Wednesday 30 March 2022

अभी मैंगो आइसक्रीम खाया, जो केसरी रंग का था। तो इस रंग से परहेज़ नहीं, जिसका कुर्ता भी पहन सकते! लेकिन केसरिया विचार हरगिज़ नहीं!

फ़िल्म्स अवार्ड्स फंक्शन्स में वाहियात जोक्स करनेवालें एंकर्स को अब इस
'९४ वे ऑस्कर समारोह' से सबक मिला होगा!

'सुरमा भोपाली' एक फ़िल्म पहले बनी।
अब दूसरी केसरिया दृष्टी से बन रही है?

"ज़िन्दगी के सफ़र में..
गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते..!"  


अपने लोकप्रिय भारतीय सिनेमा के जानेमाने गीतकार आनंद बक्षी जी का यह गीत..

सुनते ही मन अतीत में जाता हैं और.. कुछ जिए, कुछ छूटें रूमानी लम्हे याद आतें हैं!

उनको २० वे स्मृतिदिन पर सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 27 March 2022


"यह है पूरब और जूलिएट है सूरज"
शेक्सपियर का रोमियो हैं कहता!
चाँदनी रात में "आप हो महज़बीन"
हमारा प्रेमी महबूबा को हैं कहता!

- मनोज 'मानस रूमानी'

 (आज के 'विश्व रंगमंच दिन' पर शुभकामनाएं!!)

Friday 25 March 2022

"अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान..!"
साहिर जी ने लिखा यह कालजयी गीत जयदेव जी के संगीत में लता मंगेशकर जी ने तन्मयता से गाया था और परदे पर बड़ी भावुकता से सादर किया था अपनी संवेदनशील अभिनेत्री नंदा जी ने!

देव आनंद जी की 'हम दोनों' (१९६०) फ़िल्म से हैं उनकी यह अद्वितीय छवि! सिनेमैटोग्राफर व्ही. रत्रा और एडिटर धर्मवीर का भी लाजवाब काम हैं!

इससे इस श्रेष्ठ गीत को उच्चतम तात्विक अधिष्ठान प्राप्त हुआ हैं! जो अभी के हालातों के मद्देनज़र महत्वपूर्ण हैं!

आज नंदा जी का ८ वा स्मृतिदिन हैं।

उनको सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

 सलामत रहे.!

पढ़ना, लिखना, संगीत, कलाएं..
अच्छे खूबसूरत ज़िन्दगी के लिए
इंसानियत, प्यार फ़ैले जिससे..
नहीं छीनना यह किसीसे..!


- मनोज 'मानस रूमानी'


(समाज में लड़कियों की पढाई को लेकर लिखा हैं!)

सिर्फ केसरियां मुखियां के लिए यूनिफार्म से छूट हैं लगता!

२०२४ के लोकसभा चुनाव के लिए केसरियां पक्ष में माहौल बनाने के लिए ऐसी और फ़िल्में आ सकती हैं!

- मनोज कुलकर्णी

आतंकी आंधी से हमेशा तबाह ये हुएं, वो भी
हमदर्दी इनसे, तो ग़म-गुसारी हो उनसे भी!

- मनोज 'मानस रूमानी'

यहाँ की ऐसी ज्वलंत समस्याओं की जड़ ब्रिटिश रुलर्स! न वे आतें, न पार्टीशन होता और ना ही सदियों से साथ रहनेवालों में सौहार्द बिगड़ता!

- मनोज कुलकर्णी

जो कुछ सिनेमा की आड़ से हो रहा हैं वह मानवीय भावनाओं से ज़्यादा नफ़रत की सांप्रदायिक राजनीति हैं!

फैज़ साहब की "हम देखेंगे.." नज़्म की तरफ़ पूरी समझ और जिम्मेदारी के साथ कुछ फ़िल्मवाले रुख़ करें!

"हर फ़िल्म का वक़्त होता है!" ऐसा अभी चर्चित सिनेमा के लाइव प्रेस कांफ्रेंस में सुना!
इसका मतलब क्या समझे?

२०१४ के बाद एकतरफा छुपे अजेंडे के साथ कुछ प्रोपगेंडा फ़िल्म्स बन रहीं हैं!
यह प्रभावी माध्यम जिम्मेदारी के साथ निष्पक्ष रहना चाहिए!

- मनोज कुलकर्णी

Wednesday 23 March 2022

जब भगत सिंह जी की माताजी से मिले मनोज कुमार!


अपने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए भगत सिंह जी, सुखदेव जी और राजगुरु जी इनकी स्मृति को नमन करने का यह दिन!

हर साल इस दिन उन्हें सलाम करते हुए, मुझे उनपर बनी फ़िल्म 'शहीद' (१९६५) याद आती हैं। इसमें मनोज कुमार जी ने भगत सिंह जी का किरदार निभाया था, जो यादगार रहा।


१९६६ में राष्ट्रीय पुरस्कार से यह फ़िल्म सम्मानित होते हुए, एक बड़ा सम्मान मनोज कुमार जी और "ऐ वतन हमको तेरी कसम.." जैसे इसके गीत लिखकर संगीतबद्ध करनेवाले प्रेम धवन जी को मिला..वह था भगत सिंह जी की माताजी श्रीमती विद्यावती जी को मिलने का!

उसी सुनहरे पल की यह दुर्लभ तस्वीर!!

उन्हें मेरा विनम्रता पूर्वक सलाम!!!

- मनोज कुलकर्णी

Monday 21 March 2022

समाँ आशिक़ाना हो
दिल शायराना हो

दीदार-ए-हुस्न हो
रूमानी ग़ज़ल हो!


- मनोज 'मानस रूमानी'


(जिनका मृदु कवि मन हैं उनको 'वर्ल्ड पोएट्री डे'✍️ मुबारक़!🌹)

Friday 18 March 2022

हमें ना भायेगी कभी केसरिया होली
हमारे भारत में खेलते सबरंगी होली

- मनोज 'मानस रूमानी'

Thursday 17 March 2022

पैग़ाम..!!

होली मुबारक़ सरहद पार भी दिखायी दी
धर्म-निरपेक्षता की बात वहां भी गूँजी..
शायरी, रफ़ी आवाज की चाहत भी सुनी
अब बस प्यार ही फैले दोनों तरफ ही..!


भाईचारा, मोहब्बत की बात भा गयी
इंतज़ार है यह दिलों का मिलन ही ..
मिटा दे इस-उस पार की दूरी भी..
अब बस प्यार ही फैले दोनों तरफ ही..!


एक है जड़, ज़ुबान, संस्कृति हमारी..
दुनियां में मिसालें है फिर जुड़ने की..
काश यह ख़्वाब हो जाये हक़ीक़त भी  
अब बस प्यार ही फैले दोनों तरफ ही..!


- मनोज 'मानस रूमानी'

Monday 14 March 2022

ऐ मेरे हमसफ़र..!

यह अजीब इत्तेफाक हैं, कल हमारे रूमानी फ़िल्मकार नासिर हुसैन जी का २० वा स्मृतिदिन था और आज उनके भतीजे, बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता आमिर ख़ान का ५७ जनमदिन हैं!

इस तस्वीर में मैं आमिर ख़ान के साथ १९९७ में मुंबई में हुए 'मामी' 
के फ़िल्म फेस्टिवल के उद्घाटन के दौरान..जिसे अब २५ साल हुए हैं!
नासिर हुसैन जी की फ़िल्म 'यादों की बारात' (१९७३) में आमिर पहली बार एक बालकलाकार के रूप में परदेपर आया था और बाद में उन्ही के बेटे मंसूर ख़ान की फ़िल्म 'क़यामत से क़यामत तक' (१९८८) से वो हीरो बना।

मैंने आमिर की नौजवान होने के बाद करिअर रूबरू देखी हैं! १९८४ में केतन मेहता की फ़िल्म 'होली' की शूटिंग पुणे के फ़िल्म इंस्टिट्यूट (एफटीआयआय) में हुई थी और इसमें आमिर एक अहम भूमिका में काम कर रहा था। तब मै कॉलेज में पढता था और मैंने (टीनएज में ही) सिनेमा पर लिखना शुरू किया था! फ़िल्म - इंस्टिट्यूट में मेरा अक्सर जाना होता था। तो तब मैंने वहां उस फ़िल्म की शूटिंग देखी। साथ में केतन जी और आमिर से बातें भी हुई!

इसके चार साल बाद, मैंने जर्नलिज्म (बीसीजे) कोर्स करते ही आमिर की बतौर हीरो पहली मेनस्ट्रीम बॉलीवुड फ़िल्म देखी 'क़यामत से क़यामत तक' जो हिट रही। फिर इंटरव्यूज भी हुए, उसके गायक उदित नारायण के साथ भी! दरमियान फ़िल्म इंस्टिट्यूट में 'फ़िल्म अप्रेसिअशन कोर्स' करके मै फ्री लांस फ़िल्म जर्नलिस्ट हुआ!

तब से लेकर आमिर ख़ान का एक परफेक्शनिस्ट एक्टर होने तक, यह सफर सराहनीय रहा हैं!

अब उसके फ़िल्म कैरियर के पचास साल पुरे होने की दहलीज़ पर वो हैं!

उसे सालगिरह मुबारक़!!

- मनोज कुलकर्णी

अद्भुत व्यक्तित्व के संगीतकार..बप्पीदा!


रंगीनमिजाज पॉपुलर म्यूजिक डायरेक्टर..बप्पी लाहिड़ी!
बॉलीवुड को पॉपुलर ट्यून्स देनेवाले सोने के गहनों से लदे रंगीनमिजाज म्यूजिक डायरेक्टर ऐसी पहचान रहे बप्पी लाहिड़ी अब इस दुनिया में नहीं रहें!

कलकत्ता (अब कोलकोता) के धनाढ्य परिवार में ही वे जन्मे उनका असल में नाम था..अलोकेष! माता-पिता भी संगीत क्षेत्र में थे, इसलिए उसका भी झुकाव उस तरफ था। बचपन में उसने तबला सीखा; यह बात अलाहिदा की बाद में उसके म्यूजिक में ड्रम्स की आवाज़ सुनाई दी! उन्नीस साल की उम्र में बप्पी ने पहली बार 'दादु' इस बंगाली फ़िल्म का संगीत दिया।
 
"डिस्को डांसर.." मिथुन चक्रवर्ती और पॉपुलर म्यूजिक डायरेक्टर बप्पी लाहिड़ी!
उसके बाद बॉलीवुड में किस्मत आज़माने वे बम्बई चले आए। उसके मामा गायक किशोर - कुमार ने अपनी (पहली 'चलती का नाम गाड़ी' इस क्लासिक से निकली) 'बढ़ती का नाम दाढ़ी' (१९७४) से उसे हिंदी सिनेमा के संगीत क्षेत्र में प्रवेश दिया! १९७५ में ताहिर हुसैन की एक्शन फ़िल्म 'ज़ख़्मी' में पहली बार संगीतकार की हैसियत से वे उभर आए। फिर १९७७ में विनोद खन्ना स्टार्रर फ़िल्म 'आप की ख़ातिर' में अपने ही संगीत में उन्होंने गाया "बम्बई से आया मेरा दोस्त.." गीत काफी मशहूर हुआ। बाद में 'डिस्को डांसर' (१९८२) फ़िल्म के उनके संगीत और आवाज़ में "आय एम ए डिस्को डांसर.." गाने से मिथुन चक्रवर्ती की वह इमेज बनी और बप्पीदा का उसके साथ हिट एसोसिएशन भी! पहलाज निहलानी की 'हथकड़ी' (१९८२) इस फ़िल्म के उनके संगीत में "डिस्को स्टेशन.." यह आशा - भोसले ने गाया गाना और रीना रॉय का उसपर अनोखा डान्स भी हिट रहा।

भप्पी लाहिड़ी को बॉलीवुड के फ़िल्म म्यूजिक में 'डिस्को ह्रिदम' लाने के लिए जाना जाता हैं; लेकिन तथ्य यह हैं की उनसे पहले इस तरह के म्यूजिक का अपने पॉपुलर सिनेमा में आगमन हुआ था। फ़िरोज़ ख़ान की फिल्म 'क़ुर्बानी' (१९८०) में, पॉप म्यूजिक देनेवाले बिद्दू ने बनाई ट्यून पर "आप जैसा कोई मेरे ज़िंदगी में आए" इस क्लब डान्स-सॉन्ग को पाकिस्तान की पॉप सिंगर नाज़िया हसन ने गाया था, जो हिट हुआ था। बाद में उनके 'डिस्को दीवाने' इस म्यूजिक अल्बम ने भी हंगामा मचा दिया!

म्यूजिक डायरेक्टर बप्पी लाहिड़ी उनके मामा-गायक किशोर कुमार और स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ!
दरमियान डिस्को म्यूजिक और अपना भारतीय संगीत इसका फ्यूजन बनाने का प्रयोग भी हुआ! जैसे की होनहार संगीतकार राजेश - रोशन ने किया। मिसाल की तौर रवि टंडन जी की 'खुद्दार' के उनके "डिस्को १९८२" गाने में आगे "प नि सा" सरगम भी आती है, जो लता मंगेशकरजी ने बख़ूबी गायी! इसी तरह भप्पीदा ने भी प्रकाश मेहरा की फ़िल्म 'नमक हलाल' (१९८२) के "पग घुंगरू बाँध मीरा नाची थी" इस डान्स फ्लोअर पर अमिताभ बच्चन पर फिल्माएं किशोर कुमार के गाने में "सा सा रे रे रे" ऐसी सरगम को पिरोया था! इसी दौरान पहलाज निहलानी की 'हथकड़ी' (१९८२) फ़िल्म का उनका "डिस्को स्टेशन" यह आशा भोसले ने गाया गाना और रीना रॉय का उसपर अनोखा डान्स हिट रहा।

ख़ैर, 'हिम्मतवाला' (१९८३) से 'डर्टी पिक्चर' (२०११) के उन्होंने गाए "उह ला ला.." गाने तक बप्पीदा ने मासेस का मनोरंजन करनेवाले गानें वैसे ही कंपोज़ किएं। लेकिन चंद सुखद आश्चर्य के गीत भी उन्होंने संगीतबद्ध किएं। जैसे की 'राजश्री फिल्म्स' की 'मनोकामना' (१९८०) का उन्होंने तरलता से गाया "तुम्हारा प्यार चाहिए मुझे जीने के लिए.." और 'ऐतबार' (१९८५) फ़िल्म की भूपिंदर सिंह जी ने गायी "किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है.." ग़ज़ल!

उनके "याद आ रहा हैं.." गाने के साथ मुझे उनसे मिलने का ऐसा ही आश्चर्यकारक लम्हा याद आया! वह था दो दशक पूर्व हमारे 'भारत के अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह' (इफ्फी) में उन्हें मिलना! इस के 'इंडियन पैनोरमा' में उनके द्वारा निर्मित तथा संगीतबद्ध और बुद्धदेब दासगुप्ता ने निर्देशित की हुई 'लाल दर्जा' (१९९७) यह बंगाली फ़िल्म थी और इसके स्क्रीनिंग के बाद इन दोनों से मेरी बातें हुई!

पॉपुलर अवार्ड्स के साथ 'फ़िल्म फेयर' का 'लाइफटाइम अचीवमेंट' भी बप्पीदा को मिला!

उन्हें सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

हम कभी विचलित नहीं हुए शिकस्त से
बरक़रार हैं निष्ठां हमारी, उसूल हमारे!

- मनोज 'मानस रूमानी'

 जहाँ शायराना इश्क़ फ़रमाया जाता था
अब फिर वही दकियानूसी पैरवी वहां!


- मनोज  'मानस रूमानी'

विश्वास नहीं होता बार-बार लोग ऐसा निर्णय ले सकते!
अपने मुल्क की रूह, संस्कृति, खुद की सोच भूल गएँ?

- मनोज कुलकर्णी

"हमारा नमक खाया हैं!" बोलते हैं इनके केसरिया मुखिया!
इनका नमक जनता ने कब खाया? अपने देश का नमक खाते हैं!

"जिंदगी झंड बा फिर भी घमंड बा"
का पिक्चर अब शुरू हो गया!

"दिल अभी पूरी तरह टुटा नहीं हैं
ऐ यार कुछ ज़ख्म और कर ले!"
💔
यूपी के मंज़र पर यही कहा जा सकता!

Wednesday 9 March 2022

सेक्युलर वोटों का दो-तीन पार्टीज में विभाजन होने से सांप्रदायिक पार्टी/केसरियावालों को फायदा होगा यह अभी तक कुछ समझ नहीं पाएं!

"कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा..
फिर वही हम, वही अमीनाबाद!"

मिर्जा यागना चंगेजी के इस शेर की तरह इस बार भी होगा?

Tuesday 8 March 2022

साहिर और महिला दिन!
 
साहिर जी अपनी माँ सरदार बेगम जी और बहन अनवर सुल्ताना जी के साथ!

"औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया!"

ऐसा स्त्री विषय पर यथार्थवादी शायर/गीतकार साहिर लुधियानवी जी ने जितना असरदार लिखा, उतना शायद ही किसी ने लिखा होगा!
इसकी अहम वजह यह भी थी की वे जिनसे बेइंतहा प्यार करते थे, उस माँ की पीड़ा को उन्होंने नज़दीक से महसूस किया था।

इसके साथ ही उनका संवेदनशील प्रेमी दिल भी मायने रखता हैं जहाँ से ये आया..
 
"तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है!" 
शायर साहिर लुधियानवी जी और कवित्री अमृता प्रीतम जी!

ख़ैर साहिर जी के ऊपर उनकी जन्मशताब्दी पर मैंने पहले ही यहाँ बहुत कुछ लिखा हैं। उसमें 'साहिर और उनका माँ के प्रति प्यार' और 'साहिर - कवित्री अमृता प्रीतम की दास्ताँ-ए-मोहब्बत' ऐसे खास स्वतंत्र लेख शामिल थे।

दरअसल साहिर के ह्रदय का स्पंदन हमेशा समाज में हो रहें लड़कियों/महिलाओं के प्रति अत्याचार में इस तरह व्यक्त होता रहा..
 
 
"मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं?"

आज २०२२ के 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिन' और साहिर साहब के १०१ वे जनमदिन पर भी महिलाओं के प्रति ये चिंताएं जरा भी कम नहीं हुई हैं!

उनको अभिवादन!..और इस दिन की शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
रूसी कवि अलेक्सान्दर - पूश्किन की पंक्तियों का यह हिंदी अनुवाद..
 
रूमानी कविता लिखने के लिए मशहूर उनका ऐसा पहले लिखा हुआ..
अब विश्व की सद्यस्थिति पर सोचनीय हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Sunday 6 March 2022

हमारा ज़मीर कहता हैं जहां हैसियत के मुताबिक़ इज़्ज़त मिले वही जाना!
इसलिए कुछ साल हुए हम ऐसे किसी फ़िल्म फेस्टिवल्स को नहीं जातें।

- मनोज कुलकर्णी

"..ये झूठे नातें हैं, 'नाटो' का क्या?.."
..एक तरफ गातें होंगे; तो दूसरी तरफ..
"आ देखें ज़रा किसमें कितना है दम.!"

"दुनिया मैं तेरे तीर का या तकदीर का मारा हूँ..आवारा हूँ" तब सोवियत रूस में मशहूर हुआ अपने भारतीय सिनेमा का गीत अब कौन गाता होगा?

'महायुद्ध मेगा शो' ऐसा शीर्षक एक टीवी न्यूज़ चैनल का देखा और ताज्जुब हुआ।
कुछ संवेदनशीलता ऐसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को है या नहीं?

यहाँ जो नाकामयाब रहे..
वो वहां क्या सुलह करेंगे?
विश्व में काबिल ज्ञानी हैं!

गोदी मीडिया इतनी अंधी हो गयी हैं की तथ्य से हटकर न्यूज़ देती हैं और जानकार ऐसे सोशल मीडिया पर क्या लिखता है यह उनको समझ नहीं आता!

Friday 4 March 2022

'समाजवादी पार्टी' और 'कांग्रेस'..

दोनों को उत्तर प्रदेश में जीत के लिए शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

पालतू/चिल्लाऊं टीवी जर्नालिस्ट को आख़िर वरिष्ठ विदेशी पत्रकार ने जर्नलिज्म एथिक्स सिखाही दिए!

सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, समकालीन (कथित) फ़िल्में भी जो पिछले कुछ सालों से बन रहीं हैं, वह एकतरफा प्रोपगैंडा फ़िल्म्स ही हैं!

- मनोज कुलकर्णी

Thursday 3 March 2022

"दयारे-ग़ैर में में सोज़े-वतन की आँच न पूछ
ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ.!"

ऐसा आज भी समकालीन लगता लिखनेवाले 'ज्ञानपीठ' प्राप्त उर्दू के ख्यातनाम कवि थे रघुपति सहाय "फ़िराक़ गोरखपुरी"!

'गुल-ए-नगमा' और 'रूह-ए-कायनात' जैसे उनके अलग-अलग जज़्बे के काव्यसंग्रह प्रसिद्ध हैं।

आज उनके ४० वे स्मृतिदिन पर उन्ही की ये पंक्तियाँ याद आती हैं..

"कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो..
ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो!"

उन्हें विनम्र सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

Tuesday 1 March 2022

"जय जय शिव शंकर..
काँटा लगे न कंकर...
जो प्याला तेरे नाम का पिया"

हर साल इस 'महाशिवरात्रि' के दिन धूम मचानेवाला गाना..आनंद बख्शी जी ने लिखा था और आर. डी. बर्मन के जोशपूर्ण संगीत में किशोर कुमार और लता मंगेशकर जी ने गाया था।

फ़िल्मकार जे. ओम प्रकाश जी का पहला निर्देशन जो बहुत कामयाब रहा..उस 'आप की कसम' (१९७४) फ़िल्म में..अपने रूमानी भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने नटखट मुमताज़ के साथ इसे झुमके परदे पर साकार किया था।

राजेश खन्ना जी ने एक तरफ शर्मिला टैगोर जी के साथ अपनी जज़्बाती जोड़ी बनायीं, तो दूसरी तरफ मुमताज़ जी के साथ शोख़-मिज़ाज!

हालांकि भांग का रंग ज़मानेवाले कई गाने हैं लेकिन यह गाना जैसे खास इसी दिन के लिए बना!

- मनोज कुलकर्णी

राजनैतिक उथल-पुथल से विचलित होने इतना महत्त्व मैं राजनीति को नहीं देता!

सिर्फ फ़िक्र है कि अपने देश का धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र अबाधित रहें!

परदे की कथित क्वीन तब चुप बैठेगी
जब केसरिया राज जायेगा!

दकियानूसी नहीं, हम आधुनिक ख्यालात के हैं। लड़कियां/महिलाओं को लड़कों/पुरुषों के बराबर हक़ है..अपने पसंद के रहन-सहन से जीने का!

- मनोज कुलकर्णी

वह नज़ाकत से इज़हार-ए-इश्क़!

 
'मेरे मेहबूब' (१९६३) के इस शीर्षक गीत में राजेंद्र कुमार और साधना!
 
"भूल सकती नहीं आँखे वो सुहाना मंज़र
जब तेरा हुस्न मेरे इश्क़ से टकराया था
और फिर राह में बिखरे थे हज़ारो नग्मे..."

'अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' के शायराना माहौल में शेरवानी पहने महबूब की बुर्का-हिजाब में आती माशूका से पहली मुलाक़ात को चित्रित करता यह रूमानी दृश्य!
एच. एस. रवैल जी की मेरी पसंदीदा क्लासिक फ़िल्म 'मेरे मेहबूब' (१९६३) में जुबिली स्टार राजेंद्र कुमार और ख़ूबसूरत साधना ने उसी नज़ाक़त से साकार किया था..जिसमें शकील बदायुनी की उस रूमानी शायरी को नौशाद जी के संगीत में मोहम्मद रफ़ी जी ने उसी प्यार भरे अंदाज़ में पेश किया था।

'मेहबूब की मेहँदी' (१९७१) के "ये जो चिलमन हैं.." गीत में लीना चंदावरकर और राजेश खन्ना!
हाल ही में जन्मशताब्दी हुए, रूमानी मुस्लिम सोशलस के लिए मशूहर रवैल जी की फ़िल्मों की ऐसी शायराना हुस्न-ओ-इश्क़ की नज़ाकत मेरी ख़ास पसंदीदा रहीं हैं। जैसे की उनकी 'मेहबूब की मेहँदी' (१९७१) लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी ने संगीत दी फ़िल्म में आनंद बख़्शी जी ने लिखे ऐसे ही रूमानी गीत-दृश्य "ये जो चिलमन हैं.." को खानदानी मुस्लिम पहनावे में सुपरस्टार राजेश खन्ना और लीना चंदावरकर ने उसी अंदाज़ में साकार किया था। इसमें "परदा जो हट गया रुख़-ए-महताब से." ऐसी नज़ाकत से पूछती प्यारीसी माशूका और उसको "हुस्न और इश्क के दरमियाँ ये क्यों रहे.." रफ़ी जी आवाज़ में कहनेवाला महबूब लाजवाब थें।

रवैल जी की फ़िल्मों के अलावा और भी कुछ मुस्लिम सोशलस में इस तरह से नज़ाक़त से शायराना इश्क़ बयां हुआ। (इस विषय पर मेरे लेखों की एक मालिका यहाँ साल पहले आयी थी।)

'मेरे हुज़ूर' (१९६८) के "रुख़ से ज़रा नक़ाब उठा दो.." गीत में ख़ूबसूरत माला सिन्हा!
अपने जानेमाने अभिनेता-निर्देशक.. गुरुदत्त जी की लखनऊ की सरज़मीं पर चित्रित 'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) फ़िल्म में इसी लिबास में मुख़ातिब हुई वहीदा रहमान से वे इसी तरह तहज़ीब से अपना प्यार जताते हैं। फिर 'ग़ज़ल' (१९६३) फ़िल्म में सुनील दत्त और महज़बीं यानी मीना कुमारी ऐसे ही पहनावें में अपना इश्क़ शायराना अंदाज़ में बयां करतें हैं। बाद में विनोद कुमार की 'मेरे हुज़ूर' (१९६८) में हसरत जयपुरी जी ने लिखे "रुख़ से ज़रा नक़ाब उठा दो मेरे हुज़ूर.." इस रूमानी शीर्षक-गीत से ख़ूबसूरत माला सिन्हा को दरख़्वास्त करता जंपिंग जैक जितेंद्र भी उसी लहज़े में बयां हुआ था। शंकर-जयकिशन जी के संगीत में रफ़ी जी ने यह गाया भी ख़ूब था।

'कोहिनूर' (१९६०) के "दो सितारों का ज़मीन पर है मिलन.." गीत में दिलीपकुमार और मीना कुमारी!
बहरहाल, परदा हटा कर और नक़ाब उठा कर माशूका का रुख़/हुस्न देखने का हक़ सिर्फ़ उसके महबूब/शौहर को होता है यह अपनी फ़िल्मों ने बख़ूबी दिखाया हैं!
जैसे की (मैंने पहले जिसपर लिखा है वह अभिनय और संगीत के सब दिग्गजों की) 'कोहिनूर' (१९६०) फ़िल्म का "दो सितारों का ज़मीन पर है मिलन.." गीत-दृश्य! शकील बदायुनी जी ने ही लिखे इस को नौशाद जी के संगीत में मोहम्मद रफ़ी जी और लता मंगेशकर जी ने उसी तरलता से गाया हैं। इसमें अपने अदाकारी के शहंशाह यूसुफ़साहब..दिलीपकुमार जी और अपनी अदाकारी की मलिका महज़बीन..मीना कुमारी जी को कहतें हैं "तोड़ दे तोड़ दे परदे का चलन आज की रात.. मुस्कुराता है उम्मीदों का चमन आज की रात.."
फिर रवैल जी की ही फ़िल्म 'दीदार-ए-यार' (१९८२) में ऋषि कपूर और टीना मुनीम का साहिर लुधियानवी जी के गीत में बयां होना "सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता.."

रूमानी मुस्लिम सोशलस की वह नफ़ासत..और नज़ाकत में इश्क़ का इज़हार करने का अंदाज़ हम जैसे शायराना रूमानी रहे शख़्स को हमेशा लुभाता रहां हैं!

- मनोज कुलकर्णी