मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
Saturday 30 September 2017
Wednesday 27 September 2017
'आर के' की 'आग' पहली परदेवाली..और अब यह!
'आर के स्टुडिओ' की बड़ी दुर्घटना न्यूज़ में देखी और दुख हुआ..यह सोचकर की कई क्लासिक फिल्मों की निशानियाँ इसमें मिट गयी होंगी!..और उसी वक्त आँखों के सामने आने लगे 'आर के' की फिल्मों के सुमधूर संगीत से सजे रूमानी दृश्य...अपनी फिल्मों की ' म्यूजिकल रोमांटिसिज़्म यह पहचान राज कपूर ने 'आर के फिल्म्स' के सिम्बोल में बख़ूबी दर्शायी है...जो कि उनके प्रोडक्शन की पहली हिट 'बरसात' फ़िल्म के अभिजात दृश्य से प्रेरित था...जिसमें राज कपूर के एक हाथ में झूलती नर्गिस है और दूसरे हाथ में व्हायोलिन..याने की रोमान्स और म्यूजिक! 'आर के स्टुडिओ' के प्रवेशद्वार पर इसकी प्रतिकृती कायम रही!
१९४८ में राज कपूर ने अपने इस 'आर के स्टुडिओ' की स्थापना की और पहली फिल्म बनायी थी 'आग'..यह कुछ अज़ीब सा संजोग लगता है कि करीब सात दशकों के बाद अब स्टूडिओ सिस्टम के दिन ख़तम होने पर यह वास्तव में लगना!
दरअसल 'इंडियन सिनेमा के चार्ली चॅप्लीन' यही पहचान थी अभिनेता राज कपूर की परदेपर..जिसे उसने अपनी फिल्म 'आवारा' (१९५१) में 'चार्ली ट्रैम्प' पर चलते कायम रखा! उसकी आवाज बने मुकेश ने गाया इसका शीर्षक गीत रूस तक गूँजता रहा और राज कपूर वहां फेमस हुए!
१९७३ में राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर और खूबसूरत डिंपल कपाडिया को लेकर 'बॉबी' यह षोडश प्रेम को उजागर करनेवाली फिल्म बनायी जो हिट रही!
फिर 'प्रेमरोग' (१९८२) जैसी सोशल फिल्म बनाते बनाते..अपने छोटे बेटे राजीव कपूर को नायक करनेवाली 'राम तेरी गंगा मैली' (१९८५) यह आखरी फिल्म राज कपूर ने बनायी...इसमें मंदाकिनी (मूल यास्मीन) ने वह किरदार बेहतरीन साकार किया था!
[ मुझे याद है 'आर के स्टुडिओ' में मेरा १९८९-९० के दरमियान जाना..जब आउटडोअर के साथ स्टुडिओज़ में भी कुछ शूटिंग्स होती थी...तब मैंने वहां 'आर के फिल्म्स' की कई निशानियाँ जगह जगह देखी...'आवारा' के स्वप्नदृश्य की हो; या 'बॉबी' की कोने में पडी मोटरसायकल हो!]
राज कपूरजी के निधन के बाद..उनकी फिल्म 'हीना' (१९९१) का निर्देशन उनके बड़े बेटे रणधीर कपूर ने किया...इसमें पाकिस्तानी अभिनेत्री झेबा बख़्तियार ने की शीर्षक भूमिका सराहनीय रही! फिर 'प्रेम ग्रंथ' (१९९६) राजीव कपूर ने निर्देशित की और 'आ अब लौट चले' (१९९९) ऋषि कपूर ने!
"कल खेल में हम हो न हो..गर्दिश में तारें रहेंगे सदा.." इस 'शोमन आर के' के गाने की ही तरह उनके बेटे 'आर के फिल्म्स' की धुरा आगे ले जा रहे थे...इस पीढ़ी के रणबीर कपूर भी इसे जुड़े!...तो अब 'आर के स्टुडिओ' का यह हादसा हुआ! आशा है की इससे उभर कर उनकी फिल्में फिर से निर्माण होती रहें!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
Monday 25 September 2017
दिलीप-देव-राज: अलग अंदाज़ की मशहूर त्रयी!!!
भारतीय सिनेमा के सुवर्णकाल की मशहूर त्रिमूर्ति..दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर!
पहला प्यार में सबकुछ खोनेवाला 'देवदास' (दिलीप कुमार) तो दूसरा 'प्रेम पुजारी' (देव आनंद) और तिसरा 'आवारा' प्रेमी (राज कपूर).
इनमें सिर्फ दिलीप कुमार अपनी खुद की मेथड एक्टिंग डेवलप करके भारतीय
सिनेमा के ट्रैजडी किंग बने!
बाकी देव आनंद ने फेमस अमेरिकन एक्टर ग्रेगोरी पैक की इमेज को अपनाया; तो राज कपूर ब्रिटिश एक्टर चार्ली चैपलिन के ट्रैम्प पर चले!
इन तिनों को मिलने का अवसर मुझे मिला..इसमें दिलीप कुमार और देव आनंद जी से लगातार हुई मुलाकातें सबसे यादगार रहीं! दोनों की इंग्लिश उच्च प्रती की; लेकिन लहेजा अलग! देवसाहब एकही दम में लम्बी लाईन अपने स्टाईल में बोलनेवाले; तो दिलीपसाहब बार बार पॉज लेकर बड़े बड़े शब्द इस्तिमाल करने वाले..इसमें भी उनकी खानदानी उर्दू सुनने की बात ही कुछ और! तहज़ीब तो कलाकार उनसे सीखे!
इसमें राज कपूर अपने ही धुंद में रहनेवाले 'सिर्फ कलाकार' ही थे, जिसमें उनकी परदे पर जो इमेज थी उससे वास्तव में अलग मुझे नजर आए! तो देवसाहब का जैसा अंदाज़ परदे पर था वैसा ही मस्तमौला आम जिंदगी में..घुलमिल कर दिल से बात करते थे!
युसूफसाहब (दिलीप कुमार) के दो बार जब मैंने एक्सक्लूजिव इंटरव्यू लिए, तब कलाकार और इंसान भी वह कितने बड़े है इसका मुझे अहसास हुआ!
तीस साल से भी ज्यादा मेरी सिने पत्रकारिता में..इन तीनों अभिनेताओं पर मैंने आज तक बहोत लिखा है!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
बाकी देव आनंद ने फेमस अमेरिकन एक्टर ग्रेगोरी पैक की इमेज को अपनाया; तो राज कपूर ब्रिटिश एक्टर चार्ली चैपलिन के ट्रैम्प पर चले!
इन तिनों को मिलने का अवसर मुझे मिला..इसमें दिलीप कुमार और देव आनंद जी से लगातार हुई मुलाकातें सबसे यादगार रहीं! दोनों की इंग्लिश उच्च प्रती की; लेकिन लहेजा अलग! देवसाहब एकही दम में लम्बी लाईन अपने स्टाईल में बोलनेवाले; तो दिलीपसाहब बार बार पॉज लेकर बड़े बड़े शब्द इस्तिमाल करने वाले..इसमें भी उनकी खानदानी उर्दू सुनने की बात ही कुछ और! तहज़ीब तो कलाकार उनसे सीखे!
इसमें राज कपूर अपने ही धुंद में रहनेवाले 'सिर्फ कलाकार' ही थे, जिसमें उनकी परदे पर जो इमेज थी उससे वास्तव में अलग मुझे नजर आए! तो देवसाहब का जैसा अंदाज़ परदे पर था वैसा ही मस्तमौला आम जिंदगी में..घुलमिल कर दिल से बात करते थे!
युसूफसाहब (दिलीप कुमार) के दो बार जब मैंने एक्सक्लूजिव इंटरव्यू लिए, तब कलाकार और इंसान भी वह कितने बड़े है इसका मुझे अहसास हुआ!
तीस साल से भी ज्यादा मेरी सिने पत्रकारिता में..इन तीनों अभिनेताओं पर मैंने आज तक बहोत लिखा है!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
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