Saturday 31 July 2021

रफ़ी-ए-हिन्दोस्ताँ!


मीठी आवाज़ के शहेनशाह थे वो
जहाँ-ए-तरन्नुम से पधारे थे वो!
फ़न के सही दीदावर थे वो
बहार-ए-मौसीक़ी बने थे वो!
वतन को नायाब तोहफ़ा थे वो
आवाज़ का कोहिनूर ही थे वो!
हमारे जज़्बातों से वाबस्ता थे वो
आसमाँ से आए फ़रिश्ता थे वो!

- मनोज 'मानस रूमानी'

 
सुरों के शहेनशाह और मीठी आवाज़ के मालिक हमारे अज़ीज़..मोहम्मद रफ़ी साहब को आज ४१ वे - स्मृतिदिन पर सुमनांजलि अर्पित करते हुए मैंने लिखा हैं।
 
- मनोज कुलकर्णी
 
प्रखर यथार्थवादी उर्दू/हिंदी लेखक मुंशी प्रेमचंद जी का आज १४१ वा जनमदिन!

कुछ साल पहले मैंने उनपर यहाँ विस्तृत लेख लिखा था।

ख़ैर, उनकी इस कला संबंधी टिप्पणी पर कलाओं में कार्यरत ग़ौर करें!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

"ये ज़िंदगी के मेले...
दुनिया में कम न होंगे
अफ़सोस हम न होंगे.."

सुरों के शहेनशाह..मीठी आवाज़ के मालिक.. हमारे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी साहब का आज ४१ वा स्मृतिदिन और हाल ही में अदाकारी- के शहेनशाह हमारे अज़ीज़ यूसुफ़ साहब.. दिलीपकुमार जी इस दुनिया से रुख़सत हुए।

इन दोनों को नम आँखों से याद करतें.!
सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

'पद्मश्री' मोहम्मद रफ़ी साहब!



मीठी आवाज़ के मालिक हमारे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी साहब को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया तब की ये दुर्लभ तस्वीरें..

(ऊपर) तब के
राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन जी से यह सम्मान प्राप्त करते वे और..
 
(दायीं तरफ) तब के उपराष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन जी के साथ वे!!

 
इनको सलाम!!!

- मनोज कुलकर्णी

"वो जब याद आये बहोत याद आये.."

मेरे सबसे पसंदीदा गायक और प्यारे इंसान..मोहम्मद रफ़ी साहब की आज ४१ वी पुण्यतिथी!

गाने की रिकॉर्डिंग में मोहम्मद रफ़ी साहब!
३१जुलाई,१९८० को वे इस जहाँ से जन्नत के लिए निकले!
उन्हें मिलना रह गया यह दुख!

अगर मिलते तो उन्ही के गाने से रोकता..
"अभी ना जाओ छोड़कर..
के दिल अभी भरा नहीं.!"

दिल तो ख़ैर कभी नहीं भरता!

दुखी मन से उन्हें मेरा विनम्रता पूर्वक शतशः प्रणाम!!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 30 July 2021

हार्दिक शुभकामनाएं!!



अपने भारतीय सिनेमा की ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ अभिनेत्री आदरणीय सुलोचना जी का आज ९३ वा जनमदिन!

अपने दो महानायकों की उनके प्रति आदरभावना व्यक्त करती ये तस्वीरें..

(हाल ही में रुख़सत हुए) अभिनय सम्राट दिलीपकुमार जी का परदेपर उनका चरणस्पर्श!

मेगास्टार अमिताभ बच्चन जी असल ज़िंदगी में उनके चरणस्पर्श करतें!

विनम्र अभिवादन!!

- मनोज कुलकर्णी
शायर फ़य्याज़ हाशमी जी!
 
"आज जाने की ज़िद ना करो..
यूँ ही पहलू में बैठे रहो.."

फ़रीदा ख़ानम जी की गायी यह ग़ज़ल सुन रहा था..
इसके शायर फ़य्याज़ हाशमी जी का जन्मशताब्दी साल अब हो गया हैं!

कलकत्ता में शायराना माहौल में जन्मे फ़य्याज़ हाश्मी ने स्कूली जीवन में ही अपनी पहली नज़्म लिखी "चमन में ग़ुंचा-ओ-गुल का तबस्सुम देखने वालों.."


१९४१ में उनका पहला गीत गाया था तलत महमूद ने..जिन्होंने उनका बाद में यह मशहूर किया "तस्वीर तेरी दिल मेरा बेहेला न सकेगी.."
'मलिका-ए-ग़ज़ल' फ़रीदा ख़ानम जी!

आगे 'ग्रामोफोन कंपनी ऑफ़ इंडिया' में (१९४३ से १९४८) वे गीत लिखने का काम कर रहे थे। तो इस कंपनी ने १९५१ में काम के सिलसिले में उनका तबादला लाहौर, पाकिस्तान में किया! वहीँ 'मलिका-ए-ग़ज़ल' फ़रीदा ख़ानम ने उनके नग़्मे गाएं।

१९५५ में उन्होंने फिल्मों के लिए गीत लिखना शुरू किया और पहले लिखे यहाँ भारत में बनी 'बारा-दरी' के! उसके बाद पाकिस्तान में उन्होंने उर्दू में बनी क़रीब १५ फ़िल्मों के गानें लिखें। जिसमें थी.. 'बेदारी' (१९५६) जिसे संगीत दिया था (मशहूर गायक नुसरत फ़तेह अली खां के वालिद) फ़तेह अली ख़ान जी ने!

 फ़य्याज़ हाश्मी जी ने लिखी फ़िल्म 'औलाद' का पोस्टर!
वे
फ़िल्म 'हम एक है' (१९६१) से निर्देशक और 'पहचान' से कथा-पटकथा-संवाद लेखक भी हुए। 'पाकिस्तानी फ़िल्म - इंडस्ट्री' के कुछ सम्मान भी उन्हें मिले।

अब लोग रूमानी होकर "आज जाने की ज़िद ना करो.." तो गुनगुनातें हैं लेकिन इसके शायर कौन यह उन्हें कहां मालुम होता हैं!

ऐसे में उन्ही की नज़्म याद आती हैं जिसे वहां १९६७ में 'बेस्ट लिरिसिस्ट' का 'निगार अवार्ड' मिला था..

"चलो अच्छा हुआ तुम भूल गएँ.."

उन्हें यह आदरांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 29 July 2021


थी उन्हें गाने की ख़्वाहिश भी
लेकिन बने सिर्फ़ गीतकार ही
लम्हा ऐसा भी आया कभी..
इनकी कलम फ़नकार ने ली
लेकिन ये न दिखा सके गायकी
क्योंकि सामने थी आवाज़-ए-रफ़ी

- मनोज 'मानस रूमानी'

 
मशहूर गीतकार आनंद बख्शी जी की तमन्ना थी कि वे गायक भी बने!
उन्हें जब हमारे मीठी आवाज़ के बादशाह.. मोहम्मद रफ़ी जी से गीत के बारे में चर्चा करते इसमें ऐसा देखा, तो मैंने ऊपर के मेरे अशआऱ लिखे!

- मनोज कुलकर्णी
गीतकार आनंद बख्शी जी और उर्दू शायर साहिर जी!
 
मिलते हैं जब दो किस्म के..
नग़्मानिगार और मौसिक़ार
गिले-शिक़वे नहीं, होती है..
शायरी-जाम की महफ़िल!

- मनोज 'मानस रूमानी'

 
गीतकार आनंद बख्शी जी कैसे बड़े दिल के शख्स थे इस की मिसाल देनेवाली ये तस्वीरें.!

गीतकार आनंद बख्शी जी और संगीतकार ख़य्याम जी

 
ज्यादातर उर्दू शायरों के नग़्मे संगीतबद्ध करनेवाले प्रतिभाशाली संगीतकार ख़य्याम साहब और उनके पसंदीदा साहिर जी के साथ बख्शी जी का यूँ घुलमिल जाना!

ग़ौरतलब की बॉलीवुड के पॉपुलर गीतकार होने के बावजुद बख्शी जी की कलम ख़य्याम जी की महफ़िल-ए-मौसीक़ी में यूँ शामिल न हो सकी!

इस में सिर्फ़ अलग किस्म के फ़िल्म, गीत-संगीत की जुड़ने की ही बात थी। वैसे ख़य्याम जी और साहिर जी अपने उसूलों के पक्के और लाजवाब शख्सियत थे!
 
यह सब सोचकर मैंने ऊपर के मेरे अशआऱ लिखें!

 
- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 28 July 2021

शोख़ और शालीन अदाकारा..कुमकुम!


मेहबूब ख़ान की फ़िल्म 'सन ऑफ़ इंडिया' (१९६२) के..
"..तुझे दिल ढूंढ रहा हैं.." गाने में कुमकुम!

अपने भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर की एक अभिनेत्री कुमकुम जी का आज पहला स्मृतिदिन!

'सी.आय.डी.' (१९५६) फ़िल्म में जॉनी वॉकर के साथ.
"ये हैं बम्बई मेरी जान.." गाने में कुमकुम!
 
उनकी ख़ासियत यह थी की..शोख़ और शालीन दोनों तरह की भूमिकाओं में वो माहिर थी। उनका असल में नाम था ज़ैबुन्निसा, जो हुसैनाबाद के नवाब परिवार से थी! १९५४ में उन्हें मशहूर फ़िल्मकार गुरुदत्त जी ने खोज लिया और अपने 'आर पार' के शीर्षक गीत में सादर किया।

उसके बाद शोख़ कुमकुम 'सी.आय.डी.' (१९५६) में.. जॉनी वॉकर के साथ "ये हैं बम्बई मेरी जान.." गाने में नज़र आयी। फिर अपने महान फ़िल्मकार मेहबूब - ख़ान की 'मदर इंडिया' (१९५७) में राजेंद्र कुमार के साथ "घुंगट नहीं खोलूंगी सैंया तेरे आगे." गाने में वो शालीन थी। और बाद में 'गंगा की लहरें' (१९६४) में नटखट - किशोर कुमार के साथ "छेड़ो ना मेरी ज़ुल्फ़ें सब लोग क्या कहेंगे.." गाने में भी।

'कोहिनूर' (१९६०) फ़िल्म के "मधुबन में राधिका नाचें रे.." 
इस गाने में दिलीप कुमार के सामने नृत्य करती कुमकुम!
 
 
 
कुमकुम अच्छी कत्थक - नृत्यांगना भी थी; जिस की बक़ायदा तालिम उन्होंने पंडित शंभु महाराज से ली थी। उनके ऐसी नृत्य की झलक फ़िल्म 'कोहिनूर' (१९६०) में "मधुबन में राधिका नाचें रे.." इस - नौशाद के संगीत में मोहम्मद रफ़ी जी ने गाये शास्त्रोक्त गीत में दिखायी दी। इस में सितार बजाते अपने अभिनय- सम्राट दिलीप कुमार के सामने उन्होंने अपने शास्त्रीय नृत्य का लाजवाब प्रदर्शन किया।

 
फ़िल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (१९६४) में धर्मेंद्र की नायिका कुमकुम!
'ही मैन' धर्मेंद्र की डेब्यू फ़िल्म अर्जुन हिंगोरानी की 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (१९६४) में - कुमकुम उसकी नायिका हुई। फिर संजीव कुमार की शुरू- आती 'राजा और रंक' (१९६८) में भी वो नायिका थी। 
लेकिन बाद में यह रहा नहीं! दरमियान (बिहार की होने की कारन) उन्होंने भोजपुरी - सिनेमा की तरफ भी अपना - रुख़ किया। वहां १९६३ में 'गंगा मैया तो हे पियरी चढ़ाई बो' और 'लागी नाही छूटे राम' में वो नायिका रही।

बाद में कुछ ही हिंदी फिल्मों में नायिका और फिर बहन के क़िरदार कुमकुम ने निभाएं। लगभग ११५ - फ़िल्मों में उन्होंने काम किया। लेकिन इस फ़िल्म इंडस्ट्री ने सम्मानों में उनकी दखल नहीं ली यह दुख की बात थी!

आज उन्हीका 'सन ऑफ़ इंडिया' का गाना याद आता हैं..
"..तुझे दिल ढूंढ रहा हैं.."

 उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 25 July 2021

शायर..साहिर लुधियानवी और फैज़ अहमद फैज़!

शायर..शकील बदायुनी.

शायर..मजरूह सुल्तानपुरी.

शायर..हसरत जयपुरी.


फैज़-साहिर-शैलेन्द्र जैसों का यथार्थ
शकील-मजरूह-हसरत-फ़राज़ की रूमानियत
शायरी हमारी है उनसे मुतासिर!

- मनोज 'मानस रूमानी'


(गुरुपूर्णिमा के दिन उन्हें याद करते!) 🙏


- मनोज कुलकर्णी


सिर्फ़ सिनेमा बसा था उनकी रूह-सांस में
ज़िंदगी भर वे उसी की हिफ़ाज़त करते रहे
रहनुमा थे वे हम सिनेमा के मुसाफ़िर के..
रहे उनके नक़्श-ए-क़दम इस पर लिखते!

- मनोज 'मानस रूमानी'

हर साल गुरुपूर्णिमा के दिन हम याद करते हमारे आदर्श फ़िल्म हिस्टॉरियन..आदरणीय पी. के. नायर साहब को! 🙏

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 22 July 2021


वे शहंशाह-ए-अदाकारी कहाँ..^
ये "ओये" जलवा कहाँ..?>
पहले महान कलाकार-इंसान..^
तो दूसरे उसमें कहाँ..?>

- मनोज 'मानस रूमानी'

(फ़िल्म पत्रकारिता के दौरान इन दोनों से- मेरी मुलाकातें हुई। हमारे अज़ीज़ ^ यूसुफ़- ख़ान दिलीपकुमार जी से मेरा अनुभव अच्छा रहा है। मैंने मेरे 'चित्रसृष्टी' विशेषांक के लिए जब उनका इंटरव्यू लिया था, तब बड़े प्यार से उन्होंने बात की थी। महान कलाकार और इंसान की वे मिसाल थे! लेकिन यहाँ दूसरे > छायाचित्र में जो कलाकार (जिनका मै नाम नहीं लेना चाहता) है..उनके साथ मेरा - अनुभव खेदजनक रहा! अब ये हमेशा ही कभी राजेश खन्ना जी तो कभी दिलीपकुमार जी पर कुछ भी टिपणियाँ करतें रहतें हैं, वह सुनकर बड़ा दुख होता है!)

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 15 July 2021

वो 'देवदास' अब नहीं!


'देवदास' (१९५५) फ़िल्म के सर्वोच्च शोकाकुल प्रसंग में अपने ट्रैजडी किंग दिलीपकुमार!


'देवदास' (२००२) में माधुरी दीक्षित, शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय!
'इंस्टाग्राम' पर १९ साल पहले इस मौसम में 'कांन्स फिल्म समारोह' में प्रीमियर हुए संजय लीला भंसाली के 'देवदास' का इवेंट फोटो देखा..जिसमें रेड कार्पेट पर भंसाली के साथ शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय दिखायी देते हैं।..ताज्जुब की बात और भी थी की यह फ़िल्म 'ऑस्कर' के लिए भी भेजी गयी थी!

दरसअल, वह फ़िल्म महज़ एक शानदार नज़राना था ख़ूबसूरती और ऊँची निर्मिती मूल्यों (रिच प्रोडक्शन वैल्यूज) का जिसमें शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के देवदास -पारो-चंद्रमुखी इन क़िरदारों की रूंह जैसे दब गयी थी..और रंगीन शान-ओ-शौक़त में मूल सादगी भी!

श्रेष्ठतम फ़िल्मकार बिमल रॉय जी!
बहरहाल, परसो अपने भारतीय - सिनेमा के
एक श्रेष्ठतम फ़िल्मकार बिमल रॉय जी का ११२  वा जनमदिन था; तब ही मुझे उन्होंने १९५५ में बनायी अभिजात देवदास' फ़िल्म याद आयी। मेरा यह पसंदीदा था, उसकी और भी एक वजह थी..अपने ट्रैजडी किंग दिलीपकुमार ने उसे साकार किया था..जो अब नहीं रहें!

ग़ौरतलब की, इससे पहले अपने एक आद्य फ़िल्मकार प्रमथेश बरुआ जी ने १९३५-३६ में दो 'देवदास' बनाएं थे, जिसके हिंदी फ़िल्म के लिए बिमल रॉय ने सिनेमैटोग्राफी की थी। बंगाली फ़िल्म में ख़ुद यह क़िरदार बरुआ ने साकार किया था, जिनके साथ उनकी पत्नि जमुना पारो हुई थी और चन्द्रबती बनी थी चंद्रमुखी! तो हिंदी फ़िल्म में अपने जानेमाने गायक-कलाकार कुंदनलाल सैगल जी ने उसे साकार किया, जिनके साथ जमुना जी ही पारो रही और चंद्रमुखी साकार की राजकुमारी ने!

बंगाली 'देवदास' (१९३५) में प्रमथेश बरुआ और जमुना!
हालांकि, तांत्रिकी दृष्टि से बरुआ जी की फ़िल्म आगे थी! उस में पहली बार उन्होंने पैरलल कटिंग टेक्निक का - इस्तेमाल किया, जिसके लिए उनके पास सुबोध मित्रा जैसे कुशल संकलक थे। एक तरफ़ ट्रेन से पारो को मिलने जाता देवदास और दूसरी तरफ़ पारो को उसका अहसास होना..ये दृश्यं उन्होंने बख़ूबी चित्रित किएं थे। उनका - बंगाली देवदास शरत बाबू की कहानी को सादगी से परदे पर सादर कर गया! तिमिर बरन, आर. सी. बोराल और पंकज मलिक ऐसे प्रतिभाशाली संगीत के लिए इसमें थे!

१९३६ के बरुआ निर्देशित हिंदी 'देवदास' के दृश्यों का - फ़िल्मांकन बिमलदा ने प्रभावी तरीक़े से किया था। उसमें एक तरफ़ पारो की शादी का दृश्य तो दूसरी तरफ़ देवदास का चंद्रमुखी के कोठेपर अस्वस्थ होना ऐसे दृश्यं विशिष्ट रूप से थे। इसमें प्रकृति का विचलित होना उन्होंने लिया! लेकिन यह देवदास मेलोड्रामा किंग सैगल के अधीन गया जिसमें वे अति करुण रस में गाएं। "बालम आये बसो - मोरे मन में.." जैसों को अब भी गुनगुनाया जाता हैं!
 
'देवदास' (१९३६) में राजकुमारी, सैगल और जमुना
 
फिर बिमल रॉय जब निर्माता-निर्देशक बने, तो उन्होंने अपनी - कलात्मक दृष्टि से और यथार्थवाद को लेकर १९५५ में हिंदी फ़िल्म 'देवदास' का निर्माण किया। उसके लिए नबेंदु घोष ने पटकथा लिखी और राजिंदर सिंह बेदी ने संवाद लिखें। साथ ही इन्डेप्थ शॉट्स लेने के लिए सिनेमैटोग्राफर कमल बोस थे! इसकी कास्टिंग अव्वल दर्जा की थी जिसमें..सुचित्रा सेन हुई पारो, वैजयंतीमाला बनी चंद्रमुखी, चुन्नीबाबू हुए थे मोतीलाल और देवदास के लिए अपने अभिनय सम्राट युसुफ़ ख़ान याने दिलीपकुमार!

 
बेहतरीन 'देवदास' (१९५५) फ़िल्म में वैजयंतीमाला, दिलीपकुमार और सुचित्रा सेन!
इस 'देवदास' के दृश्यं अब भी मेरे नज़रों के सामने हैं..
उस मे कलकत्ता से लौटे - देवदास की पारो से मुलाक़ात का कल्पकता से लिया दृश्य तो मेरा पसंदीदा..इस में दिलीप- कुमार और सुचित्रा सेन ने उत्कट प्रेमभाव स्वाभाविकता से दर्शाएं हैं। फ़िर देवदास को रिझाने के लिए चंद्रमुखी नाचती हैं, लेकिन उसका ध्यान उसकी तरफ़ नहीं जाता..वो मन ही मन पारो को याद करता रहता है।..इसमें डिप्रेस आदमी कैसे दिखेगा इसकी मिसाल दिलीपसाहब ने दिखाई। एस. डी. बर्मन के संगीत में लता मंगेशकर ने गाए "जिसे तू क़बूल कर ले.." गाने का वह प्रसंग, जिसमे वैजयंतीमाला ने भी अपनी नृत्यकुशलता के साथ अदाकारी की अनोखी मिसाल रखीं! और पारो के विरह के दुख में बेक़ाबू होकर शराब में लुप्त देवदास का "कौन कम्बख़्त हैं जो बर्दाश करने के लिए पिता हैं" कहना..इसमें तो दिलीपसाहब अपनी ट्रैजडी इमेज को चोटी पर ले गए। दिल को चीर के जाता हैं वह सीन!

हमारे अज़ीज़ दिलीपकुमारजी!
मेरे 'चित्रसृष्टी' के पहले विशेषांक के लिए मैंने दिलीप कुमार जी का - एक्सक्लुजिव्ह इंटरव्यू लिया था। उसमें अपने 'देवदास' पर और ट्रैजेडी इमेज पर वे मुझसे विस्तार से बोले..'अपना पॉज, ख़ामोशी से आँखों से बयां होना' ऐसी अभिनय की ख़ासियत उन्होंने बतायी!

तो असल में बिमलदा और यूसुफ़ साहब का रुंहवाला 'देवदास' था; जिसे 'फ़िल्मफ़ेअर' के साथ 'राष्ट्रीय सम्मान' भी प्राप्त हुआ!

भंसाली का 'देवदास' "डोला.." पर घुमा सकता हैं, लेकिन दिल को छू नहीं सकता!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 12 July 2021

'सिलसिला' (१९८१) फ़िल्म के रूमानी लम्हे में अमिताभ बच्चन और रेखा!

'मुक़द्दर का सिकंदर' (१९७८) में रेखा और अमिताभ बच्चन!
 

'दो अंजाने' मिले..छिड़ गया प्यार का 'आलाप'
"सलाम-ए-इश्क़.." कहे सिकंदर की हुई जोहरा
"तू ने मेरा दिल ले लिया.." कहते हुआ इज़हार
देखें दोनों ख़्वाब पर रुका प्यार का 'सिलसिला'


- मनोज 'मानस रूमानी'


'मिस्टर नटवरलाल' (१९७९) फ़िल्म में रेखा और अमिताभ बच्चन!

मेगा स्टार अमिताभ बच्चन और 'ख़ूबसूरत' रेखा..अपने भारतीय सिनेमा की मेरी एक - पसंदीदा जोड़ी! उनसे मेरी मुलाकातें हुई और उन पर ख़ूब लिखा भी! लगभग ५ सालों में - क़रीब १० फ़िल्मों में वे साथ आएं 'सिलसिला' (१९८१) तक, जिसे अब ४० साल पूरे हुएं।

इसलिए यह लिखा। 

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 11 July 2021

बिमल रॉय की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में सुचित्रा सेन के साथ दिलीप कुमार! 
कोहिनूर!


प्रेमिका का प्यार खोए हुए अंतर्मुख
तो कभी उसे पाने के लिए बग़ावत
महबूब के ऐसे मुख़्तलिफ़ किरदार
बख़ूबी निभातें वे हो गए अज़ीज़!


 

के. आसिफ की फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) में मलिका-ए-हुस्न
मधुबाला के साथ शहंशाह-ए-अदाकारी दिलीपकुमार!
 

किरदारों में डालतें अपनी जान
अदाकारी के वे हो गए आदर्श
साथ ही थे वे बेहतरीन इंसान
भारतीय सिनेमा के कोहिनूर!


- मनोज 'मानस रूमानी'


अपने पुरे हिन्दोस्ताँ के अदाकारी के शहंशाह यूसुफ़ ख़ान याने दिलीपकुमार साहब को तहे दिल से सलाम!

- मनोज कुलकर्णी

एक्सक्लूज़िव!

"बात कुछ बन ही गयी.."


किसी समारोह को जाने की तैयारी में..
वहीदा रहमान और गुरुदत्त!

ये दुर्लभ तस्वीरें दर्शाती हैं की मशहूर अभिनेता-फ़िल्मकार गुरुदत्त कितना ख़याल ऱखते थे 'अपनी' अभिनेत्री वहीदा रहमान का!

'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) फ़िल्म के चित्रिकरण दरमियान गुरुदत्त और वहीदा रहमान!
वहीदा रहमान उनकी फ़िल्मों में काम करते समय हो, या वो बाहर कैसी निकले यह देखना हो..गुरुदत्त की ख़ास निगरानी में होता था यह!

फ़िल्मकार और उसकी चहेती अभिनेत्री के बीच का प्यार था यह।..बस कुछ ज़्यादा ख़ास!

ऐसा कई क्रिएटिव्ह फ़ील्ड्स में होता रहता हैं। इसमें किसी की गलती नहीं होती।

'प्यासा' (१९५७) फ़िल्म के उत्कट प्रेमदृश्य में..
वहीदा रहमान और गुरुदत्त!

 
 
प्यार क़िससे कब हो जाए कह नहीं सकतें। इस में भी प्यार क़िस से करते हैं (वो जायज़ हैं या नहीं) और करे या न करे..यह सोचना किसी के बस में नहीं होता!

प्यार के जज़्बे पर किसीका इख़्तियार नहीं रहता। और..
दिल इस में सुनता कहाँ हैं?

तो किसको दोष दें?..नासमझ इश्क़ को!

 
- मनोज कुलकर्णी