"हमरी अटरिया पे आओ सवरियां..देखा देखी बलम हुई जाए..
तस्सवुर में चले आते हो...कुछ बातें भी होती हैं...
शब-ए-फुरकत भी होती हैं...मुलाकातें भी होती हैं..!"
शाम-ए-गम को दिल को सुकून मिलने के लिए बेगम अख्तरजी की गायी हुई यह ठुमरी सुन रहां था..तब इसके रचेता याद आए वाजिद अली शाह..अवध के आखरी नवाब जो कलाओं में बहुत रूचि रखते थे और खुद शायरी भी करते थे! संगीत की दुनिया में उनका खास योगदान रहा, जिसमें 'ठुमरी' का आगाज़ उनके दरबार के संगीत जलसे में हुआ..'ठुमकना' शब्द से रची यह संगीत-नृत्य शैली वैसे कथ्थक से ताल्लुक रखती और उसके साथ गायी जाती थी!
'ख्याल' के बाद उत्तर प्रदेश संगीत की एक अहम् शैली रही 'ठुमरी' वैसे तो अवध भाषा में ही रची गयी! इस तरह की बंदिश पेश करने वाली रसूलन बाई, सिध्देश्वर देवी जैसी गायिकाएं बनारस घराने से ताल्लुक रखती थी! फिर ग़ौहर जान और यह (बेगम) अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी इसमें बहुत मशहूर हुई!
सुमनांजली.!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
तस्सवुर में चले आते हो...कुछ बातें भी होती हैं...
शब-ए-फुरकत भी होती हैं...मुलाकातें भी होती हैं..!"
शायर नवाब वाजिद अली शाह! |
शाम-ए-गम को दिल को सुकून मिलने के लिए बेगम अख्तरजी की गायी हुई यह ठुमरी सुन रहां था..तब इसके रचेता याद आए वाजिद अली शाह..अवध के आखरी नवाब जो कलाओं में बहुत रूचि रखते थे और खुद शायरी भी करते थे! संगीत की दुनिया में उनका खास योगदान रहा, जिसमें 'ठुमरी' का आगाज़ उनके दरबार के संगीत जलसे में हुआ..'ठुमकना' शब्द से रची यह संगीत-नृत्य शैली वैसे कथ्थक से ताल्लुक रखती और उसके साथ गायी जाती थी!
अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी..बेगम अख्तरजी! |
'ख्याल' के बाद उत्तर प्रदेश संगीत की एक अहम् शैली रही 'ठुमरी' वैसे तो अवध भाषा में ही रची गयी! इस तरह की बंदिश पेश करने वाली रसूलन बाई, सिध्देश्वर देवी जैसी गायिकाएं बनारस घराने से ताल्लुक रखती थी! फिर ग़ौहर जान और यह (बेगम) अख्तरी बाई फ़ैज़ाबादी इसमें बहुत मशहूर हुई!
सुमनांजली.!!
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)
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