Sunday 13 December 2020

बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा..७५!



'काला पत्थर' (१९७९) में शत्रुघ्न सिन्हा 

"अरे मेरे ताश के तिरपनवे पत्ते, तीसरे बादशाह हम हैं!"

यश चोपड़ा की फ़िल्म 'काला पत्थर' (१९७९) में बड़े जोश से सबको सुनानेवाला दमदार कलाकार था..शत्रुघ्न सिन्हा, जिसने इससे सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के 'एंग्री यंग मैन' किरदार के सामने आव्हान खड़ा किया।

वह संवाद फ़िल्म में सीन के संदर्भ में था लेकिन दर्शकों को वाकई में लगा की अदाकारी का यह और एक बादशाह आया है!..'जानी' राजकुमार के बाद बुलंद डायलॉगबाजी करनेवाला!

'मेरे अपने' (१९७१) फ़िल्म में शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना!
अपनी दमदार अदाकारी और डायलॉग डिलीवरी का यह बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा पुणे के 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से एक्टिंग की बाकायदा ट्रेनिंग लेकर आया था। अमूमन हीरो जैसी शक्ल नहीं थी; लेकिन नज़र में करारीपन, बुलंद आवाज़ और चाल-ढाल में रुतबा इस वजह से वो असरदर था। बंबई में फ़िल्म इंडस्ट्री में उसका कैरियर शुरू हुआ देव आनंद की फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' (१९७०) में निभाए छोटे रोल से!

'विश्वनाथ' (१९७८) में शत्रुघ्न सिन्हा
गुलज़ार की फ़िल्म 'मेरे अपने' (१९७१) में शत्रुघ्न सिन्हा असरदार अभिनेता के रूप में सामने आया। इसमें हैंडसम विनोद खन्ना के किरदार के साथ उसकी खुन्नस बहोत सराही गयी। इसमें "श्याम आये तो कह देना छेनू आया था!" कहते हुए उसका बेदरकार अंदाज़ कमाल का था। लेकिन बाद में उसके पास ज़्यादातर खलनायकी किरदार आएं। इसमें मनमोहन देसाई की 'रामपुर का लक्ष्मण' (१९७२) और सुल्तान अहमद की 'हीरा' (१९७३) जैसी फ़िल्में थी।

'धरम शत्रु' (१९८८) में रीना रॉय और शत्रुघ्न सिन्हा!
 
 
इसी वक़्त शत्रुघ्न सिन्हा अच्छे सपोर्टिव्ह रोल्स करने लगा। इसमें दुलाल गुहा की फ़िल्म 'दोस्त' (१९७४) में धर्मेंद्र के साथ उसने निभाया सहायक किरदार स्वाभाविक लगा। उसने इसमें अपने संवादशैली में गाया भी! फिर सही मायने में उसका कैरियर हीरो बनाकर सवारा उसका 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' का साथी सुभाष घई ने, जो खुद एक्टिंग सीखकर आए थे लेकिन बाद में लेखन-निर्देशन में मुड़े। उनकी पहली फ़िल्म 'कालीचरण' (१९७६) में शत्रुघ्न ने परस्पर विरोधी दोहरी भूमिकाए बख़ूबी निभाई। इस सफल फ़िल्म के बाद दोनों का कॉम्बिनेशन 'विश्वनाथ' (१९७८) में भी हिट रहा। "जिस राख़ से बारूद बने उसे 'विश्वनाथ' कहते हैं!" यह उसका दमदार डायलॉग यादगार रहा।

'मिलाप' (१९७२) फ़िल्म से शत्रुघ्न सिन्हा की जोड़ी... ख़ूबसूरत रीना रॉय के साथ बनी और 'कालीचरण' (१९७६) से वह हिट हुई। बादमे उन्होंने 'विश्वनाथ', 'भूख़' (१९७८), 'मुकाबला', 'हीरा मोती', जानी दुश्मन' (१९७९), 'बेरहम', 'ज्वालामुखी' (१९८०), 'नसीब' (१९८१), 'दो उस्ताद', 'हथकड़ी' (१९८२) जैसी कामयाब फ़िल्में दी। कुल १६ फ़िल्में उन्होंने साथ की। उनके प्यार के चर्चे रहें, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा ने शादी की पूनम चंदिरामानी से, जो 'सबक' (१९७३) इस एक ही फ़िल्म में उनकी नायिका रही थी। उसका रूमानी गाना "बरख़ा रानी ज़रा जम के बरसो.." मशहूर हुआ!"
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा..बराबरी!

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ सह- नायकवाली 'दोस्ताना', 'शान' (१९८०) जैसी फिल्मों में शत्रुघ्न सिन्हा बराबर रहें! मनोजकुमार की 'क्रांति' (१९८१) में उसका "करीम ख़ान बोल!" ऐसा फिरंगी को कहना दमदार रहा। 'मंगल पांडे' (१९८१) जैसी अकेले के दम पर हो या, 'तीसरी आँख' (१९८२), 'इल्ज़ाम' (१९८६), 'आग ही आग' (१९८७) जैसी मल्टी स्टार्रर फ़िल्में..वे अपनी अदाकारी से छा जाते थे।

मुख्य धारा के साथ कुछ समानांतर फिल्मों में भी शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इसमें थी गौतम घोष की सामाजिक बंगाली फ़िल्म 'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) और कुमार शाहनी की चेखोव की कहानी पर बनी 'क़स्बा' (१९९०); तो राम गोपाल वर्मा की पोलिटिकल थ्रिलर 'रक्त चरित्र' (२०१०) में उन्होंने फ़िल्म स्टार से बने नेता का किरदार किया। तब तक असल ज़िन्दगी में भी वे बिहार से राजनीती में आए थे!

'अंतर्जली जात्रा' (१९८७) में शत्रुघ्न सिन्हा!
शत्रुघ्न सिन्हा को 'आइफा' के 'आउटस्टैंडिंग कंट्रीब्यूशन टू इंडियन सिनेमा' अवार्ड से २०१४ में सम्मानित किया गया। पिछले साल वे 'कांग्रेस' में शामिल हुए और राजनीती तथा सार्वजनिक जीवन में सक्रीय है।

हाल ही में उनका ७५ वा जनमदिन संपन्न हुआ!

उनकी "ख़ामोशs" यूँही गूँजती रहें!!
कन्या स्टार सोनाक्षी और पत्नी पूनमजी के साथ शत्रुघ्न सिन्हा!


उन्हें शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

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