Tuesday 27 March 2018

उर्दू कवी आगा हश्र कश्मीरी.

आगा हश्र कश्मीरी..उर्दू के शेक्सपीअर!


- मनोज कुलकर्णी

 
"सब कुछ खुदा से माँग लिया तुझको माँगकर
उठते नहीं हैं हाथ मेरे..इस दुआ के बाद..!"


आगा हश्र कश्मीरीजी का यह शेर..सुना-देखा 'संगम' (१९६४) फिल्म के एक सीन में..जिसमें राज कपूर वैजयंतीमाला को यह कहते है!
फिल्म 'संगम' (१९६४)  में वैजयंतीमाला और राज कपूर!

उर्दू के विख्यात कवी तथा नाटककार कश्मीरीजी को आज 'विश्व रंगमंच दिन' पर याद करना लाज़मी है..क्योंकि उन्हें 'उर्दू के शेक्सपीअर' कहा जाता था!

 
१८९७ में उनका 'आफ़ताब-ए-मोहब्बत' यह पहला नाटक प्रसिद्ध हुआ! उन्होंने ड्रामा राइटर की हैसियत से बम्बई के 'न्यू अल्फ्रेड थिएटर कंपनी' के लिए काम किया..जहाँ 'मुरिद-ए-शाक' यह उनका पहला प्ले किया गया, जो बहुत सफल हुआ..यह शेक्सपीअर के 'द विंटर्स टेल' से रूपांतरित था! बाद में उन्होंने शेक्सपीअर के कई प्लेज़ उर्दू में रूपांतरित किए!

बिमल रॉय की फिल्म 'यहूदी' (१९५८) में मीना कुमारी और दिलीपकुमार!
१९१५ में प्रकाशित उनका 'यहूदी की लड़की' नाटक तो बहुत मशहूर हुआ..और बाद में उस पर फिल्में भी बनी! इसमें प्रख्यात 'न्यू थिअटर्स' ने सैगल, रतनबाई और पहाड़ी सन्याल को लेकर १९३३ में 'यहूदी की लड़की' फिल्म की..तो बाद में दिलीपकुमार, मीना कुमारी और सोहराब मोदी को लेकर बिमल रॉयजी ने १९५८ में 'यहूदी' फिल्म निर्देशित की..जो काफ़ी सराही गयी!

पारसी थिएटर पर उनके काफ़ी नाटक सादर हुए! करिअर के आखरी पड़ाव में कश्मीरीजी ने 'शेक्सपीअर थिएट्रिकल कंपनी' स्थापित की; लेकिन वह थोड़ेही काल चली!

उन्हें अभिवादन!!

- मनोज कुलकर्णी
 ['चित्रसृष्टी', पुणे]

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