Wednesday 27 September 2017

'आर के' की 'आग' पहली परदेवाली..और अब यह!



'आर के स्टुडिओ' की बड़ी दुर्घटना न्यूज़ में देखी और दुख हुआ..यह सोचकर की कई क्लासिक फिल्मों की निशानियाँ इसमें मिट गयी होंगी!..और उसी वक्त आँखों के सामने आने लगे 'आर के' की फिल्मों के सुमधूर संगीत से सजे रूमानी दृश्य...अपनी फिल्मों की ' म्यूजिकल रोमांटिसिज़्म यह पहचान राज कपूर ने 'आर के फिल्म्स' के सिम्बोल में बख़ूबी दर्शायी है...जो कि उनके प्रोडक्शन की पहली हिट 'बरसात' फ़िल्म के अभिजात दृश्य से प्रेरित था...जिसमें राज कपूर के एक हाथ में झूलती नर्गिस है और दूसरे हाथ में व्हायोलिन..याने की रोमान्स और म्यूजिक! 'आर के स्टुडिओ' के प्रवेशद्वार पर इसकी प्रतिकृती कायम रही!


१९४८ में राज कपूर ने अपने इस 'आर के स्टुडिओ' की स्थापना की और पहली फिल्म बनायी थी 'आग'..यह कुछ अज़ीब सा संजोग लगता है कि करीब सात दशकों के बाद अब स्टूडिओ सिस्टम के दिन ख़तम होने पर यह वास्तव में लगना!

ख़ैर वह पहली 'आग' परदे पर चली नहीं..इसमें कामिनी कौशल और नर्गिस के साथ राज कपूर ने थिएटर से लगाव होनेवाला अनोखा किरदार किया था! फिर उसने म्यूजिकल रोमांटिसिज्म के रास्ते चलकर १९४९ में अपनी अगली सफल फिल्म बनायी 'बरसात'...जिसमें राज कपूर- नर्गिस का उत्कट रूमानीपन परदेपर छा गया! इसी फिल्म से 'आर के' को संगीत के साथी मिले शंकर-जयकिशन जिनके संगीत में लता मंगेशकर ने गाए "मुझे किसीसे प्यार हो गया.." जैसे गाने लाजवाब रहें!


दरअसल 'इंडियन सिनेमा के चार्ली चॅप्लीन' यही पहचान थी अभिनेता राज कपूर की परदेपर..जिसे उसने अपनी फिल्म 'आवारा' (१९५१) में 'चार्ली ट्रैम्प' पर चलते कायम रखा! उसकी आवाज बने मुकेश ने गाया इसका शीर्षक गीत रूस तक गूँजता रहा और राज कपूर वहां फेमस हुए!


इसके बाद 'इटालियन निओ-रिअलिज्म' से प्रेरित 'आर के' की दो फिल्में बनी; लेकिन वह निर्देशित दूसरों ने की...जिसमें 'बूट पॉलिश' (१९५४) प्रकाश अरोरा ने और 'जागते रहो' (१९५६) शंभु मित्रा ने की थी! नर्गिस ने 'जागते रहो' के बाद 'आर के फिल्म्स' में काम नहीं किया!



१९६४ में 'आर के' की पहली रंगीन फिल्म बनी 'संगम' जो की मेहबूब खान की क्लासिक 'अंदाज़' (१९४९) का प्लॉट ले कर आयी और इसमें वैजयंतीमाला और राजेंद्र कुमार के साथ राज कपूर ने मूल भूमिका फिर से अदा की! इसके बाद नायक की तौर से उसकी 'मेरा नाम जोकर' (१९७०) असफल रहीं! फिर 'कल आज और कल' (१९७१) में वह पिता पृथ्वीराज कपूर और नायक बने बड़े बेटे रणधीर कपूर के साथ परदेपर आए!

१९७३ में राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर और खूबसूरत डिंपल कपाडिया को लेकर 'बॉबी' यह षोडश प्रेम को उजागर करनेवाली फिल्म बनायी जो हिट रही!

फिर 'प्रेमरोग' (१९८२) जैसी सोशल फिल्म बनाते बनाते..अपने छोटे बेटे राजीव कपूर को नायक करनेवाली 'राम तेरी गंगा मैली' (१९८५) यह आखरी फिल्म राज कपूर ने बनायी...इसमें मंदाकिनी (मूल यास्मीन) ने वह किरदार बेहतरीन साकार किया था!

[ मुझे याद है 'आर के स्टुडिओ' में मेरा १९८९-९० के दरमियान जाना..जब आउटडोअर के साथ स्टुडिओज़ में भी कुछ शूटिंग्स होती थी...तब मैंने वहां 'आर के फिल्म्स' की कई निशानियाँ जगह जगह देखी...'आवारा' के स्वप्नदृश्य की हो; या 'बॉबी' की कोने में पडी मोटरसायकल हो!]

राज कपूरजी के निधन के बाद..उनकी फिल्म 'हीना' (१९९१) का निर्देशन उनके बड़े बेटे रणधीर कपूर ने किया...इसमें पाकिस्तानी अभिनेत्री झेबा बख़्तियार ने की शीर्षक भूमिका सराहनीय रही! फिर 'प्रेम ग्रंथ' (१९९६) राजीव कपूर ने निर्देशित की और 'आ अब लौट चले' (१९९९) ऋषि कपूर ने!

"कल खेल में हम हो न हो..गर्दिश में तारें रहेंगे सदा.." इस 'शोमन आर के' के गाने की ही तरह उनके बेटे 'आर के फिल्म्स' की धुरा आगे ले जा रहे थे...इस पीढ़ी के रणबीर कपूर भी इसे जुड़े!...तो अब 'आर के स्टुडिओ' का यह हादसा हुआ! आशा है की इससे उभर कर उनकी फिल्में फिर से निर्माण होती रहें!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

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