Sunday 22 October 2017

रूमानी फ़िल्मकार 

यश चोपड़ा! 

- मनोज कुलकर्णी  

 'किंग ऑफ़ रोमैंटिक बॉलीवुड' ऐसी शोहरत जिन्होंने हासिल की..वह फिल्म निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा जी अपना रुपहला परदा छोड़ कर चले गए..इसे अब पाँच साल हुए!





{यशजी की आखरी फिल्म 'जब तक है जान' (२०१२) में
अनुष्का शर्मा, शाहरुख़ खान और कैटरीना क़ैफ़!}

हालांकि यशजी ने सभी महत्वपूर्ण जॉनर की फिल्में बनायी..जैसी की करिअर की शुरुआत में बड़े भाई मशहूर फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा साहब की निर्मिती में उन्होंने निर्देशित की हुई सोशलस 'धुल का फूल' (१९५९) यह राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा अभिनीत विवाह पूर्व संतान विषय पर और 'धर्मपुत्र' (१९६१) यह शशी कपूर अभिनीत पार्टीशन तथा मूलतत्ववाद पर प्रकाशझोत डालनेवाली!

यशजी निर्देशित पहली 'धुल का फूल' (१९५९) के उस गाने में मनमोहन कृष्ण !

"तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा.."

साहिरजी ने लिखा यह उनके 'धूल का फूल' का गाना धर्मनिरपेक्षता की बड़ी सीख़ देता है! इसके बाद 'वक़्त' (१९६५) यह पहली मल्टी स्टारर फ़िल्म यशजी ने निर्देशित की। बलराज साहनी, अचला सचदेव, सुनिल दत्त, साधना, शशी कपूर और शर्मिला टैगोर जैसे जाने माने कलाकार इसमें थे। 'लॉस्ट एंड फाउंड' का प्लॉट रही इस हिट फिल्म में राज कुमार के "जिनके घर शीशे के होते है वो दूसरों पर पत्थर नहीं फ़ेका करते!" ऐसे डायलॉग और अदाकारी दर्शकों को बेहद पसंद आयी! बाद में 'इत्तेफाक' (१९६९) यह बगैर गाने की थ्रिलर उन्होंने बनायी जिसमें राजेश खन्ना और नंदा की वेधक भूमिकांए थी।

वक़्त' (१९६५) में राज कुमार, सुनील दत्त, साधना, शर्मिला टैगोर और शशी कपूर!

१९७१ में उन्होंने खुद की 'यशराज फ़िल्म्स' यह निर्मिती संस्था शुरू की और सही मायने में यही से उनका रोमैंटिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ! इसके द्वारा पहली रोमैंटिक फिल्म उन्होंने सादर की 'दाग' (१९७३) जो की बहुपत्नीत्व को भी स्पर्श कर गई..इस त्रिकोणीय प्रेमकथा में राजेश खन्ना के साथ राखी और शर्मिला टैगोर ने ख़ूब रूमानी रंग भरे! इस फिल्म की सफलता के बाद तो उन्होंने 'कभी कभी' (१९७६) यह मल्टी स्टारर रोमैंटिक फ़िल्म बनायी; जिसमें वहिदा रहमान, शशी कपूर, ऋषि कपूर, नीतू सिंह और राखी के साथ अमिताभ बच्चन शायराना अंदाज़ में था!

यशजी निर्मित-निर्देशित 'दाग' (१९७३) में राखी, राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर।

वैसे यशजी ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्में बनाना १९७५ में 'दीवार' से ही शुरू किया था...इसमें 'त्रिशुल' (१९७८) और 'काला पत्थर' (१९७९) ऐसी फिल्मों में अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध आवाज और हाथ उठानेवाला यह एंग्री यंग मैन युवा वर्ग पर असर करके बहोत लोकप्रिय हुआ! इसके बाद १९८१ में उन्होंने 'सिलसिला' यह ऐसी त्रिकोणीय प्रेम की फिल्म बनायी जो वास्तव में चर्चित ऐसे किरदार..तीन कलाकारों को एक साथ परदे पर ले आयी..अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी-बच्चन और रेखा!
'सिलसिला' ( १९८१) में  रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन!


अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को एक और अलग ऊंचाई पर लेने वाला किरदार यशजी ने दिया 'मशाल' (१९८४) फ़िल्म मे..जो वसंत कानेटकर लिखित मराठी नाटक 'अश्रुंची झाली फुले' पर आधारित थी। इस फ़िल्म से अनिल कपूर भी उभर आए!
यशजी की पसंदीदा 'लमहें' (१९९१) में श्रीदेवी और अनिल कपूर!






 त्रिकोणीय प्रेम कथा वैसे यशजी का एक पसंदीदा विषय रहा ही था.. इसमें १९८९ में आयी उनकी हिट फिल्म 'चॉँदनी' (१९८९) श्रीदेवी ने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ बखूबी साकार की। इससे खूबसूरत (परदेशी) लोकेशन्स और संगीत (शिव-हरी जैसे) के साथ यशजी का 'रोमैंटिक म्यूजिकल' का अपना जॉनर विकसित हुआ! इसमें १९९१ में श्रीदेवी को अनिल कपूर के साथ दोहरे किरदारों में पेश करनेवाली अनोखी रूमानी फिल्म उन्होंने बनायी..'लमहें' जो उनकी खुद की एक पसंदीदा फ़िल्म रही!
"जादू तेरी नज़र.."..'डर' (१९९३) में जूही चावला!


फिर इस सदी के सुपरस्टार शाहरुख़ खान को लेकर यशजी अपनी हिट रोमैंटिक म्यूजिकल फिल्में बनाते गए..इसमें 'डर' (१९९३) में जूही चावला और 'दिल तो पागल है' (१९९७) में करिश्मा कपूर के साथ माधुरी दीक्षित की खूबसूरती निखर आई! यह फिल्में "जादू तेरी नज़र.." का रूमानी अहसास नई पीढ़ी के आशिकों को दे गई और "ढोलना.." के धुन पर वह डोलने लगे!



'दिल तो पागल है' (१९९७) में माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर और शाहरुख़ खान!

२००४ में फिर यशजी ने पार्टीशन के पृष्ठभूमी पर फ़िल्म बनायी 'वीर ज़ारा' जिसके लिए उन्होंने म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट किया..गुज़रे हुए संगीतकार मदनमोहनजी की धुनें इस्तिमाल की..इसके "तेरे लिए.." गाने पर शाहरुख़ खान और प्रीति ज़िंटा की लाज़वाब अदाकारी देखने को मिली। इसके बाद २०१२ में 'जब तक है जान' यह आखरी फ़िल्म बनाकर वह इस दुनिया से चल बसे!
'वीर ज़ारा' (२००४) में शाहरुख़ खान, प्रीति ज़िंटा और रानी मुख़र्जी!



अपने पांच दशक के फ़िल्म कैरियर में यशजी ने लगभग पचास फ़िल्मे बनायी। उनको काफ़ी सम्मान मिले..इसमें छह नेशनल और ग्यारह फ़िल्मफेअर अवार्ड्स शामिल है। इसके साथ ही उनको भारत सरकार की तरफ से 'पद्मभूषण' और हमारे सिनेमा क्षेत्र का सर्वोच्च 'दादासाहेब फालके पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

यशजी से मिलने के कई 'लमहें' आज मेरे आँखों के सामने है!..वाकई में रूमानी शक्सियत थे वह!

उनको मेरी यह सुमनांजली!!


- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

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