Sunday 4 July 2021

प्रेम का संदेश पहुँचाता 'मेघदूतम्'!



आषाढ़ मास शुरू होते ही गगन में दिखतें बादलों से..'मेघों द्वारा प्रेमिका तक अपना विरहाकुल संदेश भेजने की'..महाकवि कालिदास की कल्पना याद आती हैं!

'मेघदूतम्' नाम के इस श्रेष्ठ संस्कृत प्रेमकाव्य के कुछ लुभावनें पद्यों में से यह एक और उसका हिंदी अनुवाद..

"त्‍वामालिख्‍य प्रणयकुंपितां धातुरागै: शिलाया-
मात्‍मानं ते चरणपतितं यावदिच्‍छामि कर्तुम्।
अस्‍त्रैस्‍तावत्‍मुहुरूपचितैर्दृष्टिरालुप्‍यते मे
क्रूरस्‍तस्मिन्‍नपि न सहते संगमं नौ कृतान्‍त:।।"

("हे प्रिये, प्रेम में रूठी हुई तुमको गेरू के रंग से चट्टान पर लिखकर
जब मैं अपने आपको तुम्‍हारे चरणों में चित्रित करना चाहता हूँ,
तभी आँसू पुन: पुन: उमड़कर मेरी आँखों को छेंक लेते हैं।
निष्‍ठुर दैव को चित्र में भी तो हम दोनों का मिलना नहीं सुहाता।")


कालिदासजी और 'मेघदूतम्' को सुमनांजलि!!

- मनोज कुलकर्णी

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