प्रेम का संदेश पहुँचाता 'मेघदूतम्'!
'मेघदूतम्' नाम के इस श्रेष्ठ संस्कृत प्रेमकाव्य के कुछ लुभावनें पद्यों में से यह एक और उसका हिंदी अनुवाद..
"त्वामालिख्य प्रणयकुंपितां धातुरागै: शिलाया-
मात्मानं ते चरणपतितं यावदिच्छामि कर्तुम्।
अस्त्रैस्तावत्मुहुरूपचितैर्दृष्टिरालुप्यते मे
क्रूरस्तस्मिन्नपि न सहते संगमं नौ कृतान्त:।।"
("हे प्रिये, प्रेम में रूठी हुई तुमको गेरू के रंग से चट्टान पर लिखकर
जब मैं अपने आपको तुम्हारे चरणों में चित्रित करना चाहता हूँ,
तभी आँसू पुन: पुन: उमड़कर मेरी आँखों को छेंक लेते हैं।
निष्ठुर दैव को चित्र में भी तो हम दोनों का मिलना नहीं सुहाता।")
कालिदासजी और 'मेघदूतम्' को सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
No comments:
Post a Comment