मेरे इस ब्लॉग पर हमारे भारतीय तथा पूरे विश्व सिनेमा की गतिविधियों पर मैं हिंदी में लिख रहा हूँ! इसमें फ़िल्मी हस्तियों पर मेरे लेख तथा नई फिल्मों की समीक्षाएं भी शामिल है! - मनोज कुलकर्णी (पुणे).
Tuesday 24 October 2017
Sunday 22 October 2017
रूमानी फ़िल्मकार
यश चोपड़ा!
- मनोज कुलकर्णी
'किंग ऑफ़ रोमैंटिक बॉलीवुड' ऐसी शोहरत जिन्होंने हासिल की..वह फिल्म निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा जी अपना रुपहला परदा छोड़ कर चले गए..इसे अब पाँच साल हुए!
{यशजी की आखरी फिल्म 'जब तक है जान' (२०१२) में
अनुष्का शर्मा, शाहरुख़ खान और कैटरीना क़ैफ़!}
हालांकि यशजी ने सभी महत्वपूर्ण जॉनर की फिल्में बनायी..जैसी की करिअर की शुरुआत में बड़े भाई मशहूर फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा साहब की निर्मिती में उन्होंने निर्देशित की हुई सोशलस 'धुल का फूल' (१९५९) यह राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा अभिनीत विवाह पूर्व संतान विषय पर और 'धर्मपुत्र' (१९६१) यह शशी कपूर अभिनीत पार्टीशन तथा मूलतत्ववाद पर प्रकाशझोत डालनेवाली!
यशजी निर्देशित पहली 'धुल का फूल' (१९५९) के उस गाने में मनमोहन कृष्ण ! |
"तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा.."
साहिरजी ने लिखा यह उनके 'धूल का फूल' का गाना धर्मनिरपेक्षता की बड़ी सीख़ देता है! इसके बाद 'वक़्त' (१९६५) यह पहली मल्टी स्टारर फ़िल्म यशजी ने निर्देशित की। बलराज साहनी, अचला सचदेव, सुनिल दत्त, साधना, शशी कपूर और शर्मिला टैगोर जैसे जाने माने कलाकार इसमें थे। 'लॉस्ट एंड फाउंड' का प्लॉट रही इस हिट फिल्म में राज कुमार के "जिनके घर शीशे के होते है वो दूसरों पर पत्थर नहीं फ़ेका करते!" ऐसे डायलॉग और अदाकारी दर्शकों को बेहद पसंद आयी! बाद में 'इत्तेफाक' (१९६९) यह बगैर गाने की थ्रिलर उन्होंने बनायी जिसमें राजेश खन्ना और नंदा की वेधक भूमिकांए थी।
वक़्त' (१९६५) में राज कुमार, सुनील दत्त, साधना, शर्मिला टैगोर और शशी कपूर! |
१९७१ में उन्होंने खुद की 'यशराज फ़िल्म्स' यह निर्मिती संस्था शुरू की और सही मायने में यही से उनका रोमैंटिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ! इसके द्वारा पहली रोमैंटिक फिल्म उन्होंने सादर की 'दाग' (१९७३) जो की बहुपत्नीत्व को भी स्पर्श कर गई..इस त्रिकोणीय प्रेमकथा में राजेश खन्ना के साथ राखी और शर्मिला टैगोर ने ख़ूब रूमानी रंग भरे! इस फिल्म की सफलता के बाद तो उन्होंने 'कभी कभी' (१९७६) यह मल्टी स्टारर रोमैंटिक फ़िल्म बनायी; जिसमें वहिदा रहमान, शशी कपूर, ऋषि कपूर, नीतू सिंह और राखी के साथ अमिताभ बच्चन शायराना अंदाज़ में था!
यशजी निर्मित-निर्देशित 'दाग' (१९७३) में राखी, राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर। |
वैसे यशजी ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्में बनाना १९७५ में 'दीवार' से ही शुरू किया था...इसमें 'त्रिशुल' (१९७८) और 'काला पत्थर' (१९७९) ऐसी फिल्मों में अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध आवाज और हाथ उठानेवाला यह एंग्री यंग मैन युवा वर्ग पर असर करके बहोत लोकप्रिय हुआ! इसके बाद १९८१ में उन्होंने 'सिलसिला' यह ऐसी त्रिकोणीय प्रेम की फिल्म बनायी जो वास्तव में चर्चित ऐसे किरदार..तीन कलाकारों को एक साथ परदे पर ले आयी..अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी-बच्चन और रेखा!
'सिलसिला' ( १९८१) में रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन! |
अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को एक और अलग ऊंचाई पर लेने वाला किरदार यशजी ने दिया 'मशाल' (१९८४) फ़िल्म मे..जो वसंत कानेटकर लिखित मराठी नाटक 'अश्रुंची झाली फुले' पर आधारित थी। इस फ़िल्म से अनिल कपूर भी उभर आए!
यशजी की पसंदीदा 'लमहें' (१९९१) में श्रीदेवी और अनिल कपूर! |
त्रिकोणीय प्रेम कथा वैसे यशजी का एक पसंदीदा विषय रहा ही था.. इसमें १९८९ में आयी उनकी हिट फिल्म 'चॉँदनी' (१९८९) श्रीदेवी ने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ बखूबी साकार की। इससे खूबसूरत (परदेशी) लोकेशन्स और संगीत (शिव-हरी जैसे) के साथ यशजी का 'रोमैंटिक म्यूजिकल' का अपना जॉनर विकसित हुआ! इसमें १९९१ में श्रीदेवी को अनिल कपूर के साथ दोहरे किरदारों में पेश करनेवाली अनोखी रूमानी फिल्म उन्होंने बनायी..'लमहें' जो उनकी खुद की एक पसंदीदा फ़िल्म रही!
"जादू तेरी नज़र.."..'डर' (१९९३) में जूही चावला! |
फिर इस सदी के सुपरस्टार शाहरुख़ खान को लेकर यशजी अपनी हिट रोमैंटिक म्यूजिकल फिल्में बनाते गए..इसमें 'डर' (१९९३) में जूही चावला और 'दिल तो पागल है' (१९९७) में करिश्मा कपूर के साथ माधुरी दीक्षित की खूबसूरती निखर आई! यह फिल्में "जादू तेरी नज़र.." का रूमानी अहसास नई पीढ़ी के आशिकों को दे गई और "ढोलना.." के धुन पर वह डोलने लगे!
'दिल तो पागल है' (१९९७) में माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर और शाहरुख़ खान! |
२००४ में फिर यशजी ने पार्टीशन के पृष्ठभूमी पर फ़िल्म बनायी 'वीर ज़ारा' जिसके लिए उन्होंने म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट किया..गुज़रे हुए संगीतकार मदनमोहनजी की धुनें इस्तिमाल की..इसके "तेरे लिए.." गाने पर शाहरुख़ खान और प्रीति ज़िंटा की लाज़वाब अदाकारी देखने को मिली। इसके बाद २०१२ में 'जब तक है जान' यह आखरी फ़िल्म बनाकर वह इस दुनिया से चल बसे!
'वीर ज़ारा' (२००४) में शाहरुख़ खान, प्रीति ज़िंटा और रानी मुख़र्जी! |
अपने पांच दशक के फ़िल्म कैरियर में यशजी ने लगभग पचास फ़िल्मे बनायी। उनको काफ़ी सम्मान मिले..इसमें छह नेशनल और ग्यारह फ़िल्मफेअर अवार्ड्स शामिल है। इसके साथ ही उनको भारत सरकार की तरफ से 'पद्मभूषण' और हमारे सिनेमा क्षेत्र का सर्वोच्च 'दादासाहेब फालके पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
यशजी से मिलने के कई 'लमहें' आज मेरे आँखों के सामने है!..वाकई में रूमानी शक्सियत थे वह!
उनको मेरी यह सुमनांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
Friday 13 October 2017
भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो..'ख़ूबसूरत' रेखा!
- मनोज कुलकर्णी
साठ साल से ज्यादा उम्र और फिल्म इंडस्ट्री में पचास साल का लम्बा सफर पार करने के बाद भी..जवाँ ख़ूबसूरत दिखनेवाली हमारे भारतीय सिनेमा की लाज़वाब अभिनेत्री है रेखाजी!
गुजरे ज़माने के तमिल अभिनेता जेमिनी गणेशन और तेलुगु अभिनेत्री पुष्पवल्ली की कन्या रेखा का असली नाम था..भानुरेखा! पिता का दूर रहेना और हालातों की वजह से उसने सिर्फ १२ साल की उम्र में स्कूल छोड़ कर सिनेमा की तरफ रुख कर लिया। पहली बार १९६६ में तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' में वह बालकलाकार के रूप में परदे पर दिखाई दी!
तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' (१९६६) में बालकलाकार ..और षोडश रेखा! |
इसके बाद १९६९ में बतौर नायिका वह आयी हिट कन्नड़ा फ़िल्म 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' में..जिसके नायक थे वहां के सुपरस्टार राजकुमार!
कन्नड़ा 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' (१९६९) में रेखा और राजकुमार! |
इसी दौरान उसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा 'अंजाना सफर' से..इसमें नायक बिश्वजीत के साथ उसका फ़र्जी चुंबन दृश्य से कंट्रोवर्सी खड़ी हुई..और दस साल के बाद १९७९ में 'दो शिकारी' नाम से यह फ़िल्म प्रदर्शित हो गई!
हिंदी 'अंजाना सफर' ('दो शिकारी'/१९७९) में बिश्वजीत और रेखा! |
यहाँ शुरुआत के दिनों में उसको हिंदी भाषा बोलने जैसी समस्यांओ से गुजरना पड़ा..गोल मटोल टोमबोइश थी वह! सही माने में उसका हिंदी सिनेमा में डेब्यू हुआ मोहन सैगल की फ़िल्म 'सावन भादो' (१९७०) से..इसके नायक नविन निश्चल का उसके साथ "सुन सुन सुन ओ गुलाबी कली.." इस रफ़ीजी के गाए रूमानी गाने से इश्क़ लड़ाना दर्शकों को भा गया..और इस हिट फ़िल्म से रेखा स्टार हो गई!
'सावन भादो' (१९७०) में नविन निश्चल और रेखा! |
फिर भी एक अभिनेत्री के लिए जैसे चाहिए वैसे क़िरदार उसके पास तुरंत नहीं आए।..रणधीर कपूर के साथ 'रामपुर का लक्ष्मण', धर्मेंद्र के साथ 'कहानी किस्मत की' (१९७२) और सुनिल दत्त के साथ 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' (१९७४) और फ़िरोज़ खान के साथ 'धर्मात्मा' (१९७५) ऐसी नायकों के इर्द-गिर्द घूमनेवाली फिल्मों में उसका अस्तित्व सिर्फ़ 'लुक' था!
'दो अंजाने' (१९७६) में अमिताभ बच्चन और रेखा! |
'माँग भरो सजाना' में रेखा और जितेंद्र! |
फिर 'सावन भादो' में ग्लैमर से मशहूर करनेवाले मोहन सैगल ने ही उसे 'एक ही रास्ता' (१९७७) में अभिनय से परिपूर्ण स्त्री व्यक्ति'रेखा' में लाया..सामने शबाना आज़मी जैसी मंजी हुई अभिनेत्री थी और नायक था जितेंद्र जिसके साथ उसने बाद में कई अच्छी पारिवारिक फ़िल्में की...जैसी 'माँग भरो सजाना', 'जुदाई' (१९७९) और 'एक ही भूल' (१९८१).
'घर' (१९७८) में रेखा और विनोद मेहरा! |
दरमियान उसने एक अच्छी सोशल फिल्म में काम किया 'घर' (१९७८)..नायक था विनोद मेहरा जिसके साथ वह काफी क्लोज हुई थी!..इसके गुलज़ार के "आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे.." गाने में दोनों की नजदीकियाँ नज़र आयी!
'खून पसीना' (१९७७) में अमिताभ बच्चन और रेखा! |
लेकिन अमिताभ बच्चन-रेखा यही जोड़ी परदे पर हिट हुई और बहोत चर्चित भी रही! इसमें हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'आलाप' (१९७७) में इनके तरल भावनिक आविष्कार काफ़ी इंटेंस रहें! फिर 'खून पसीना' से अमिताभ के साथ का असर रेखा के स्टाईल में भी दिखाई देने लगा..बाद में 'ईमान धरम' और 'गंगा की सौगंध' (१९७८) इस भोजपुरी फिल्म से यह जोड़ी आम जनमानस पर छा गई!
'मुकद्दर का सिकंदर' (१९७८) में रेखा और अमिताभ बच्चन! |
'मि. नटवरलाल' (१९७९) के "परदेसियां.." गाने में रेखा और अमिताभ बच्चन! |
'सिलसिला' (१९८१) में रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन! |
दरमियान रेखा ने ऐसी कॉन्ट्रवर्सी से हटकर अपने एक्टिंग कैरियर पर ध्यान देना बेहतर समझा। इसका नतीजा हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'ख़ूबसूरत' (१९८०) में सामने आया था..इसमें "सुन सुन सुन दीदी.." गाकर स्कर्ट में डान्स करनेवाली नटखट और बिनधास्त रेखा ने बंधनों को तोड़ कर खुशी से जीने का सबक दिया!..उसका यह अंदाज़ स्कुल-कॉलेज के दिनों में बहोत प्यारा लगा था और वह हमारी फेवरेट हुई। इस फिल्म के लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का 'बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड' भी मिला!
'ख़ूबसूरत' (१९८०) में रेखा! |
फिर 'एग्रीमेंट' जैसी अलग फ़िल्में करते हुए उसने 'काली घटा' में दोहरी भूमिकाएं निभाई..और आयी उसके अभिनय का उच्चतम आविष्कार दर्शानेवाली 'उमराव जान' (१९८१)..मिर्ज़ा अदी रुस्वा की उर्दू कादंबरी 'उमराव जान अदा' पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन मुज़फ्फर अली ने किया था..लखनऊ की कोठेवाली का शोहरत तक पहुँचने का सफर और दर्द बयां करनेवाले इस किरदार में रेखा ने अपना सबकुछ लगाया था! "जुस्तजू जिसकी थी.." ऐसे शहरयार ने लिखे इसके गीत ख़ैयाम की धुनों में आशा भोसले ने गाए..और "इन आँखों की मस्ती के.." जैसे मुज़रे में कमाल के मुद्राभिनय से रेखा ने पेश किए।..उसको 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्री' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला!
'उमराव जान' (१९८१) में रेखा! |
इसके बाद शशी कपूर निर्मित तीन फिल्मों में रेखा ने स्त्री व्यक्तित्व के अलग पहलूं दिखाएं..इसमें पहली थी श्याम बेनेगल निर्देशित आज के पैसों के पीछे पड़े औद्योगिक युग में महाभारत दर्शानेवाली 'कलयुग', दूसरी गोविन्द निहलानी निर्देशित हवाई प्रशिक्षण और पारीवारिक संबंधों पर 'विजेता' (१९८१). इसके बाद कलात्मक तीसरी फिल्म थी गिरीश कर्नाड निर्देशित 'उत्सव' (१९८४) जो संस्कृत नाटिका 'मृच्छकटिका' पर आधारित थी और रेखा ने इसमें वसंतसेना की भूमिका बख़ूबी अदा की थी! "मन क्यूँ बहेका रे.." जैसे इसके गानों में उसका मुद्राभिनय लाजवाब था।
'उत्सव' (१९८४) में रेखा! |
दरमियान उसनें १९८२ में एक तरफ घर की जिम्मेदारी की वजह से शादी न कर पानेवाली स्त्री फिल्म 'जीवनधारा' में; तो दूसरी तरफ एच.एस.रवैल की फिल्म 'दीदार-ए-यार' में फिर से कोठे पर नज़ाकत पेश करनेवाली ऐसे किरदार निभाए! फिर १९८३ में गुरुदत्तजी के बेटे तरुण दत्त की फिल्म 'बिंदिया चमकेगी' में अलहड़ भूमिका में वह नज़र आयी!
'जीवनधारा' (१९८२) में रेखा! |
मुख्य धारा के सिनेमा में रहकर सशक्त स्त्री भूमिका निभाना रेखा ने शुरू किया था..इसमें १९८८ में ऑस्ट्रेलियाई सीरियल 'रिटर्न टू ईडन' (१९८३) पर राकेश रोशन ने बनाई फिल्म 'खून भरी मांग' (१९८८) में उसने अत्याचार का बदला लेनेवाली अमीर बेवा जोरोशोर से साकार की! इसके लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का पुरस्कार मिला। बाद में राजकुमार संतोषी ने सत्यघटना पर बनाई फिल्म 'लज्जा' (२००१) में भी उसका किरदार इसी तरह का था!
'खून भरी मांग' (१९८८) में रेखा! |
दरमियान उसके कुछ कंट्रोवर्सिअल रोल्स भी काफी चर्चित रहें..इसमें थी मीरा नायर की इंग्लिश फिल्म 'कामसूत्र: ए टेल ऑफ़ लव' (१९९६) जिसमें उसने यह पढानेवाली की भूमिका निभायी थी!..और दूसरी थी बासु भट्टाचार्य की आखरी फिल्म 'आस्था' (१९९७) जिसमे उसने बोल्ड विवाहीता साकार की..और साथ में था पहेला नायक नविन निश्चल!
वैसे बढ़ती उम्र का असर रेखा पर कभी दिखाई नहीं दिया; क्योंकी योगा से अपनी सेहत का पूरा खयाल वह रखती आयी है! इसी लिए प्रदीप सरकार की नई 'परिणीता' (२००५) में जब उसने "कैसी पहेली ज़िंदगानी.." गाकर क्लब में डांस किया तो सबको ताज्जुब हुआ!..और आखरी की हुई फिल्म 'सुपर नानी' में भी उसका मॉडल का अंदाज़ चौकाने वाला था!
'भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो' कहेलाने वाली रेखा का व्यक्तिगत जीवन शुरू से संघर्षमय तो रहा ही..और प्यार-शादी को लेकर कॉन्ट्रवर्सीयल भी रहा! अपने पचास साल के फिल्म कैरियर में उसने अब तक कुल १८० फिल्मों में काम किया और लोकप्रिय सिनेमा की एक चोटी की अभिनेत्री रही है!
भारत सरकार से 'पद्मश्री' से सम्मानित होती हुई रेखाजी! |
बम्बई में १९९५ में सिनेमा के १०० साल का सेलिब्रेशन करनेवाले 'सिनेमा सिनेमा' प्रोग्राम के दरमियान और बाद में भी कार्यक्रमों में रेखाजी से मिलना याद आ रहा है!
ऐसी हमारी फेवरेट 'ख़ूबसूरत' अभिनेत्री को मेरी शुभकामनाएं!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी' पुणे)
Wednesday 11 October 2017
बिग-बी को..७५ पर शुभकामनाएं!!
आज विश्व सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक और हमारे भारतीय सिनेमा के लीजेंडरी सुपरस्टार..फेवरेट अमिताभ बच्चनजी का ७५ वा जनमदिन!
इस अवसर पर मेरे 'चित्रसृष्टी' दिवाली विशेषांक, २०१४ में मैंने उनपर लिखा हुआ बड़ा खास लेख पढ़िए!
उस 'चित्रसृष्टी' के वेब एडिशन से उस लेख की यह लिंक:
http://www.chitrasrushti.in/diwali14/files/Chitrasrushti-Diwali2014.pdf#page=4
- मनोज कुलकर्णी
(पुणे, इंडिया)
Sunday 8 October 2017
सामाजिक सिनेमा के कथास्रोत..महानतम उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंदजी!
(८१ वे स्मृतिदिन पर नमन!)
अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में यथार्थवादी साहित्य की परंपरा शुरू करनेवाले संवेदनशील लेखक थे..धनपत राय श्रीवास्तव तथा मुंशी प्रेमचंदजी!
उनके साहित्यसे पहली बार मैं परीचित हुआ पाठशाला की किताब में पढ़ी उनकी एक लघुकथा से..और उसमें प्रतिबिंबित जीवनानुभव से मैं बहोत प्रभावित हुआ!
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह माने जानेवाले उपन्यासकार मुंशी
प्रेमचंदजी का साहित्य जीवनाभिमुख था। उनकी पहली कहानी 'सौत' १९१५ में
'सरस्वती पत्रिका' में प्रकाशित हुई और बाद में बीस वर्षों की उनकी साहित्य
संपदा ज्यादा तर वास्तव जीवन को प्रतिबिंबित करती रही...जैसे की 'गबन'!
उनके उपन्यास का मूल कथ्य भारतीय ग्रामीण जीवन था...१९३६ में प्रसिद्ध हुआ
उनका श्रेष्ठतम उपन्यास 'गोदान' इसकी प्रचिती देता है..इसमें सामंतवाद और
पूंजीवाद की चक्र में फंसकर किसानकी होती दुर्दशा पाठकोंको सुन्न करती है!
कहानीकार के साथही सामाजिक विषयोंपर भी उन्होंने 'स्वदेश' और 'जागरण' जैसी पत्रिकाओंमें लिखा और विद्वान् संपादक भी रहे! १९३६ में लखनऊ में हुए 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ' सम्मेलन के वह अध्यक्ष रहे!
रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्रों में भी मुंशी प्रेमचंदजी का योगदान रहा। 'संग्राम' (१९२३) और 'प्रेम की वेदी' (१९३३) जैसे नाटक उन्होंने लिखे और उनकी कई कहानियोंपर फिल्में बनी...इसमें सर्वप्रथम त्रिलोक जेटलीने 'गोदान' (१९६३) बनाई..जिसमे राजकुमारने बेहतरीन काम किया था! फिर जानेमाने फ़िल्मकार हृषिकेश मुखर्जी ने 'गबन' (१९६६) बनाई; तो ख्यातनाम फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनकी अंतिम कहानी 'कफ़न' पर 'ओका ऊरी कथा' (१९७७) यह तेलुगु फिल्म बनाई!
इसके बाद
विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजित राय ने 'शतरंज के खिलाडी' (१९७७) इस ऊर्दू
फिल्म का निर्माण किया और दूरदर्शन के लिए उनकी कहानी पर 'सद्गति' बनाई।
१९८० में उनकी उपन्यास पर 'निर्मला' यह टी. वी. धारावाहीक बना..और आगे भी संवेदनशील कवि-फ़िल्मकार गुलज़ारजी ने 'तहरीर मुंशी प्रेमचंद की' बनायी!
मुंशी प्रेमचंदजी का साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिंदी भाषा विकास का अध्ययन अधुरा होगा... वह आज भी प्रासंगिक है!
इस महान साहित्यकार को मेरी यह विनम्र आदरांजली.!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
'गोदान' (१९६३) में राजकुमार, कामिनी कौशल, मेहमूद और शोभा खोटे! |
कहानीकार के साथही सामाजिक विषयोंपर भी उन्होंने 'स्वदेश' और 'जागरण' जैसी पत्रिकाओंमें लिखा और विद्वान् संपादक भी रहे! १९३६ में लखनऊ में हुए 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ' सम्मेलन के वह अध्यक्ष रहे!
'गबन' (१९६६) में साधना और सुनिल दत्त! |
रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्रों में भी मुंशी प्रेमचंदजी का योगदान रहा। 'संग्राम' (१९२३) और 'प्रेम की वेदी' (१९३३) जैसे नाटक उन्होंने लिखे और उनकी कई कहानियोंपर फिल्में बनी...इसमें सर्वप्रथम त्रिलोक जेटलीने 'गोदान' (१९६३) बनाई..जिसमे राजकुमारने बेहतरीन काम किया था! फिर जानेमाने फ़िल्मकार हृषिकेश मुखर्जी ने 'गबन' (१९६६) बनाई; तो ख्यातनाम फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनकी अंतिम कहानी 'कफ़न' पर 'ओका ऊरी कथा' (१९७७) यह तेलुगु फिल्म बनाई!
'शतरंज के खिलाडी' (१९७७) में सईद जाफ़री और संजीवकुमार! |
'निर्मला' में अमृता सुभाष! |
मुंशी प्रेमचंदजी का साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिंदी भाषा विकास का अध्ययन अधुरा होगा... वह आज भी प्रासंगिक है!
इस महान साहित्यकार को मेरी यह विनम्र आदरांजली.!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
Friday 6 October 2017
बॉलीवुड का हैंडसम वी.के.!
(७१ वे जनमदिन पर याद!)
'इम्तिहान' (१९७४) में विनोद खन्ना! |
'इम्तिहान' (१९७४) फ़िल्म में आधुनिक ख़यालात का अध्यापक का किरदार करनेवाले विनोद खन्ना पर यह गाना चित्रित हुआ था। अंग्रेजी फ़िल्म 'टू सर विथ लव' (१९६७) से प्रेरित इस फ़िल्म में उनका अभिनय फ़िल्म करियर का बेहतरीन रहा।..असल ज़िन्दगी में भी आखरी वक़्त वह इस तरह मौत से जूझते रहे..!
'मेरा गांव मेरा देस' (१९७१) में विनोद खन्ना! |
'मेरे अपने' (१९७१) में शत्रुघ्न सिन्हा को ललकारनेवाला विनोद खन्ना! |
दरमियान अपने समकालिन अभिनेताओं के साथ सहकलाकार की भूमिकाएं विनोद खन्ना बख़ूबी निभाते रहे।..जैसे कि कबीर बेदी के साथ 'कच्चे धागे' (१९७३), जितेन्द्र के साथ 'आनोखी
'अचानक' (१९७४) में विनोद खन्ना! |
'खून पसीना' (१९७७) में अमिताभ बच्चन के सामने विनोद खन्ना! |
'क़ुर्बानी' (१९८०) में विनोद खन्ना, अमजद खान और फ़िरोज़ खान! |
इसी काल में विनोद खन्ना फिल्म इंडस्ट्री से दूर जा कर आचार्य रजनीश (ओशो) के शिष्य बन चुके थे और १९८२ से सन्यासी हो गए..कुछ साल अमरिका भी गए! फिर १९८७ में वह फ़िरसे अपनी फिल्मी दुनिया में लौट आए..और मुकुल आनंद की फिल्म 'इन्साफ़' में डिंपल कपाड़िया के साथ काम किया।
इसके बाद उन्होंने जो फिल्में की उसमें उल्लेखनीय रही अरुणा राजे की 'रिहाही' (१९८८), लता मंगेशकरजी निर्मित 'लेकिन' (१९९१) और जे. पी. दत्ता की 'क्षत्रिय' (१९९३). इसके बाद १९९७ में उन्होंने 'हिमालय पुत्र' फिल्म का निर्माण कर के अपने बेटे अक्षय खन्ना को परदेपर लाया!
'लीला' (२००२) में विनोद खन्ना! |
बाद में विनोद खन्नाजी ने राजनीति में प्रवेश किया और पंजाब के गुरुदासपुर से दो बार चुनाव जित गए..और दो बार केंद्रीय मंत्री भी बने। फिर भी वह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहे! २००७ में तो उन्होंने 'गॉडफादर ' इस पाकिस्तानी फ़िल्म में भी काम किया! उन्हें काफ़ी पुरस्कार मिले और 'फ़िल्मफ़ेअर' का 'लाइफ़टाईम अचीवमेंट अवार्ड' भी प्राप्त हुआ!
आज जब वह नहीं रहे तब 'मुक़द्दर का सिकन्दर' फ़िल्म का शिर्षक गाना याद आया!..हालाकि यह गाना अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माया गया था; लेकिन जब यह पंक्तियाँ आती है..
"जिंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी..
मौत महेबूबा है अपने साथ लेकऱ जाएगी!"
..तब कैमेरा रास्ते के बाजू में खड़े विनोद खन्ना पर जाता है, जो अर्थपूर्णता से हलकासा हँसता है!
मुझे अब भी याद आ रहा है बम्बई में 'सिनेमा १००' समारोह में उनसे मिलना!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
Wednesday 4 October 2017
भारतीय सिनेमा की मासूम ख़ूबसूरत अदाकारा और पसंदीदा सोहा अली ख़ान को सालगिरह मुबाऱक!
बांग्ला 'इति श्रीकांता' (२००४), 'अंतरमहल' (२००५) से हिंदी 'रंग दे बसंती' (२००६), 'खोया खोया चाँद' (२००७) और '३१ अक्टूबर' (२०१६) तक..अलग जॉनर की फिल्मों में अपनी अदाकारी के अलग पहलू दिखानेवाली यह अभिनेत्री..और अच्छे किरदारों में परदे पर आए यह शुभकामनाएं!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी')
बांग्ला 'इति श्रीकांता' (२००४), 'अंतरमहल' (२००५) से हिंदी 'रंग दे बसंती' (२००६), 'खोया खोया चाँद' (२००७) और '३१ अक्टूबर' (२०१६) तक..अलग जॉनर की फिल्मों में अपनी अदाकारी के अलग पहलू दिखानेवाली यह अभिनेत्री..और अच्छे किरदारों में परदे पर आए यह शुभकामनाएं!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी')
Monday 2 October 2017
भारतीय सिनेमा की परीरानी..शकीला!
'हातिमताई' (१९५६) में परी बनी शकीला का अंदाज़! |
भारतीय सिनेमा के सुवर्ण युग की शोख़ अदाकारा शकीला गुज़र जाने की ख़बर दिल को छू गयी!
१९४९ की फिल्म 'दुनिया' से परदेपर आयी ख़ूबसूरत शकीला ने पहले षोडश लड़की की भूमिकांए निभायी थी..जैसी की 'दास्ताँन' (१९५०) में मशहूर गायिका-अभिनेत्री सुरय्या का शुरू का किरदार! लेकिन उसने दर्शकों का ध्यान अपने तरफ खिंचा गुरुदत्त की हिट फिल्म 'आर पार' (१९५४) में..इसमें क्लब में उसने पेश किया हुआ "बाबूजी धीरे चलना.." यह गाना और उसकी दिलकश अदा छा गयी!
'आर पार' (१९५४) के "बाबूजी धीरे चलना." गाने में शकीला! |
अभिनेत्री की तौर पर अपने फिल्म करिअर की शुरुआत में शकीला ने
कोस्ट्युम ड्रामाज तथा पोषाखी फिल्मों में भूमिकांए की..जैसी की १९५४ में
बनी 'गुल बहार', 'लाल परी', 'अलीबाबा और ४० चोर', 'नूर महल' और १९५५ में
बनी मशहूर 'हातिमताई', 'रूप कुमारी'! ज्यादातर 'वाडिया मूवीटोन' ने बनायीं
इन फिल्मों में महीपाल और जयराज जैसे
उसके नायक थे!..'हातिमताई' के "झूमती है नज़र.." गाने में परी बनी शकीला का
अंदाज़ बहोत ख़ूब था!
फिल्म करिअर की चोटी पर देव आनंद, राज कपूर और शम्मी कपूर जैसे मशहूर अभिनेताओं की शकीला नायिका बनी! इसमें उसकी चुलबुली और शोख़ अदाएं लाजवाब थी..जैसे की 'सी. आई. डी.' (१९५६) में देव आनंद के साथ "आँखों ही आँखों में इशारा हो गया.." रूमानी गाने में और 'चाइना टाउन' (१९६२) में शम्मी कपूर उसकी तरफ इशारा करके "बार बार देखो.." डांस करता है तब!
फिर राज कपूर के साथ 'श्रीमान सत्यवादी' (१९६०), मनोज कुमार के साथ 'रेशमी रूमाल' (१९६१) और मेहमूद के साथ 'कहीं प्यार ना हो जाए' (१९६३) ऐसी फिल्में करने के बाद..शादी होने पर शकीला रूपहले परदे से रुख़सत हो गई..लंदन चली गयी और फिर यहाँ लौट आयी!
आज जब वह इस दुनियाँ में नहीं रहीं तो..'उस्तादों के उस्ताद' (१९६३) फिल्म में प्रदीप कुमार ने उसके लिए गाया गाना दोहराने को मन कर रहां है...
"सौ बार जनम लेंगे..
सौ बार फ़ना होंगे..
ऐ जान-ए-वफ़ा फिर भी..
हम तुम न जुदा होंगे..."
उन्हें मेरी यह सुमनांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
'सी.आई.डी.' (१९५६) के "आँखों ही आँखों में." गाने में देव आनंद के साथ शकीला! |
फिल्म करिअर की चोटी पर देव आनंद, राज कपूर और शम्मी कपूर जैसे मशहूर अभिनेताओं की शकीला नायिका बनी! इसमें उसकी चुलबुली और शोख़ अदाएं लाजवाब थी..जैसे की 'सी. आई. डी.' (१९५६) में देव आनंद के साथ "आँखों ही आँखों में इशारा हो गया.." रूमानी गाने में और 'चाइना टाउन' (१९६२) में शम्मी कपूर उसकी तरफ इशारा करके "बार बार देखो.." डांस करता है तब!
'चाइना टाउन' (१९६२) में शम्मी कपूर और शकीला! |
फिर राज कपूर के साथ 'श्रीमान सत्यवादी' (१९६०), मनोज कुमार के साथ 'रेशमी रूमाल' (१९६१) और मेहमूद के साथ 'कहीं प्यार ना हो जाए' (१९६३) ऐसी फिल्में करने के बाद..शादी होने पर शकीला रूपहले परदे से रुख़सत हो गई..लंदन चली गयी और फिर यहाँ लौट आयी!
आज जब वह इस दुनियाँ में नहीं रहीं तो..'उस्तादों के उस्ताद' (१९६३) फिल्म में प्रदीप कुमार ने उसके लिए गाया गाना दोहराने को मन कर रहां है...
"सौ बार जनम लेंगे..
सौ बार फ़ना होंगे..
ऐ जान-ए-वफ़ा फिर भी..
हम तुम न जुदा होंगे..."
उन्हें मेरी यह सुमनांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
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