उनकी सूरत नज़र आए तो ग़ज़ल कहते हैं
ऐसा रूमानी हो या,
मेरे तसव्वुर के रास्तों में
उभर के डूबी हज़ार आहटें..
न जाने शाम-ए-अलम से मिलकर
कहाँ सवेरा पलट गया है
ऐसा दार्शनिक लिखनेवाले..
सरहद के दो तरफ़, दोनों मुल्कों में मक़बूल..शायर क़तील शिफ़ाई साहब का आज १०१ वा जनमदिन!
इस अवसर पर उन्हें सलाम!!
- मनोज कुलकर्णी
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