'अमर प्रेम' की ५० वीं वर्षगांठ!
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'अमर प्रेम' (१९७२) में रूमानी सिनेमा की लोकप्रिय जोड़ी..शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना! |
मंदिर टूटा सपनों का...
लोगों की बात नहीं है,
ये क़िस्सा है अपनों का.!"
अपने रूमानी भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जी की एक बेहतरीन फ़िल्म 'अमर प्रेम' (१९७२) के आनंद बख़्शी जी के गीत की यह पंक्तियाँ उसके अकेलेपन में जी रहे इस के किरदार की मनोव्यथा व्यक्त करती हैं।
'निशि पद्मा' (१९७०) इस अरबिंद मुखर्जी निर्देशित बंगाली फ़िल्म की वह हिंदी रीमेक थी। ताज्जुब की बात थी की, सत्यजीत रे की विख्यात वास्तवदर्शी 'पाथेर पांचाली' के लेखक बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की बंगाली लघुकथा 'हिंगेर कोचुरी' पर यह आधारित थी। उत्तम कुमार और साबित्री चटर्जी ने इसमें प्रमुख भूमिकाएँ निभाई थी।
जानेमाने फ़िल्मकार शक्ति सामंथा जी ने बनाई हुई हिंदी 'अमर प्रेम' की पटकथा भी 'निशि पद्मा' के अरबिंदा मुख़र्जी ने ही लिखी थी। इसमें तवायफ़ पुष्पा की अहम भूमिका के लिए शक्तिदा ने शर्मिला टैगोर को ही चुना। उन्ही की 'कश्मीर की कली' (१९६४) से वो हिंदी सिनेमा में आकर स्टार बनी थी, इसीलिए इसे निभाने को वो तैयार हुई। राजेश के किरदार को रिझाने के साथ ही इस आव्हानात्मक भूमिका का और एक भावुक पहलु था पड़ौस के बच्चे को माँ की ममता देना! (सैफ़ के जनम के बाद उसने इसमें काम किया, इसलिए वह दुलार उसमे स्वाभाविकता से आया था!) मास्टर बॉबी और बड़े हुए किरदार में विनोद महरा ने उन भूमकिओं को निभाया।
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'अमर प्रेम' (१९७२) के फ़िल्मकार शक्ति सामंथा! |
'अमर प्रेम' के संवाद रमेश पंत जी ने लिखे थे..कुछ मैलोड्रामैटिक थे जैसे की राजेश का (उसकी लय में) शर्मिला को कहना "रो मत पुष्पा, आय हेट टियर्स!" वैसे उसके किरदार पर कुछ 'देवदास छाप' थी। शराब में दुख को डुबोए जब वो गाता है "पीते हैं तो ज़िन्दा हैं, न पीते तो मर जाते.." तब दिलीपकुमार के 'देवदास' का मशहूर डायलाग "मैं तो पीता हूं की बस सांस ले सकूं.." याद आता हैं!
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'अमर प्रेम' (१९७२) के फ़िल्मकार शक्ति सामंथा, संगीतकार आर. डी. बर्मन और सुपरस्टार राजेश खन्ना! |
शक्तिदा ने बनायीं राजेश खन्ना-शर्मिला टैगोर इस हिट जोड़ी ने 'अमर प्रेम' को बहुत ही तरलता से परदे पर दर्शाया।..अब इसे पचास साल हुए हैं। वाकई में अपने भारतीय सिनेमा की यह एक अमर फ़िल्म बन के रह गई हैं!
- मनोज कुलकर्णी
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