यूँ ही पहलू में बैठे रहो.."
फ़रीदा ख़ानम जी की गायी यह ग़ज़ल सुन रहा था..
इसके शायर फ़य्याज़ हाशमी जी का जन्मशताब्दी साल अब हो गया हैं!
कलकत्ता में शायराना माहौल में जन्मे फ़य्याज़ हाश्मी ने स्कूली जीवन में ही अपनी पहली नज़्म लिखी "चमन में ग़ुंचा-ओ-गुल का तबस्सुम देखने वालों.."
१९४१ में उनका पहला गीत गाया था तलत महमूद ने..जिन्होंने उनका बाद में यह मशहूर किया "तस्वीर तेरी दिल मेरा बेहेला न सकेगी.."
१९५५ में उन्होंने फिल्मों के लिए गीत लिखना शुरू किया और पहले लिखे यहाँ भारत में बनी 'बारा-दरी' के! उसके बाद पाकिस्तान में उन्होंने उर्दू में बनी क़रीब १५ फ़िल्मों के गानें लिखें। जिसमें थी.. 'बेदारी' (१९५६) जिसे संगीत दिया था (मशहूर गायक नुसरत फ़तेह अली खां के वालिद) फ़तेह अली ख़ान जी ने!
अब लोग रूमानी होकर "आज जाने की ज़िद ना करो.." तो गुनगुनातें हैं लेकिन इसके शायर कौन यह उन्हें कहां मालुम होता हैं!
ऐसे में उन्ही की नज़्म याद आती हैं जिसे वहां १९६७ में 'बेस्ट लिरिसिस्ट' का 'निगार अवार्ड' मिला था..
"चलो अच्छा हुआ तुम भूल गएँ.."
उन्हें यह आदरांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
No comments:
Post a Comment