अपने भारत देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का अभिनंदन और शुभकामनाएं!!
- मनोज कुलकर्णी
मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
ग़ज़ल गायक भूपिंदर सिंह जी! |
"करोगे याद तो, हर बात याद आयेगी..
गुज़रते वक़्त की हर मौज ठहर जायेगी.."
यह ग़ज़ल लिखनेवाले शायर बशर नवाज़ जी का स्मृतिदिन हाल ही में था..
..और 'बाज़ार' (१९८२) फ़िल्म के लिए यह गानेवाले भूपिंदर सिंह जी परसों इस जहाँ से रुख़सत हुए!
संगीत के अपने शुरूआती दौर में 'आकाशवाणी' तथा 'दूरदर्शन' के लिए वे गिटार बजाया करते थे। दिल्ली में एक समारोह में मशहूर संगीतकार मदन मोहन जी ने उन्हें सुना और फिर चेतन आनंद जी की फ़िल्म 'हक़ीकत' (१९६४) में गाने का मौका दिया। इस में "होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा.." यह कैफ़ी - आज़मी जी का नग़्मा उन्होंने मोहम्मद रफ़ी, तलत मेहमूद और मन्ना डे जैसे मंजे हुए गायकों के साथ गाया।
इसके बाद संगीतकार ख़य्याम जी ने उनसे चेतन साहब की ही 'आख़री ख़त' (१९६६) का कैफ़ी जी का ही गीत "रुत जवान, जवान रात, मेहरबान छेड़ो कोई दास्तान.." गवाया। यह आगे सुपरस्टार हुए राजेश - खन्ना जी की डेब्यू फ़िल्म थी! (इत्तिफ़ाक़ ऐसा की कल उनका स्मृतिदिन था।)
फिर पंचम याने संगीतकार आर. डी. बर्मन ने भूपिंदर जी से अपनी कई फ़िल्मों में गिटार बजवाया। जैसे की नासिर हुसैन की 'यादों की बारात' (१९७३) का ज़ीनत अमान पर फ़िल्माया "चुरा लिया है तुमने जो - दिल को.." और लीजेंडरी फ़िल्म 'शोले' (१९७५) का हिट "मेहबूबा ओ मेहबूबा.."
भूपिंदर सिंह जी गाते हुए! |
दरमियान गुलज़ार जी की कुछ फ़िल्मों में उन्होंने बेहतरीन गीत गाएं। जैसे की 'परिचय' (१९७२) का पंचम जी ने संगीतबद्ध किया "बीती ना बिताई रैना.." और 'मौसम' (१९७५) का मदन मोहन जी ने संगीतबद्ध किया "दिल ढूंढ़ता है..!" संवेदशील अभिनेता - संजीव कुमार जी को भूपिंदर जी की आवाज़ अच्छी जची!
बाकी भी कुछ समकालिन और कलात्मक फ़िल्मों के लिए उन्होंने गाएं गीत यादगार रहें। जैसे की 'घरौंदा' (१९७७) का जयदेव जी ने संगीतबद्ध किया "एक अकेला इस शहर में.." और 'ऐतबार' (१९८५) का बप्पी - लाहिड़ी ने सगीतबद्ध किया "किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है.."
बाद में भूपिंदर जी ने ग़ज़ल गायकी की तरफ ही ध्यान दिया। इसमें उन्होंने पत्नी मिताली सिंह के साथ गाएं गीतों के 'आरज़ू', 'चांदनी रात', 'गुलमोहर' और 'ग़ज़ल के फूल' जैसे एलबम्स प्रसिद्ध हुएं।
आखिर फ़िल्म 'किनारा' (१९७७) का उन्होंने गाया गीत उनके लिए भी याद आता हैं। जैसे वे कह रहें हैं..
"नाम गुम जाएगा..चेहरा ये बदल जायेगा..
मेरी आवाज़ ही पहचान है..गर याद रहे..!"
उन्हें सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
"बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ