Friday 6 October 2017

बॉलीवुड का हैंडसम वी.के.!

(७१ वे जनमदिन पर याद!)


 'इम्तिहान' (१९७४) में विनोद खन्ना!
"रुक जाना नहीं तू कहीं हार के.."

'इम्तिहान' (१९७४) फ़िल्म में आधुनिक ख़यालात का अध्यापक का किरदार करनेवाले विनोद खन्ना पर यह गाना चित्रित हुआ था। अंग्रेजी फ़िल्म 'टू सर विथ लव' (१९६७) से प्रेरित इस फ़िल्म में उनका अभिनय फ़िल्म करियर का बेहतरीन रहा।..असल ज़िन्दगी में भी आखरी वक़्त वह इस तरह मौत से जूझते रहे..!


'मेरा गांव मेरा देस' (१९७१) में विनोद खन्ना!
हैंडसम विनोद खन्ना सर्वप्रथम खलनायक के रूप में 'मन का मीत' (१९६८) इस सुनिल दत्त की फ़िल्म में नज़र आए। फिर ऐसेही किरदार राजेश खन्ना ('आन मिलो सजना'/१९७०/) और धर्मेंद्र ('मेरा गांव मेरा देस'/१९७१) जैसे उस ज़माने के लोकप्रिय नायकों के साथ उन्होंने सफलतासे निभाए।
'मेरे अपने' (१९७१) में शत्रुघ्न सिन्हा को ललकारनेवाला विनोद खन्ना!
इसके बाद गुलज़ारजी ने अपनी फ़िल्म 'मेरे अपने' (१९७१) में शत्रुघ्न सिन्हा को परदेपर "छेनू" ऐसा ललकारने वाला..नया एक्शन हीरो बना दिया विनोद खन्ना को!..जिन्होंने बाद में उनके 'अचानक' (१९७४) इस सत्यघटना पर बनी फ़िल्म में अलग ही यादगार किरदार निभाया! फिर 'हाई एंड लो' (१९६३) इस अकीरा कुरोसवा की जापनीज फ़िल्म पर बनी 'इन्कार' (१९७७) यह उनकी अकेले नायक के रूप में हिट हुई पहली फ़िल्म रही!


दरमियान अपने समकालिन अभिनेताओं के साथ सहकलाकार की भूमिकाएं विनोद खन्ना बख़ूबी निभाते रहे।..जैसे कि कबीर बेदी के साथ 'कच्चे धागे' (१९७३), जितेन्द्र के साथ 'आनोखी
'अचानक' (१९७४) में विनोद खन्ना!
अदा' (१९७४), रणधीर कपूर के साथ 'हाथ की सफाई' (१९७५), सुनिल दत्त के साथ 'नेहले पे देहला' (१९७६), ऋषी कपूर और अमिताभ बच्चन के साथ सुपरहीट 'अमर अकबर अन्थोनी' (१९७७). इस सुपरस्टार के साथ उन्होंने अधिक फिल्में की..जिसमे 'हेरा फेरी', 'परवरीश' जैसी इसी साल में प्रदर्शित सफल फिल्मों का समावेश होता है।
'खून पसीना' (१९७७) में अमिताभ बच्चन के सामने विनोद खन्ना!
इसमें कुछ फिल्मों में तो उनका अभिनय दूसरोंसे हावी भी रहा..जैसे की 'खून पसीना' में ज्यादा बोलने वाले अमिताभ बच्चन के सामने उनका बहोत कम बोलनेवाला करारी किरदार! उसी तरह १९८० में बनीं फ़िरोज़ खान की 'क़ुर्बानी' और धर्मेंद्र, डैन्नी के साथ वाली 'द बर्निंग ट्रैन' में उनका किरदार कर्तव्यदक्ष प्रभावी रहा!
'क़ुर्बानी' (१९८०) में  विनोद खन्ना, अमजद खान और फ़िरोज़ खान!

इसी काल में विनोद खन्ना फिल्म इंडस्ट्री से दूर जा कर आचार्य रजनीश (ओशो) के शिष्य बन चुके थे और १९८२ से सन्यासी हो गए..कुछ साल अमरिका भी गए! फिर १९८७ में वह फ़िरसे अपनी फिल्मी दुनिया में लौट आए..और मुकुल आनंद की फिल्म 'इन्साफ़' में डिंपल कपाड़िया के साथ काम किया।

इसके बाद उन्होंने जो फिल्में की उसमें उल्लेखनीय रही अरुणा राजे की 'रिहाही' (१९८८), लता मंगेशकरजी निर्मित 'लेकिन' (१९९१) और जे. पी. दत्ता की 'क्षत्रिय' (१९९३). इसके बाद १९९७ में उन्होंने 'हिमालय पुत्र' फिल्म का निर्माण कर के अपने बेटे अक्षय खन्ना को परदेपर लाया!
'लीला' (२००२) में  विनोद खन्ना!

बाद में विनोद खन्नाजी ने राजनीति में प्रवेश किया और पंजाब के गुरुदासपुर से दो बार चुनाव जित गए..और दो बार केंद्रीय मंत्री भी बने। फिर भी वह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहे! २००७ में तो उन्होंने 'गॉडफादर ' इस पाकिस्तानी फ़िल्म में भी काम किया! उन्हें काफ़ी पुरस्कार मिले और 'फ़िल्मफ़ेअर' का 'लाइफ़टाईम अचीवमेंट अवार्ड' भी प्राप्त हुआ!

आज जब वह नहीं रहे तब 'मुक़द्दर का सिकन्दर' फ़िल्म का शिर्षक गाना याद आया!..हालाकि यह गाना अमिताभ बच्चन पर फ़िल्माया गया था; लेकिन जब यह पंक्तियाँ आती है..
"जिंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी..
मौत महेबूबा है अपने साथ लेकऱ जाएगी!"
..तब कैमेरा रास्ते के बाजू में खड़े विनोद खन्ना पर जाता है, जो अर्थपूर्णता से हलकासा हँसता है!

मुझे अब भी याद आ रहा है बम्बई में 'सिनेमा १००' समारोह में उनसे मिलना!!

- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]

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