Tuesday 8 June 2021

मराठी सिनेमा से लगाव था बासुदा को!


बासु चैटर्जी की क्लासिक हिंदी फ़िल्म 'पिया का घर' (१९७२) में 
सहकलाकारों के साथ अनिल धवन और जया भादुड़ी!

बंबई की आम ज़िंदगी पर ज़्यादातर अपनी फ़िल्मों में प्रकाश डालनेवाले जानेमाने निर्देशक बासु चैटर्जी का पहला स्मृतिदिन हाल ही में हुआ
!
जानेमाने फ़िल्मकार बासु चैटर्जी जी!

क़रीब बारह साल पहले पुणे में एक समारोह में उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया था की.. 'मराठी सिनेमा कंटेंट से अच्छा होता है और मुझे हमेशा इससे लगाव रहा हैं'! यह उन्होंने मराठी सिनेमा के मंच पर आनेवाले अमराठी कलाकार आम तौर पर जैसे कहतें हैं, वैसा ही नहीं कहा था। इस के पिछे उनकी क्लासिक फ़िल्म थी..जो अभिजात मराठी चित्रकृति से प्रेरणा लेकर उन्होंने बनायी थी!

राजा ठाकूर की अभिजात मराठी चित्रकृति 'मुंबईचा जावई' (१९७०) में
सहकलाकार के साथ अरुण सरनाईक और सुरेखा!
१९७० में अपने प्रतिभाशाली मराठी फ़िल्मकार राजा ठाकूर ने 'मुंबईचा जावई' यह एक सामाजिक तथा पारिवारिक फ़िल्म बनायी थी। बंबई के चॉल के जॉइंट फैमिली में 
आएं नव विवाहित किस
तरह सुखदुख की ज़िंदगी एकसाथ बसर करतें हैं..
यह इसमें दिखाया था। 
इसमें शरद तलवलकर, रत्नमाला, अरुण सरनाईक और सुरेखा ऐसे कलाकारों नें बड़ी ही स्वाभाविकता से भूमिकाएं निभायी थी। फ़िल्म और उसके गानें भी लोकप्रिय हुएँ। इसको महाराष्ट्र राज्य का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार के साथ राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ!

 
 
उसी से प्रेरित होकर बासु चैटर्जी जी ने १९७२ में 'पिया का घर' यह क्लासिक हिंदी फ़िल्म बनायी। इसका निर्माण विख्यात 'राजश्री प्रॉडक्शन' के ताराचंद बड़जात्या ने किया था! पुणे के 'फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से.. एक्टिंग कोर्स करके आएं अनिल धवन और जया भादुड़ी इन दोनों नें इसमें प्रमुख किरदार बड़े समझदारी से साकार किएं। उनके साथ सुलोचना चैटर्जी, सुरेश चटवाल, आगा और सी. एस. दुबे जैसे कलाकार थे और विशेष भूमिका में जानेमाने मराठी अभिनेता-निर्देशक राजा परांजपे भी नज़र आए!

प्रतिभाशाली मराठी फ़िल्मकार राजा ठाकूर जी!
'पिया का घर' के शीर्षक गीत से लेकर "ये ज़ुल्फ़ कैसी हैं.." जैसें - लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने गाएं इसके गानें भी मशहूर हुएँ! विशेष उल्लेख करना है वह अपने यहाँ 'न्यू वेव्ह सिनेमा' के माहिर सिनेमैटोग्राफर रहे के. के. - महाजन का..उन्होंने इसमे बंबई के चॉल और ट्रेन ट्रैवलिंग के दृश्यं कल्पकता से चित्रित किएँ। फिर मुख़्तार अहमद ने इसका संकलन भी परिणामकारक किया!

ख़ासकर बंबई की भागदौड़ की संवेदनशील जीवनशैली को (ट्रेन - ट्रैवलिंग सीन से) दर्शाता इसका किशोर कुमार ने गाए "ये जीवन है.." गाने का फ़िल्मांकन मुझे तो बड़ा असरदार महसूस हुआ!

 
- मनोज कुलकर्णी
 
 

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