सामाजिक सिनेमा के कथास्रोत..महानतम उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंदजी!
(८१ वे स्मृतिदिन पर नमन!)

उनके साहित्यसे पहली बार मैं परीचित हुआ पाठशाला की किताब में पढ़ी उनकी एक लघुकथा से..और उसमें प्रतिबिंबित जीवनानुभव से मैं बहोत प्रभावित हुआ!

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'गोदान' (१९६३) में राजकुमार, कामिनी कौशल, मेहमूद और शोभा खोटे! |
कहानीकार के साथही सामाजिक विषयोंपर भी उन्होंने 'स्वदेश' और 'जागरण' जैसी पत्रिकाओंमें लिखा और विद्वान् संपादक भी रहे! १९३६ में लखनऊ में हुए 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ' सम्मेलन के वह अध्यक्ष रहे!
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'गबन' (१९६६) में साधना और सुनिल दत्त! |
रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्रों में भी मुंशी प्रेमचंदजी का योगदान रहा। 'संग्राम' (१९२३) और 'प्रेम की वेदी' (१९३३) जैसे नाटक उन्होंने लिखे और उनकी कई कहानियोंपर फिल्में बनी...इसमें सर्वप्रथम त्रिलोक जेटलीने 'गोदान' (१९६३) बनाई..जिसमे राजकुमारने बेहतरीन काम किया था! फिर जानेमाने फ़िल्मकार हृषिकेश मुखर्जी ने 'गबन' (१९६६) बनाई; तो ख्यातनाम फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनकी अंतिम कहानी 'कफ़न' पर 'ओका ऊरी कथा' (१९७७) यह तेलुगु फिल्म बनाई!
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'शतरंज के खिलाडी' (१९७७) में सईद जाफ़री और संजीवकुमार! |
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'निर्मला' में अमृता सुभाष! |
मुंशी प्रेमचंदजी का साहित्य एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिंदी भाषा विकास का अध्ययन अधुरा होगा... वह आज भी प्रासंगिक है!
इस महान साहित्यकार को मेरी यह विनम्र आदरांजली.!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
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