Thursday 15 July 2021

वो 'देवदास' अब नहीं!


'देवदास' (१९५५) फ़िल्म के सर्वोच्च शोकाकुल प्रसंग में अपने ट्रैजडी किंग दिलीपकुमार!


'देवदास' (२००२) में माधुरी दीक्षित, शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय!
'इंस्टाग्राम' पर १९ साल पहले इस मौसम में 'कांन्स फिल्म समारोह' में प्रीमियर हुए संजय लीला भंसाली के 'देवदास' का इवेंट फोटो देखा..जिसमें रेड कार्पेट पर भंसाली के साथ शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय दिखायी देते हैं।..ताज्जुब की बात और भी थी की यह फ़िल्म 'ऑस्कर' के लिए भी भेजी गयी थी!

दरसअल, वह फ़िल्म महज़ एक शानदार नज़राना था ख़ूबसूरती और ऊँची निर्मिती मूल्यों (रिच प्रोडक्शन वैल्यूज) का जिसमें शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के देवदास -पारो-चंद्रमुखी इन क़िरदारों की रूंह जैसे दब गयी थी..और रंगीन शान-ओ-शौक़त में मूल सादगी भी!

श्रेष्ठतम फ़िल्मकार बिमल रॉय जी!
बहरहाल, परसो अपने भारतीय - सिनेमा के
एक श्रेष्ठतम फ़िल्मकार बिमल रॉय जी का ११२  वा जनमदिन था; तब ही मुझे उन्होंने १९५५ में बनायी अभिजात देवदास' फ़िल्म याद आयी। मेरा यह पसंदीदा था, उसकी और भी एक वजह थी..अपने ट्रैजडी किंग दिलीपकुमार ने उसे साकार किया था..जो अब नहीं रहें!

ग़ौरतलब की, इससे पहले अपने एक आद्य फ़िल्मकार प्रमथेश बरुआ जी ने १९३५-३६ में दो 'देवदास' बनाएं थे, जिसके हिंदी फ़िल्म के लिए बिमल रॉय ने सिनेमैटोग्राफी की थी। बंगाली फ़िल्म में ख़ुद यह क़िरदार बरुआ ने साकार किया था, जिनके साथ उनकी पत्नि जमुना पारो हुई थी और चन्द्रबती बनी थी चंद्रमुखी! तो हिंदी फ़िल्म में अपने जानेमाने गायक-कलाकार कुंदनलाल सैगल जी ने उसे साकार किया, जिनके साथ जमुना जी ही पारो रही और चंद्रमुखी साकार की राजकुमारी ने!

बंगाली 'देवदास' (१९३५) में प्रमथेश बरुआ और जमुना!
हालांकि, तांत्रिकी दृष्टि से बरुआ जी की फ़िल्म आगे थी! उस में पहली बार उन्होंने पैरलल कटिंग टेक्निक का - इस्तेमाल किया, जिसके लिए उनके पास सुबोध मित्रा जैसे कुशल संकलक थे। एक तरफ़ ट्रेन से पारो को मिलने जाता देवदास और दूसरी तरफ़ पारो को उसका अहसास होना..ये दृश्यं उन्होंने बख़ूबी चित्रित किएं थे। उनका - बंगाली देवदास शरत बाबू की कहानी को सादगी से परदे पर सादर कर गया! तिमिर बरन, आर. सी. बोराल और पंकज मलिक ऐसे प्रतिभाशाली संगीत के लिए इसमें थे!

१९३६ के बरुआ निर्देशित हिंदी 'देवदास' के दृश्यों का - फ़िल्मांकन बिमलदा ने प्रभावी तरीक़े से किया था। उसमें एक तरफ़ पारो की शादी का दृश्य तो दूसरी तरफ़ देवदास का चंद्रमुखी के कोठेपर अस्वस्थ होना ऐसे दृश्यं विशिष्ट रूप से थे। इसमें प्रकृति का विचलित होना उन्होंने लिया! लेकिन यह देवदास मेलोड्रामा किंग सैगल के अधीन गया जिसमें वे अति करुण रस में गाएं। "बालम आये बसो - मोरे मन में.." जैसों को अब भी गुनगुनाया जाता हैं!
 
'देवदास' (१९३६) में राजकुमारी, सैगल और जमुना
 
फिर बिमल रॉय जब निर्माता-निर्देशक बने, तो उन्होंने अपनी - कलात्मक दृष्टि से और यथार्थवाद को लेकर १९५५ में हिंदी फ़िल्म 'देवदास' का निर्माण किया। उसके लिए नबेंदु घोष ने पटकथा लिखी और राजिंदर सिंह बेदी ने संवाद लिखें। साथ ही इन्डेप्थ शॉट्स लेने के लिए सिनेमैटोग्राफर कमल बोस थे! इसकी कास्टिंग अव्वल दर्जा की थी जिसमें..सुचित्रा सेन हुई पारो, वैजयंतीमाला बनी चंद्रमुखी, चुन्नीबाबू हुए थे मोतीलाल और देवदास के लिए अपने अभिनय सम्राट युसुफ़ ख़ान याने दिलीपकुमार!

 
बेहतरीन 'देवदास' (१९५५) फ़िल्म में वैजयंतीमाला, दिलीपकुमार और सुचित्रा सेन!
इस 'देवदास' के दृश्यं अब भी मेरे नज़रों के सामने हैं..
उस मे कलकत्ता से लौटे - देवदास की पारो से मुलाक़ात का कल्पकता से लिया दृश्य तो मेरा पसंदीदा..इस में दिलीप- कुमार और सुचित्रा सेन ने उत्कट प्रेमभाव स्वाभाविकता से दर्शाएं हैं। फ़िर देवदास को रिझाने के लिए चंद्रमुखी नाचती हैं, लेकिन उसका ध्यान उसकी तरफ़ नहीं जाता..वो मन ही मन पारो को याद करता रहता है।..इसमें डिप्रेस आदमी कैसे दिखेगा इसकी मिसाल दिलीपसाहब ने दिखाई। एस. डी. बर्मन के संगीत में लता मंगेशकर ने गाए "जिसे तू क़बूल कर ले.." गाने का वह प्रसंग, जिसमे वैजयंतीमाला ने भी अपनी नृत्यकुशलता के साथ अदाकारी की अनोखी मिसाल रखीं! और पारो के विरह के दुख में बेक़ाबू होकर शराब में लुप्त देवदास का "कौन कम्बख़्त हैं जो बर्दाश करने के लिए पिता हैं" कहना..इसमें तो दिलीपसाहब अपनी ट्रैजडी इमेज को चोटी पर ले गए। दिल को चीर के जाता हैं वह सीन!

हमारे अज़ीज़ दिलीपकुमारजी!
मेरे 'चित्रसृष्टी' के पहले विशेषांक के लिए मैंने दिलीप कुमार जी का - एक्सक्लुजिव्ह इंटरव्यू लिया था। उसमें अपने 'देवदास' पर और ट्रैजेडी इमेज पर वे मुझसे विस्तार से बोले..'अपना पॉज, ख़ामोशी से आँखों से बयां होना' ऐसी अभिनय की ख़ासियत उन्होंने बतायी!

तो असल में बिमलदा और यूसुफ़ साहब का रुंहवाला 'देवदास' था; जिसे 'फ़िल्मफ़ेअर' के साथ 'राष्ट्रीय सम्मान' भी प्राप्त हुआ!

भंसाली का 'देवदास' "डोला.." पर घुमा सकता हैं, लेकिन दिल को छू नहीं सकता!!

- मनोज कुलकर्णी

No comments:

Post a Comment