Saturday 19 June 2021

ज़ीरो से हीरो की मिसाल!


बुजुर्ग कलाकार चंद्रशेखर जी (वैद्य).

"चा-चा-चा..."
 १९५० के दशक में मशहूर हुए इस क्यूबन डांस की क्रेज आज भी बरक़रार हैं यह इंस्टाग्राम पर कलाकार उसपर अपने पोस्ट करतें वीडियो से पता चलता हैं। इस डांसपर कृष्णा शाह की फ़िल्म 'शालीमार' (१९७८) में "वन टू चा-चा-चा.." यह उषा उथुप ने गाया गाना हिट हुआ था। 

'चा-चा-चा' (१९६४) फ़िल्म में हेलन और चंद्रशेखर!
लेकिन पहली बार १९६४ में चंद्रशेखर जी ने 'चा-चा-चा' नाम से फ़िल्म बनाई थी। एक तप की शिद्दत के बाद ज़ीरो से हीरो तक पहुँचे इस कलाकार ने यह फ़िल्म ऐसी ही कहानी खुद लिखकर निर्देशित की
थी

अब बचे हुए बुजुर्ग कलाकारों में से वे (चंद्रशेखर वैद्य) गुज़र जाने के बाद यह याद आया।

१९९५ में बम्बई में 'सिनेमा के सौ साल' के हुए बड़े जश्न में मेरी उनसे और कई पुरानी फ़िल्मी हस्तियों से मुलाकातें हुई। उस पर मैंने तब 'रसरंग' जैसे नियतकालिकाओं में और २००० के बाद मेरे 'चित्रसृष्टी' में भी लिखा!

हैदराबाद से बम्बई-पुणे आकर फ़िल्म स्टुडिओज में चंद्रशेखर ने काम के लिए जद्दो जहद की। १९४८ में 'बेबस' ऐसी नाम की ही फ़िल्म से उन्होंने जूनियर आर्टिस्ट के काम शुरू किए। फिर १९५४ में मूल मराठी फ़िल्म की हिंदी रीमेक बनी थी 'औरत तेरी यही कहानी' जिसमे हमारी सुलोचना जी और भारत भूषण प्रमुख थे, उसमे पहली बार उन्हें कलाकार के तौर पर किरदार दिया गया।

'काली टोपी लाल रूमाल' (१९५९) में चंद्रशेखर और शकीला 
"लागी छूटे ना अब तो सनम.." गाने में!
इसी दरमियान अपने बड़े - फ़िल्मकार व्ही.शांताराम जी ने अपनी 'सुराग' में शीला रमानी के साथ चंद्रशेखर को नायक बनाया। उन जैसे जानेमाने फिल्मकारों की चित्रकृतियों में काम करके कलाकारों ने नाम कमाने की कई मिसालें हैं! यहाँ तक की जितेंद्र भी शांताराम- बापू की फ़िल्म 'गीत गाया- पथ्थरों ने' (१९६४) से परदेपर आ कर आगे स्टार हुए।

बहरहाल, चंद्रशेखर बाद में पांच साल सहायक अभिनेता के किरदार करतें रहें। इसमें अजित-गीता बाली की 'बारादरी' (१९५५) थी! फिर तारा हरीश की फ़िल्म 'काली टोपी लाल रूमाल' (१९५९) में शकीला के साथ असरदार नायक के तौर पर वे सामने आएं। इस में मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का इन दोनों पर फ़िल्माया "लागी छूटे ना अब तो सनम.." भावोत्कट रहा!

'चा-चा-चा' (१९६४) के "एक चमेली के मंडवे तले.." गाने में हेलन और चंद्रशेखर!
फ़िल्म इंडस्ट्री में लगातार - शिद्दत से काम करतें १९६४ में चंद्रशेखर 'चा-चा-चा' फ़िल्म से लेखक-निर्देशक बने। इस की स्टोरी डिमांड ऐसी थी की हेलन नायिका हुई! इस में
वे डांस फ्लोअर पर भी कमाल के नाचे। लेकिन इसके आलावा कहानी का जो संजीदापन था, उसके लिए हैदराबाद के ही जानेमाने शायर मख़दूम मोहिउद्दीन जी की कविता 'चारा गर' का सहारा लिया गया था! इस का उनका इक़बाल कुरैशी जी के संगीत में मोहम्मद रफ़ी और आशा भोसले ने गाया "दो बदन प्यार की आग़ में जल गएँ..एक चमेली के मंडवे तले.." लाजवाब रहा।..और उसी माहौल में नज़ाकत से हेलन का चंद्रशेखर के साथ वो साकार करना भी!

१९६६ में फिर से उन्होंने 'स्ट्रीट सिंगर' इस दूसरी फ़िल्म का निर्माण किया। १९३८ में इसी नाम की सैगल की फ़िल्म मशहूर हुई थी। ख़ैर, १९६८ के बाद चंद्रशेखर जी का नायक की तौर पर असर इतना नहीं रहा। ग़ौरतलब की, फ़िल्मकार से असिस्टेंट डायरेक्टर भी वे हुए और 'परिचय' (१९७२) से 'मौसम' (१९७५) तक उन्होंने गुलज़ार जी के साथ काम किया!

दूरदर्शन धारावाहिक 'रामायण' में चंद्रशेखर जी!
इसी दरमियान सहायक अभिनेता के तौर पर वे परदे पर आते रहे। उसमें सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ 'कटी पतंग (१९७१) से 'मेहबूबा' (१९७६) जैसी फ़िल्में थी। जानी राज कुमार के 'कर्मयोगी' (१९७८) में वे थे और बी. आर. चोपड़ा की सोशल 'निकाह' (१९८२) में भी! बाद में तो 'खतरों के - खिलाडी' (१९८८) जैसी देमार फिल्मों में वे नज़र आएं। दरमियान रामानंद सागर
जी की दूरदर्शन धारावाहिक 'रामायण' (१९८७ -८८) में आर्य सुमंत की व्यक्तिरेखा उन्होंने निभाई!

इसके अलावा चंद्रशेखर जी ने एक अहम काम किया 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' की स्थापना करके! इस 'सिंटा' के वे १९८५ से १९९६ तक अध्यक्ष रहें! फ़िल्म इंडस्ट्री से जुडी बाकी भी संघटनाओं के ज़रिये उन्होंने इसके एम्प्लॉईज वेलफेयर का दखल पात्र काम किया!

उनको मेरी यह आदरांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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