Thursday 22 March 2018

कवि साहिर लुधियानवी.
आज के हालतों के मद्देनज़र मुझे साहिर लुधियानवी जी की यह पसंदीदा नज़्म याद आयी...

"संसार से भागे फिरते हो..भगवान को तुम क्या पाओगे..
इस लोक को भी अपना न सके..उस लोक में भी पछताओगे!
ये पाप है क्या, ये पुण्य है क्या..रीतों पे धरम की मुहरें हैं..
हर युग में बदलते धर्मों को..कैसे आदर्श बनाओगे....?
ये भोग भी एक तपस्या है..तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचयिता का होगा..रचना को अगर ठुकराओगे!
हम कहते हैं ये जग अपना है..तुम कहते हो झूठा सपना है
हम जन्म बिता कर जायेंगे..तुम जन्म गंवा कर जाओगे.!"
'चित्रलेखा' (१९६४) में मीना कुमारी और अशोककुमार.

रोषनजी के संगीत में यह लता मंगेशकरजी ने गायी थी!

'चित्रलेखा' (१९६४) में मीना कुमारी, 
प्रदीप कुमार और अशोक कुमार!





'चित्रलेखा' (१९६४) इस किदार शर्मा निर्देशित अभिजात फ़िल्म में मीना कुमारीजी और अशोक कुमारजी के क़िरदारों के बीच यह तात्विक बहस थी!

जीवन का बड़ा अर्थ इसमें समाया हैं!

- मनोज कुलकर्णी 
['चित्रसृष्टी', पुणे]

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