Wednesday 13 July 2022

"बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो दान हरी गुन गाऊँ..s
सब गुनी जन पे तुमरा राज..
मन तड़पत हरि दर्शन को आज!"

आज गुरुपूर्णिमा के दिन यह गीत फिर से याद आया..
इसे लिखा था शकिल बदायुनी जी ने और नौशाद जी के संगीत में इसे तन्मयता से गाया था मोहम्मद रफी जी ने..

'बैजू बावरा' (१९५२) इस विजय भट्ट जी की संगीत आराधना पर अलौकिक फिल्म में इसे सादर किया था भारत भूषण जी ने, जिन्होंने इससे कामयाबी हासिल की!

सत्तर वर्षं हुएं इसे, लेकिन अब भी गुरु के प्रति आत्मीय भावना व्यक्त करने को यही मन में आता हैं!

- मनोज कुलकर्णी

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