Thursday 3 March 2022

"दयारे-ग़ैर में में सोज़े-वतन की आँच न पूछ
ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ.!"

ऐसा आज भी समकालीन लगता लिखनेवाले 'ज्ञानपीठ' प्राप्त उर्दू के ख्यातनाम कवि थे रघुपति सहाय "फ़िराक़ गोरखपुरी"!

'गुल-ए-नगमा' और 'रूह-ए-कायनात' जैसे उनके अलग-अलग जज़्बे के काव्यसंग्रह प्रसिद्ध हैं।

आज उनके ४० वे स्मृतिदिन पर उन्ही की ये पंक्तियाँ याद आती हैं..

"कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो..
ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो!"

उन्हें विनम्र सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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