साहिर और महिला दिन!
जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा दुत्कार दिया!"
ऐसा स्त्री विषय पर यथार्थवादी शायर/गीतकार साहिर लुधियानवी जी ने जितना असरदार लिखा, उतना शायद ही किसी ने लिखा होगा!
इसकी अहम वजह यह भी थी की वे जिनसे बेइंतहा प्यार करते थे, उस माँ की पीड़ा को उन्होंने नज़दीक से महसूस किया था।
इसके साथ ही उनका संवेदनशील प्रेमी दिल भी मायने रखता हैं जहाँ से ये आया..
"तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है!"
दरअसल साहिर के ह्रदय का स्पंदन हमेशा समाज में हो रहें लड़कियों/महिलाओं के प्रति अत्याचार में इस तरह व्यक्त होता रहा..
"मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी
पयंबर की उम्मत ज़ुलेख़ा की बेटी
सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं?"
आज २०२२ के 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिन' और साहिर साहब के १०१ वे जनमदिन पर भी महिलाओं के प्रति ये चिंताएं जरा भी कम नहीं हुई हैं!
उनको अभिवादन!..और इस दिन की शुभकामनाएं!!
- मनोज कुलकर्णी
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