Friday 9 July 2021

तो वो आफ़ताब थे!


"चौदहवीं का चाँद हो.." इस शीर्षक गीत में रूमानी होतें गुरुदत्त और वहीदा रहमान!

हमारे भारतीय सिनेमा के स्वर्णयुग के महान फ़िल्मकार-अभिनेताओं में से एक गुरुदत्त साहब आज ९६ साल के होते!

'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) के निर्देशक एम्. सादिक़!
विश्वसिनेमा की मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में उनकी 'प्यासा' सबसे ऊँचे स्थान पर हैं और उसपर मैं हमेशा बहोत लिखता आ रहा हूँ। उसके अलावा शायराना रूमानीपन पसंद होने के कारन, आज मैं उनकी दूसरी, मेरी पसंदीदा फ़िल्म पर ख़ासकर लिख रहां हूँ, जिसे अब साठ साल पुरे हुएँ..वो हैं १९६० की 'चौदहवीं का चाँद'!

उससे एक साल पहले उन्होंने बनायी थी 'कागज़ के फूल' (१९५९) जो गुरुदत्त जी के दिल के क़रीब थी। लेकिन उसे सफ़लता न मिलने पर, उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म रोमैंटिक 'मुस्लिम - सोशल' करने का सोचा! इसके साथ ही उन्होंने निर्देशन ख़ुद के बजाय मोहम्मद (एम्) सादिक़ जी को सौंपा। और बिरेन नाग़ को उस माहौल के कलानिर्देशन के लिए चुना!

 
'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) फ़िल्म के पोस्टर पर गुरुदत्त, वहीदा रहमान और रेहमान!
इससे पहले गुरुदत्त जी की क्लासिक फ़िल्में लिखे अबरार अल्वी जी को सिर्फ़ पटकथा लिखनी थी; क्योंकि सग़ीर उस्मानी जी ने लिखी थी इस 'चौदहवीं का चाँद' की कहानी! तहज़ीब, नज़ाकत और नफ़ासत के शहर लखनऊ में फ़ूलनेवाली यह त्रिकोणीय प्रेमकथा थी। इसमें नवाब - (रेहमान) और उसके अज़ीज दोस्त अस्लम (गुरुदत्त) का दिल एक ही हसीना जमीला (वहीदा रहमान) पर आता हैं। फ़िर दोस्त के लिए क़ुर्बानी.. और बीच में प्यार का होता बुरा हाल इसमें बड़ी संवेदनशीलता से दिखाया हैं।

'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) के गायक मोहम्मद रफ़ी, गीतकार शक़ील बदायुनी और संगीतकार रवि जी!
शायराना अंदाज़ से जाती इस फ़िल्म के रूमानी गीत शक़ील बदायुनी जी ने लाजवाब लिखें थें और रवि जी ने उसी लहजे में संगीतबद्ध किएं थें। जो लता मंगेशकर, गीता दत्त, आशा भोसले, शमशाद बेग़म और मोहम्मद रफ़ी जी ने ख़ूब गाएं। इसका फ़िल्मांकन इस बार सिनेमैटोग्राफर नरिमन ईरानी जी ने बड़ी कल्पकता से किया था! इसमें "ये लखनऊ की सर-ज़मीं.." इस शुरुआती गीत में उन्होंने उस शहर की ख़ासियत को बख़ूबी चित्रित किया हैं। साथही उन दोनों के दोस्त बने जॉनी वॉकर पर निक़ाह के समय फ़िल्माया "मेरा यार बना हैं दूल्हा.." और कोठे पर मीनू मुमताज़ ने लाजवाब सादर किया "दिल की कहानी रंग लायी हैं.." मुज़रा..इनका फ़िल्मांकन भी बहोत कुछ कहता हैं!

'चौदहवीं का चाँद' (१९६०) फ़िल्म के एक रूमानी दृश्य में गुरुदत्त और वहीदा रहमान
इस फ़िल्म में गुरुदत्त और वहीदा रहमान का इश्क़ बड़ी उत्कटता से सामने आता हैं। ख़ासकर रफ़ी जी ने बड़ी रूमानियत से गाए इसके शीर्षक गीत में देखिएं.. "चौदहवीं का चाँद हो.." कहते गुरुदत्त की आँखें प्यार बयां करती हैं और बाद में वहीदा सहजतासे उसके गले लगती हैं..यह इज़हार-ए-मोहब्बत स्वाभाविकता से उभर आया!

 
यह फ़िल्म बड़ी क़ामयाब रही और इसे पुरस्कार भी मिले। तथा '२ रे मॉस्को अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह' में इसे दिखाया गया।

इस तरह का नज़ाकतदार शायराना रूमानीपन मुझे तो बड़ा भाता हैं!

आख़िर में मुझे यह कहना हैं, वहीदा जी को इसमें चाँद कहा गया हैं..तो हमारे लिए गुरुदत्त आफ़ताब थे!!

- मनोज कुलकर्णी

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