Tuesday 29 June 2021

ट्रैजडी इमेज से 'आज़ाद'!


'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के "कितना हसीन है मौसम.."
गाने में मीना कुमारी और दिलीप कुमार!
 
"आय वॉज टायर्ड बाय डूइंग ट्रैजडी!..सो आय स्टार्टेड डूइंग लाइटर रोल्स अल्सो!"
अपने भारतीय सिनेमा के अदाकारी के शहंशाह युसूफ ख़ान याने दिलीप कुमार जी ने मेरी 'चित्रसृष्टी' के लिए मुझे एक्सक्लुजिव्ह इंटरव्यू देते हुए बताया था।

'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के पोस्टर पर
दिलीप कुमार, प्राण और मीना कुमारी!
जाहिर सी बात थी 'मेला' (१९४८), 'दीदार' (१९५१), 'दाग', 'संगदिल' (१९५२) और..चोटी का 'देवदास' (१९५५) ऐसी लगातार शोकग्रस्त नायक की फ़िल्में वे करते गए। इससे उनकी 'ट्रैजडी किंग' इमेज बनी और इस का असर किरदार को पूरी तरह अपनाने वाले इस मेथड एक्टर पर होने लगा। फिर उन्हें डॉक्टर ने इस तरह के रोल्स ज़्यादा न करने की सलाह दी!

इसीलिए 'देवदास' के तुरंत बाद १९५५ में दिलीप कुमार जी ने एक्शन-कॉमेडी की तरफ रुख़ किया। नतीजन साऊथ के - 'पक्षिराजा स्टूडियोज' की 'आज़ाद' इस फ़िल्म में वो एकदम अलग अंदाज़ में नज़र आए। इससे और एक ऐसा ही बदलाव सामने आया, वह था मीना कुमारी जी इसमें उनकी नायिका हुई। जैसे उन्होंने भी अपनी 'ट्रैजडी क्वीन' इमेज से छुटकारा चाहा! दोनों पहले फ़िल्म 'फुटपाथ' (१९५३) में बड़े संजीदा थे। बाद में इन दोनों ने 'कोहिनूर' (१९६०) में भी ऐसे किरदार साथ निभाएं।

'आज़ाद' (१९५५) फ़िल्म के रूमानी प्रसंग में दिलीप कुमार और मीना कुमारी!
बहरहाल, इस 'आज़ाद' फ़िल्म के संगीत की भी एक कहानी है। इसके निर्माता-निर्देशक एस. एम्. श्रीरामुलु नायडू को यह फ़िल्म जल्दी कंप्लीट करनी थी। तो संगीत के लिए जब वे नौशाद जी के पास गए, तब एक हफ्ते में गानें तैयार करने के लिए इन्होने उनको कहा। यह सुनकर नौशाद जी ने मना किया, क्योंकि ऐसी जल्दबाजी में उनके दर्जे का संगीत होता नहीं था। बाद में नायडू जी संगीतकार सी. रामचंद्र जी के पास गए और आख़िर में एक महीने के अंदर उन्होंने इसके नौ गाने रिकॉर्ड किएं।

संगीतकार-गायक सी. रामचंद्र जी!
इस 'आज़ाद' के गीत लिखें थे राजेंद्र कृष्ण जी ने, जो सारे लता मंगेशकर जी ने लाजवाब गाएं। इसमें "देखो जी बहार आयी.." और "ना बोले ना बोले.." जैसे सोलो थे और उषा मंगेशकर जी के साथ उन्होंने गाया "अपलम चपलम.." यह हिट! इस फ़िल्म में एक डुएट था "कितना हसीन है मौसम.." जिसे उनके साथ तलत महमूद को गाना था; लेकिन उनके वालिद की तबियत बिगड़ जाने पर वे अचानक लखनऊ चले गए। वो दौर ऐसा था की दिलीप कुमार के लिए तलत जी और रफ़ी साहब ही गातें थे। तब समय की कमी के कारन संगीतकार सी. रामचंद्र जी ने खुद (चितलकर नाम से) वो गाना लता जी के साथ गाया। वह इतना तलत जी के अंदाज़ में था की दिलीप कुमार जी को भी सुनके ताज्जुब हुआ!

ख़ैर, इस 'आज़ाद' की बदौलत यूसुफ़ साहब को ट्रैजडी से कुछ तो राहत मिली!!

- मनोज कुलकर्णी

इनको कहते है संस्कारक्षम श्रेष्ठ कलाकार.!!



मेरे सबसे प्रिय गायक मोहम्मद रफीसाहब..इन्सान भी कितने बड़े थे इसकी कई मिसालें है..उसमें से यह एक उनकी तहज़ीब दिखानेवाली!

गायिका आशा भोसलेजी को नमश्कार करने के लिए अपने बेटे हमीद को कहनेवाले आदर्श रफीसाहब यहाँ दिख रहे है.!

(दूसरों की श्रद्धा की कुछ परवाह न करके 'आवाज की तकलीफ़' के नख़रे करनेवाले आजके कुछ बनचुके गायक-कलाकारों ने इससे पाठ लेना चाहिए!)

रफीसाहब को शतशः प्रणाम.!!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 27 June 2021

'छोटे नवाब'..मेहमूद और पंचम!


लोकप्रिय संगीतकार पंचम (आर.डी.बर्मन) और कॉमेडी किंग मेहमूद चर्चा करतें!

अपने मदहोश संगीत से फ़िल्मी दुनिया को रिझाने वाले पंचमदा..आर. डी. बर्मन जी का आज ८२ वा - जनमदिन! उनके इंडिपेंडेंट फ़िल्म कैरियर को अब ६० साल पुरे हुएं, जो शुरू हुआ था अपने कॉमेडी किंग मेहमूद की बदौलत.. उन्होंने १९६१ में बनाई फ़िल्म 'छोटे नवाब' से!

'छोटे नवाब' (१९६१) फ़िल्म के क्लब डांस सॉन्ग में मेहमूद और हेलन!
हालांकि, १९५९ में गुरुदत्त के असिस्टेंट रहे निरंजन जी ने 'राज़' नाम की फ़िल्म स्वतंत्र शुरू की थी, जिसका संगीत करने का मौका पंचम को मिला। शैलेन्द्र जी ने लिखें इसके दो गानें गीता दत्त और आशा भोसले की आवाज़ में उन्होंने रिकॉर्ड भी किए थे; लेकिन यह फ़िल्म पूरी नहीं हुई!

बहरहाल १९६१ में मेहमूद ने फ़िल्म प्रोडक्शन का जब सोचा तब इस 'छोटे नवाब' का संगीत देने के लिए दिग्गज संगीतकार एस.डी. बर्मन को पूछा। लेकिन बर्मनदा ने उसे गंभीरता से न लेते नकारा! तब उनके पास तबला बजा रहें बेटे पंचम को इस भाईजान ने चुना! और.. 'संगीतकार आर. डी. बर्मन' नाम उभर आया।

जाहिर है मेहमूद ही इस फ़िल्म के हीरो थे। उनके साथ अमीता, हेलन और अपने सिनेमा के और एक विनोदवीर जॉनी वॉकर भी थें। शैलेन्द्रजी ने ही इस फ़िल्म के गानें लिखें थें, जिसमें लता मंगेशकर जी ने गाया "घर आजा घिर आए बदरा.." यह पूरा क्लासिकल था। तो दूसरी तरफ उन्होंने मोहम्मद रफ़ी जी के साथ गाया "मतवाली आँखों वाले.." यह क्लब सॉन्ग था जिसपर पूरी तरह पंचम की छाप थी और इसपर मेहमूद और हेलन कमाल के नाचें थें।

'भूत बंगला' (१९६५) फ़िल्म में पंचम (आर.डी.) और मेहमूद!
इसके बाद पंचम और मेहमूद दोस्त ही बनें। फिर भाईजान की अगली फ़िल्म 'भूत बंगला' (१९६५) में तो पंचम उस के साथ परदे पर भी आए और उन्होंने अपना किरदार बख़ूबी निभाया।

वैसे ये दोनों अपने सिनेमा के संगीत-कला के अवलिया थे!

- मनोज कुलकर्णी
लोकप्रिय संगीतकार पंचम याने आर. डी. बर्मन!
"कुछ ना कहो कुछ भी ना कहो
क्या कहेना हैं , क्या सुनना हैं..
मुझको पता हैं तुमको पता हैं."

पंचम याने संगीतकार आर. डी. बर्मन ने कंपोज़ की हुई आखरी रोमैंटिक ट्यून पर जावेद अख़्तर जी ने यह लिखा जिसमें प्रेमियों की दिल की बातें सरलता से कहीं गयी।


'१९४२ ए लव स्टोरी' (१९९४) फ़िल्म के "कुछ ना कहो.."
गाने में रूमानी हुएं..मनीषा कोइराला और अनिल कपूर!
पच्चीस से ज़्यादा साल हुए '१९४२ ए लव स्टोरी' (१९९४) इस विधु विनोद चोपड़ा की फ़िल्म का यह गाना उसी रूमानी ढंग में कुमार सानु ने गाया।

परदे पर अनिल कपूर और हसीन मनीषा कोइराला ने इसे बड़ी उत्कटता से साकार किया! इस का खूबसूरत फिल्मांकन सिनेमैटोग्राफर बिनोद प्रधान ने किया!

मेरा यह पसंदीदा गाना आज पंचम जी के ८२ वे जनमदिन पर याद आया!

उन्हें सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी

Saturday 26 June 2021

मेरे दो अज़ीज़ शायर..
साहिर लुधियानवी और मजरूह सुलतानपुरी!

साथ बैठें हुए उनकी यह दुर्लभ तस्वीर कुछ बयां करती हैं!

साहिर साहब यथार्थवाद की तरफ थे और मजरूह साहब का मिज़ाज ज़्यादातर रूमानी था!

दोनों को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी
"तेरे लिए हम हैं जिए..होठों को सिये.."

मदन मोहन जी इस दुनिया से रुख़सत होने के क़रीब ३० साल बाद उनकी धुन पर गुँजा यह गाना..इस बात की गवाही देता हैं की उनका संगीत कितना समय से आगे था!

यश चोपड़ा जी की 'राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित फ़िल्म 'वीर ज़ारा' (२००४) के लिए..जावेद अख़्तर जी ने यह लिखा था।..और रूप कुमार राठोड़ ने लता मंगेशकर जी के साथ इसे गाया था।

परदे पर शाहरुख़ खान और प्रीति ज़िंटा ने यह बेहतरिन साकार किया।..जो दिल को छू गया!

- मनोज कुलकर्णी

Friday 25 June 2021

मेरा साया साथ होगा..!


संगीत और उसे साकार करने के बारे में मदन मोहन और साधना की विचारविमर्श की दुर्लभ तर्स्वीर!

ग़ज़ल में माहिर मौसीकार मदन मोहन साहब का आज ९७ वा जनमदिन!

'वह कौन थी?' फ़िल्म के "लग जा गले.." गाने में साधना!
 
१९६४ और १९६६ ये दो साल उनकी म्यूजिक कैरियर में बहुत कामयाब रहें, जिनमे उनकी पांच-पांच फिल्में हिट रहीं।

इन दोनों सालों में, 'फ़िल्म नॉयर' जॉनर में माहिर राज खोसला जी (जिनपर मैंने काफी लिखा) इनकी बेहतरीन फिल्मों को मदन- मोहन जी ने संगीतबद्ध किया। इन में एक 
थी "वह कौन थी?' (१९६४) और दूसरी थी 'मेरा साया' (१९६६).

 
'मेरा साया' (१९६६) फ़िल्म के "तू जहाँ जहाँ चलेगा.." गाने में साधना!
 
इन दोनों के नग़्मानिगार थे राजा मेहदी अली ख़ान जी और उनके गानों को अपनी सुरीली आवाज़ में गाया था लता मंगेशकर जी ने!

इन दोनों में खूबसूरत साधना जी दोहरी भूमिकाओं में थी और अपनी लाजवाब अदाकारी से परदे पर छा गयी। इन में 
"वह कौन थी?' (१९६४) का "लग जा..
गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो.." 
और 'मेरा साया' (१९६६) का "तू जहाँ 
जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा.." 
गीतों के उनके शाहकार यादगार रहें!

लाजवाब संगीत और अदाकारी की यह याद!!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 24 June 2021


आज संत कबीर दास जी की जयंती पर उन्हें नमन करके मैंने ये दोहें लिखें हैं..

पैसा, शोहरत के पीछे भागती यह दुनियाँ
इंसान, प्यार भूलती जा रही है यह दुनियाँ


- मनोज 'मानस रूमानी'

दीवानगी यहाँ ख़ूबसूरती की जिसे है कुछ ही उम्र
अहमियत नहीं यहाँ हुनर की जो की रहेगा ताउम्र


- मनोज 'मानस रूमानी'

पोस्ट्स लाइक्स की अजब दुनिया!


पिछले कुछ साल मुझे फेसबुक पर लोगों की ऐसी ही जनरल पोस्ट्स और उस पर पड़तें ढ़ेर सारे लाइक्स देख कर बड़ा ताज्जुब हो रहा था!

जैसे की टाइम पास करने के लिए किसीने कुछ भी लिखा हो, अपनी आम चीजों को (वो 'किस' की है इस पर निर्भऱ) पोस्ट किया हो, किसी पर व्यंग हो, जोक्स हो! 

वहाँ कुछ फनी मिडिया वालाज इंतज़ार में रहतें किसी खूबसूरत की तस्वीर कब दिखे और कब हम तुरंत उस पर बदाम लाइक डाले! उनकी मामुली पोस्टपर भी!

हालांकि, मैं स्क्रोल करके (मेरे नज़दीकीयों के अलावा) किसीकी पोस्ट्स इतना देखता भी नहीं। और जिनकी नहीं देखनी, उनको अनफॉलो भी किया हैं! वैसे इतना वक़्त भी नहीं; क्योंकी मैं सिर्फ़ अपने (सिनेमा और कला आदी) विषयों पर लिखने में मसरूफ़ रहता हूँ।

बहरहाल, यह मेरे पोस्ट्स पर लाइक्स की अपेक्षा से जुड़ा हरगिज़ नहीं। इसकी परवाह मैंने कभी नहीं की। मै बस अपना लिख़ कर आगे जाता हूँ! उस पर मुझे हमारें विषयों के दर्दी और स्नेहीजनों की राय/सराहना (ग्रुप्स और ब्लॉग्स ज़रिये) मिलती रहती हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 21 June 2021


'गूँज उठी शहनाई' (१९५९) के "तेरे सुर और मेरे गीत" गाने में अमीता और राजेंद्र कुमार!


गायिका लता मंगेशकर!
"तेरे सुर और मेरे गीत..
दोनो मिल कर बनेगी प्रीत"

एक अनोखे संगम का यह गीत गाया हैं स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने और उनके साथ शहनाई बजी है उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान जी की

भरत व्यास जी की यह रचना संगीतबद्ध की थी वसंत देसाई जी ने विजय भट्ट जी की क्लासिक फिल्म 'गूँज उठी शहनाई' (१९५९) के लिए। 
 
शहनाई नवाज़ बिस्मिल्लाह ख़ान!
परदे पर इसे भावोत्कटता से साकार किया था राजेंद्र कुमार और शोख़ ख़ूबसूरत अमीता ने।

इस म्यूजिकल हिट को 'फ़िल्मफेयर' अवार्ड मिला और इसी फ़िल्म से राजेंद्र कुमार ज्युबिली स्टार हुए।
 
संगीतकार वसंत देसाई!
संजोग की बात यह लता मंगेशकर जी और बिस्मिल्लाह ख़ान जी को एक ही साल साथ में अपने राष्ट्र के सर्वोच्च 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया था।..और इसमें खांसाहब के शहनाई के सूर और लताजी की आवाज़ का अनोख़ा संगम हैं।

आज के 'विश्व संगीत दिन' पर ऐसी मौसीक़ी सुनना अपने कानों को एक ख़ास दावत जैसा ही हैं!

- मनोज कुलकर्णी

फ़िल्मी हस्तियों का योगा जागृति में योगदान!


बॉलीवुड स्टार शिल्पा शेट्टी योगा करती हुई!

'ख़ूबसूरत' अदाकारा रेखा जी मैडिटेशन करती हुई!

सबसे पहले १९८० के दशक में अपनी ख़ूबसूरत अदाकारा रेखा जी ने योगा और मैडिटेशन को अपने भारत में पॉपुलर किया। इसकी बदौलत आज भी वो अपना फिटनेस और चार्म संभाली हुई है।

उनके बाद अपनी बॉलीवुड स्टार शिल्पा शेट्टी ने योगा की जागृति में बड़ा काम करके उसे विश्व स्तर पर पेश किया।


अब कुछ साल ही शुरू हुए इस 'अंतरराष्ट्रीय योग दिन' पर आप यह नज़रअंदाज़ नहीं कर सकतें!

 - मनोज कुलकर्णी



लोकप्रिय अभिनेत्री एवं निर्देशिका मृणाल कुलकर्णी जी को पचासवीं सालगिरह की मुबारक़बाद!


 
- मनोज कुलकर्णी

Saturday 19 June 2021

ज़ीरो से हीरो की मिसाल!


बुजुर्ग कलाकार चंद्रशेखर जी (वैद्य).

"चा-चा-चा..."
 १९५० के दशक में मशहूर हुए इस क्यूबन डांस की क्रेज आज भी बरक़रार हैं यह इंस्टाग्राम पर कलाकार उसपर अपने पोस्ट करतें वीडियो से पता चलता हैं। इस डांसपर कृष्णा शाह की फ़िल्म 'शालीमार' (१९७८) में "वन टू चा-चा-चा.." यह उषा उथुप ने गाया गाना हिट हुआ था। 

'चा-चा-चा' (१९६४) फ़िल्म में हेलन और चंद्रशेखर!
लेकिन पहली बार १९६४ में चंद्रशेखर जी ने 'चा-चा-चा' नाम से फ़िल्म बनाई थी। एक तप की शिद्दत के बाद ज़ीरो से हीरो तक पहुँचे इस कलाकार ने यह फ़िल्म ऐसी ही कहानी खुद लिखकर निर्देशित की
थी

अब बचे हुए बुजुर्ग कलाकारों में से वे (चंद्रशेखर वैद्य) गुज़र जाने के बाद यह याद आया।

१९९५ में बम्बई में 'सिनेमा के सौ साल' के हुए बड़े जश्न में मेरी उनसे और कई पुरानी फ़िल्मी हस्तियों से मुलाकातें हुई। उस पर मैंने तब 'रसरंग' जैसे नियतकालिकाओं में और २००० के बाद मेरे 'चित्रसृष्टी' में भी लिखा!

हैदराबाद से बम्बई-पुणे आकर फ़िल्म स्टुडिओज में चंद्रशेखर ने काम के लिए जद्दो जहद की। १९४८ में 'बेबस' ऐसी नाम की ही फ़िल्म से उन्होंने जूनियर आर्टिस्ट के काम शुरू किए। फिर १९५४ में मूल मराठी फ़िल्म की हिंदी रीमेक बनी थी 'औरत तेरी यही कहानी' जिसमे हमारी सुलोचना जी और भारत भूषण प्रमुख थे, उसमे पहली बार उन्हें कलाकार के तौर पर किरदार दिया गया।

'काली टोपी लाल रूमाल' (१९५९) में चंद्रशेखर और शकीला 
"लागी छूटे ना अब तो सनम.." गाने में!
इसी दरमियान अपने बड़े - फ़िल्मकार व्ही.शांताराम जी ने अपनी 'सुराग' में शीला रमानी के साथ चंद्रशेखर को नायक बनाया। उन जैसे जानेमाने फिल्मकारों की चित्रकृतियों में काम करके कलाकारों ने नाम कमाने की कई मिसालें हैं! यहाँ तक की जितेंद्र भी शांताराम- बापू की फ़िल्म 'गीत गाया- पथ्थरों ने' (१९६४) से परदेपर आ कर आगे स्टार हुए।

बहरहाल, चंद्रशेखर बाद में पांच साल सहायक अभिनेता के किरदार करतें रहें। इसमें अजित-गीता बाली की 'बारादरी' (१९५५) थी! फिर तारा हरीश की फ़िल्म 'काली टोपी लाल रूमाल' (१९५९) में शकीला के साथ असरदार नायक के तौर पर वे सामने आएं। इस में मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का इन दोनों पर फ़िल्माया "लागी छूटे ना अब तो सनम.." भावोत्कट रहा!

'चा-चा-चा' (१९६४) के "एक चमेली के मंडवे तले.." गाने में हेलन और चंद्रशेखर!
फ़िल्म इंडस्ट्री में लगातार - शिद्दत से काम करतें १९६४ में चंद्रशेखर 'चा-चा-चा' फ़िल्म से लेखक-निर्देशक बने। इस की स्टोरी डिमांड ऐसी थी की हेलन नायिका हुई! इस में
वे डांस फ्लोअर पर भी कमाल के नाचे। लेकिन इसके आलावा कहानी का जो संजीदापन था, उसके लिए हैदराबाद के ही जानेमाने शायर मख़दूम मोहिउद्दीन जी की कविता 'चारा गर' का सहारा लिया गया था! इस का उनका इक़बाल कुरैशी जी के संगीत में मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया "दो बदन प्यार की आग़ में जल गएँ..एक चमेली के मंडवे तले.." लाजवाब रहा।..और उसी माहौल में नज़ाकत से हेलन का चंद्रशेखर के साथ वो साकार करना भी!

१९६६ में फिर से उन्होंने 'स्ट्रीट सिंगर' इस दूसरी फ़िल्म का निर्माण किया। १९३८ में इसी नाम की सैगल की फ़िल्म मशहूर हुई थी। ख़ैर, १९६८ के बाद चंद्रशेखर जी का नायक की तौर पर असर इतना नहीं रहा। ग़ौरतलब की, फ़िल्मकार से असिस्टेंट डायरेक्टर भी वे हुए और 'परिचय' (१९७२) से 'मौसम' (१९७५) तक उन्होंने गुलज़ार जी के साथ काम किया!

दूरदर्शन धारावाहिक 'रामायण' में चंद्रशेखर जी!
इसी दरमियान सहायक अभिनेता के तौर पर वे परदे पर आते रहे। उसमें सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ 'कटी पतंग (१९७१) से 'मेहबूबा' (१९७६) जैसी फ़िल्में थी। जानी राज कुमार के 'कर्मयोगी' (१९७८) में वे थे और बी. आर. चोपड़ा की सोशल 'निकाह' (१९८२) में भी! बाद में तो 'खतरों के - खिलाडी' (१९८८) जैसी देमार फिल्मों में वे नज़र आएं। दरमियान रामानंद सागर
जी की दूरदर्शन धारावाहिक 'रामायण' (१९८७ -८८) में आर्य सुमंत की व्यक्तिरेखा उन्होंने निभाई!

इसके अलावा चंद्रशेखर जी ने एक अहम काम किया 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' की स्थापना करके! इस 'सिंटा' के वे १९८५ से १९९६ तक अध्यक्ष रहें! फ़िल्म इंडस्ट्री से जुडी बाकी भी संघटनाओं के ज़रिये उन्होंने इसके एम्प्लॉईज वेलफेयर का दखल पात्र काम किया!

उनको मेरी यह आदरांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 16 June 2021

गायक-संगीतकार हेमंत कुमार जी!

"जाने वो कैसे लोग थे जिनके
प्यार को प्यार मिला.."


अंतर्मुखी प्रेमी की मुलायम आवाज़ रहें हेमंत कुमार जी के १०१ वे जनमदिन पर आज मुझे उनका यह गाना याद आया.. 

साहिर जी की कलम से और एस. डी. बर्मन जी के संगीत में आया यह गाना..'प्यासा' (१९५७) इस मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्म में संवेदनशील फ़िल्मकार-अभिनेता गुरुदत्त ने हृदयस्पर्शी साकार किया था। 

मेरे दिल के हमेशा क़रीब रही हैं यह फ़िल्म और इसकी शायरी..

'प्यासा' (१९५७) के उस गानेमें फ़िल्मकार-अभिनेता गुरुदत्त
 

"बिछड़ गया हर साथी देकर
पल दो पल का साथ..
किसको फ़ुरसत है जो थामे
दीवानों का हाथ..
हमको अपना साया तक
अक़सर बेज़ार मिला.!"

ख़ैर, उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

"ये इश्क इश्क है इश्क इश्क.."

'बरसात की रात' (१९६०) फ़िल्म में भारत भूषण और..'मलिका-ए-हुस्न' मधुबाला!

अपने भारतीय सिनेमा के सुनहरे काल के जानेमाने अभिनेता भारत भूषण जी का १०१ वा जनमदिन हाल ही में हुआ!..और उनकी अभिजात फ़िल्म 'बरसात की रात' को ६० वर्षं पूरे हुएं! उसकी यह मशहूर क़व्वाली!

साहिर लुधियानवी जी के रूमानी अल्फ़ाज़, ऐसी मौसिक़ी के जानेमाने रोषन जी का संगीत और उसमें मोहम्मद रफ़ी जैसें गायकों की दिल को छूनेवाली आवाज़..कानों में गूँज रहीं हैं!

जानेमाने अभिनेता भारत भूषण और गीतकार साहिर लुधियानवी..बातें शायराना!
इसकी ऐसी शायरी तो बहोत बड़ा इल्म दे गयी..
"इश्क आज़ाद है, हिंदू ना मुसलमान है इश्क
आप ही धर्म है और आप ही ईमान है इश्क
जिससे आगाह नहीं शेख-ओ-बरहामन दोनों
उस हक़ीक़त का गरजता हुआ ऐलान है इश्क"


इसमें 'मलिका-ए-हुस्न' मधुबाला और श्यामा जी के साथ ही स्मृतिपटल पर आते है..पत्नि रत्ना जी के साथ इसे बख़ूबी सादर करनेवाले भारत भूषण!

उनको शायरी में बहुत दिलचस्पी थी और वे अपने बंगले में 'मुशायरा' का आयोजन करते थे..जिसमें बड़ी फ़िल्मी हस्तियाँ शिरक़त करती थी!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 15 June 2021

"वो पास रहें या दूर रहे...
नज़रों में समाए रहते है.."

अपने भारतीय सिनेमा की ख़ूबसूरत गायिका-अभिनेत्री सुरैया के ऐसे गानें आज भी रूमानी कर देतें हैं।

आज उनके ९२ वे जनमदिन पर उन्हें सलाम!

- मनोज कुलकर्णी
'एक फूल दो माली' (१९६९) फ़िल्म के इस गाने में दिग्गज अभिनेता बलराज साहनी!

गीतकार प्रेम धवन जी!
"आज उँगली थाम के तेरी
तुझे मैं चलना सिखलाऊँ
कल हाथ पकड़ना मेरा..
जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ..!"

प्रेम धवन जी (जिनका परसों जनमदिन था) ने लिखे गीत के ये शब्द आज 'विश्व बुजुर्ग जागरूकता दिन' पर याद आएं।

गायक मन्ना डे जी!
रवि जी के संगीत में मन्ना डे जी ने 
उसी दर्दभरी आवाज़ में यह गाया था..
और फ़िल्म 'एक फूल दो माली' (१९६९) में दिग्गज अभिनेता बलराज साहनी जी ने इसे बच्चे के साथ हॄदय साकार किया था।

आज भी यह देखता हूँ तो आँखें नम हो जातीं हैं!

- मनोज कुलकर्णी