Friday 9 June 2023

याद सूफी कवि अमीर ख़ुसरो जी की!

"जिहाल-ए-मिस्किन
मकुन ब-रंजिश.."

यह नग़्मा अब नए अंदाज़ में विशाल मिश्रा और श्रेया घोषाल ने गाएं म्यूज़िक वीडियो में सुनाई दिया!

सुनकर अच्छा लगा और याद आयी इस के मूल सूफियाना कवि अमीर ख़ुसरो जी की! उनकी "ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां" यह मूल नज़्म मशहूर हैं।

हालांकि, तीन दशक से भी पहले गुलज़ार जी ने इस पर लिखा गीत जे. पी. दत्ता जी की फ़िल्म 'गुलामी' (१९८५) में लिया गया था। इसे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जी के संगीत में शब्बीर कुमार और लता मंगेशकर जी ने गाया था। यह काफी लोकप्रिय हुआ था!
[वैसे गुलज़ार जी का फ़िल्म 'मौसम' (१९७५) का गीत "दिल ढूँढता है फिर वही.." भी मिर्ज़ा ग़ालिब जी के "जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन" शेर से ही प्रेरित था!]

ख़ैर, चौदहवीं सदी के ख़ुसरो जी का सूफियाना असर अब भी बरक़रार हैं!
कश्मीर की ख़ूबसूरती पर उनका यह फ़ारसी उद्धरण आज भी उस सरज़मी की जैसे पहचान बन गया हैं..
"अगर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त...
हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त-ओ हमीं अस्त!"


ऐसे अमीर ख़ुसरो साहब को सलाम!!

- मनोज कुलकर्णी

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