"लागी नाहीं छूटे.."
अपने अदाकारी के शहंशाह यूसुफ़ ख़ान याने की दिलीप कुमार जी को संगीत-गायन और निर्देशन में भी दिलचस्पी थी! उन्होंने अपनी स्वरसम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के साथ नग़्मा भी गाया हैं!
लता मंगेशकर जी के साथ "लागी नाहीं छूटे." गाते दिलीप कुमार जी! |
उस 'मुसाफ़िर' की एक और विशेषता थी (जो कम लोग जानतें हैं) की इसमें दिलीप कुमार जी ने गाया भी! शैलेन्द्र जी ने लिखा "लागी नाहीं छूटे." यह दर्दभरा गीत सलिल चौधरी जी के संगीत में लता मंगेशकर जी के साथ उन्होंने बहुत ख़ूब गाया। हालांकि इससे पहले बिमलदा की फ़िल्म 'देवदास' (१९५५) में कोठे के फेमस सीन से पहले वे जो गुनगुनाएं थे वह रागदारी से कम न था। उनकी उसी आवाज़ की ख़ूबी को हृषिदा ने तराशा! बाद में उनकी आवाज़ में 'मुसाफ़िर' जैसा नग़्मा सुनने को नहीं मिला। उन्होंने अपना पूरा तवज्जोह अभिनय पर दिया!
ऐसी ही एक बात उनके निर्देशन और संगीत के बारे में हैं। "कोई सागर दिल को बहलाता नहीं.." यह शकील बदायुनी जी ने लिखा नग़्मा दिलीप कुमार जी ने 'दिल दिया दर्द लिया' (१९६६) में साकार किया। उन्होंने खुद यह फ़िल्म ए. आर. कारदार जी के साथ निर्देशित की थी! संगीत के अच्छे जानकार उन्होंने यह नग़्मा मशहूर मौसीकार नौशाद जी को खास 'राग कलावती' में संगीतबद्ध करने को कहा था! फिर उसी में मोहम्मद रफ़ी जी की दर्द भरी आवाज़ में वह आया और दिल को स्पर्श कर गया।
मैंने भी लगभग बीस साल पहले एक अनौपचारिक समारोह में यूसुफ़ साहब को शहनाई पर ताल देते हुए और गुनगुनातें रूबरू देखा-सुना हैं!
लता जी के ९४ वे जनमदिन पर यह "लागी नाहीं छूटे.." याद आया!!
दोनों को सुमनांजलि!!
- मनोज कुलकर्णी
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