना "बरख़ा रानी ज़रा जम के बरसो.." मशहूर हुआ!"
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा..बराबरी! |
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ सह- नायकवाली 'दोस्ताना', 'शान' (१९८०) जैसी फिल्मों में शत्रुघ्न सिन्हा बराबर रहें! मनोजकुमार की 'क्रांति' (१९८१) में उसका "करीम ख़ान बोल!" ऐसा फिरंगी को कहना दमदार रहा। 'मंगल पांडे' (१९८१) जैसी अकेले के दम पर हो या, 'तीसरी आँख' (१९८२), 'इल्ज़ाम' (१९८६), 'आग ही आग' (१९८७) जैसी मल्टी स्टार्रर फ़िल्में..वे अपनी अदाकारी से छा जाते थे।
मुख्य धारा के साथ कुछ समानांतर फिल्मों में भी शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इसमें थी गौतम घोष की सामाजिक बंगाली फ़िल्म 'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) और कुमार शाहनी की चेखोव की कहानी पर बनी 'क़स्बा' (१९९०); तो राम गोपाल वर्मा की पोलिटिकल थ्रिलर 'रक्त चरित्र' (२०१०) में उन्होंने फ़िल्म स्टार से बने नेता का किरदार किया। तब तक असल ज़िन्दगी में भी वे बिहार से राजनीती में आए थे!
'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) में शत्रुघ्न सिन्हा! |
हाल ही में उनका ७५ वा जनमदिन संपन्न हुआ!
उनकी "ख़ामोशs" यूँही गूँजती रहें!!
उन्हें शुभकामनाएं!!
- मनोज कुलकर्णी
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