Friday 4 January 2019

अलविदा..कादर ख़ान साहब!!

मशहूर फ़िल्म लेखक तथा कलाकार कादर ख़ान जी!
"पोंछ ले आँसू..दुख को अपना ले..तक़दीर तेरे क़दमों में होंगी..और तू मुक़द्दर का बादशाह होगा!"

'मुक़द्दर का सिकंदर' (१९७८) में कादर ख़ान और मा. मयूर!
संवाद लेखक कादर ख़ान जी खुद फ़क़ीर की भूमिका में यह सुनाते हैं..और वह सुननेवाला लड़का बड़ा होकर मुक़द्दर का सिकंदर होता हैं।

सूपरहिट फ़िल्म 'मुक़द्दर का सिकंदर' (१९७८) का वह शुरुआत का महत्वपूर्ण प्रसंग था। इसके बाद शुरू होनेवाले इसके शिर्षक गीत में (जिसमें अमिताभ बच्चन की एंट्री होती हैं) निर्देशक प्रकाश मेहरा जी ने उन संवादों से चुनी पंक्तियाँ ही पिरोयी थी..

संवाद लेखक कादर ख़ान और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन!
"ज़िंदगी तो बेवफ़ा है..एक दिन ठुकराएगी
मौत मेहबूबा है..अपने साथ लेकर जाएंगी.."


आख़िर कादर ख़ान जी ने इस बेरहम दुनियाँ को अलविदा किया। लेकिन दुख होता है इतने मंजे हुए लेखक को सिर्फ उनकी हास्य भूमिकाओं से याद किया जाता हैं!
पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ कादर ख़ान!

मूल अफ़ग़ानिस्तान से आए कादर ख़ान बंबई में पले-पढ़े और पाँच साल इंजीनियरिंग के अध्यापक रहें! तब शौक से वह नाटक लिखते थे और उसमें अभिनय भी करतें थे। इस दौरान उनका एक नाटक देखने फिल्म निर्देशक नरेंद्र बेदी आएं थे और उससे प्रभावित होकर उन्होंने कादर ख़ान को अपनी फ़िल्म 'जवानी दीवानी' (१९७२) लिखने का मौका दिया।

'अग्निपथ' (१९९०) में अमिताभ बच्चन!

उसके सफलता के बाद १९७४ में तब के सुपरस्टार राजेश खन्ना ने वह काम कर रहे मनमोहन देसाई की फ़िल्म 'रोटी' के संवाद उनसे लिखवाएं..जो मशहूर हुएं। इसी दरमियान उनकी परदे पर अभिनय की शुरुआत भी राजेश खन्ना अभिनीत फ़िल्म 'दाग़' (१९७४) से हुई जिसे बनाया था मशहूर यश चोपड़ा जी ने! 

उसके बाद उन्होंने फिल्मों में सहायक अभिनेता के किरदार बख़ूबी निभाएं। इसमें जानेमाने अदाकार दिलीप कुमार अभिनीत 'सगीना' (१९७४) और 'बैराग' (१९७६) जैसी फ़िल्मे थी!



लेकिन लेखक की हैसियत से कादर ख़ान जी का काम सराहनीय रहा। इसमें महत्वपूर्ण बात यह की अगर अमिताभ बच्चन को 'एंग्री यंग मैन' इमेज देकर फ़िल्म 'ज़ंजीर' (१९७३) के ज़रिये सुपरस्टार बनाने का श्रेय मशहूर लेखक सलीम-जावेद जी को जाता हैं; तो उसके लिए आगे प्रकाश महरा और मनमोहन देसाई की सफल फिल्मों में एक से एक तूफानी संवाद लिखकर..उसे लोकप्रियता में बरक़रार रखने में कादर ख़ान जी का योगदान भी हैं! याद करें 'सुहाग' (१९७९) और 'लावारीस' (१९८१) जैसी फिल्मों में उन्होंने लिखें संवाद! इसमें उनकी विशेषता यह कही जा सकती हैं की उन्होंने शहरी आम..खासकर बम्बैया इमेज के नायक की बोली को इसमें बख़ूबी इस्तेमाल किया।.. इसी वजह से अमिताभ का 'अन्थोनी' का किरदार भी बड़ा पॉपुलर रहा! मुकुल आनंद की 'अग्निपथ' (१९९०) में तो उनके संवादों में ढाला अमिताभ का "विजय दीनानाथ चौहान" का किरदार 'नेशनल अवार्ड' जीत गया!

लोकप्रिय अभिनेता गोविंदा और कादर ख़ान!
साऊथ इंडियन निर्माताओं ने तो जितेन्द्र नायकवाली फिल्मों के लिएं लेखक-कलाकार कादर ख़ान को हमेशा चुना। बादमें निर्देशक डेविड धवन की गोविंदा हीरोवाली फिल्मों में उनकी कॉमेडी छायी रहीं। हालांकि उन्होंने अलग-अलग किस्म के किरदार भी निभाएं। 

करीब ३०० फिल्मों में कादर ख़ान जी ने काम किया और लगभग २५० फिल्मों के लिएं संवाद लिखें।


कादर ख़ान जी को कुछ सम्मान प्राप्त हुएं..जिसमें 'मेरी आवाज़ सुनो' (१९८१) के लिए 'बेस्ट डायलॉग' का 'फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड' और २०१३ में मिला 'साहित्य शिरोमणी पुरस्कार' का समावेश हैं!

उन्हें सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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