Thursday 8 July 2021

विशेष लेख:

सैथ्यु..समानांतर सिनेमा के मानदंड!


दिग्गज फ़िल्मकार एम्.एस. सैथ्यु!


उर्दू फ़िल्म 'ग़र्म हवा' (१९७३) में शौक़त आज़मी,
गीता सिद्धार्थ, फ़ारूक़ शैख़ और बलराज साहनी!
"हर घर में चीता जलती थी, लहरातें थे शोले
हर शहर में शमशान, वहां भी था..यहाँ भी!"

कोयले के धुँवे में सरहद से जाती रेल के दृश्य की पृष्ठभूमी पर यह 'कैफ़ी'यत बयां होती हैं!

आज़ादी के साथ अपने देश को सहनी पड़ी (जैसे दिल को चीरती) बटवारे की पीड़ा को ऐसा परदेपर लाया था उर्दू फ़िल्म 'ग़र्म हवा' (१९७३) ने!

उसके बड़े दिग्गज फ़िल्मकार एम्.एस. सैथ्यु साहब की ९१ वी  सालगिरह हाल ही में संपन्न हुई!!

मैसूर से १९५२ के दौरान वे एनिमेटर का काम करने बंबई आए। बाद में मशहूर फ़िल्मकार चेतन आनंद के असिस्टेंट डायरेक्टर बन गए। १९६४ में उनकी फ़िल्म 'हक़ीक़त' का आर्ट डिरेक्शन उन्होंने किया और उसके लिए पुरस्कार भी जीता।

'कण्णेश्वरा रामा' (१९७७) इस कन्नड़ा फ़िल्म में शबाना आज़मी!

दरमियान
उन्होंने 'हिंदुस्तानी थिएटर' और 'कन्नडा भारती' के लिए थिएटर डिज़ाइनर के हैसियत से काम भी किया। बाद में 'दारा - शिकोह' और 'आख़री शमा' जैसे नाटक उन्होंने ख़ुद भी मंच पर लाएं!

फ़िर 'ग़ालिब' पर डॉक्यूमेंटरी बनाने वाले - उनका उन्हीकी शॉर्ट फ़िल्म 'इर्शाद' से सिनेमा की तरफ़ रुख़ हुआ था! और १९७३ में उन्होंने अपनी फ़ीचर फ़िल्म के लिए देश की आज़ादी के बाद सभी के दिलों में सुलगता बटवारे का जज़्बा चुना!

वह फ़िल्म थी 'ग़र्म हवा'..मशहूर लेखिका इस्मत चुग़ताई की कहानी पर उन्होंने अबु सिवानी और कल्पक सिनेमैटोग्राफर ईशान आर्य के साथ निर्माण की उर्दू फ़िल्म! शमा ज़ैदी जी के साथ शायर कैफ़ी आज़मी जी ने इस की पटकथा लिखी थी और गीत भी। सरोद वादक उस्ताद बहादूर ख़ान जी ने इस का संगीत किया था जिसमें वारसी ब्रदर्स की क़व्वाली बड़ी मशहूर हुई।

'गलीज' (१९९४) फ़िल्म के पोस्टर पर शैलजा और अन्य कलाकार!
आग्रा स्थित मुस्लिम परिवार को बटवारे के बाद झेलनी पड़ी पीड़ा को इसमें निर्देशक सैथ्यु जी ने बड़ी संवेदनशीलता से दिखाया हैं। इसमें ए.के. हंगल, दीनानाथ ज़ुत्शी, बदर बेग़म, शौक़त आज़मी, जलाल आगा, गीता सिद्धार्थ और फ़ारूक़ शैख़ ने अपने क़िरदार बख़ूबी - निभाएं। और उस परिवार के मुखिया के रूप में मंजे हुए अभिनेता बलराज साहनी जी ने तो कमाल का काम किया, जो इस फ़िल्म की रिलीज़ के पहले ही चल बसे! इसमें "जो भागें हैं उनकी सज़ा उन्हें क्यूँ दी जाए जो ना भागें हैं, ना भागना चाहतें हैं!" यह संवाद बोलते हुए उनका अभिनय दिल को छू लेता हैं!

'ग़र्म हवा' को 'सर्वोत्कृष्ट फ़िल्म' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 'ऑस्कर' के लिए भी वह भेजी गयी थी। इस के साथ 'कांन्स फ़िल्म फेस्टिवल' में भी इसे सम्मान के साथ दिखाया गया। अब तक अपने भारतीय सिनेमा की वह एक मानदंड रही हैं!
 
'इज्जोड़ू' (२०१०) फ़िल्म में मलयालम अभिनत्री मीरा जस्मिन!
उसके बाद सैथ्यु जी ने कुछ साउथ इंडियन फ़िल्में बनायी जो अपने 'राष्ट्रीय फ़िल्म - समारोह' (इफ्फी) का हिस्सा रहीं..जैसे की 'चित्तेगु चिन्थे'! इसमें उनकी 'कण्णेश्वरा रामा' (१९७७) यह पोलिटिकल - कन्नड़ा फ़िल्म बहोत सराही गयी, जिसमें अनंत नाग़ और शबाना आज़मी ने भूमिकाएं निभायी थी।

बाद में वे 'कहाँ कहाँ से गुज़र गया' (१९८१) जैसे लिरिकल फ़िल्म से भी व्यक्त होते गए! फ़िर उन्होंने टेलीविज़न का भी रुख़ किया और 'प्रतिध्वनि' (१९८५) जैसे धारावाहिक निर्देशित किएं।..और 'एक हादसा चार पहलु' जैसी टेलीफ़िल्म्स भी बनायीं! २०१० में उन्होंने 'इज्जोड़ू' यह कंटेम्पररी रोमैंटिक फ़िल्म बनायी, जिसमे प्रसिद्ध मलयालम अभिनत्री मीरा जस्मिन ने प्रमुख भूमिका की थी!

सैथ्यु जी को 'संगीत नाटक अकादमी', कर्नाटक सरकार इन के पुरस्कार और अपने भारत सरकार की तरफ़ से 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया!

मेरी एक दफ़ा पुणे के 'एफ.टी.आय.आय.' के समारोह दरमियान हुए स्नेहभोजन में उनसे मुलाक़ात हुई..तब बड़ी फ़ुरसत से वे अपनी 'ग़र्म हवा' पर बोले! बाद में फ़ोन पर भी बात होती रहीं।

उन्हें अच्छी सेहत के लिए मेरी शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी

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